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डालमियानगर के क्वार्टर्स खाली करने के आदेश से लोग चिंतित – “बरसात में घोंसले भी नहीं उजाड़े जाते”

1930-1933 के आसपास विकसित हुआ डालमियानगर अगले पांच दशकों तक औद्योगिक कस्बों का सिरमौर रहा। लेकिन, साल 1970 के बाद डालमियानगर के दुर्दिन शुरू हो गये। एक के बाद एक इकाइयां बंद होने लगीं। 9 सितम्बर 1984 को वह निर्णायक तारीख भी आ गई, जब सारी फैक्टरियों की चिमनियों से धुआं निकलना बंद हो गया। 8 जुलाई 1984 तक इन इकाइयों में अफसरों से लेकर वर्करों को मिलाकर कुल 12629 लोग काम करते थे, जो एक झटके में बेरोगार हो गये और उनके घरों के चूल्हे भी ठंडे पड़ गये।

Reported By Umesh Kumar Ray |
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आशा देवी के चेहरे पर चिंता साफ झलक रही है। इस बारिश के मौसम में वह अपने तीन बच्चों, पति और बूढ़े ससुर के साथ कहां जाएंगी, इसी उधेड़बुन में उनका वक्त गुजर रहा है।

“सावन भादो में तो चिड़िया तक का खोंता (घोंसला) नहीं उजाड़ा जाता है, लेकिन हमलोगों को बोल दिया गया है कि घर खाली कर दो,” 40 वर्षीय आशा देवी कहती हैं।

उन्होंने कहा, “हमारा घर दुआर, सब यहीं है। हमारे पति का जन्म यहीं हुआ। मेरी शादी यहीं हुई। बच्चे भी यहीं पैदा हुए। हमारी तीसरी पीढ़ी यहां रह रही है। गांव में हमारा कुछ भी नहीं। जो है सो यहीं है। आखिर हम यहां से छोड़कर कहां जाएंगे?”


आशा देवी जो सवाल उठाती हैं, वह सिर्फ उनका सवाल नहीं है। यह उन 1400 से अधिक परिवारों का साझा सवाल है, जो सूबे के रोहतास जिले के डालमियानगर में 1471 जर्जर व कबूतखाने जैसे दिखने वाले क्वार्टरों में वर्षों से रह रहे हैं।

asha devi
आशा देवी ने कहा कि शुरू में ही अगर क्वार्टर से हटा दिया गया होता, तो वह इतने वर्षों में कोई इंतजाम कर लेतीं।

सोन नदी के किनारे बसा डालमियानगर, देश के बेहद पुराने और बड़े औद्योगिक कस्बों में एक है। आजादी से करीब डेढ़ दशक पहले दिवंगत कारोबारी व डालमिया समूह के संस्थापक रामकृष्ण डालमिया ने रोहतास (तब का शाहाबाद जिला) के रत्तु बिगहा, मथुरापुर, सिधौली, प्रयाग बिगहा समेत आधा दर्जन गांवों को मिलाकर डायमियानगर नाम से इस टाउन को बसाया था। इसकी चौहद्दी के भीतर उन्होंने रोहतास इंडस्ट्रीज लिमिटेड नाम से से एक कंपनी बनाकर एक दर्जन औद्योगिक इकाइयां स्थापित की थीं, जिनमें पेपर, चीनी, स्टील, डालडा, केमिलक, पावर हाउस, सीमेंट बनाने वाली इकाइयां शामिल थीं।

डालमियानगर में समूह ने कई स्कूल व कॉलेज खोले, जिनमें एक महिला कॉलेज भी शामिल है, जहां उस जमाने में रात में छात्राएं पढ़ने जाया करती थीं। डालमिया ने अपने आवागमन के लिए डालमियानगर में ही सुअरा हवाईअड्डा भी बनवाया, जिसका इस्तेमाल उस वक्त की सरकारें भी किया करती थीं। यही नहीं, डालमियानगर नगर से डेहरी ऑन सोन स्टेशन तक रेलवे लाइन भी बिछाई गई, ताकि फैक्टरियों में बने माल को रेल मार्ग से डेहरी स्टेशन तक पहुंचाया जा सके।

1984 में बंद हो गईं फैक्टरियां

1930-1933 के आसपास विकसित हुआ डालमियानगर अगले पांच दशकों तक औद्योगिक कस्बों का सिरमौर रहा। लेकिन, साल 1970 के बाद डालमियानगर के दुर्दिन शुरू हो गये। एक के बाद एक इकाइयां बंद होने लगीं। 9 सितम्बर 1984 को वह निर्णायक तारीख भी आ गई, जब सारी फैक्टरियों की चिमनियों से धुआं निकलना बंद हो गया। 8 जुलाई 1984 तक इन इकाइयों में अफसरों से लेकर वर्करों को मिलाकर कुल 12629 लोग काम करते थे, जो एक झटके में बेरोगार हो गये और उनके घरों के चूल्हे भी ठंडे पड़ गये।

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कंपनी ने उसी साल खुद को दिवालिया घोषित करते हुए डालमियानगर से अपना कारोबार समेटने के लिए पटना हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर दी। 22 मई 1986 में पटना हाईकोर्ट ने एक प्रोविजनल लिक्विडेटर नियुक्त किया।

लिक्विडेटर का काम बंद हुई कंपनी की संपत्तियों को अपनी देखरेख में बेचकर, कंपनी पर जिनका लोन बकाया है, उनका लोन चुकाना होता है।

कंपनी के दिवालिया घोषित होने के बाद से कानूनी लड़ाइयां चलती रहीं। अलबत्ता, राज्य सरकार की तरफ से एक दो बार कंपनी को उबारने की कोशिश की गई, मगर बहुत कामयाबी नहीं मिली। कुछ सालों के लिए कुछ फैक्टरियां खुलीं, फिर बंद हो गईं। रेलमंत्री रहते हुए लालू प्रसाद यादव ने डालमिया नगर में बंद पड़ी फैक्टरी की जमीन पर रेल कारखाना खोलने के लिए जमीन का अधिग्रहण किया, लेकिन वहां भी रेल फैक्टरी नहीं खुली।

फैक्टरियों के बंद हो जाने के बाद डालमियानगर तो बिल्कुल उजाड़ सा हो गया था, लेकिन यहां काम करने वाले लोग अब भी बने हुए थे, लेकिन पिछले दिनों पटना हाईकोर्ट के आदेश के बाद इस उजाड़ में एक हलचल हुई है।

dilapidated dalmiyanagar aper mill building
डालमियानगर के पेपर मिल की जर्जर इमारत

पटना हाईकोर्ट ने 4 अगस्त को आदेश दिया कि 30 अगस्त तक सभी 1471 क्वार्टरों को खाली कराया जाए। पटना हाईकोर्ट की तरफ से नियुक्त असिस्टेंट ऑफिशियल लिक्विडेटर मोहित कुमार ने कहा कि पटना हाईकोर्ट का पूर्ण आदेश है कि पूर्व कर्मचारियों व अवैध कब्जाधारियों से क्वार्टरों को मुक्त कराया जाए।

“पहले चरण में 2 सितंबर को 50 से 60 क्वार्टरों को खाली कराया जाएगा। कई चरणों में यह अभियान चलेगा और खाली जमीन की कीमत तय कर उसकी नीलामी की जाएगी,” उन्होंने कहा।

इस आदेश के बाद से क्वार्टरों में रहने वाले लोगों के चेहरों की हवाइयां उड़ी हुई हैं। 11 बुजुर्गों ने तो राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को खत लेकर इच्छामृत्यु की मांग भी की है।

“दो पीढ़ियां यहां गुजर गईं, अब कहां जाएं”

जिन 1471 क्वार्टरों को खाली कराने का आदेश हुआ है, वे क्वार्टर इतने भी अच्छे नहीं कि लोगों का मोह उनसे बंध जाए। क्वार्टर के नाम पर लगभग 20 बाई 10 का एक कमरा है और उससे सटा हुआ एक छोटा सा किचेन। छत एस्बेस्टस की है और किचेन के आगे बेहद छोटी आंगननुमा खाली जगह है।

ये क्वार्टर काफी पुराने हैं, जिस कारण जर्जर हो चले हैं और कुछ तो ढह कर मलबा बन चुके हैं। इनमें रहने वाले लोगों ने कई बार अपने खर्च से इनकी मरम्मत कराई और किसी तरह रहने लायक बनाया। इन क्वार्टरों में कोई शौचालय नहीं है। लोगों को शौच के लिए आसपास के खेतों में जाना पड़ता है।

इन तमाम कठिनाइयों के बावजूद लोग ये क्वार्टर सिर्फ इसलिए नहीं छोड़ना चाहते हैं कि उनकी दो पीढ़ियां यहां खप गई हैं और अब ये क्वार्टर और मोहल्ला ही उनकी दुनिया है।

स्थानीय युवक विष्णुकांत झा भी डालमियानगर के ही एक क्वार्टर में रहते हैं। उनके नाना बिंदा झा यहां की शुगर फैक्टरी में काम किया करते थे। उनकी मां की शादी यहीं से हुई और विष्णुकांत भी यहीं पले बढ़े। फिलहाल, वह रजिस्ट्री ऑफिस में डाटा ऑपरेटर का काम करते हैं जहां 6500 रुपये तनख्वाह मिलती है। इसके साथ साथ वह सरकारी नौकरी की तैयारी करते हैं। विष्णुकांत ने बिहार पुलिस में भर्ती के लिए आवेदन डाल रखा है।

“हमारा कोई गांव नहीं है। जो सो यहीं हैं। यहीं का पता हर जगह है। सरकारी नौकरियों का फार्म भरते हैं, तो यहीं का पता देते हैं। अगर हमें यहां से हटा दिया गया और इसी बीच परीक्षा के लिए एडमिट कार्ड आ जाए, तो हमको कैसे मिलेगा,” विष्णुकांत झा ने कहा।

विष्णुकांत झा कहते हैं, “जब हमलोगों को खबर मिली कि क्वार्टर खाली करना होगा, तो मेरी मां की तबीयत खराब हो गई थी चिंता के मारे।”

आशा देवी के ससुर डालमियानगर की फैक्टरी में काम करते थे। जब से फैक्टरी बंद हुई है, वह कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करने लगे हैं। आशा देवी के पति प्रेम सोनी वायरिंग का काम करते हैं।

आशा देवी कुछ गुस्सा होकर कहती हैं, “जब फैक्टरी बंद हुई, उसी समय हमलोगों को कह दिया जाता कि ‘मादर** भागो यहां से’, तो हमलोग कहीं और चले जाते, कुछ इंतजाम कर लेते। क्वार्टर जर्जर हो गया था, तो अपना पैसा लगाकर उसको रहने लायक बनाए। 50-60000 रुपये क्वार्टर में लग गया है और अब हमें कहा जा रहा है कि घर छोड़ो।”

कंपनी पर कर्मचारियों का 5.5 अरब रुपये बकाया!

कंपनी बंद होने के बाद साल 2009 में तत्कालीन लिक्विडेटर जेसी यादव ने कर्मचारियों का कंपनी पर बकाये का हिसाब-किताब कर बताया था कि कंपनी पर कर्मचारियों के साढ़े छह अरब रुपये बनते हैं। कोर्ट ने यह बकाया राशि कंपनी की संपत्तियां बेचकर चुकाने का आदेश दिया था। कंपनी के पेपर मिल में काम करने वाले 60 वर्षीय सियाराम सिंह यादव ने दावा किया, “कोर्ट के आदेश पर महज 10 प्रतिशत रुपये ही कर्मचारियों को मिले। 90 प्रतिशत बकाया मिलना अब भी बाकी है।”

सियाराम सिंह यादव डालमियानगर में संघर्षशील श्रमिक संघ नाम से श्रमिका का एक संगठन चलाते हैं।

siyaram singh yadav
सियाराम सिंह यादव का दावा है कि कंपनी पर पूर्व कर्मचारियों का जो बकाया है, उसका 10 प्रतिशत ही मिला है, 90 प्रतिशत रुपये मिलना बाकी है।

“शेष बकाया राशि के भुगतान के लिए 11 सितंबर को मैंने कोर्ट में रिट फाइल की है,” उन्होंने कहा।

किरण कुंवर के पति गया सिंह कंपनी में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी किया करते थे। साल 1996 में वह रिटायर हुए और इसके चार साल बाद 2000 में उनकी मृत्यु हो गई। क्वार्टर का एक कमरा ही अब उनका सहारा है।

“हमारे पुश्तैनी गांव में हमारी जो भी थोड़ी बहुत जमीन थी, वह तो कंपनी बंद होने के बाद बेचकर खा गये। अब वहां कुछ भी नहीं। डालमियानगर ये एक क्वार्टर ही अपनी संपत्ति है। इसे भी छोड़ने का आदेश हुआ है। अब हम कहा जाएं?,” उन्होंने कहा।

उन्होंने कंपनी पर धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए कहा कि कंपनी पर हमारे पति का 6 लाख रुपये बकाया थे, जिसमें से सिर्फ 60 हजार रुपये ही अब तक मिले हैं।

वीरेंद्र कुमार के पिता भी कंपनी में काम करते थे। उनका कंपनी पर 500000 रुपये बाकी था, जिसमें से 50 हजार रुपये ही अब तक मिले हैं।

संजय सिंह के पिता भोला सिंह कंपनी के पावर हाउस में कार्यरत थे। उनका कंपनी पर 7 लाख रुपये बाकी थे, जिसमें से 70 हजार रुपये ही मिले हैं।

सियाराम सिंह यादव कहते हैं, “बकाया राशि का अगर ब्याज जोड़ दिया जाए, काफी मोटी रकम कर्मचारियों की बनती है।”

पूर्व कर्मचारियों के इन आरोपों को असिस्टेंट ऑफिशियल लिक्विडेटर मोहित कुमार बेबुनियाद बताते हैं। उन्होंने कहा, “सभी पूर्व कर्मचारियों के बकाये का भुगतान हो चुका है।”

क्वार्टर की जमीन पूर्व कर्मचारियों को नीलाम करने की मांग

पूर्व कर्मचारियों का कहना है कि क्वार्टर की जमीन को खुले बाजार में नीलाम करने की जगह उन्हें बेच देना चाहिए, ताकि उन्हें यहां से उजड़ना न पड़े।

पूर्व में कुछ क्वार्टरों को नीलाम किया भी गया था, लेकिन लोगों का आरोप है कि उसमें पारदर्शिता नहीं बरती गई, जिसके चलते अधिकांश क्वार्टरों की जमीन बाहरी लोगों ने खरीद ली।

“पूर्व में कुछ मौकों पर 72 क्वार्टरों की नीलामी हुई थी, लेकिन नीलामी प्रक्रिया को अंजाम देने वाले एक अधिकारी की मिलीभगत के चलते ज्यादातर क्वार्टरों को बाहरी लोगों ने खरीद ली, जिनमें कई लोग उनकी जान-पहचान वाले हैं,” एक स्थानीय व्यक्ति ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा।

पूर्व कर्मचारियों को क्वार्टर बेच देने के सवाल पर असिस्टेंट ऑफिशियल लिक्विडेटर मोहित कुमार कहते हैं, “पटना हाईकोर्ट ने ऐसा कोई आदेश नहीं दिया है, इसलिए हम ऐसा कुछ नहीं कर सकते हैं।”

स्थानीय निवासी व यूथ इंडिया के संस्थापक व अध्यक्ष शिव गांधी कहते हैं, “पीएम मोदी ने गरीबों को घर बनाकर देने की बात कही थी और यहां इतने परिवारों को घर से बेदखल किया जा रहा है। इस पर उन्हें संज्ञान लेना चाहिए।”

शिव गांधी, डालमियानगर के झंडा मैदान में बने कंक्रीट के एक मंच पर अस्थाई स्टेज बनाकर लोगों को एकजुट करने में लगे हुए हैं। पीएम मोदी के हस्तक्षेप के लिए वह क्वार्टर में रह रहे लोगों के आधार कार्ड और हस्ताक्षर संग्रह कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हस्ताक्षरों को प्रधानमंत्री कार्यालय भेजा जाएगा।

वह पूछते हैं, “पीएम मोदी ने आजादी के मौके पर हर घर तिरंगा का नारा दिया था। जब घर ही नहीं रहेगा, तो आखिर तिरंगा लगेगा कहां?”

इधर, पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ 468 क्वार्टरों में रह रहे पूर्व कर्मचारियों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए मंगलवार को इन क्वार्टरों को खाली कराने पर रोक लगा दी है और इस पर अगली सुनवाई 11 सितंबर को होगी।

“सुप्रीम कोर्ट ने अभी 468 क्वार्टरों को खाली कराने पर रोक लगाई है, उम्मीद है कि बाकी क्वार्टरों के लिए भी सुप्रीम कोर्ट से ऐसा ही आदेश आएगा,” शिव गांधी ने कहा।

मोहित कुमार ने कहा कि बाकी क्वार्टरों पर यह आदेश लागू नहीं होगा। “इस संबंध में और विस्तार से ऑर्डर की कॉपी देखने के बाद ही कहा जा सकता है,” उन्होंने कहा.

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Umesh Kumar Ray started journalism from Kolkata and later came to Patna via Delhi. He received a fellowship from National Foundation for India in 2019 to study the effects of climate change in the Sundarbans. He has bylines in Down To Earth, Newslaundry, The Wire, The Quint, Caravan, Newsclick, Outlook Magazine, Gaon Connection, Madhyamam, BOOMLive, India Spend, EPW etc.

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