शिक्षा मंत्री और विभाग के मुख्य सचिव के बीच के विवाद सियासी गलियारों तक पहुंच गया है। इस विवाद में अब राजद और जदयू के नेता आमने-सामने आ गए हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर को बुलाकर मामले की पूरी जानकारी ली। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो इस दौरान विभाग के मुख्य सचिव के. के. पाठक भी मौजूद थे।
क्या है पूरा विवाद
पिछले कुछ दिनों से शिक्षा विभाग में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। के. के. पाठक ने विभाग की जिम्मेदारी संभालते ही सख्त फैसले लेने शुरू कर दिए हैं। पाठक की पहचान हमेश से ही एक कड़क अफसर के तौर पर रही है। पाठक द्वारा लिए गए इन फैसलों से शिक्षा मंत्री खासे नाराज लग रहे थे।
इस नाराज़गी के मद्देनज़र शिक्षा मंत्री के आप्त सचिव कृष्णानंद यादव ने विभाग के अपर मुख्य सचिव के. के. पाठक को पीत पत्र लिखा। पत्र में विभागीय कार्यशैली सुधारने के लिए पाठक के नाम हिदायत की लंबी फेहरिस्त भेज दी गई। विभाग से संबंधित कोई भी पत्र या संकल्प विभागीय अधिकारियों तक पहुंचने से पहले ही मीडिया में लीक होने से आप्त सचिव कृष्णानंद यादव नाराज़ थे।
पत्र में कहा गया कि शिक्षा विभाग में कड़क, सीधा करना, नट बोल्ट टाइट करना, डराना, नकेल कसना, उखाड़ देना और फाड़ देना जैसे शब्दों का चर्चा हो रही है। पत्र में ये सुनिश्चित करने के लिए कहा गया था कि कोई भी लोक सेवक अपनी छवि चमकाने, निजी स्वार्थ की पूर्ति, राजनैतिक नेतृत्व के नजर में स्थान बनाने, रॉबिनहुड की छवि बनाने के लिए विभाग के संसाधनों तथा सरकार का सहारा न ले सके। जो अधिकारी ऐसा करते पाये जाते हैं तो उनके खिलाफ कार्रवाई का प्रस्ताव विभाग को भेजे जाने की बात कही गयी।
विभाग से संबंधित खबरों को नाटकीय, उत्तेजक, सनसनीखेज़ और विस्मयकारी बना कर पेश करने वाले न्यूज़ चैनलों के विरुद्ध कार्रवाई की बात भी पत्र में कही गई थी। इसमें विभागीय अधिकारियों और संविदा कर्मियों की संलिप्तता पाए जाने पर उनके खिलाफ उचित कार्रवाई करने को कहा गया था।
इस पत्र से नाराज़ होकर बदले में विभाग के निदेशक(प्रशासन) सुबोध कुमार चौधरी ने शिक्षा मंत्री के आप्त सचिव कृष्णानंद यादव के नाम पीत पत्र भेज दिया। इस पत्र में आप्त सचिव को विभागीय अधिकारियों को सीधे पत्राचार नहीं करने की हिदायत दी गई। साथ ही मंत्री के आप्त सचिव को विभाग के मुख्यालय में घुसने पर पाबंदी लगा दी है।
पत्र में आप्त सचिव से कहा गया, “आपकी सेवाएं लौटाने के लिए सक्षम प्राधिकार को विभाग पहले ही लिख चुका है। विभाग को यह भी पता चला है कि आप विभाग पर मुकदमा कर चुके हैं, जिसके कारण आपके सेवा सामंजन का प्रस्ताव विभाग द्वारा काफी समय से लगातार खारिज किया जाता रहा है। अतः आप स्वंय एक माननीय विभागीय मंत्री के प्रकोष्ठ में काम करने के लायक नहीं हैं”।
पत्र में आगे कहा गया कि विभागीय अधिकारियों के लिए संभव नहीं है कि उनके हर प्रकार के पत्रों का बार-बार जवाब देते रहें। आप्त सचिव को आगे से पत्र न लिखने कही सख्त हिदायत दी गई है।
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किसे कहते हैं पीत पत्र
विभाग में इंटरनल कम्यूनिकेशन के लिए पीत पत्र लिखा जाता है। यह आमतौर पर गोपनीय होता है। सामान्य तौर पर विभागीय काम में अधिकरी मंत्री की सभी बात मानने के लिए बाध्य नही है। लेकिन अगर पीत पत्र के माध्यम से कोई आदेश दिया जाता है तो अधिकारियों को वो बात माननी होती है।
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