सात साल के सुधीर कुमार धरकार ने अपने पिता को मुखाग्नि दी, तो उसे पता भी नहीं होगा कि वह ऐसा क्यों कर रहा है।
सुधीर अभी तीसरी कक्षा में पढ़ रहा है। उसकी बड़ी बहन सरिता चौथी में पढ़ती है और छोटे भाई करण की उम्र अभी महज पांच साल है।
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इन तीनों बच्चों के सिर से पिता का साया उठ चुका है और इसके लिए पुलिस को जिम्मेदार ठहराया गया है।।
अररिया जिले फुलकाहा थाना क्षेत्र के धरकार टोला निवासी 37 वर्षीय नरेश धरकार पेशे से दिहाड़ी मजदूर थे। वह महादलित समुदाय से थे और भूमिहीन थे। नरेश घर पर रहते तो बांस से टोकरी बनाकर बेचते और घर पर काम मंदा हो जाता, तो दिल्ली या पंजाब में मजदूरी करने चले जाते थे।
नरेश टोकरी बनाने के लिए बांस लाने जा रहे थे। घर से करीब 500 मीटर ही दूर गये होंगे कि रास्ते में ही फुलकाहा थाने की पुलिस ने उन्हें शराब पीने के आरोप में पकड़ लिया और थाने ले गई। इस घटना के एक हफ्ते बाद 14 जून की शाम फुलकाहा थाने से नरेश की पत्नी सोलटी देवी को सूचना दी गई कि नरेश की मृत्यु हो गई है।
यह खबर सोलटी देवी के लिए किसी वज्रपात से कम नहीं थी। उनके मुताबिक, नरेश की मृत्यु यूं ही हिरासत में नहीं हो सकती है। उन्होंने पुलिस पर हिरासत में बेरहमी से पिटाई का गंभीर आरोप लगाया और आशंका जताई कि उन्हें बेरहमी से पीटा गया इसलिए उनकी मृत्यु हो गई या फिर जान बूझ कर पुलिस वालों ने उसकी हत्या कर दी।
नरेश ने पत्नी से बताई थी मारपीट की बात
सोलटी देवी ने पुलिस पर मारपीट का गंभीर आरोप लगाया है। जिले के एसपी अशोक कुमार सिंह को दिये गये आवेदन में उन्होंने सिलसिलेवार तरीके से बताया है कि कब और किस तरह पुलिस कर्मचारियों ने उसकी बेरहमी से पिटाई की थी।
आवेदन में सोलटी देवी लिखती हैं, “काम पर जाने के क्रम में रास्ते में ही छोटा बाबू रवींद्र भारती और कुछ सिपाहियों ने उन्हें पकड़ लिया और घसीटते हुए थाने ले जाकर शराब के मामले में गिरफ्तार कर लिया गया।”
उन्होंने बताया है कि शाम को 4 बजे उन्हें इस घटना की सूचना मिली। वह आवेदन में लिखती हैं, “मैं थाने गई, तो देखा कि मेरे पति को मार मार कर हालत खराब कर दिया गया है। उन्होंने मुझे बताया कि उनके साथ खूब मारपीट की गई है और उनके शरीर में खूब दर्द हो रहा है।”
फुलकाहा थाने के एसएचओ नगीना कुमार ने मृतक के परिजनों के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा है कि थाने में किसी ने उसे एक छड़ी भी नहीं मारी है। वह शराब का आदी था।
“पुलिस ने मांगा था 5 हजार रुपए, गरीब हैं कहां से देते?”
सोलटी देवी ने पुलिस पर जातिसूचक टिप्पणी करने और घूस मांगने का भी संगीन आरोप लगाया है। उन्होंने आवेदन में लिखा है, “मैं जब थाने गई उनसे मिलने, तो मुझे जातिसूचक गाली दी गई और लाठी लेकर भगाया गया।” वह आगे कहती हैं, “पुलिस ने उन्हें छोड़ने के लिए पांच हजार रुपए मांगा था। हमलोग गरीब हैं। कहां से लाकर देते इतना पैसा?”
सोलटी देवी का कहना है कि नरेश को थाने में बहुत पीटा गया था। वह कहती हैं, “बहुत मारा, तभी तो मर गया। वह बीमार नहीं था। हष्ट-पुष्ट था। दूसरे शहरों में कमाने जाता था। पुलिस ने उसकी बहुत पिटाई की और मार दिया।
सोलटी देवी रोते हुए सवाल पूछती हैं, “तीन बच्चे हैं। उनकी देखभाल कौन करेगा। कौन कमाकर खिलाएगा उन्हें। वह थे, तो दिल्ली पंजाब जाते थे कमाने के लिए। बाहर नहीं जाते थे, तो घर पर ही टोकरी बना कर बेचते थे।”
8 जून को पुलिस ने नरेश को जेल भेज दिया। सोलटी देवी का कहना है कि नरेश की हालत काफी गंभीर थी और उन्हें इलाज की जरूरत थी और उन्होंने जब इस बाबत पुलिस कर्मचारी को बताया तो सोनती देवी को कहा गया कि वह जेल में है तो अब इलाज वहां ही होगा।
वह बताती हैं, “14 जून की शाम 4.30 बजे थाने से मुझे जानकारी दी गई कि उनकी जेल में मृत्यु हो गई है। उन्होंने कहा कि उनकी मृत्यु 14 जून की सुबह ही हो गई थी, लेकिन उन्हें मृत्यु की सूचना पोस्टमार्टम करने के बाद दी गई।”
उन्होंने आवेदन में एसपी से जिम्मेदार पुलिस व जेल अधिकारियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज कर तुरंत बर्खास्त करने की मांग की है।
गिरफ्तारी की तारीख में अंतर
पुलिस ने अपनी एफआईआर में कहा है कि 8 जून को पुलिस को सूचना मिली थी कि एक व्यक्ति नेपाल से देशी शराब खरीदकर फुलकाहा बाजार जा रहा था। इस सूचना के बाद कुनकुन देवी हाईस्कूल के पास पहुंची और वहां छिप गई।
पुलिस के मुताबिक, सुबह 10.30 बजे उन्होंने देखा कि एक व्यक्ति हाथ में प्लास्टिक लेकर आ रहा है। पुलिस को देखकर वह प्लास्टिक का थेला लेकर भागने लगा, तो पुलिस कर्मचारियों ने पीछा कर उसे पकड़ लिया और उसके प्लास्टिक के बैग से तीन लीटर देशी शराब बरामद की।
पुलिस ने दावा किया कि आरोपित व्यक्ति ने अपनी पहचान नरेश बताया और कहा कि नेपाल से शराब लाकर वह लोगों को बेचता है और खुद भी पीता है। पुलिस ने दो स्थानीय लोगों को गवाह भी बनाया है।
लेकिन, सोलटी देवी और स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि नरेश को 7 जून की सुबह गिरफ्तार किया गया था।
मृतक के परिजन हालांकि इस बात से इनकार नहीं कर रहे हैं कि नरेश कभी कभार देशी शराब पी लिया करते थे। लेकिन उनका सवाल है कि क्या सिर्फ शराब पीने के चलते पुलिस नरेश को इतनी बेरहमी से मार कर जान ले सकती है?
नरेश के छोटे भाई दिनेश कुमार कहते हैं, “हमलोग गरीब आदमी हैं। मेहनत का काम करते हैं, तो थोड़ी बहुत शराब पी लेते हैं। लेकिन नरेश ने चोरी तो नहीं की थी, डाका तो नहीं डाला था। फिर इस तरह उन्हें क्यों बेरहमी से पीटकर उनकी जान ले ली गई?”
“उनके तीन छोटे बच्चे हैं, पत्नी है। अब उनकी देखभाल कौन करेगा,” दिनेश ने सवाल पूछा।
एफआईआर की तारीख़ में अंतर के सवाल पर एसएचओ कहा कि जिस दिन गिरफ्तारी हुई, उसी दिन का जिक्र है एफआईआर में। परिजनों का क्या है, वो तो कुछ भी बोल रहे हैं।
डॉक्टर ने कहा – मृत हालत में लाया गया था अस्पताल
जिस दिन नरेश को मृत घोषित किया गया था, उसके एक दिन बाद प्रभात खबर में इस आशय की एक खबर छपी थी। इस खबर में अररिया के मंडलकारा के जेलर सह प्रभारी अधीक्षक भीम हेम्ब्रम को यह कहते हुए कोट किया गया था कि उसे इलाज के लिए जिला सदर अस्पताल भेजा गया था। वहां आपातकालीन वार्ड में चिकित्सीय परामर्श के लिए भर्ती कराये जाने के क्रम में 14 की सुबह 11. 15 मिनट पर पर मृत्यु हो गई।
हालांकि, अस्पताल के अधीक्षक डॉ जीतेंद्र कुमार ने कहा कि कैदी को मृत हालत में अस्पताल लाया गया था।
उन्होंने कहा कि जब उसे अस्पताल लाया गया था, तब तक उसकी मृत्यु हो चुकी थी। उसका पल्स नहीं चल रहा था, दिल की धड़कन रुकी हुई थी। आंख में भी हरकतें नहीं हो रही थीं। सांस नहीं चल रही थी। वह बिल्कुल मर चुका था।
यह पूछे जाने पर कि पुलिस का कहना है कि इलाज के दौरान कैदी की मृत्यु हुई थी, उन्होंने कहा, “इलाज हुआ ही नहीं है। मृत व्यक्ति का कहीं इलाज होता है। अगर इलाज हुआ है, तो इलाज पुर्जा दिखाएं।”
अस्पताल के एक अन्य चिकित्सक डॉ विनोद कुमार, जिन्होंने बॉडी को अटेंड किया था, कहते हैं, “वह भर्ती नहीं हुआ था। वह ब्रॉट डेड (मृत हालत में लाया गया) था। पहले ही उसकी मौत हो गई थी। पोस्टमार्टम वाले लोग बताएंगे कि मृत्यु कैसे हुई।”
मानवाधिकार आयोग में शिकायत
इस मामले को लेकर जन आंदोलन के राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम) ने पुलिस व जेल की अधिकारियों की भूमिका पर संदेह जाहिर करते हुए उच्चस्तरीय जांच की मांग की है और साथ ही राष्ट्रीय मानवाधिकार में इसकी शिकायत भी दर्ज की है।
संगठन ने एक विज्ञप्ति जारी कर कहा, “8 जून को नरेश की पेशी मजिस्ट्रेट के सामने की गई तो मजिस्ट्रेट ने बिना ठीक से नरेश की स्थिति की तहकीकात किये, नरेश की गंभीर चोट पर ध्यान दिये बगैर बिना उसके मेडिकल रिपोर्ट और स्थिति की जांच किये जेल भेज दिया गया। जेल में भी उसका इलाज नहीं हुआ।”
संगठन ने कहा, “फुलकाहा थाने के कर्मियों के खिलाफ इंडियन पीनल कोड की धारा 302 के तहत मामला दर्ज किया जाए साथ ही जेल के अधिकारियों की भूमिका की भी जांच हो। पुलिस कर्मचारियों व जेल कर्मियों के खिलाफ बिहार सीसीए नियम के तहत बर्खास्त करने की अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।
“मजिस्ट्रेट ने बिना ध्यान दिये नरेश धरकार को जेल भेज दिया। क्या उन्होंने स्वास्थ्य जांच व अन्य बिंदुओं को ध्यान में रख कर उचित कार्रवाई की? इसकी जांच होनी चाहिए। इसके अलावा परिवार को एक करोड़ रुपए का मुआवजा दिया जाए ताकि उनके तीन बच्चे और पत्नी का गुजारा हो पाए,” संगठन ने मांग की।
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