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ओहदा नगर परिषद का, मगर बुनियादी सुविधाएं भी नदारद

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marya tola locals crossing parman nadi to go to araria town

अररिया: अररिया शहर कहने को तो सुविधाओं से लैस शहर है, लेकिन यहां की आबादी का एक हिस्सा आज भी आवागमन जैसी बुनियादी व जरूरी दिक्कतों से जूझ रहा है। नगर परिषद वार्ड नबंर 29 के मरया टोला तक जाने के लिए कोई सड़क नहीं है। परमान नदी के उसपार होने के कारण इस क्षेत्र में आवागमन का एक मात्र सहारा नाव ही है।


यह शहर, वैसे तो नगर परिषद का दर्जा पा चुका है, लेकिन इस क्षेत्र में सुविधाओं के नाम पर कुछ भी नहीं है। मरया टोले के लोगों को अपनी जरूरतों के लिए रोजाना नाव के सहारे ही शहर के बाज़ार में जाना पड़ता है। चूंकि नाव भी निजी लोग ही चलाते हैं, तो लोगों को इसका किराया खुद चुकाना पड़ता है। नाव से सफर में जान का जोखिम है क्योंकि कभी भी डूब जाने का खतरा मंडराता रहता है, लेकिन लोगों के पास कोई और विकल्प नहीं।

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nagar parishad araria building

मरया टोला की आबादी लगभग दो हजार के करीब है और यहां मतदाताओं की संख्या 800 है।


यहां के रहनेवाले मो. फरमान, मो. कासिम, मो. सऊद, मो. अशद, तारा, तनवीर आदि ने बताया कि वे सारा टैक्स शहर के हिसाब से देते हैं। लेकिन शहरी सुविधा के नाम पर कुछ नहीं है। कुछ वर्ष पहले मुहल्ले में जाने के लिए सड़क जरूर बनवाई गई थी, लेकिन उसके बाद कोई काम नहीं हुआ।

उन्होंने आगे बताया कि जब नदी में पानी कम रहता है, तो ग्रामीणों के सहयोग से चचरी पुल (बांस का पुल) बनाया जाता है। लेकिन, मॉनसून की बारिश शुरू होते ही नदी का जलस्तर बढ़ जाने से पुल बह जाता है। वहां मौजूद महिलाओं ने बताया कि सबसे ज्यादा परेशानी मरीजों को होती है। अगर किसी महिला के प्रसव का समय हो गया तो उसका अल्लाह ही मालिक होता है। रात के समय नाव से जाना खतरे से खाली नहीं है।

ग्रामीणों ने बताया की नदी पर पुल बनवाने के लिए विधायक से लेकर सांसद तक से गुहार लगाई गई, लेकिन इस दिशा में कोई काम नहीं हुआ। लोगों ने बताया कि यह समस्या सदियों से चली आ रही है और आज़ादी के बाद सूरत-ए-हाल ज्यों का त्यों है।

वे लोग कहते हैं, “हमने नगर परिषद चुनाव में वार्ड पार्षद भी मरया टोला का चुना था, लेकिन वह भी इस दिशा में कुछ नहीं कर पा रहे हैं। हम लोग अगर पंचायत में होते, तो ज्यादा सुविधा मिलती। यह केवल नाम का शहरी क्षेत्र बनकर रह गया है। शहरों की सुविधाएं नदारद हैं।”

नाविक तस्लीमुद्दीन ने बताया कि परमान नदी में हर साल बाढ़ आती है। नदी के पानी की रफ्तार तेज होने से नाव चलाना मुश्किल होता है। नाव निजी है, तो इसका मेंटेनेंस भी खुद करना पड़ता है। आवागमन करने वाले किराया भी मनमाफिक देते हैं, जिससे नाव चलाना मुश्किल होता है। नदी में बाढ़ आने से आवागमन लगभग ठप हो जाता है।

अररिया नगर परिषद में 29 वार्ड

गौरतलब हो कि अररिया नगर परिषद में कुल 29 वार्ड हैं। इन सभी वार्डों को मिलाकर तकरीबन एक लाख से अधिक की आबादी रहती है। लेकिन वार्ड नंबर 29 का आधा हिस्सा असुविधाओं से घिरे किसी सुदूर गांव जैसा है। यह हिस्सा परमान नदी के उस पार बसता है। इस हिस्से का नाम मरया टोला है। इस इलाके के लोगों को सालभर नदी को पार कर ही जाना पड़ता है।

मरया टोला के एक बुजुर्ग मो. जमील ने बताया, “हमारा इलाका कहने को शहरी क्षेत्र में है। लेकिन, यहां शहर वाली कोई सुविधा नहीं है। जिला मुख्यालय यहां से महज तीन किलोमीटर की दूरी पर है, लेकिन वहां तक पहुंचना मुश्किल भरा है। न पुल है न ही सड़क कि लोग सुगमता से आवागमन कर सकें।”

मरया टोला आवास योजना से भी वंचित

वार्ड नंबर 29 के पार्षद कस्तूदोजा भी मरया टोला के ही रहने वाले हैं। उन्होंने बताया कि मरया टोला में बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है। यहां अभी तक लोगों को सही तरह से आवास योजना का भी लाभ नहीं मिला पाया है। बताया जाता है कि आवास योजना में गड़बड़ी हुई थी, जिसकी शिकायत भी की गई, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।

कस्तूदोजा कहते हैं, “मैंने जनता दरबार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात की थी और इस गड़बड़ी के बारे में बताया था। उस वक्त जांच के लिए तत्कालीन प्रभारी मंत्री अररिया आए थे, लेकिन उसके बाद से भी आज तक यहां कोई विशेष बदलाव नहीं हुआ है।”

शहर से 3 किलोमीटर दूर और आवागमन सही नहीं होने के कारण यहां सफाईकर्मी भी रोज नहीं आते हैं। एक प्राइमरी स्कूल है और वहीं एक आंगनबाड़ी केंद्र भी चलता है, जहां बच्चे पढ़ाई करने जाते तो हैं। लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए मिडिल और हाई स्कूल नहीं है, जिस कारण यहां के छात्रों को नदी पार कर अररिया शहर जाना होता है, जो एक बड़ी समस्या है। जब परमान नदी में पानी अधिक होता है, तो आवागमन लगभग बंद हो जाता है, जिससे बच्चों की पढ़ाई पर भी बुरा असर पड़ रहा है क्योंकि वे हाईस्कूल नहीं जा पाते हैं।

वार्ड पार्षद कहते हैं, “यहां न तो कोई सरकारी नाव की व्यवस्था है और न ही यातायात का कोई दूसरा विकल्प, इसलिए हम लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।”

वार्ड नं. 11 का आधा हिस्सा शहर से 5 किलोमीर दूर

अररिया नगर परिषद का वार्ड नंबर 11 दो हिस्सों में बंटा हुआ है। इस वार्ड का आधा हिस्सा शहर से लगा हुआ है और आधा हिस्सा शहर से 5 किलोमीटर दूर है। इस हिस्से का नाम डमहेली है। यहां नगर परिषद ने सड़क और बिजली की व्यवस्था तो कर दी है, लेकिन इस इलाके में बुनियादी सुविधाओं का अभी भी घोर अभाव है।

वार्ड नंबर 11 के वार्ड प्रतिनिधि मासूम रजा ने बताया कि 1967 में अररिया नगरपालिका की बुनियाद पड़ी थी और तब से यह क्षेत्र अररिया नगरपालिका के अधीन रहा था। उस समय वार्ड नंबर 5 में डमहेली को सम्मिलित किया गया था, तब नगर पालिका ने इस इलाके को गजट में तो ले लिया, लेकिन एमएस सर्वे में इस इलाके को छांट दिया गया। एमएस सर्वे के हिसाब से खतियान नहीं बनाया गया। नगर परिषद के अनुसार, इसे गजट में नहीं लिया गया।

वार्ड प्रतिनिधि मासूम रजा ने बताया कि यहां के लोगों को वोट देने का तो अधिकार है और साथ ही टैक्स भी शहर का देते हैं। लेकिन नगर परिषद के गजट में इन्हें शामिल नहीं किया गया, इसलिए बहुत सी सुविधाएं यहां नहीं मिल पा रही हैं। उन्होंने बताया कि फिर भी नगर परिषद के इस इलाके में सड़क व बिजली की व्यवस्था की गई है। पास की पंचायत में ही एक स्कूल है, जहां बच्चे पढ़ने जाते हैं। दूसरा स्कूल वहां से दूर बांसवाड़ी पंचायत में है, डमहेली के बच्चों को वहां जाना पड़ता है। प्राइमरी स्कूल के बाद यहां के बच्चों को अररिया शहर के मिडिल स्कूल और हाईस्कूल में जाना पड़ता है।

locals deboarding boat from marya tola of araria nagar parishad

पांच किलोमीटर दूर होने के कारण इस इलाके के लोगों को आने जाने में काफी परेशानी होती है। उन्होंने बताया कि इस इलाके को वोट की राजनीति कर शामिल किया गया था। इस वजह से आज भी यह इलाका सिर्फ वोट दे पाता है और सुविधाओं से वंचित है। यहां के लोगों को टैक्स तो शहर का देना पड़ता है लेकिन सुविधाएं पंचायत जैसी भी नहीं हैं।

ग्रामीण मुतिन, मुजीब, तबरेज, निजाम, हाशिम और वारिश ने बताया कि हम लोगों को वोट देने के लिए भी 5 किलोमीटर की दूरी तय कर शहर के बूथ पर जाना पड़ता है, जिससे काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। हर छोटी मोटी जरूरत के लिए भी अररिया शहर ही आना पड़ता है। उन लोगों ने बताया कि कहने को तो हम लोग शहरी हैं। लेकिन ग्रामीण परिवेश में आज भी रहने को मजबूर हैं।

चेयरमैन ने कहा – समस्या हल करने में असमर्थ

नगर परिषद के चेयरमैन रितेश राय ने बताया कि नगर परिषद के अंदर 29 वार्ड हैं, जिनमें से मरया टोला की समस्या वर्षों से चली आ रही है। नगर परिषद यहां की समस्याओं का हल निकालने में असमर्थ है, क्योंकि परमान नदी पर बिना पुल बनवाए मरिया टोला के लोगों के लिए आवागमन की सुविधा बेहतर नहीं हो पाएगी।

उन्होंने कहा कि इसके लिए उन्होंने अररिया सांसद से बात की है। इस दिशा में काम भी चल रहा है। रितेश राय ने बताया कि जब नदी का जल स्तर कम हो जाता है, तो नगर परिषद की ओर से परमान नदी पर चचरी पुल बनवाया जाता है, ताकि मरया टोला के लोगों को आवागमन में सुविधा हो। वह आगे बताते हैं, “वार्ड की साफ सफाई की जिम्मेदारी पार्षद की होती है।”

डमहेली के बारे में उन्होंने बताया कि परिसीमन के समय इस इलाके को वार्ड नंबर 11 में शामिल किया गया था। उन्होंने कहा, “संसाधन के अनुरूप वहां सुविधा दी जा रही है। शहर से पांच किलोमीटर दूर होने के कारण आवागमन में वहां के लोगों को दिक्कत जरूर होती होगी।”


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