पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव में दार्जिलिंग पार्वत्य क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का जादू नहीं चल पाया। जबकि, दार्जिलिंग लोकसभा सीट पर भाजपा एक नहीं, दो नहीं बल्कि लगातार तीन बार से काबिज है।
इतना ही नहीं, 2019 के विधानसभा उपचुनाव और 2021 के विधानसभा चुनाव, दोनों में ही दार्जिलिंग विधानसभा सीट पर भाजपा ने ही जीत दर्ज की थी। उस विधानसभा चुनाव में तो भाजपा ने दार्जिलिंग पार्वत्य क्षेत्र की तीन में से दो विधानसभा सीटों दार्जिलिंग व कर्सियांग पर भी कब्जा जमाया। इन सबके बावजूद वर्तमान पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव में दार्जिलिंग पार्वत्य क्षेत्र में भाजपा का कमल नहीं खिल पाया। वह भी तब, जब इस बार पहाड़ के कई बड़े-बड़े दिग्गजों संग भाजपा ने “संयुक्त गोरखा गठबंधन” बना कर लड़ाई लड़ी थी।
दार्जिलिंग पार्वत्य क्षेत्र में कुल 23 वर्षों बाद हुए इस पंचायत चुनाव में सर्वत्र, पश्चिम बंगाल राज्य की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल राज्य सरकार की मुखिया ममता बनर्जी के विश्वास पात्र अनित थापा के भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा (बीजीपीएम) की ही जीत हुई है। कुछ-कुछ ग्राम पंचायतों में ही भाजपा व उसके संयुक्त गोरखा गठबंधन के विभिन्न घटक दलों को इक्का दुक्का सीट ही मिल पाई है।
70 में से 38 ग्राम पंचायत जीती बीजीपीएम
सबसे पहले, ग्राम पंचायतों की बात करें तो दार्जिलिंग पार्वत्य क्षेत्र के दार्जिलिंग जिला अंतर्गत पहाड़ी क्षेत्रों के कुल 501 निर्वाचन क्षेत्रों की कुल 598 सीटों में से 349 सीटों पर अनित थापा के बीजीपीएम की जीत हुई है। वहीं, निर्दलीय उम्मीदवारों ने 185 सीटों पर विजय प्राप्त की है। भाजपा तीसरे स्थान पर रही। उसे केवल 59 सीटों से ही संतोष करना पड़ा। जबकि, संयुक्त गोरखा गठबंधन की नेतृत्वकर्ता व सबसे बड़ी पार्टी के रूप में भाजपा ने सर्वाधिक 211 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे। इस गठबंधन के अन्य घटक दलों का तो कोई सिक्का ही नहीं चल पाया। तृणमूल कांग्रेस मात्र 5 सीट ही जीत पाई। उसने सबसे कम मात्र 26 सीटों पर ही अपने उम्मीदवार खड़े किए थे। वहीं, दूसरी ओर, माकपा व कांग्रेस आदि तो शून्य ही रहे।
कुल 70 ग्राम पंचायतों में सर्वाधिक 38 ग्राम पंचायतों पर अनित थापा के बीजीपीएम की जीत हुई है। वहीं, 14 ग्राम पंचायतें निर्दलियों के खाते में गई हैं। भाजपा को मात्र 3 ग्राम पंचायतों से संतोष करना पड़ा है। हालांकि, यह भाजपा के लिए उपलब्धि ही कही जाएगी क्योंकि अब तक भाजपा पहाड़ की पंचायतों में शून्य ही रही थी। वहीं, 15 ग्राम पंचायतों के परिणाम त्रिशंकु आए हैं।
इसी प्रकार पंचायत समिति की बात करें तो कुल 5 प्रखंडों की 156 पंचायत समिति सीटों में से सर्वाधिक 96 सीटों पर अनित थापा के बीजीपीएम ने ही अपना परचम लहराया है। इसमें दूसरे स्थान पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने 41 सीटों पर कब्जा जमाया है। भाजपा को 19 सीटें ही मिली और वह तीसरे पायदान पर रही, जबकि अन्य तमाम दल शून्य रहे हैं।
GTA पर भी है बीजीपीएम क़ाबिज़
वर्ष 2000 के बाद अब यानी पूरे 23 वर्षों बाद इस वर्ष 2023 में दार्जिलिंग पार्वत्य क्षेत्र में द्विस्तरीय पंचायत चुनाव हुए। अर्थात, ग्राम पंचायतों व पंचायत समितियों के ही चुनाव हुए। जिला परिषद का चुनाव इसलिए नहीं हुआ कि पहाड़ के लिए अलग स्वायत्त प्रशासनिक व्यवस्था के तहत गोरखालैंड टेरिटोरिअल एडमिनिस्ट्रेशन (जीटीए) है।
उस पर भी बीजीपीएम ही गत वर्ष 2022 में हुए चुनाव के जरिये सत्तारूढ़ है और उसके मुखिया अनित थापा ही उसके मुख्य कार्यकारी हैं। इस बार हुए पंचायत चुनाव में एक ओर पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस व बीजीपीएम का अघोषित अंदरूनी गठबंधन तो दूसरी ओर केंद्र की सत्तारूढ़ भाजपा के नेतृत्व वाले घोषित ‘संयुक्त गोरखा गठबंधन’ ने एक-दूसरे के विरुद्ध ताल ठोक रखा था।
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क्या बोले भाजपा सांसद?
भाजपा के नेतृत्व में बिमल गुरुंग का गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (गोजमुमो), एक समय पहाड़ के सर्वेसर्वा रहे सुभाष घीसिंग द्वारा स्थापित गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जीएनएलएफ), गत वर्ष 2022 में हुए दार्जीलिंग नगर पालिका चुनाव की विजेता बन पहाड़ की एकदम नई उभरी शक्ति अजय एडवर्ड की ‘हाम्रो पार्टी’, और तो और, वामपंथी आर. बी. राई की क्रांतिकारी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (क्रामाकपा) व जन अधिकार पार्टी (जाप) चुनाव मैदान में थे।
इस ‘संयुक्त गोरखा गठबंधन’ के बारे में इनके नेतृत्वकर्ता चाणक्य, दार्जिलिंग के सांसद व भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजू बिष्ट ने कहा था कि, ‘अत्याचार, उत्पीड़न, अन्याय व विनाश की समाप्ति हेतु दार्जिलिंग पार्वत्य क्षेत्र को तृणमूल कांग्रेस मुक्त करने के लिए ही यह संयुक्त गोरखा गठबंधन बना है और चुनावी मैदान में है।’ मगर, अब जब चुनाव परिणाम उनके गठबंधन के विपरीत आए हैं तो उनका सुर बदल गया है।
अब उनका कहना है,
“भाजपा व हमारे गठबंधन के लिए, यह चुनाव पहाड़ पर लोकतंत्र बहाली था।
“मेरा मानना है कि हमारा मूल उद्देश्य प्राप्त हो गया है। बड़ी संख्या में पंचायत सीटें हमारे गठबंधन समर्थित स्वतंत्र उम्मीदवारों द्वारा जीती गई हैं। यह दर्शाता है कि लोगों ने अत्याचार व भ्रष्टाचार के विरुद्ध अपनी एकता और स्वच्छ व ईमानदार पंचायत के लिए मतदान किया है। हमारे लिए यही सबसे बड़ी जीत है। मैं उन सभी को बधाई देता हूं जो जीत गए हैं। और, जो नहीं जीते हैं उन्हें मैं अपने गांव में ‘चेक एंड बैलेंस एजेंट’ के रूप में कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करता हूं। इस तरह हम ‘शून्य घोटाला’ सुनिश्चित कर सकते हैं। भ्रष्टाचार मुक्त और भाई-भतीजावाद मुक्त विकास सुनिश्चित करना अब हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है,” उन्होंने कहा।
उन्होंने आगे कहा,
“संसद सदस्य के रूप में मैं उन सभी लोगों के साथ काम करने को इच्छुक हूं जो जमीनी स्तर पर सर्वोत्तम विकास, स्वच्छ व ईमानदार पंचायत व्यवस्था को लागू करना चाहते हैं, चाहे वे किसी भी पार्टी से जुड़े हों। मैं अपने गठबंधन की पार्टियों के नेताओं, कार्यकर्ताओं, भाजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं और उन सभी को धन्यवाद देता हूं जिन्होंने यह सुनिश्चित करने के लिए अथक प्रयास किया कि ‘भ्रष्टाचार मुक्त’, ‘कमीशन मुक्त’ और ‘घोटाला मुक्त’ विकास का संदेश प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचे।”
क्या बोले अनित थापा?
वहीं, पहाड़ पर सर्वत्र बीजीपीएम भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा की एक तरफा जीत पर इसके प्रमुख अनित थापा ने कहा,
“यह आम जनता की जीत है। हमने जीटीए चुनाव के समय ही वादा किया था कि 23 वर्षों से पंचायत राज व्यवस्था से वंचित पहाड़ इस बुनियादी प्रशासनिक व्यवस्था से वंचित नहीं रहेगा और हम फिर से पंचायत चुनाव करवाएंगे जो कि हमने करा कर दिखा दिया। इसमें जनता ने हमें जीत दी है और विकास की उम्मीद में ही दी है। अब हम विकास करके दिखाएंगे।”
उन्होंने आगे कहा,
“राजू बिष्ट केंद्र सरकार में यहां से प्रतिनिधि हैं तो वह भी यहां काम करें। विकास में सहयोगी बनें। हम हर जगह विपक्ष के साथ भी बेहतर समन्वय संग जनता की सेवा व क्षेत्र के विकास के लिए तत्पर हैं। वहीं, हम अपनी ‘क्षेत्रियता’ को भी बरकरार रखे रहने काे प्रतिबद्ध हैं। इसके साथ ही चहुंमुखी विकास भी हमारी प्राथमिकता है। इसके लिए हम सदैव समर्पित रहेंगे।”
आपको बताते चलें कि कुल 23 वर्षों के बाद यहां इस बार हुए द्विस्तरीय पंचायत चुनाव में एक और बात जो अहम रही वह यह कि राज्य भर में चुनावी हिंसा के विपरीत यहां चुनाव शांतिपूर्ण रहा। साथ ही, यह परंपरा भी बरकरार ही रही कि पहाड़ पर पहाड़ी दल की ही जीत होती है।
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