राशिद रज़ा दूसरी कक्षा का छात्र है। वह रोज़ाना स्कूल जाने के लिए घर से साइकिल लेकर निकलता है। नदी किनारे कीचड़ भरे रास्तों पर रशीद बड़ी ताकत से साइकिल खींचता है लेकिन साइकिल फंस जाती है। लगभग दो किलोमीटर की जद्दोजहद भरी दूरी तय करने में उसे सबसे पहले तीन फीट पानी में पैदल चलना पड़ता है फिर वह घर तक पहुंच पाता है। राशिद रज़ा जैसे दर्जनों छात्र हर दिन इसी रास्ते से होकर पढ़ने के लिए कुरुमहाट स्थित स्कूल जाते हैं।
कटिहार जिले के कदवा प्रखंड अंतर्गत सबनपुर गांव आजादी के बाद से एक मामूली सी सड़क के लिए तरस रहा है। इस गांव में लगभग एक हजार परिवार रहते हैं, जो सड़क न होने के कारण कीचड़ भरे रास्तों से होकर आना-जाना करते हैं। उन्हें बरसात के 3-4 महीने पानी और कीचड़ और बाकी दिनों में धुल, मिट्टी को पार कर हाट, पंचायत, थाना, प्रखंड और अस्पताल आदि जाना पड़ता है।
बरसात में थर्मोकॉल पर रास्ता पार करते हैं ग्रामीण
छात्र राशिद रज़ा ने ‘मैं मीडिया’ को बताया कि वह और उसके साथी हर दिन इसी कीचड़ भरे रास्तों से होकर पढ़ने जाता है। गांव में एक सरकारी स्कूल है लेकिन वहां पढ़ाई का स्तर सही नहीं होने से वह तथा कई और बच्चे कुरुम हाट में स्थित एक निजी स्कूल में पढ़ने जाते हैं।
”कभी-कभी तो पूरी तरह से भीग कर जाना पड़ता है। नदी में लगभग सीने तक पानी है यहां नाव नहीं चलती है जिसकी वजह से सभी बच्चे थर्मोकाॅल से बनी नाव पर चढ़कर पार होते हैं जिसमें पैसा लगता है। लेकिन हर दिन ऐसा नहीं होता है ज्यादातर हम लोग चलकर या तैरकर पार होते हैं। अलग से दो जोड़ी कपड़ा झोले में रखना पड़ता है क्योंकि नदी पार करने के बाद कपड़े भीग जाते हैं। बरसात के दिनों में हम लोगों को काफी परेशानी होती है,” राशिद कहता है।
स्थानीय ग्रामीण अंजार आलम ने कहा कि उनकी आयु लगभग 35 वर्ष हो चुकी है और वह बचपन से आज तक इसी कीचड़ भरे रास्तों से होकर अस्पताल और पंचायत आते जाते हैं। राशन लेने के लिए जाने वाली महिलाओं को सबसे अधिक दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
अंजार आलम आगे बताते हैं कि कुछ दिन पहले उनके गांव में एक बुजुर्ग व्यक्ति की तबीयत खराब हो गई थी जिन्हें इमरजेंसी में अस्पताल पहुंचाना था लेकिन रास्ता नहीं होने के कारण उन्हें चारपाई पर लिटाकर कन्धों पर लेकर ग्रामीणों के सहयोग से डाॅक्टर के पास ले जाना पड़ा।
”हम लोग बचपन से इसी तरह की सड़क देख रहे हैं। और हम लोगों को ना चाहते हुए भी इधर से गुजरना पड़ता है क्योंकि हम लोगों का हटिया, पंचायत, प्रखंड, अस्पताल, जिला सब कुछ इसी तरफ है। जब नदी में थोड़ा बहुत पानी रहता है तो नांव या थर्माकाॅल से बनी जुगाड़ नाव से नदी पार कर लेते हैं लेकिन जब पानी थोड़ा कम हो जाता है या घुटने तक आ जाता है तब नाव नहीं चल पाती है फिर ग्रामीणों को पैदल ही आना जाना पड़ता है,” अंजार ने कहा।
बड़े आंदोलन की तैयारी में ग्रामीण
स्थानीय मुखिया प्रतिनिधि इनायत राही ने बताया, ”यह कुरुम से सबनपुर गांव तक जाने के लिए मुख्य सड़क है, जो दशकों से जर्जर स्थिति में है। गांव में लगभग 1500 परिवार रहते हैं और इसी कीचड़ भरे रास्ते से होकर जाने को विवश हैं। कुछ निजी जमीन की वजह से मामला अटका पड़ा है। यहां के सांसद और विधायक इन मामलों पर ध्यान नहीं देते हैं। हम लोगों ने अपने स्तर पर कई बार प्रयास किया कि सड़क बन जाए। सामाजिक स्तर पर भी पहल की, लेकिन नहीं हो पाया। ग्रामीणों में काफी आक्रोश है और जल्द ही सभी ग्रामीण धरना प्रदर्शन और सड़क जाम करेंगे, जिसकी तैयारी भी शुरू हो गई है।”
”यह सड़क बन जाने से सिर्फ सबनपुर वासियों को ही सहुलियत नहीं होगी बल्कि पूरे बलिया बेलौन थाना क्षेत्र को फायदा पहुंचेगा। क्योंकि यह सड़क सीधे बंगाल को जोड़ देती है पश्चिम बंगाल के दालकोला जाने के लिए यह सबसे सुगम रास्ता हो जाएगा, जिससे यहां का व्यापार बढ़ेगा। सबनपुर वासियों के पास बंगाल जाने के लिए सड़क है, लेकिन अपनी पंचायत और प्रखंड जाने के लिए सड़क नहीं है,” उन्होंने आगे कहा।
”हम मरें या जियें, किसी को फर्क नहीं पड़ेगा”
सबनपुर गांव के अब्दुल रहमान अपना जरूरी सामान लेकर कुरुम हटिया से अपने घर वापस जा रहे थे, साथ में कुछ महिलाएं भी थीं। सभी के हाथ में सब्जी से भरा हुआ झोला और जरूरी सामानों की गठरी सिर पर रखी थी। वे सब कीचड़ों से होकर गुजर रहे थे। पानी में चलकर आने के कारण कमर से नीचे सभी का कपड़ा भीगा हुआ था।
अब्दुल रहमान ने कहा, ”सांसद और विधायक सिर्फ वोट लेने के लिए हमारे गांव आते हैं उसके बाद उनका कोई पता नहीं रहता है। आने वाले समय में लोकसभा चुनाव भी है, उसमें नेता आएंगे वादे करेंगे और फिर चले जाएंगे लेकिन हमारी जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आएगा। हम मरें या जियें किसी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा।”
अब्दुल आगे कहते हैं, ”पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान हम गांव वालों ने वोट का बहिष्कार भी किया था यह सोचकर कि सरकार और प्रशासन का ध्यान हमारी ओर आएगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। अब हम लोगों ने उम्मीद ही छोड़ दी है। हमें विश्वास हो गया है कि हमारी जिंदगी इसी कीचड़ भरे रास्तों और पानी में गुजर जाएगी।”
नबील अहमद कुरुमहाट में दुकान चलाते हैं और हर शाम इसी रास्ते से होकर शिमलटोला स्थित एक प्राइवेट कोचिंग में पढ़ाने जाते हैं। साल के 12 महीने वह इसी रास्ते से होकर गुजरते हैं, कभी उनको नाव से गुजरना पड़ता है तो कभी कमर भरे पानी से होकर।
नबील अहमद का मानना है कि सड़क की कनेक्टिविटी इस इलाके के विकास के लिए बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा, “हम कुरुम हाट में दुकान भी चलाते हैं। दुकान में बेचने के लिए थोक सामान कटिहार, रायगंज और टुन्नी दिग्गी से खरीद कर लाते हैं। सबसे बेस्ट मार्केट पश्चिम बंगाल का दालकोला है यहां कम रेट में अच्छा सामान मिल जाता है लेकिन रास्ता नहीं होने के कारण हम लोगों को बहुत ज्यादा किराया लग जाता है। अगर यह सड़क बन जाती है तो कुरुम मार्केट और यह इलाका डेवलप कर जाएगा।”
Also Read Story
निजी जमीन मालिकों ने क्यों नहीं दी जमीन ?
इस संबंध में जब हमने कदवा विधानसभा के विधायक डॉ शकील अहमद खां से फोन पर बात की तो उन्होंने बताया कि इस सड़क को बनाने के लिए काफी ज्यादा पहल की गई थी। वर्षों पहले भी बात हुई थी। सड़क के लिए विभागीय स्वीकृति भी मिल चुकी थी, सड़क बनाने के लिए लोग आए भी थे लेकिन निजी जमीन वालों ने जमीन नहीं दी जिसकी वजह से काम अटका गया। विभाग सरकारी मुआवजा भी देने के लिए तैयार है। अगर अब भी निजी जमीन मालिक सरकारी मुआवजा लेकर जमीन दे दें, तो सड़क बनने में देर नहीं लगेगी।
इसके बाद हमने निजी जमीन मालिक बिझाड़ा पंचायत निवासी असलम से बात की और सड़क न बनने से ग्रामीणों की परेशानी के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि हमारी भी कुछ परेशानी है। मैं सिर्फ लोगों की परेशानी क्यों देखूं। हमारी कुछ शर्तें हैं अगर उन शर्तों को मान लिया जाए तभी जमीन देंगे। स्थानीय मुखिया और ग्रामीण इस मामले को लेकर बैठें और बात करें।
सीमांचल की ज़मीनी ख़बरें सामने लाने में सहभागी बनें। ‘मैं मीडिया’ की सदस्यता लेने के लिए Support Us बटन पर क्लिक करें।
Very good journalism for one the most backward region of Bihar. Simanchal has been least education ratio, due to which peoples could not understand how to be at par with changing modern world. Now your voices could make heard deaf ears of politicians and bureaucrats.