हमारे देश में लेफ्ट की पार्टियों को लेकर अक्सर लोग कन्फ्यूजन की स्थिति में रहते हैं और सारे वामपंथी पार्टियों को एक ही पार्टी समझने की भूल कर बैठते हैं। इसमें गलती आपकी भी नहीं है, क्यूंकि देश की मीडिया भी इसको लेकर बहुत्ते कन्फ्यूज्ड है। ये कभी भाकपा माले के महबूब आलम को CPI(M) विधायक बता देते हैं, तो कभी CPI के प्रत्याशी कन्हैया कुमार को CPI(M) का उम्मीदवार घोषित कर देते हैं।
देश में लेफ्ट की कई पार्टियाँ हैं। कितनी है, इन में फर्क क्या है, इस वीडियो में हम आपको एक एक कर इन लेफ्ट पार्टियों के बारे में बताएंगे और थोड़ा इनका इतिहास भी बताएंगे ताकि आपको पता चल सके कि कौन सी पार्टी वामपंथ के किस तरह की विचारधारा को मानती है और देश में उनकी हालिया स्थिति क्या है। देश में तीन से चार लेफ्ट की पार्टियाँ हैं जो ज्यादा सक्रीय हैं बाकी की सक्रीयता उतनी नहीं है।
CPI या भाकपा
पहली और सबसे पुरानी पार्टी है कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया यानी CPI या भाकपा। इसकी स्थापना 1920 के दशक में हुई थी। भारतीय राजनीति में जितनी भी लेफ्ट पार्टियां अभी सक्रिय हैं वो कहीं न कहीं इसी पार्टी से निकली हैं। डी राजा का नाम आपने अगर सुना है या सुनेंगे तो समझिएगा कि देश की सबसे पुरानी पार्टी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की बात की जा रही है। ऑल इंडिया स्टुडेंट फेडरेशन AISF इसी की स्टूडेंट शाखा है, जिससे चुनाव लड़ कर कन्हैया कुमार जेएनयू के प्रेसिडेंट बने थे। बाद में उन्होंने इसी सीपीआई के टिकट पर 2019 का लोकसभा भी लड़ा था।
देश के पहले आम चुनाव में इसे 16 सीटें मिली थी और एक तरह से ये मुख्य विपक्षी दल बन कर उभरी थी। केरल में 1957 के विधानसभा चुनावों के बाद भाकपा की सरकार बनी। जो विश्व की पहली चुनी हुई कम्युनिस्ट सरकार थी। दूसरे आम चुनाव में इसे 27 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल हुई जो तीसरे आम चुनाव में बढ़ कर 29 हो गई। हाल के चुनावों में पार्टी ने कोई बढ़िया प्रदर्शन नहीं किया है और 2023 में इससे राष्ट्रीय पार्टी का तमगा भी छिन गया है। अभी लोकसभा में इसके दो सदस्य और राज्य सभा में दो सदस्य हैं। लोकसभा के दोनों सदस्य तमिलनाडु से हैं।
केरल में CPI के 17 विधायक हैं, बिहार में और तमिलनाडु में इसके दो-दो और तेलंगाना में एक MLA है। इन चारो राज्यों में पार्टी सत्ताधारी गठबंधन के साथ है। गेहूं की बाली औऱ हंसिया इस पार्टी का चुनाव चिन्ह् है। 1964 में ये पार्टी टूट गई और सीपीआई से अलग एक नई पार्टी बनी, जो अभी देश की सबसे बड़ी वामपंथी पार्टी है, इसे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) या माकपा कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सिस्ट) या CPI(M) या CPM कहते हैं।
CPI(M) या माकपा
आपको याद होगा कि बंगाल में बहुत दिनों तक वामपंथी दल की सरकार रही थी। मुख्यमंत्री रहे ज्योति बसु और बुद्धदेव भट्टाचार्य इसी दल से थे। ऐसे ही त्रिपुरा में मुख्यमंत्री हुए माणिक सरकार भी इसी दल से थे। ऐसा कह सकते हैं कि पिछले कुछ दशक में जितने भी फेमस लेफ्ट के नेताओं के नाम आपको याद होंगे, ज़्यादातर इसी दल से हैं या थे, जैसे सोमनाथ चैटर्जी, प्रकाश करात, सीताराम येचुरी ये सब इसी दल से हैं। अभी देश के एकमात्र राज्य केरल में इनकी सरकार है।
CPM अभी राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा बचाए हुए है। ये अलग बात है कि पिछले लोकसभा चुनाव में इसे मात्र तीन सीटें ही मिल पाई थी। राज्य सभा में इसके पांच सदस्य हैं। केरल इसके 62, त्रिपुरा में 10, बिहार में और तमिलनाडु में इसके दो-दो, वहीं असम, ओडिशा, महाराष्ट्र में इसके एक-एक विधायक हैं। हंसिया, हथोड़ा और एक सितारा इसका चुनाव चिन्ह् है।
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CPI(ML) L या भाकपा माले
तीसरी जो वामपंथी दल बंगाल में नक्सलबाड़ी आंदोलन के बाद उभर कर सामने आई, वो थी CPI(ML), एमएल का मतलब मार्क्सवादी लेननिवादी। कानू सान्याल जो बंगाल में नक्सलबाड़ी आंदोलन में काफी सक्रीय थे उन्हीं के नेतृत्व में इसका गठन हुआ। मार्क्स और लेनिन की विचारधारा पर आधारित इस पार्टी का गठन भी लेनिन के बर्थडे के दिन ही 22 अप्रैल 1969 को हुआ था।
आपने नक्सलवादी आंदोलन या नेक्सलाइट मूवमेंट के बारे में जरुर सुना होगा उसके पीछे यही दल था। 1972 के बाद ये पार्टी अपने इस रूप में सक्रिय तो नहीं रह पाई लेकिन इसी से निकली हुई कई पार्टियां हैं, जिसमें सबसे बड़ा नाम है CPI(ML) L यानी कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया, मार्क्सवादी-लेनिनवादी लिबरेशन या भाकपा माले। ये मुख्य रूप से बिहार और झारखंड में सक्रिय है और हाल में बिहार के महागठबंधन सरकार में शामिल है। इसके महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य हैं। 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में इसका प्रदर्शन काफी अच्छा रहा, राजद के साथ महागठबंधन में इसे 19 सीटें मिली जिसमें 12 पर जीत हासिल हुई। झारखंड विधानसभा में भी इस पार्टी के पास एक सीट है। इसका चुनाव चिन्ह् तीन सितारों के साथ झंडा है। स्टूडेंट विंग AISA इसी का हिस्सा है।
तो लेफ्ट की तीन पार्टी बड़ी पार्टियां कौन कौन सी हुई। पहली भाकपा या CPI मतलब कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया, दूसरी माकपा या CPM मतलब कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सिस्ट) और तीसरी भाकपा माले या CPI(ML) L यानी कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया, मार्क्सवादी-लेनिनवादी लिबरेशन। इसके अलावा कई सारी पार्टियां हैं जो वामपंथी विचारधारा को ही मानती हैं, लेकिन अभी कोई खास प्रदर्शन उनका चुनावों में नहीं रहता है, इसलिए भी उनके बारे में कुछ विशेष बातें नहीं की जाती या कह लीजिए कि लोगों की बातचीत में उनका नाम सामान्य तौर पर नहीं आता। जैसे ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक जिसकी स्थापना सुभाष चन्द्र बोस ने की थी, ये अभी भी चुनावों में हिस्सा तो लेती हैं लेकिन कुछ खास प्रदर्शन नहीं दिखा पाती हैं। ऐसे ही रिवॉल्योशनरी सोशलिस्ट पार्टी जो हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन से निकली जिसके सदस्य कभी भगत सिंह औऱ चन्द्रशेखर आजाद थे, वो भी चुनावों में हिस्सा लेती है लेकिन बस उपस्थिति दर्ज कराने के लिए।
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