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अररिया शहर में एक भी सार्वजनिक शौचालय नहीं, लोग होते हैं परेशान

अररिया को जिले का दर्जा 1990 में मिला, तो शहर के साथ सरकारी भवनों में भी कई बदलाव आए। लेकिन 32 साल बाद भी अररिया शहर को एक सार्वजनिक शौचालय नहीं मिल पाया।

ved prakash Reported By Ved Prakash | Araria |
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अररिया को जिले का दर्जा 1990 में मिला, तो शहर के साथ सरकारी भवनों में भी कई बदलाव आए। लेकिन 32 साल बाद भी अररिया शहर को एक सार्वजनिक शौचालय नहीं मिल पाया। इससे सबसे ज्यादा दिक्कत उन ग्रामीण महिलाओं को होती है, जो ग्रामीण इलाके से अररिया शहर खरीदारी करने आती है, क्योंकि आपातकाल में उन्हें शौचालय नहीं मिल पाता है।

शहर के करीब एनएच 57 पर स्थित बस स्टैंड में भी शौचालय नहीं होने से परेशानी का सामना कर रहा है। जबकि इस बस स्टैंड से रोजाना लम्बी दूरी की दर्जनों गाड़ियां जाती हैं। इनमें बिहार की राजधानी पटना सहित छपरा, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, सीतामढ़ी जैसी जगहों के लिए बस तो जाती ही है, साथ ही दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के कई शहरों में यहां से रोजाना बड़ी लग्जरी बस खुलती है। इनमें यात्रा करने वाले यात्रियों को शौचालय नहीं होने से दिक्कत होती है। हालांकि जो बस स्टैंड है, उसे बस स्टैंड भी नहीं कहा जा सकता है क्योंकि यह सड़क किनारे है।

a roundabout in araria town


अररिया शहर का सबसे व्यस्त चौराहा चांदनी चौक है, जहां सड़क की दोनों ओर सैकड़ों दुकानें हैं। लोग रोजाना अपनी जरूरत की खरीदारी करने और बेचने आते हैं। न ही दुकानों में कोई शौचालय है। और ना ही सार्वजनिक शौचालय। इसके साथ ही यहां पीने के पानी की भी व्यवस्था नहीं है, जिससे लोगों को परेशानियां उठानी पड़ती हैं।

जोकीहाट के मटियारी से बाजार खरीदारी करने आए मोहम्मद अयूब और उनकी पत्नी कहते हैं, “हम लोग कपड़ों के साथ घरेलू सामान खरीदने तकरीबन हर सप्ताह अररिया शहर आते हैं, लेकिन यहां सबसे बड़ी परेशानी पीने के पानी और शौचालय की है। क्योंकि ना तो यहां कोई सरकारी पानी का नल ही लगा है और ना ही सरकारी सार्वजनिक शौचालय हैं, जिस कारण काफी परेशानी होती है। महिलाओं को तो ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ता है। बड़ी दुकानों में तो शौचालय है, लेकिन उनका इस्तेमाल सिर्फ वहां के खरीदार ही कर सकते हैं। फुटपाथ पर खरीदारी करने वालों के लिए कोई सुविधा नहीं है।”

Commuters in araria town

युवा समाजसेवी धीरज पांडे ने बताया कि यह बड़े शर्म की बात है कि अररिया जिला मुख्यालय में एक सार्वजनिक शौचालय नहीं है। नेशनल हाइवे पर सड़क पर गाड़ियां खड़ी होती हैं, जिसका नगर परिषद टैक्स वसूलता है, इसके बावजूद नगर परिषद की ओर से कोई सुविधा नहीं दी जाती है। सबसे शर्मनाक बात यह है कि जब कोई महिला बस स्टैंड में उतरती है तो उसे शौचालय जरूरत होती है तो बड़े शर्म के साथ लोग उसे बताते हैं कि यहां शौचालय नहीं है, पुरुष तो कहीं भी पेशाब कर लेते हैं लेकिन महिलाओं को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।

स्थानीय डॉ स्मिता ठाकुर कहतीं हैं, “सबसे बड़ी दिक्कत तब आती है जब कॉलेज स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियां इधर से गुजरती हैं और पुरुष खड़े होकर पेशाब करते हैं, उन्हें शर्म से सर झुका कर जाना पड़ता है।”

इससे भी बुरा हाल अररिया के हटिया रोड का है, जहां सड़क के दोनों किनारे पर किराना दुकान बने हैं और उनके सामने सब्जी का बाजार लगता है। यहां सैकड़ों दुकानदार अपना माल बेचने आते हैं और हजारों लोग खरीदारी करने पहुंचते हैं, जिन्हें शौचालय की आवश्यकता तो निश्चित रूप से होती होगी, लेकिन यहां भी एक भी शौचालय उपलब्ध नहीं है।

“जमीन नहीं मिलने से नहीं बन रहा शौचालय”

यह सब्जी बाजार वार्ड नंबर 23 में पड़ता है। यहां के वार्ड पार्षद सुमित कुमार सुमन हैं। उन्होंने बताया कि हम लोगों ने कई बार प्रयास किया है कि शौचालय बनवाया जाए, लेकिन जमीन उपलब्ध नहीं होने के कारण इस बाजार में शौचालय बनवाना मुश्किल हो रहा है।

उन्होंने बताया कि पीने के पानी के लिए सरकारी नल की भी व्यवस्था पूरे शहर में कहीं भी नहीं है। यह एक बड़ी समस्या है इसके लिए हम लोगों ने पीएचडी विभाग से और साथ ही साथ नल जल योजना के अधिकारियों से पत्राचार किया है कि सार्वजनिक स्थान पर नल लगाने की व्यवस्था की जाए।

अररिया नगर परिषद के पूर्व अध्यक्ष रितेश कुमार राय ने बताया कि हम लोग अपने कार्यकाल के साथ साथ उसके पहले से ही शहर में शौचालय बनवाने के लिए कई प्रयास किए। लेकिन नगर परिषद की शहर में कहीं भी अपनी भूमि नहीं होने के कारण इस तरह की मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। जबकि नगर परिषद शौचालय बनवाने के लिए सक्षम है। अगर भूमि उपलब्ध हो तो निश्चित रूप से उस जगह पर शौचालय बनवाया जा सकता है। लेकिन नगर परिषद की अपनी भूमि नहीं होने के कारण यह परेशानी हो रही है।

Araria

उन्होंने बताया कि इसके पहले भी हम लोगों ने बस स्टैंड के पास सिंचाई विभाग से अनुरोध किया था कि हमें कुछ भूमि उपलब्ध कराएं, जहां एक मॉडल शौचालय का निर्माण कराया जा सके ताकि बस स्टैंड में आने वाले यात्रियों के साथ वहां के कर्मियों को भी इसका लाभ मिल पाए। लेकिन यह मामला भी अधर में ही लटका है। इस कारण आज तक शहर के किसी भी वार्ड या मुख्य बाजार में एक भी शौचालय नहीं बन पाया।

युवाओं का आंदोलन भी बेअसर

शौचालय निर्माण को लेकर कई युवा लगातार आंदोलन भी कर रहे हैं। कुछ युवाओं ने बस स्टैंड के पास शौचालय निर्माण कराने को लेकर नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी सहित डीएम को भी आवेदन देकर शौचालय निर्माण कराने की बात कही, मगर तब भी कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है।

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अररिया शहर में ही नगर थाना, न्यायालय और समाहरणालय के साथ कई सरकारी दफ्तर हैं, जहां रोजाना हजारों की संख्या में लोग आते हैं। लेकिन उनकी सुविधा के लिए आज तक कोई व्यवस्था नगर परिषद या जिला प्रशासन नहीं कर सकी है।

हालांकि, समाहरणालय और न्यायालय परिसर में सार्वजनिक शौचालय है। लेकिन, बाहरी इलाके में कहीं भी शौचालय नहीं है। बता दें कि नगर परिषद में कुल 29 वार्ड हैं जिनकी की आबादी डेढ़ से दो लाख के करीब है। इनमें से बड़ी आबादी मुख्य रूप से शहर में रहती है। बाहर से लोगों के आने पर यह आबादी ज्यादा बढ़ जाती है, लेकिन उनकी सुविधा के लिए कोई भी इंतजाम नहीं हो पाया है, जो निराशाजनक है।

अररिया शहर की यह हालत तब है जब केंद्र सरकार पूरे भारत को खुले में शौच से मुक्त करना चाहती है। इसके लिए केंद्र सरकार ने साल 2014 में स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत की थी। इस अभियान में राज्य सरकारों व शहरी निकायों को यह जिम्मेदारी दी गई थी कि शहरों के सार्वजनिक स्थलों पर पब्लिक टॉयलेट की उपलब्धता सुनिश्चित करे। स्वच्छ भारत मिशन के तहत शहरी इलाकों में सार्वजनिक शौचालय बनाने में होने वाले खर्च का 40 प्रतिशत हिस्सा केंद्र सरकार देती है।

a roundabout in araria town

जहां जगह नहीं कि सार्वजनिक शौचालय बनाया जा सके वहां, स्थानीय निकायों की तरफ से मोबाइल टॉयलेट का इंतजाम किया जा सकता है। यह अधिक जगह नहीं लेता और इसे आसानी इधर से उधर किया जा सकता है। मगर, अररिया नगर परिषद की भंगिमा से लगता है कि वह सार्वजनिक शौचालय को लेकर गंभीर है ही नहीं।

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अररिया में जन्मे वेद प्रकाश ने सर्वप्रथम दैनिक हिंदुस्तान कार्यालय में 2008 में फोटो भेजने का काम किया हालांकि उस वक्त पत्रकारिता से नहीं जुड़े थे। 2016 में डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में कदम रखा। सीमांचल में आने वाली बाढ़ की समस्या को लेकर मुखर रहे हैं।

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