देश की राजनीति में पांच दशकों तक सक्रिय रहे शरद यादव देश के उन चुनिंदा नेताओं में से थे, जो तीन अलग-अलग राज्यों से जीतकर लोकसभा पहुंचे। शरद यादव अपने राजनीतिक करियर में सात बार लोकसभा चुनाव जीते और चार बार राज्यसभा सदस्य के तौर पर भी निर्वाचित हुए।
शरद चार बार बिहार के मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र से सांसद चुने गए। उन्होंने 1991, 1996, 1999 और 2009 में मधेपुरा सीट का प्रतिनिधित्व किया। हालांकि, मधेपुरा से 1998 और 2004 के चुनाव में उनको राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद और 2014 में पप्पू यादव से शिकस्त भी मिली।
जबलपुर से की राजनीति की शुरुआत
शरद यादव ने अपने राजनीतिक पारी की शुरुआत मध्य प्रदेश के जबलपुर लोकसभा क्षेत्र से उपचुनाव जीत कर की थी। दरअसल, 1974 में जबलपुर सीट के वर्तमान सांसद सेठ गोविंद दास की मृत्यु के बाद वहां उपचुनाव कराना पड़ा था।
चुनाव में शरद यादव के सामने कांग्रेस के टिकट पर जबलपुर के सेठ गोविंद दास के पोते रवि मोहन चुनाव लड़ रहे थे।
सेठ गोविंद दास जबलपुर सीट पर 1957 से ही लोकसभा का प्रतिनिधित्व करते आ रहे थे। इसलिए, कांग्रेस ने उनके पोते रवि मोहन को जबलपुर से उतारा था। कांग्रेस को उम्मीद थी कि दादा की मृत्यु के बाद रवि मोहन को सहानुभूति वोट मिलेगा और वह आसानी से चुनाव जीत जाएंगे।
इधर, शरद यादव जबलपुर विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष रह चुके थे। 1973 में एक आन्दोलन के दौरान उनको जेल भी जाना पड़ा था। जेल में रहने के दौरान ही वह राम मनोहर लोहिया के विचारों से प्रभावित हुए और बाद में जेपी आन्दोलन से जुड़े।
जबलपुर सीट पर 1974 में हुए इस उपचुनाव में शरद यादव भारतीय लोक दल के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे। दोनों युवा उम्मीदवारों के बीच जमकर मुक़ाबला हुआ। चुनाव में शरद यादव को जीत मिली और वह 28 साल की उम्र में ही पहली बार लोकसभा पहुंच गए।
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चुनाव में मिली जीत के बाद शरद यादव ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा और अपनी राजनीति को लगातार आगे बढ़ाया। 1977 के लोकसभा चुनाव में भी शरद यादव भारतीय लोकदल के टिकट पर जबलपुर सीट से जीते। चुनाव में शरद यादव को 1,94,516 वोट मिले और उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार जगदीश नारायण अवस्थी को 75,891 वोटों से मात दी।
1978 में शरद यादव को पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व वाले लोकदल का महासचिव बनाया गया।
शरद-राजीव गांधी हुए आमने-सामने
23 जून 1980 को कांग्रेस नेता संजय गांधी की एक विमान हादसे में मौत हो गई। उस वक्त संजय गांधी, उत्तर प्रदेश के अमेठी लोकसभा क्षेत्र से सांसद थे। उनकी मौत के बाद अमेठी सीट पर उपचुनाव हुआ।
1981 में हुए इस उपचुनाव में राजीव गांधी के खिलाफ शरद यादव मैदान में उतरे। हालांकि, चुनाव में शरद यादव को 2,37,696 वोटों के बड़े अंतर से बुरी हार का सामना करना पड़ा।
शरद यादव को इस चुनाव में मात्र 21,188 वोट हासिल हुए, जबकि राजीव गांधी को 2,58,884 वोट मिले थे। इस उपचुनाव में अमेठी से जीतकर कांग्रेस नेता राजीव गांधी पहली बार संसद पहुंचे थे।
जब 1984 में 8वां आम चुनाव हुआ तो, शरद यादव ने लोकदल के टिकट पर उत्तर प्रदेश के बदायूं से चुनाव लड़ा। चुनाव में शरद यादव को कांग्रेस के सलीम इक़बाल शेरवानी के सामने 49,742 वोटों से शिकस्त मिली।
इस चुनाव में शरद यादव को 1,33,782 और सलीम इक़बाल शेरवानी को 1,83,524 वोट प्राप्त हुए।
1986 में शरद यादव पहली बार राज्य सभा सदस्य के तौर पर चुने गये। लालू यादव और मुलायम सिंह यादव के साथ मिलकर शरद यादव ने पिछड़े समुदायों के अन्दर राजनीतिक चेतना पैदा की और इन समुदायों को गोलबंद किया।
केंद्रीय कपड़ा मंत्री भी रहे शरद यादव
1989 के लोकसभा चुनाव में शरद यादव एक बार फिर उत्तर प्रदेश की बदायूं सीट से चुनाव लड़े। उन्होंने जनता दल के टिकट पर 2,25,712 वोट हासिल कर कांग्रेस के राम नरेश यादव को 92,086 वोटों के अंतर से हराया।
जीत के बाद शरद यादव, वीपी सिंह नीत सरकार में केंद्रीय कपड़ा मंत्री बने। उन्होंने 1990 में पिछड़े वर्गों के लिये 27 फीसदी आरक्षण संबंधी मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागू करवाने में अहम किरदार निभाया।
1991 में शरद यादव ने जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ते हुए जनता पार्टी के उम्मीदवार आनन्द मोहन को 2,85,377 वोटों के बड़े अंतर से हराया था। वहीं, 1996 में शरद यादव ने समता पार्टी के आनंद मंडल को 2,37,144 मतों से शिकस्त दी थी।
1989-97 के बीच शरद जनता दल के महासचिव रहे और 1997 में पार्टी के अध्यक्ष बने।
शरद यादव बनाम लालू यादव
हालांकि, 1998 में उन्हें राष्ट्रीय जनता दल सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के हाथों 51,983 वोटों के अंतर से शिकस्त का सामना करना पड़ा। चुनाव में लालू प्रसाद यादव को 2,97,686 वोट और शरद यादव को 2,45,703 वोट हासिल हुए थे।
लेकिन, अगले ही साल 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में शरद यादव, लालू प्रसाद यादव को हरा कर एक बार फिर मधेपुरा सीट पर क़ाबिज़ हुए। 1999 के लोकसभा चुनाव में शरद यादव ने लालू प्रसाद यादव को 30,320 मतों से हराया।
2004 के चुनाव में शरद यादव को मधेपुरा से एक बार फिर लालू प्रसाद यादव से शिकस्त मिली। यह दूसरी बार था, जब उन्हें लालू यादव के हाथों हार का मुंह देखना पड़ा था। चुनाव में लालू याद को 3,44,301 और शरद यादव को 2,74,314 वोट प्राप्त हुए।
हार के बाद शरद यादव राज्यसभा सदस्य के तौर पर निर्वाचित हुए। वह 8 जुलाई 2004 से 16 मई 2009 तक राज्यसभा के सदस्य रहे।
2009 के लोकसभा चुनाव में शरद यादव की किस्मत का पासा पलटा और उन्होंने जदयू के टिकट पर चुनाव लड़ते हुए राजद के प्रो. रवीन्द्र चरण यादव को हराया।
हालांकि, 2014 के आम चुनाव में शरद यादव को राजद उम्मीदवार राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव के सामने शिकस्त का सामना करना पड़ा।
राज्यसभा से निष्कासन
2014 के लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद शरद यादव पुनः राज्यसभा सदस्य चुने गए। 2016 में जदयू ने उन्हें चौथी बार राज्यसभा भेजा।
30 अक्टूबर 2003 को जदयू की स्थापना से लेकर 10 अप्रैल 2016 तक शरद जनता दल (यूनाइटेड) के अध्यक्ष रहे।
4 दिसंबर 2017 को जदयू ने शरद यादव को पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाकर राज्यसभा से निष्कासित करवा दिया। दरअसल उन्होंने महागठबंधन से नाता तोड़कर एनडीए के साथ जाने के नीतीश कुमार के फैसले का खुला विरोध किया था। उसके बाद उन्होंने लोकतांत्रिक जनता दल नाम से एक पार्टी बनाई, लेकिन इस पार्टी का कोई असर नहीं रहा।
2019 का लोकसभा चुनाव उन्होंने राजद के टिकट पर लड़ा। हालांकि, चुनाव में शरद यादव को जदयू के दिनेश चंद्र यादव से हार मिली। यह शरद यादव का आख़िरी चुनाव था।
राजनैतिक विरासत
12 जनवरी 2023 को शरद यादव का गुरुग्राम स्थित फोर्टिस अस्पताल में निधन हो गया। शरद यादव की संतानें बेटा शांतनु और बेटी सुभाषिनी हैं। सुभाषिनी कांग्रेस से जुड़ी हैं।
सुभाषिनी 2020 विधानसभा चुनाव में मधेपुरा के बिहारीगंज सीट से चुनाव हार गईं। पुत्र शांतनु बुंदेला मधेपुरा लोकसभा सीट से राजद टिकट पर चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं।
शांतनु की उम्र करीब 30 साल है और उनकी पढ़ाई इंग्लैंड में हुई है। अगर, उन्हें टिकट मिल जाता है, तो 2024 का लोकसभा चुनाव उनका पहला चुनाव होगा।
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