देश की राजधानी के नज़दीक उत्तर प्रदेश के जेवर में बन रहे नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट के लिए किसानों की ज़मीन अधिग्रहण की खबर आपने तमाम छोटे बड़े मीडिया संस्थानों में देखी-पढ़ी होगी। लेकिन राजधानी दिल्ली से लगभग 1400 किलोमीटर दूर बिहार के पूर्णिया ज़िले में एयरपोर्ट बनाने के लिए कैसे सरकार किसानों की खेतिहर ज़मीन उनकी मर्ज़ी के बग़ैर छीन रही है, इसकी खबर शायद ही आपको लगी होगी।
पूर्णिया हवाई अड्डा से घरेलु उड़ान की घोषणा
बिहार के पूर्णिया हवाई अड्डा से घरेलु उड़ान बहाल करने की घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 18 अगस्त 2015 में की थी। पूर्णिया सांसद संतोष कुशवाहा ने मार्च 2022 में संसद में कहा था कि ज़मीन अधिग्रहण की राशि 2017 में ही बिहार सरकार ने जिला अधिकारी को आवंटित कर दी थी, लेकिन किसान हाई कोर्ट चले गए थे, जिस वजह से ज़मीन अधिग्रहण नहीं हो पाया था। ज़िले के कृत्यानंद नगर प्रखंड या के. नगर प्रखंड अंतर्गत गोआसी गाँव के 75 किसानों की 52 एकड़ 18 डिसमिल ज़मीन प्रस्तावित पूर्णिया हवाई अड्डे के सिविल इन्क्लेव व संपर्क पथ निर्माण के लिए ली जा रही है।
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पूर्णिया के तत्कालीन जिला पदाधिकारी राहुल कुमार द्वारा ट्विटर पर शेयर की गई जानकारी के अनुसार, 25 अप्रैल, 2022 को भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी कर ली गई है। इसी दिन उन्होंने ट्वीट किया था – “राजस्व विभाग द्वारा हमारी सिफारिशों को मंजूरी मिलने के बाद हमने पूर्णिया हवाई अड्डे के लिए आवश्यक भूमि नागरिक उड्डयन निदेशालय, बिहार सरकार को सौंप दी है। भूमि अधिग्रहण का काम अब पूरा हो गया है।”
लेकिन, जिन किसानों की ‘सिंचित बहुफसली’ ज़मीन अधिग्रहण कर सरकार पूर्णिया एयरपोर्ट (Purnea Airport) के ख्वाब को पूरा करना चाह रही है। उनकी ज़ुबान पर अब भी एक ही वाक्य है – “जान देंगे पर ज़मीन नहीं देंगे”
नये भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 की धारा 4 के अनुसार भूमि अधिग्रहण से पहले सोशल इम्पैक्ट असेसमेंट (SIA) करना ज़रूरी है। पूर्णिया एयरपोर्ट से सम्बंधित भूमि अधिग्रहण के लिए यह ज़िम्मेदारी ए एन सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान, पटना को दी गई थी। फ़रवरी 2019 में जारी संस्था का अध्ययन पूर्णिया ज़िले की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध है। यह अध्ययन परियोजना से प्रभावित 14 परिवारों पर आधारित है। अध्ययन में संस्थान की तरफ से बताया गया है कि अध्ययन में शामिल परिवारों में से 78.57% परिवार सामान्य जाति वर्ग के हैं और शेष 21.43% अन्य पिछड़ा वर्ग के हैं। जबकि स्थानीय किसानों का दावा है कि ज़्यादातर प्रभावित किसान मेहता, यादव, ठाकुर और पासवान जैसी अन्य पिछड़ा वर्ग और दलित समुदाय से हैं।
बृद्ध जोगानंद मेहता के तीन भाइयों के परिवार का गुज़र बसर 5 बीघा ज़मीन से होता है। तीनों भाइयों के परिवारों को मिला कर कुल 10 बेटे-बेटियों और उनके बच्चों का भरण-पोषण खेती पर ही निर्भर है। भारत चीन लड़ाई के बाद 1963 में पूर्णिया सैन्य हवाई अड्डा के निर्माण के लिए इसी गाँव से ज़मीन अधिग्रहण किया गया था। उसी में इनके परिवार की ज़मीन पहले ही जा चुकी है। अब लगभग 60 सालों के बाद दोबारा भूमि अधिग्रहण से ये परिवार भूमिहीन हो जाएगा।
इसी गांव से हुई थी 1963 में भूमि अधिग्रहण
शिवपूजन मेहता के पिता की लगभग 16 एकड़ ज़मीन का बंटवारा दो भाइयों में हुआ, उसमें से 3 एकड़ उपजाऊ ज़मीन हवाई अड्डा के लिए ली जा रही है। शिवपूजन के 10-11 लोगों का परिवार भी पूर्णतः खेती पर ही निर्भर है। वो बताते हैं कि 1963 में देशभक्ति की भावना में बिना किसी विरोध के किसानों ने अपनी जमीन दे दी थी। उस समय भी परिवार की आधी ज़मीन एयरपोर्ट में चली गई थी।
SIA अध्ययन में लिखा गया है कि जनसुनवाई के दौरान ग्रामीणों में रोष देखा गया। उन्होंने बैनर लगा कर विरोध प्रदर्शन किया। ‘वो किसी भी स्थिति में अपनी ज़मीन परियोजना के लिए देने को तैयार नहीं हैं, क्योंकि पूर्णिया सैन्य हवाई अड्डा के निर्माण के लिए इसी मौजा से लगभग 500 एकड़ ज़मीन अधिग्रहण की गई थी, जिससे अधिकांश किसान सीमांत या छोटे किसान हो गए, भूमिहीन हो गये या उन्हें पलायन करना पड़ा। पुनः भूमि अधिग्रहण से उनका परिवार भूखमरी का शिकार हो जाएगा।’
अपने 20 कट्ठा खेत में खीरा की खेती की तैयारी करते हुए टिंकू बताते हैं – इस खेत से सालाना एक लाख की बचत कर लेते हैं, उसी से उनके आठ लोगों का परिवार चलता है। ज़मीन अधिग्रहण की बात पूछने पर बेझिझक बोलते हैं, “गला काट दीजिए उसके बाद ले लीजिए ज़मीन।”
महादलित समुदाय से आने वाले गुणेश्वर पासवान का परिवार भी पूरी तरह खेती पर निर्भर है। वह कहते हैं, “ज़मीन छीन लिया गया तो भीख मांगने के सिवा कोई और रास्ता नहीं रह जाएगा।”
ज़मीन हाथ-पैर है, कैसे दे दें – किसान पंकज मेहता
किसान पंकज मेहता के दादा के नाम से सारी ज़मीन है, आपसी बंटवारे में लगभग 1 बीघा उनके हिस्से आयी है। उसी से अपने दो बच्चों और परिवार का पेट भरते हैं। उसके अलावा उन्होंने 5 कट्ठा ज़मीन करीब 10 साल पहले 1 लाख में खरीदी थी, अब ये सारी ज़मीन पूर्णिया एयरपोर्ट में जाने वाली है। पंकज कहते हैं -ज़मीन हाथ-पैर है, कैसे दे दें।
30 वर्षीय खगेश्वर मेहता को उनके पिता ने परिवार के भरण-पोषण के लिए 5 कट्ठा ज़मीन दी थी। उसी ज़मीन के टुकड़े पर करेले की खेती करते हैं, 20-25 हज़ार की बचत हो जाती है, जिससे उनका घर चलता है।
जानकी देवी के परिवार ने एक बीघा खेत में परवल, खीरा, बरबट्टी, चठैल और करेला जैसी सब्ज़ियों की खेती की है। इसी से उनके 10 लोगों का परिवार चलता है। परिवार के भविष्य की चिंता उन्हें सताने लगी है।
5 कट्ठा ज़मीन में कई सब्ज़ियां
जानकी की तरह राधा देवी भी अपनी 5 कट्ठा ज़मीन में कई सब्ज़ियां उगाती हैं और खुद उसे बाजार में बेचती हैं। उससे जो पैसे आते हैं, उससे राशन का सामान खरीदती है।
SIA अध्ययन भी यही कहता है कि भू-अर्जन की जानी वाली ज़मीन आवासीय, बहु-फसलीय और उपजाऊ है। इसमें अधिकांश परिवार सब्ज़ी उगाते हैं, जो उनके आय का मुख्य स्रोत है। भूमि अधिग्रहण से उनके सामने आजीविका की गंभीर समस्या उत्पन्न हो जायेगी।
भूमिहीन हो जाएंगे – पंकज यादव
अपने मवेशियों के तबेले में खड़े 32 वर्षीय पंकज यादव कहते हैं, “अब तक उन्होंने किसी के घर मज़दूरी नहीं की, बस अपने खेतों में काम किया है। लेकिन, जब भूमिहीन हो जाएंगे, उन्हें नहीं पता आगे परिवार का गुज़र बसर कैसे हो पायेगा।
मुन्ना यादव बताते हैं, सरकार के पास एयरपोर्ट के लिए ज़मीन के और विकल्प भी थे, लेकिन उनकी ज़मीन ली जा रही है क्योंकि वो लोग गरीब किसान हैं।
मुआवजे की बात तक नहीं करना चाहते किसान
अधिकांश किसान यहाँ मुआवजे की बात पर गुस्से में आ जाते हैं। शिवपूजन कहते हैं, “मुआवजा बहुत ही कम दिया जा रहा है। लेकिन तुरंत ही आगे वो कहते हैं-जब ज़मीन देना ही नहीं तो मुआवजे पर बात कैसी।
दूसरी तरफ जिन किसानों की सिकमी ज़मीन का अधिग्रहण किया जा रहा है, उनकी चिंता है कि अगर ज़मीन उनसे ले भी ली गयी, तो उन्हें मुआजवा मिल पायेगा कि नहीं इसमें संदेह है। सिकमी ज़मीन यानी किसी जमींदार की ऐसी ज़मीन जिस पर किसान वर्षों से खेती करते आ रहे हैं। सोशल इम्पैक्ट असेसमेंट (SIA) अध्ययन में कहा गया है कि इस प्रकार की भूमि का मालिक खतियान धारक या उसके परिवार के सदस्य होते हैं। भूमि के वर्तमान जोतदार के पास उसके सरकारी काग़ज़ नहीं हैं। इसलिए उन्हें डर है कि उन्हें मुआवजा नहीं मिलेगा। ऐसा ही डर उन किसानों को भी सता रहा है, जिन्होंने ज़मीन रजिस्ट्री द्वारा खरीदी है, लेकिन उसका दाखिल-खारिज अब तक लंबित है।
SIA अध्ययन में एक निष्कर्ष ये भी है की भूमि अधिग्रहण से छोटे और सीमांत किसानों की संख्या में वृद्धि होगी। दूसरी तरफ परियोजना और आसन्न विकास के अवसरों के कारण आसपास के इलाकों में भूमि की कीमत में वृद्धि हो जायेगी। इसमें से अधिकांश लोगों के लिए मुआवजा राशि से समान भूभाग को खरीदने में कठिनाई होगी।
तोरई यादव के 11 लोगों का परिवार एक कट्ठा ज़मीन पर फूस का घर बनाकर रहता है। उनके पास और ज़मीन नहीं है, तोरई दूसरे के खेत में मज़दूरी करते हैं, उन्हें परिवार के पुनर्वास की चिंता सता रही है।
मामले को लेकर हमने पूर्णिया जिला प्रशासन के कई आला अधिकारियों से बात करने की कोशिश की, सभी ने इस पर कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। पूर्णिया डीएम सुहर्ष भगत से हमने फ़ोन पर बात की तो उन्होंने बताया कि ‘सारी जानकारी पब्लिक डोमेन में है।’ जब हमने उनसे अभी भी किसानों के ज़मीन देने से इनकार करने के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा इस बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है। आगे हम कुछ पूछ पाते की उन्होंने फ़ोन काट दिया।
दूसरी तरफ, पिछले कुछ सालों में सीमांचल क्षेत्र में पूर्णिया एयरपोर्ट को लेकर राजनीति तेज़ हो गई है। क्षेत्र के सांसदों और विधायकों से लेकर युवा भी एयरपोर्ट को मांग को लेकर मुखर हैं। उन्हीं में से एक युवाओं के संगठन मिथिला स्टूडेंट्स यूनियन के रितेश कुमार कहते हैं किसानों को उचित मुआजवा मिलना चाहिए।
एक याचिका अब भी हाई कोर्ट में पेंडिंग
फिलहाल किसानों का कहना है 17.8 एकड़ ज़मीन के अधिग्रहण के विरोध में 10 किसानों की एक याचिका अब भी हाई कोर्ट में पेंडिंग है। साथ ही किसानों ने डीएम के नोटिफिकेशन के विरुद्ध भी एक याचिका दायर की है। उन्होंने बताया कि कोई भी जिला पदाधिकारी 50 एकड़ से ज़्यादा भूमि अधिग्रहण का नोटिफिकेशन जारी नहीं कर सकता है।
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