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छुट्टियों में कटौती से बिहार के शिक्षक नाराज – “धार्मिक स्वतंत्रता को छीनने की कोशिश”

पहले स्कूलों में दुर्गा पूजा और श्री कृष्ण सिंह जयंती को मिलाकर 6 दिनों का अवकाश होना था, जिसे अब नई अवकाश तालिका में घटाकर 3 दिन का कर दिया गया है। इसी तरह दीपावली, चित्रगुप्त पूजा, भैयादूज और छठ पूजा को मिलाकर 9 दिनों तक का अवकाश रहता था, जिसे अब विभाग ने घटाकर 4 दिनों के लिए कर दिया है।

Nawazish Purnea Reported By Nawazish Alam |
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शिक्षा विभाग ने सरकारी स्कूलों के लिए छुट्टियों को कम कर दिया है। सितंबर से दिसंबर महीने के बीच बची हुई 23 दिन की छुट्टियों को घटाकर 11 दिन का कर दिया गया है। शिक्षा विभाग ने इस संबंध में आदेश जारी किया है। इसके अतिरिक्त रक्षाबंधन के लिए घोषित छुट्टी को भी रद्द कर दिया गया है।

पहले स्कूलों में दुर्गा पूजा और श्री कृष्ण सिंह जयंती को मिलाकर 6 दिनों का अवकाश होना था, जिसे अब नई अवकाश तालिका में घटाकर 3 दिन का कर दिया गया है। इसी तरह दीपावली, चित्रगुप्त पूजा, भैयादूज और छठ पूजा को मिलाकर 9 दिनों तक का अवकाश रहता था, जिसे अब विभाग ने घटाकर 4 दिनों के लिए कर दिया है।

bihar education department letter regarding slashing of holidays


पुरानी अवकाश तालिका में 7 सितंबर को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की छुट्टी अंकित है, लेकिन नई अवकाश तालिका में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का जिक्र नहीं है। इसी तरह, पुरानी तालिका में 18-19 सितंबर को तीज व्रत के लिए दो दिनों का अवकाश दर्ज है, लेकिन नई तालिका में तीज व्रत का अवकाश दर्ज नहीं है। इसके अतिरिक्त पुरानी तालिका में 27 नवंबर को गुरू नानक जयंती/कार्तिक पूर्णिमा की छुट्टी होनी थी, लेकिन नई तालिका में इस छुट्टी को भी खत्म कर दिया गया है।

ट्वीटर पर लोग कर रहे सरकार की आलोचना

सराकर के इस फैसले से नाराज लोग “#बिहारसरकारशर्म_करो” नाम का ट्विटर ट्रेंड भी चला रहे हैं। इसमें लोग सरकार के छुट्टी कटौती के फैसले की जमकर आलोचना कर रहे हैं। लोग अपने ट्वीट में नीतीश सरकार पर “हिंदू विरोधी” होने का आरोप लगा रहे हैं। श्लोक चैतन्य (@Shlok Chaitanya) नाम के यूज़र ने लिखा, बिहार में शिक्षकों के लिए रक्षाबंधन और जन्माष्टमी की छुट्टी रद्द करना निराशाजनक है। ये परंपराएँ कई लोगों के लिए मायने रखती हैं, और व्यक्तिगत स्वतंत्रता अति आवश्यक है, बिहार बेहतर नेतृत्व का हकदार है।

एक अन्य ट्वीटर यूज़र मो. गुलाम कुद्दूस (@GhulamQuddus) ने लिखा, त्योहारों की छुट्टियाँ में कटौती करना सीधे तौर पर शिक्षकों का उत्पीड़न है। क्या सिर्फ शिक्षकों को प्रताड़ित करने से शिक्षा व्यवस्था सुधर जायेगी?

क्वालिटी एजुकेशन ऑफ बिहार (@Bihartet19) ने लिखा, इतना बड़ा अन्याय बिहार सरकार शिक्षक के साथ साथ बिहार के लाखों बच्चों के साथ कर रही है, ऐसे छुट्टी मे कटौती से बच्चों का विकास बिल्कुल संभव नहीं है। सरकार शिक्षक विरोधी के साथ गरीब के बच्चों का भी विरोधी हो गयी है।

वहीं विभाग का कहना है कि त्योहारों/अनुष्ठानों में विद्यालयों के बंद होने की प्रक्रिया में एकरूपता नहीं होने के कारण किसी त्योहार में किसी जिले में विद्यालय चल रहे होते हैं और उसी त्योहार में अन्य जिलों में विद्यालय बंद रहते हैं, इस भ्रम की स्थिति को दूर करने के लिए विभाग द्वारा निर्णय लिया गया है कि सभी राजकीय/राजकीयकृत/प्रारंभिक, माध्यमिक तथा उच्च माध्यमिक विद्यालयों में अवकाश व समय-सारणी में तारतम्यता लाने के उद्देश्य से बचे हुए दिनों में सभी जिलों में एक समान दिनों में ही अवकाश होगा।

सरकार के फैसले से शिक्षक भी नाराज़

विभाग के इस आदेश पर बिहार के शिक्षक खासे नाराज़ दिख रहे हैं। शिक्षकों का मानना है कि विभाग का यह कदम सरासर “तानाशाही” है और विभाग के ऐसे कदम से बिहार के शिक्षक खुद को अपमानित महसूस करते हैं। परिवर्तनकारी प्रारंभिक शिक्षक संघ के किशनगंज जिला महासचिव अरुण ठाकुर ने कहा कि छुट्टियों में कटौती कर सरकार शिक्षकों के साथ अन्याय कर रही है।

“बिहार सरकार लाखों शिक्षकों के साथ जुल्म और अन्याय कर रही है। हमारी धार्मिक स्वतंत्रता को छीनने का काम कर रही है। कहीं न कहीं संविधान पर आघात पहुंचाया जा रहा है। हमारा छठ पर्व चार दिन का होता है, नहाय-खाय से शुरूआत होते हुए यह अंतिम दिन सूर्यास्त के साथ समाप्त होता है। यह हमारे लिए बहुत आस्था का पर्व है। इसमें मात्र दो दिन का अवकाश दिया गया है, उसमें भी एक रविवार को काउंट किया गया है। कहीं न कहीं बिहार सरकार के शिक्षा विभाग के जो कर्मी हैं, वो शिक्षक से कैसा बदला लेना चाहते हैं, पता नहीं…। हमलोग गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए कल भी तैयार थे, और आज भी तैयार हैं। शिक्षकों को सरकार का प्रोत्साहन और मान-सम्मान चाहिए,” उन्होंने कहा।

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अररिया टीईटी प्रारंभिक शिक्षक संघ के कार्यकारी जिलाध्यक्ष मेराज खान ने भी विभाग के इस रवैये को तानाशाही बताया है। मेराज ने बताया कि विभाग जिन कारणों के आधार पर छुट्टियों में कटौती कर रही है, वो बेबुनियाद है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार इस फैसले को वापस नहीं लेगी, तो वे लोग संघ के बैनर तले सरकार के तानाशाही रवैये के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करेंगे।

शिक्षा विभाग का मानना है कि चुनाव, परीक्षा, विधि-व्यवस्था, त्योहार, अनुष्ठान संबंधी आयोजन, बाढ़, प्राकृतिक आपदाओं तथा विभिन्न प्रकार के आयोग की परीक्षाओं/भर्ती परीक्षाओं से उत्पन्न होने वाली स्थिति के कारण विद्यालयों का पठन-पाठन कार्य प्रभावित होता है, जिससे निर्धारित कार्य दिवस (220 दिन) पूरा नहीं हो पाता है।

ऐसा माना जा रहा है कि इसी की पूर्ति के लिए शिक्षा विभाग द्वारा छुट्टियों में कटौती की जा रही है। उल्लेखनीय है कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009 के तहत प्राथमिक विद्यालयों में कम से कम 200 दिन तथा मध्य विद्यालयों में कम-से-कम 220 दिनों के कार्यदिवस का प्रावधान है।

बदले की भावना से काम कर रहा विभाग- शिक्षक संघ

विभाग के इस तर्क पर टीईटी प्रारंभिक शिक्षक संघ के प्रदेश संयोजक राजू सिंह का मानना है कि विभाग द्वारा जो विभिन्न कारणों से उत्पन्न स्थिति के कारण विद्यालय पठन-पाठन का कार्य प्रभावित होने की बात की जा रही है, वो तर्कपूर्ण नहीं है। राजू सिंह ने कहा कि एक साल के अन्दर सरकार द्वारा घोषित 60 अवकाश दिवसों और 53 रविवार को निकाल दें, तब भी पठन-पाठन के लिए 252 दिन बचता है, जो कि एक वर्ष के लिए निर्धारित कार्य दिवस (220 दिन) से काफी अधिक है।

उन्होंने कहा कि शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव बदले की भावना से तमाम नियम-कानूनों को ताक पर रख कर जान-बूझ कर शिक्षकों को प्रताड़ित कर रहे हैं।

“अभी हमारा पर्व-त्योहार का समय है। नीतीश कुमार महिला आरक्षण की बात करते हैं और 50% महिलाओं को आरक्षण देते हैं सरकारी नौकरी में। निर्जलाव्रत हिंदू महिला शिक्षकों का तीज और जित्या है, जिसमें वे जल भी नहीं पीती हैं। लेकिन सरकार ने इन तमाम छुट्टियों को रद्द कर दिया है और जन्माष्टमी की छुट्टियों को भी रद्द कर दिया है। हास्यास्पद यह है कि विभाग की संशोधित छुट्टी तालिका में दीपावली के लिए एक दिन का अवकाश दिखाया जा रहा है, जब कि वो दिन रविवार है। रविवार को तो हमारी छुट्टी होती ही है। इससे पता चलता है कि शिक्षकों को भ्रमित करने का प्रयास किया जा रहा है,” उन्होंने कहा।

राजू ने सरकार से इस संशोधित अवकाश तालिका को वापस लेने की मांग की है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार इसको वापस नहीं लेती है तो वे लोग दूसरे शिक्षक संगठनों से बात कर आन्दोलन की रूपरेखा तैयार करेंगे।

“सरकार के इस तुगलकी आदेश के खिलाफ बहुत जल्द हमलोग बिहार के तमाम शिक्षक संगठनों के साथ बात करेंगे। लगातार शिक्षकों के खिलाफ ऊल-जुलूल आदेश निकाला जाता है…एक तरफ नीतीश कुमार कह रहे हैं कि हम शिक्षकों के बारे में सोच रहे हैं, दूसरी तरफ विभाग की तरफ से प्रताड़ित किया जा रहा है। यह परिचायक है कि सरकार शिक्षकों का भला नहीं चाहती है और शिक्षकों को प्रताड़ित करना चाहती है। सरकार को मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा। बार-बार प्रताड़ित होने से बेहतर है कि हमलोग एक बार इस सरकार से दो-दो हाथ कर लें। हमलोग चरणबद्ध तरीके से आन्दोलन करेंगे और बहुत जल्द बैठक कर इसकी घोषणा करेंगे,” उन्होंने कहा।

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नवाजिश आलम को बिहार की राजनीति, शिक्षा जगत और इतिहास से संबधित खबरों में गहरी रूचि है। वह बिहार के रहने वाले हैं। उन्होंने नई दिल्ली स्थित जामिया मिल्लिया इस्लामिया के मास कम्यूनिकेशन तथा रिसर्च सेंटर से मास्टर्स इन कंवर्ज़ेन्ट जर्नलिज़्म और जामिया मिल्लिया से ही बैचलर इन मास मीडिया की पढ़ाई की है।

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