महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम यानी मनरेगा के तहत देश के ग्रामीण परिवारों को हर वर्ष न्यूनतम 100 दिनों के रोज़गार की गारंटी दी जाती है। मनरेगा के दिशानिर्देश पत्र में लिखे नियम के अनुसार मनरेगा के अंतर्गत कराये जा रहे कार्य मज़दूरों से कराना अनिवार्य है, इन कामों के लिए मशीन का इस्तेमाल गैर कानूनी है।
बावजूद इसके बिहार के किशनगंज में नियमों को ताक पर रख कर मनरेगा की कई परियोजनाओं में जेसीबी और ट्रैक्टर का प्रयोग किया जा रहा है। ये तस्वीरें हैं किशनगंज प्रखंड के सिंघिया कुलामनी पंचायत वार्ड संख्या चार की। यहाँ गांव के वर्षों पुराने ऐतिहासिक तालाब का जीर्णोद्धार व सौंदर्यीकरण का कार्य किया जा रहा है। मनरेगा के तहत हो रहे इस जीर्णोद्धार कार्य में बिना किसी झिझक के, मज़दूरों की जगह ट्रेक्टर से काम लिया जा रहा है।
पोठिया प्रखंड अंतर्गत जहांगीरपुर पंचायत के बेलपोखर गांव में मनरेगा योजना के तहत पिछले दिनों मछली पालन के लिए एक तालाब का निर्माण कराया गया था लेकिन तालाब अब तक सूखा पड़ा है। स्थानीय निवासी मोहम्मद मुश्ताक़ ने बताया कि कलाम नामक एक व्यक्ति की ज़मीन पर इस तालाब की खुदाई की गई है। खुदाई की प्रक्रिया में मज़दूरों की जगह दो जेसीबी मशीनों का प्रयोग किया गया था।
शमीम अख्तर मज़दूरी कर किसी तरह परिवार का भरण पोषण करते हैं। उन्होंने बताया कि आज कल गांवों में ट्रैक्टर और जेसीबी मशीनों से काम लिया जा रहा है जिस से रोज़गार तलाशना और कठिन हो गया है। शमीम की पत्नी के पास श्रमिक कार्ड है लेकिन शमीम का कार्ड अभी नहीं बन सका है। उनके अनुसार उनकी पत्नी के पास श्रमिक कार्ड होने के बावजूद उनके परिवार को मनरेगा के तहत रोज़गार नहीं मिल रहा है।
मनरेगा योजना में मज़दूरों के बजाए ट्रैक्टर और जेसीबी मशीनों से काम निकलवाने की इन घटनाओं को लेकर हमने किशनगंज उप विकास आयुक्त सह मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी स्पर्श गुप्ता से कुछ सवाल किए। स्पर्श ने बताया कि उन्हें अब तक इसकी जानकारी प्राप्त नहीं हुई थी लेकिन अब इस मामले की गंभीरता से जाँच कर मनरेगा योजना का दुरुपयोग करने वालों पर सख्ती से निपटा जाएगा।
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