जिला मुख्यालय से कुछ कदमों की दूरी पर पूर्णिया जिले का मुख्य बस स्टैंड अवस्थित है। यह सिलीगुड़ी, भागलपुर, सीमांचल और कोशी क्षेत्र के दूसरे जिलों से आने-जाने वाली कई बसों का गंतव्य होने के साथ-साथ मुख्य पड़ाव स्थल है। यह जिला पूर्णिया और उसके सीमावर्ती क्षेत्रों को बिहार की राजधानी पटना से जोड़ने वाली कड़ी भी है। यहाँ से दिन-रात रोज़ाना करीब 200 बसें खुलती है।
एक ओर की यात्रा पूरी होने पर बसें यहाँ मरम्मत और अगली यात्रा की तैयारी के लिए खड़ी रहती हैं। यहाँ होटल हैं। चाय-नाश्ते की दुकानें हैं। आस-पास फास्ट फूड, फल और अन्य छोटी-बड़ी जरूरतों के लिए दुकानें व रेहड़ी हैं। यहाँ शौचालय की व्यवस्था है। इन सबके अतिरिक्त बस स्टैंड पर कुर्सी-टेबल लगाकर टिकट बिक्री करने वाले लोगों की मौज़ूदगी, गंतव्य स्थान का नाम ले-लेकर यात्रियों को अपनी बसों की ओर खींचते स्टॉफ, बस स्टैंड के कुछ हिस्सों में पसरी गन्दगी और उस पर भिनभिनाती मक्खियाँ, घूमते सूअर, जाम हो चुकी नालियाँ, यात्रियों सह नागरिकों को साफ नज़र आती हैं। यह तब है जब इस बस स्टैंड से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हजारों लोगों का पालन-पोषण होता है, सरकार को राजस्व की प्राप्ति होती है और चुनिंदा लोग मुनाफ़ा कमाते हैं।
जानकार बताते हैं कि मौज़ूदा बस स्टैंड का निर्माण अस्सी के दशक में जिला पदाधिकारी रामसेवक शर्मा के समय हुआ था। लेकिन, बदलते समय के अनुसार यहाँ यात्रियों को सहज मिल जाने वाली मूलभूत सुविधाओं की आपूर्ति कराने में सरकारी संस्थाएँ और नागरिक समाज पीछे रह गईं।
बस स्टैंड का प्रबंधन स्थानीय स्वशासी संस्थाएँ जैसे नगर पंचायत, नगर परिषद और नगर निगम के जिम्मे है। ये सभी संवैधानिक संस्थाएँ हैं जिसका संविधान के भाग नौ (अ) में प्रावधान किया गया है।
पूर्णिया बस स्टैंड पर यात्री सुविधाओं की मौज़ूदा हालत
यूँ तो पूर्णिया की सड़कें दूसरे जिलों की सड़कों से अपेक्षाकृत अधिक चौड़ी हैं। शहर के बीच सिक्स लेन के किनारे अवस्थित बस स्टैंड में यहाँ से गुजरने वाली सभी बसों के खड़े रहने की जगह नहीं है। पूर्णिया से भागलपुर की ओर जाने वाली गाड़ियाँ एसबीआई एटीएम से चंद कदम आगे सड़क किनारे खड़ी मिल जाती हैं। यात्रियों को चढ़ाने के लिए बसों के स्टाफ मौजूदा निर्मित सड़क का एक महत्वपूर्ण हिस्सा घेर लेते हैं।
कुछ यही हालत पटना जाने वाली बसों के आस-पास देखी जा सकती है। शाम ढ़लते ही पटना जानेवाली कुछ बसें सड़क सटाकर खड़ी कर दी जाती हैं। मधेपुरा, सहरसा की ओर जाने वाली बसें भी स्टैंड से खुलने के बाद सड़क किनारे लगती हैं और कुछ अंतराल के बाद ही खुलती हैं। इस दौरान बसों पर सवारियाँ चढ़ती-उतरती रहती है। इन सबके कारण सड़क संकरी हो जाती है और आस-पास से गुजर रही गाड़ियां रेंग-रेंग कर आगे बढ़ती है। मौजूदा बस स्टैंड में बसों की तुलना में यात्रियों के बैठने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है।
जल निकासी की स्थिति
बस स्टैंड की गेट संख्या 2 के किनारे और स्टैंड के पिछले हिस्से में बने नाले टूटे हुए हैं। ये टूटे नाले तरह-तरह के कचरे से पटे पड़े हैं जिससे गन्दे पानी का बहाव रुका हुआ है। इससे टूटे-फूटे नालों में कचरे के साथ-साथ गन्दा पानी जमा रहता है।
रोशनी की मौजूदा व्यवस्था
पटना के लिए निकलने वाली गाड़ियों के खड़े रहने के स्थान पर दो-तीन जगहों पर हाई मास्ट लाइट लगाई गई है। इससे बस स्टैंड के एक हिस्से की रोशनी की जरूरत पूरी होती है। लेकिन, बस स्टैंड का वो हिस्सा जहाँ से सहरसा-मधेपुरा और कटिहार की गाड़ियां निकलती हैं, यानी गेट नम्बर एक और दो का हिस्सा अंधकारमय रहता है।
बस स्टैंड के पिछले हिस्से में भी रोशनी की जरूरत नहीं समझी गई जिससे उन हिस्सों में अंधेरा रहता है।
बैठने की व्यवस्था
मौजूदा बस स्टैंड में यात्रियों के बैठने की समुचित व्यवस्था नहीं है। इतना ही नहीं, काउंटर भी नाममात्र के गिने-चुने ही हैं। बस स्टैंड परिसर में पूर्णिया से पटना जाने वाली बसों के खड़े होने के स्थान पर बसों के आगे कुर्सी-टेबल लगाकर किरानी या बस स्टाफ टिकटों की बिक्री करते हैं।
साफ-सफाई की मौजूदा व्यवस्था
बस स्टैंड में दोनों प्रवेश द्वार से घुसते ही चारदीवारी के किनारे पसरा कूड़ा यात्रियों को अपनी मौजूदगी का एहसास कराता है। स्टैंड के अधिकांश हिस्से में प्लास्टिक की थैली, बोतलें, काग़ज-गत्ते के टुकड़े, गाड़ियों की मरम्मत के दौरान निकले खराब पुर्जे पसरे रहते हैं।
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बस स्टैंड पर यात्रियों को उच्च कोटि की सुविधा मुहैया कराने व उसके संधारण के प्रयास
इस बस स्टैंड के समुचित प्रबंधन, यात्रियों को उच्च स्तर की सुविधा देने और उसके रखरखाव के लिए बिहार सरकार के नगर विकास व आवास विभाग के उस वक्त के प्रधान सचिव अमृत लाल मीणा ने नगर आयुक्त को कई अहम दिशा-निर्देश जारी करते हुए उसके अनुपालन की हिदायत दी।
प्रधान सचिव द्वारा जारी दिशा-निर्देश में बस स्टैंड में जल निकासी, पर्याप्त रोशनी, साफ-सफाई और शौचालय की व्यवस्था मुहैया कराने और उसके रखरखाव की बात कही गयी है।
बीते एक साल से शहर के बीच स्थित इस बस अड्डे को कहीं और ले जाने की बात चल रही है। माना जा रहा है कि मरंगा में नए बस स्टैंड के निर्माण के लिए साढ़े सात एकड़ जमीन चिन्हित भी कर ली गई है। हालांकि, नए बस स्टैंड को लेकर अफ़वाहें भी हैं। एक बस चालक जितेन्द्र बताते हैं, “बस स्टैंड के बेलोरी जाने की बात चल रही है। वहाँ मिट्टी भराव का काम जोर-शोर से चल रहा है। ऐसा होगा तो इस साइड का रोजगार ही चौपट हो जाएगा।”
बस स्टैंड में पसरी गंदगी की बात पर वह कहते हैं, “सफाई वाला आता है, जितना होता है, साफ कर चला जाता है। यह सब तो ऐसे ही चलता रहेगा।”
उच्च कोटि की यात्री सुविधा से लैस बस स्टैंड का निर्माण और इस्तेमाल नगर वासियों के लिए दूर की कौड़ी है। तब तक बस स्टैंड से सीधे और परोक्ष तौर पर ताल्लुक रखने वाले नागरिकों को नगर निगम, पूर्णिया द्वारा मुहैया गई मौजूदा सुविधाओं से संतोष करना होगा।
बिहार सरकार के नगर विकास व आवास विभाग के तत्कालीन प्रधान सचिव अमृत लाल मीणा की मानें, तो शहर के बस स्टैंड का प्रबंधन, शहरी निकाय की कार्यक्षमता का आईना है। अगर ऐसा है, तो नगरवासियों को इस कसौटी के आधार पर नगर निकाय के जिम्मेदार पदाधिकारियों की कार्य प्रणाली का सतत मूल्यांकन करते रहना चाहिए।
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