पिछले कुछ महीनों से बिहार शिक्षा विभाग खूब चर्चा में है। वजह है एक के बाद एक आक्रामक दिखने वाले नियम लागू करना। पुराने नियमों की पाबंदियों पर भी राज्य सरकार का रवैया सख्त है। बिहार शिक्षा विभाग के मुख्य अपर सचिव केशव कुमार पाठक (केके पाठक) के कई फैसलों ने खूब सुर्खियां बटोरी हैं। चाहे वह शिक्षकों द्वारा रोज़ाना विभाग को रिपोर्ट भेजने की बात हो या फिर स्कूल के समय कोचिंग संस्थानों को खोलने पर पाबंदी का नियम हो, शिक्षा विभाग ने एक के बाद एक ऐसे नियम बनाए, जिसकी चर्चा के साथ साथ आलोचना भी होती रही है।
पिछले महीने शिक्षा विभाग ने सरकारी स्कूलों की अवकाश तालिका में 12 छुट्टियां कम कर दी थीं जिसके बाद सरकार को भारी विरोध का सामना करना पड़ा और 4 सितंबर को विभाग ने रद्द की गई छुट्टियों को दोबारा बहाल कर दिया।
पिछले महीने ही बिहार लोक सेवा आयोग ने शिक्षक भर्ती परीक्षा आयोजित की, जिसमें बिहार के अलावा अलग अलग राज्यों से लाखों अभ्यर्थियों ने परीक्षा दी। यह पहली बार था कि राज्य में शिक्षकों की भर्ती के लिए बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) ने परीक्षा करवाया। इसे लेकर मिली जुली प्रतिक्रियाएं आईं।
शिक्षा विभाग, बिहार में शिक्षा व्यवस्था सुधारने के लिए जो नए कदम उठा रहा है, उससे भविष्य में कुछ सकारात्मक सुधार आएंगे या नहीं,यह जानने के लिए हमने बिहार शिक्षा के क्षेत्र के कुछ जानकारों से बात की।
स्कूल में पढाई नहीं होती, इसलिए छात्र ट्यूशन जाते हैं?
जन जागरण शक्ति संगठन, एक संस्था है जो बिहार के गरीब और पिछड़े इलाकों के लोगों के लिए सरकार से बेहतर सेवाएँ मांगने और कानूनों के अनुसार मौजूदा अधिकार दिलाने के उद्देश्य से काम करती है।
अररिया जन जागरण शक्ति संगठन संस्था के सचिव आशीष रंजन ने राज्य में शिक्षा व्यवस्था के मौजूदा हालात पर कहा कि जो सूरत-ए-हाल अभी है उसे सकारात्मक और नकारात्मक दोनों कहा जा सकता है। सकारात्मक इसलिए क्योंकि पिछले कुछ समय से बिहार की शिक्षा व्यवस्था चर्चा में आ गई है। सरकार के साथ आम लोगों का भी ध्यान बिहार के स्कूलों पर आया है और लंबे समय के बाद यह चर्चा का विषय बना है। नकारात्मक बात यह है कि पूरी स्कूली व्यवस्था नाज़ुक स्थिति में है उसको खड़ा करने के लिए कई पिलर हैं जिन्हें सही करने की ज़रूरत है।
बिहार शिक्षा विभाग ने पिछले दिनों आदेश दिया था कि सुबह 9 बजे से शाम 4 बजे तक बिहार में कोचिंग संस्थान बंद रहेंगे। इस मामले में विभाग ने बिहार कोचिंग संस्था नियमावली-2023 के ड्राफ्ट पर लोगों से सुझाव मांगे हैं। इस पर आशीष रंजन ने कहा ”मैं इस बात से सहमत हूँ कि ट्यूशन स्कूल का विकल्प नहीं हो सकता, लेकिन विकल्प इस लिए बना है क्योंकि स्कूल की हालत इतनी खराब है कि वहाँ पठन-पाठन नहीं हो रहा है। व्यवस्था सुधारने के लिए जो कदम उठाने हैं, वे ‘लॉन्ग टर्म’ रणनीति का नतीजा होगा। कुछ समय के लिए आदेश निकालना मेरे विचार में नाकाफ़ी है।”
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क्या सरकार शिक्षकों को लेकर अधिक सख्त हो गई है ?
पिछले महीने 29 अगस्त को शिक्षा विभाग ने एक अवकाश तालिका निकाल कर करीब एक दर्जन छुट्टियां रद्द कर दी थीं। चौतरफा दबाव के चलते 4 सितंबर को शिक्षा विभाग ने पुराना आदेश निरस्त करते हुए पुरानी छुट्टियों को फिर से बहाल कर दिया। शिक्षा विभाग के इस कदम को आशीष रंजन ने अराजक बताते हुए कहा, ”छुट्टी काटें और फिर उसे वापस ले लें तो यह तो थोड़ा अराजक वाली शैली है। बहुत ही प्रोत्साहित तरीके से काम करना होगा क्योंकि पहले ही बिहार शिक्षा व्यवस्था में बहुत गलतियां हो चुकी हैं।”
शिक्षा विभाग के सख्त नियमों पर उन्होंने कहा, ”आप सभी चीज़ें कड़ी कार्रवाई कर ठीक नहीं कर पाएंगे क्योंकि फिर लोग छुपाने लगेंगे। सारा सिस्टम चीज़ों को छुपाने लगेगा, फिर ध्यान इस पर रहेगा कि जो छुपा रहा है उसको पकड़ो।”
किशनगंज जिले के छतरगाछ उच्च विद्यालय के सेवानिवृत्त पूर्व प्रधानाध्यापक हसन अब्बास ने कहा कि शिक्षा विभाग को प्रशासनिक स्तर पर लचीला होने की आवश्यकता है। शिक्षकों पर आवश्यकता से अधिक नियम थोपे जाएंगे तो शिक्षा व्यवस्था को ठीक करना पहले से अधिक कठिन हो जायेगा।
”जब हम अपने स्कूल के प्रधानाध्यापक थे, तो हम सभी शिक्षकों को साथ लेकर चलते थे, सुबह उन सबको नाश्ते के लिए साथ में ले जाते थे। तालीम देने वाली जगह पर तनाव का माहौल नहीं होना चाहिए। शिक्षा विभाग को लचीला होना चाहिए। शिक्षकों को खुश रखना चाहिए उनको सही वेतन देना चाहिए। शिक्षकों के साथ बहुत ज़्यादा सख्ती सही नहीं है,” हसन अब्बास ने कहा।
”बिहार सरकार स्कूली शिक्षा का बजट बढाए”
बिहार सरकार ने इस साल मार्च में राज्य की शिक्षा व्यवस्था के लिए 40,450 करोड़ रुपये के बजट का एलान किया, जो कुल बजट का लगभग 16% होता है। आशीष रंजन मानते हैं कि राज्य सरकार को स्कूली शिक्षा के लिए बजट बढ़ाना चाहिए ताकि पानी, शौचालय, बॉउंड्री दीवारें, कक्षा के फर्नीचरआदि जैसी मूलभूत सुविधाएं ठीक हो सकें।
वह कहते हैं, ”पूरी आधारभूत संरचना ठीक करनी होगी। बच्चों को सही समय पर किताबें पहुंचानी होंगी। शिक्षकों की जो बहाली हो रही है उसमें देखना पड़ेगा कि छात्र-शिक्षक का अनुमात नियमानुसार है या नहीं। स्कूल प्रबंधन कमेटी को मज़बूत करना होगा ताकि जमीनी स्तर से अभिभावक की तरफ से शिक्षा सुधारने पर ज़ोर पड़े।”
”मुझे लगता है कि पिछले चार महीनों में इन्होंने जो किया है उससे वे ध्यान खींचने में तो कामियाब हुए हैं लेकिन स्कूल में शिक्षक पढ़ा नहीं रहे हैं या बच्चे स्कूल नहीं आ रहे हैं। इसके लिए इन्हें गुणवत्ता पर ही ध्यान देना होगा,” उन्होंने आगे कहा।
बता दें कि जन जागरण शक्ति संगठन ने इसी साल एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसमें कटिहार और अररिया के कुल 81 सरकारी स्कूलों में एक सर्वेक्षण किया गया था। इसमें यह पाया गया था कि दोनों जिलों के विद्यालयों में 50% से भी कम बच्चे पढ़ने आते हैं।
”शिक्षा मंत्री और मुख्य अपर सचिव में तालमेल ज़रूरी”
अजीबोगरीब आदेशों के साथ साथ केके पाठक और शिक्षामंत्री चंद्रशेखर के बीच टकराव भी सुर्खियों में रहा।
मामला इतना बिगड़ गया था कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद सुप्रीमो व पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव तक को हस्तक्षेप करना पड़ा था।
आशीष रंजन इस टकराव को शिक्षा की राह में रुकावट मानते हैं। वह कहते हैं, ”अगर कार्यकारिणी खुद आपस में लड़ रही है, तो यह तो सही नहीं है। एक कड़े ब्यूरोक्रेट को लाकर अगर आप सोच रहे हैं कि पूरे सिस्टम को ठीक कर देंगे, तो यह लोकतांत्रिक तरीका नहीं है। ब्यूरोक्रेट को मंत्री के अंदर ही काम करना चाहिए और मंत्री को चाहिए कि उनके प्रति संवेदनशील रहें और दोनों को एक दूसरे के अधिकार का सम्मान करना चाहिए। आपस में अगर नहीं बनेगी तो इसका असर पूरे सिस्टम पर पड़ता है।”
केके पाठक, नीतीश कुमार के करीबी माने जाते हैं और कहा जाता है कि मंत्री के साथ टकराव में वह पाठक के पक्ष में थे।
यहां यह भी बताते चलें कि शिक्षा विभाग बीते दिनों एक और नियम लाया जिसके अनुसार, महीने में 15 दिनों से अधिक वक्त तक अनुपस्थिति होने पर छात्र का नाम विद्यालय से काटा जा सकता है। इस पर आशीष रंजन ने कहा कि यह नियम सही नहीं है। इसकी जगह सरकार को चाहिए कि बच्चे कम क्यों आ रहे हैं, इस पर ध्यान देकर इसका समाधान ढूंढा जाए।
नियमों की सख्ती से क्या शिक्षकों में बढ़ा तनाव
कई स्कूली शिक्षकों का कहना है कि सरकार अवश्यकता से अधिक सख्ती दिखा रही है जिससे वे तनाव में हैं। 10 साल पूर्व सेवानिवृत्त हो चुके शिक्षक हसन अब्बास कहते हैं, ”सरकार हमेशा शिक्षा व्यवस्थाओं में तोड़ मरोड़ करती रहती है जिससे शिक्षकों को दिक्कतें आती हैं। सरकार शिक्षकों को इतना वेतन तो दे कि उनका जीवन आराम से गुज़रे। आप मज़दूरों का ख्याल करेंगे तो मज़दूर आपका काम पूरे दिल से करेगा। शिक्षक अगर टेंशन लेकर स्कूल जाएगा, तो क्या पढ़ाएगा।”
उन्होंने आगे कहा कि शिक्षकों को भी चाहिए कि विद्यालयों में बेहतर से बेहतर तालीम दें और बच्चों को पाठ्यक्रम के अलावा नैतिकता की शिक्षा दें। ”आज बच्चे पढ़ लिख कर डॉक्टर, इंजीनियर बन जाते हैं मगर नैतिकता भूल जाते हैं। बच्चों को अच्छा इंसान कैसे बनना है यह सिखाया जाए। आप शिक्षक हैं, आप पर बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है। जैसा शिक्षक होंगे वैसा ही शिक्षा संस्थान होगा,” हसन अब्बास कहते हैं।
शिक्षकों पर नियमों की सख्ती के बारे में पूछने पर आशीष रंजन ने कहा कि शिक्षकों की अनुपस्थिति का मामला हो, तो उसमें तो दंडात्मक कार्रवाई होनी चाहिए। पहले अगर नियमों में ढिलाई होती थी और अब ऐसा नहीं है तो नियमों का पालन करने पर शिक्षकों को तनाव में नहीं आना चाहिए। जो संस्थान का नियम है, उसका तो पालन करना पड़ेगा।
वह आगे कहते हैं, ”अगर शिक्षकों पर काम का बोझ अधिक डाल दिया गया है तो यह बात उनकी तरफ से निकल कर आनी चाहिए या अगर स्कूल की घर से दूरी अधिक होने से आने जाने और समय पर पहुँचने में दिक्कतें हैं तो इसका हल तो शिक्षकों को ही निकालना होगा। मैं देखता हूँ कि यहां अररिया में ग्रामीण स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षक शहर में रहते हैं और पढ़ाने 15-20 किलोमीटर दूर जाते हैं। महिला शिक्षिकाओं को खास तौर पर दिक्कतें होती हैं क्योंकि उतनी सुबह सवारी नहीं मिलती। इन समस्याओं का हल तो शिक्षकों को ही निकलना पड़ेगा। हर चीज़ हम सरकार पर नहीं डाल सकते।”
”बीपीएससी परीक्षा से बेहतर शिक्षक आएंगे”
पिछले महीने के अंत में बीपीएससी द्वारा संचालित हुई शिक्षक भर्ती परीक्षाओं पर अररिया जन जागरण शक्ति संगठन के सचिव ने कहा कि इससे पहले जो पंचायत समिति वाली शिक्षक बहाली हुई थी उसमें शिक्षकों की गुणवत्ता बहुत कम थी और नियुक्ति प्रक्रिया में काफी भ्रष्टाचार भी देखने को मिला था।
”देश भर में पैसा देकर लोग डिग्री ले रहे हैं इसमें सरकार यह कैसे सुनिश्चित करे कि लोग पढ़ाई कर के ही डिग्री लें। यह काफी लंबी प्रक्रिया है। बीपीएससी जो परीक्षा लेती है वह पूरी गंभीरता से लेती है और इसमें जो चुन कर आएंगे, ऐसा अनुमान है कि वह शिक्षक पहले से बेहतर आएंगे,” आशीष रंजन ने कहा।
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नहीं, कभी नहीं। आक्रामक रवैए से और बात बिगड़ेगी। शिक्षा व्यवस्था की हालत को जानने के लिए आपको 17 साल पहले जाना होगा। तब मै वर्ग सात का छात्र था। उस समय हुआ यह कि शिक्षा मित्र की बहाली हुई जो गाँव के मुखिया और अन्य पदाधिकारियो के द्वारा हुई। उस बहाली मे जमकर पैसे का खेल हुआ और जैसे तैसे को शिक्षक की नौकरी दे दी गई। जो लोग चपरासी के लायक भी नही थे वो शिक्षक जैसी प्रतिष्ठित पद पर नियुक्त कर दिए गए। इस प्रकार एक पीढ़ी की शिक्षा व्यवस्था का नाश हो गया। पहले विद्यालय था परंतु अब भोजनालय हो चुका है। अब बच्चे पढ़ाई की बात कम मिड डे मील की बात ज्यादा करते है। गरीबो के बच्चो के साथ शिक्षा के नाम पर घटिया मजाक हुआ। 17 सालो मे जो बच्चे बिगड़ गये वही बच्चे आज दूसरे राज्यो मे मजदूरी करके अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे है। मजदूर बना कर रख दिया बिहारी बच्चो को। ये हुई समस्या की बात। अब करते है समाधान की बात।
1) अच्छी गुणवत्ता वाले शिक्षको की बहाली की जाये।
2) बी एड हटाया जाए। बच्चो को पढ़ाने के लिए बी एड की नही बल्कि अच्छे ज्ञान की जरूरत है क्योंकि हमारे समय मे बी एड कोई नही बल्कि सभी शिक्षक स्नातक और परास्नातक थे और आज के तथाकथित शिक्षक से 100 गुना अच्छा पढाते थे।
Right statement