गंगा, महानंदा और कनकई जैसी नदियों के कटान से तबाह सीमांचल की फ़िक्र बिहार सरकार को कितनी है, इसका अंदाजा आप जल संसाधन विभाग आधिकारिक हैंडल से पिछले हफ्ते हुई एक ट्वीट से लगा सकते हैं। 17 नवंबर को ट्वीट किया गया – “कटिहार जिले के मनिहारी प्रखंड में गंगा नदी के बाएं तट पर केवाला से बाघमारा के बीच जल संसाधन विभाग द्वारा कराया गया बाढ़ सुरक्षात्मक कार्य सुरक्षित है। विभाग के अधिकारी स्थिति पर निगाह बनाए हुए हैं।”
23 नवंबर को ‘मैं मीडिया’ की टीम स्थल पर पहुंची तो हकीकत इसके विपरीत मिली। बोल्डर पीचिंग के जो कार्य करवाए गए थे, गंगा कटान उससे आगे निकल चुकी है, बम्बू पाइलिंग में इस्तेमाल हुए बांस कहीं-कहीं नज़र आ रहे हैं। स्थानीय ग्रामीण की मानें तो पिछले कुछ हफ़्तों में कटान जिस रफ़्तार से हुआ है, आने वाले दिनों में रेलवे लाइन का बच पाना मुश्किल है, क्योंकि पटरी कटान से महज़ 50 मीटर की दूरी पर स्थित है। अगर रेलवे लाइन कट गया, तो आने वाले वर्षों में मनिहारी का अस्तित्व खतरे में होगा।
मनिहारी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस विधायक मनोहर प्रसाद सिंह ने जल संसाधन विभाग को एक पत्र लिखकर कहा कि ट्विटर पर डाले गए तथ्य सत्य से परे और भ्रामक हैं और वहां कराए गए बाढ़ सुरक्षात्मक कार्य बिलकुल असुरक्षित हैं। ट्वीट पर प्रतिक्रिया देते हुए आगे उन्होंने लिखा है, ‘ऐसा कर सरकार और जल संसाधन विभाग ने जनता के दुःख और दर्द का मज़ाक उड़ाया है’। ‘मैं मीडिया’ से बाचीत के दौरान कांग्रेस विधायक मनोहर प्रसाद सिंह ने बताया कि मनिहारी के नदी कटाव की समस्या पर सरकार 1996 से 2016 तक 3614.29 करोड़ रूपए खर्च कर चुकी है, फिर भी सैकड़ों घर इन सालों में कटान का शिकार हुए हैं। उन्होंने 2016 से 2021 तक हुए कटाव विरोधी कार्य का भी ब्यौरा दिया और कहा कि करोड़ों रुपए खर्च कर भी नदी कटान का कहर इसलिए नहीं रुक रहा है क्योंकि सरकार को ग्राउंड से जो एस्टीमेट भेजा जाता है, उसे आधा कर दिया जाता है।
पेशे से मज़दूर स्थनीय निवासी अजय पासवान कहते हैं कि हर साल कुछ न कुछ कटाव विरोधी काम तो होता है लेकिन सब कुछ पानी में समा जाता है।
दिलीप शर्मा बढ़ई का काम करते हैं, नदी कटान में उनकी 10 बीघा ज़मीन चली गई। वह कहते हैं , “अगर मेरे घर की बची हुई ज़मीन भी कट गई तो विदेश चले जाएंगे और क्या कह सकते हैं।”
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