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जब सम्राट चौधरी ने नीतीश के लिए तोड़े थे राजद विधायक

54 वर्षीय सम्राट चौधरी, पुराने व कद्दावर नेता शकुनी चौधरी के बेटे हैं। फिलहाल, राजद और जदयू पर हमलावर सम्राट चौधरी एक जमाने में राजद और जदयू में अहम पदों पर थे।

Reported By Umesh Kumar Ray |
Published On :
Samrat Chaudhary and Nitish Kumar

भारतीय जनता पार्टी ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बिहार इकाई के शीर्ष पद में फेरबदल की है। भाजपा नेता व पार्टी में कोइरी का चेहरा सम्राट चौधरी को पार्टी ने राज्य का अध्यक्ष बनाया है।


54 वर्षीय सम्राट चौधरी, पुराने व कद्दावर नेता शकुनी चौधरी के बेटे हैं। फिलहाल, राजद (राष्ट्रीय जनता दल) और जदयू (जनता दल यूनाइटेड) पर हमलावर सम्राट चौधरी एक जमाने में राजद और जदयू में अहम पदों पर थे।

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नीतीश कुमार के बेटे निशांत के जदयू में शामिल होने की चर्चा की वजह क्या है?

सम्राट चौधरी अपने तीन दशक के राजनीतिक करियर में कई बार सुर्खियों में आए और उन्हीं में एक सुर्खी साल 2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बनी थी। उस वक्त वह राष्ट्रीय जनता दल के वफादार हुआ करते थे।


आम चुनाव की तैयारियां युद्धस्तर पर चल रही थीं और गुजरात में कई बार सीएम रह चुके नरेंद्र मोदी भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे। नरेंद्र मोदी की पीएम उम्मीदवारी से जदयू नाराज था। साल 2013 में जून महीने के मध्य में जदयू ने आधिकारिक तौर पर भाजपा के साथ गठबंधन यह कहकर खत्म कर लिया था कि भाजपा, बिहार में एनडीए में आंतरिक हस्तक्षेप कर रही है।

उस वक्त जदयू के पास 116 विधायक थे।

भाजपा से अलग होने के बाद जदयू के लिए सरकार चला पाना मुश्किल था। ऐसे मुश्किल वक्त में कांग्रेस के चार विधायक, चार निर्दलीय विधायक और सीपीआई के इकलौते विधायक जदयू के साथ आ गए। उसी साल जून में फ्लोर टेस्ट में जदयू बहुमत साबित करने में कामयाब हो गया, लेकिन जोखिम की तलवार लटकी हुई थी।

इसी जोखिम को खत्म करने के लिए सियासी परिदृश्य में सम्राट चौधरी की नाटकीय एंट्री होती है।

सम्राट चौधरी उस वक्त राजद में थे। उनके पिता शकुनी चौधरी भी उसी पार्टी में थे।

13 एमएलए के हस्ताक्षर वाला पत्र दिया था राज्यपाल को

सूत्र बताते हैं कि जदयू के कुछ शीर्ष नेताओं ने सम्राट चौधरी से सरकार में बड़ी हिस्सेदारी देने के लिए एक दर्जन राजद विधायकों को तोड़ने की शर्त रख दी, जिसे चौधरी ने मान लिया था।

पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक चंदन बताते हैं, “खुद नीतीश कुमार इसमें सक्रिय थे। सम्राट चौधरी ने भी 13 विधायकों को राजद से तोड़ने का वादा किया था। सबकुछ व्यवस्थित तरीके से हुआ था। उदय नारायण चौधरी जो उस वक्त विधानसभा अध्यक्ष थे, दफ्तर में इंतजार में थे कि कब सम्राट चौधरी 13 विधायकों के हस्ताक्षरित पत्र लेकर आएं और वह 13 विधायकों को अलग पार्टी का दर्जा देने का ऐलान कर दें।”

इस सूची में अब्दुल गफूर, ललित यादव, दुर्गा प्रसाद सिंह, फैयाज अहमद, डॉ चंद्रशेखर, अख्तरुल ईमान समेत लालू प्रसाद यादव के कई वफादार नेताओं के नाम थे।

पत्रकार दीपक मिश्रा कहते हैं कि उस वक्त सम्राट चौधरी व राजद के कुछ अन्य विधायक लोकसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक थे, लेकिन राजद का कांग्रेस के साथ गठबंधन के चलते इन विधायकों की पसंदीदा सीटें कांग्रेस की झोली में जा रही थीं, जिससे वे नाराज थे।

सम्राट चौधरी ने 13 विधायकों के हस्ताक्षर वाला पत्र उदय नारायण चौधरी को सौंप दिया। उदय नारायण चौधरी ने भी तुरंत उन 13 विधायकों के विधानसभा में अलग बैठने के इंतजाम करने का आदेश दे दिया। लेकिन जब पार्टी छोड़ने की बारी आई, तो शकुनी चौधरी समेत महज सात राजद विधायकों ने ही पार्टी छोड़ी।

बाद में राजद ने आरोप लगाया कि सम्राट चौधरी ने कई राजद विधायकों के फर्जी हस्ताक्षर कर सूची विधानसभा अध्यक्ष को सौंपी थी। हालांकि सम्राट चौधरी ने इस आरोप को खारिज करते हुए कहा था कि राजद के शीर्ष नेताओं के दबाव में आकर कई विधायकों ने पार्टी नहीं छोड़ी।
अब्दुल बारी सिद्दिकी ने कहा था कि नीतीश कुमार ने चौधरी को मंत्री पद का प्रलोभन देकर राजद को तोड़ने की साजिश की थी।

इस तरह सम्राट चौधरी का अलग पार्टी बनाने का सपना, सपना ही रह गया। जिन विधायकों ने राजद छोड़ा था, उन्होंने जदयू का दामन थामा।

2015 में नीतीश की जगह जीतनराम मांझी के साथ जाना चुना

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की और बिहार में जदयू व राजद का प्रदर्शन बदतरीन रहा। नीतीश कुमार ने इस हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए सीएम पद से इस्तीफा दिया और जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया।

उस वक्त तक राजनीतिक परिस्थितियां बदल चुकी थीं और राजद तथा जदयू एक दूसरे की जरूरत बन गए थे। राजद ने जदयू सरकार को साल 2015 में होनेवाले विधानसभा चुनाव तक बरकरार रखने के लिए समर्थन दिया।

नीतीश कुमार ने साल 2015 में जब जीतनराम मांझी को सीएम पद से हटाने की घोषणा की, तो उस वक्त सम्राट चौधरी ने नीतीश कुमार के खिलाफ वगावती तेवर अपनाए।

उस वक्त नीतीश के फैसले को दरकिनार कर जीतनराम मांझी ने सीएम पद से इस्तीफा देने से साफ इनकार कर दिया था और विधानसभा में बहुमत साबित करने की बात कही थी। उन्होंने इस बाबत जब राज्यपाल से मुलाकात की थी, तो उनके साथ सम्राट चौधरी भी थे। इससे नाराज जदयू ने सम्राट चौधरी को पार्टी से सस्पेंड कर दिया था।

बाद में मांझी ने जदयू से अलग होकर हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) नाम से नई राजनीतिक पार्टी बनाई। बताया जाता है कि सम्राट चौधरी भी जदयू छोड़कर हम में शामिल हो गए। उनके साथ उनके पिता शकुनी चौधरी ने भी हम का दामन थामा। शकुनी चौधरी ने हम के टिकट पर 2015 का विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन जदयू के हाथों हार के बाद उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया। वहीं, दूसरी तरफ, सम्राट चौधरी ने भगवा खेमे का रुख किया और धीरे-धीरे पार्टी में उनका कद बढ़ता चल गया।

कम उम्र के चलते राबड़ी की कैबिनेट से हुए थे बाहर

राजद विधायकों को तोड़ने से करीब डेढ़ दशक पहले सम्राट चौधरी एक और वाकया के चलते सुर्खियों में आए थे।
घटना साल 1999 की है। उस वक्त सम्राट चौधरी, राकेश चौधरी के नाम से जाने जाते थे। उस साल शकुनी चौधरी और उनकी पत्नी पार्वती चौधरी समता पार्टी को छोड़कर राजद में शामिल हुए थे, संभवतः इस आश्वासन पर कि उनके पुत्र सम्राट चौधरी को कैबिनेट में जगह मिलेगी।

सम्राट चौधरी को कैबिनेट में जगह भी मिली। उन्हें राबड़ी देवी की कैबिनेट में मापतौल विभाग का मंत्री बना दिया गया, हालांकि वह न तो विधायक थे और न ही एमएलसी।

उन्होंने उस वक्त अपनी उम्र 31 साल बताई थी। समता पार्टी के नेताओं का दावा था कि सम्राट चौधरी महज 25 साल के हैं और वह इस उम्र में मंत्री बनने की अहर्ता नहीं रखते हैं।

समता पार्टी ने इसकी शिकायत मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) व राज्यपाल से कर दी। राज्यपाल ने निर्वाचन अधिकारी को इसकी जांच का जिम्मा सौंपा। सीईओ ने अपनी जांच रिपोर्ट में बताया कि सम्राट चौधरी जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं और इससे यह मालूम चलता है कि उनकी उम्र कम है।

इस बीच, समता पार्टी की तरफ से राजद पर राजनीतिक दबाव बढ़ता जा रहा था, तो आखिरकार लालू प्रसाद यादव ने सम्राट चौधरी को मंत्री पद से हटने का आदेश दिया और उन्हें हटना पड़ा।

जब विधासनभा अध्यक्ष को कहा था – व्याकुल नहीं होना है

इतना ही नहीं, पिछली एनडीए की सरकार में पंचायत मंत्री रहते हुए उन्होंने अपनी ही पार्टी को विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा को कह दिया था – “ज्यादा व्याकुल नहीं होना है।” उनका यह बयान खूब वायरल हुआ था।

दरअसल, साल 2021 में बजट सत्र में विजय कुमार सिन्हा ने सवालों के जवाब ऑनलाइन नहीं देने पर सम्राट चौधरी को टोका था। इस पर सम्राट चौधरी ने विधानसभा अध्यक्ष से कहा था, “ठीक है, बहुत व्याकुल नहीं होना है।” इससे सिन्हा भड़क गए थे और शब्द वापस लेने को कहा था, तो चौधरी ने उल्टे सिन्हा से कहा था कि सदन ऐसे नहीं चल सकता। “आप डायरेक्शन नहीं दे सकते है। आप इस तरह सदन नहीं चला सकते। आप समझ लीजिए ऐसे कीजिएगा तो सदन नहीं चलेगा बहुत व्याकुल नहीं होइए,” सम्राट चौधरी ने कहा था।

इस बात से भड़के सिन्हा ने चौधरी से खेद प्रकट करने को कहा था और जब उन्होंने ऐसा नहीं किया, तो अध्यक्ष ने कुछ समय के लिए सदन को स्थगित कर दिया था।

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Umesh Kumar Ray started journalism from Kolkata and later came to Patna via Delhi. He received a fellowship from National Foundation for India in 2019 to study the effects of climate change in the Sundarbans. He has bylines in Down To Earth, Newslaundry, The Wire, The Quint, Caravan, Newsclick, Outlook Magazine, Gaon Connection, Madhyamam, BOOMLive, India Spend, EPW etc.

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