कुछ माह पहले मुजफ्फरपुर जिले के मोतीपुर थाने की पुलिस ने एक वाहन से शराब की बड़ी खेप के साथ ही वाहन पर लोड हाजमोला भी जब्त किया था। हाजमोला उत्तर प्रदेश के किसी सुमित शुक्ला का था। सुमित शुक्ला ने पुलिस से गुहार लगाई कि हाजमोला को छोड़ दिया जाए। वह जिले के आबकारी अधीक्षक और जिला मजिस्ट्रेट तक के पास गये, लेकिन प्रशासनिक अधिकारियों ने एक नहीं सुनी।
मजबूर होकर सुमित शुक्ला ने पटना हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और रिट याचिका दायर कर दी। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने 26 फरवरी को जिला प्रशासन को आदेश दिया कि जब्त हाजमोले को एक हफ्ते के भीतर छोड़ा जाए। अदालत ने सरकार से काउंटर एफिडेविट फाइल करने को भी कहा है।
पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पीबी बजनथ्री और जस्टिस आलोक पांडेय ने मामले की सुनवाई करते हुए यह भी कहा कि अगर जब्त हाजमोले अगर नहीं छोड़े गये, तो दोषी अधिकारियों पर अवमानना का वाद चलाया जाएगा।
शराबबंदी कानून के तहत शराब के साथ अन्य सामानों की अवैध तरीके से जब्ती का यह कोई इकलौता मामला नहीं है, जिसमें पटना हाईकोर्ट ने संबंधित अधिकारियों की कार्रवाई के खिलाफ आदेश जारी किया है।
इससे पहले भी इस तरह के कई आदेश जारी हो चुके हैं, जिसमें अधिकारियों को कानून के प्रावधानों को ठेंगा दिखाते हुए शराब के साथ अन्य सामानों की अवैध तरीके से जब्त कर ली गई थी।
जब्ती को लेकर क्या कहता है कानून
बिहार सरकार ने साल 2016 में एक अप्रैल से बिहार में बिहार मद्यनिषेध और उत्पाद अधिनियम, 2016 लागू किया था। इस कानून के तहत बिहार में शराब का निर्माण, बिक्री और सेवन पर पूरी तरह प्रतिबंध है।
इस कानून में जब्ती के संबंध में जो नियम लिखे गये हैं, अधिकारी उसकी मनमानी व्याख्या करते हुए शराब के साथ अन्य सामानों की भी जब्ती कर लेते हैं।
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ऐसी ही एक कार्रवाई को लेकर ‘मैं मीडिया’ ने पिछले दिनों एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि जहानाबाद जिले के टिकुलिया गांव में पुलिस ने बृजलाल यादव नाम के एक व्यक्ति के मकान से कथित तौर पर शराब बरामद की थी। मकान की तलाशी में पुलिस को 2.24 लाख रुपये मिले, तो पुलिस ने उसे जब्त कर लिया।
घटना साल 2021 की है। बृजलाल, जिला मजिस्ट्रेट से लेकर पुलिस और जहानाबाद कोर्ट का तक का चक्कर लगा चुके हैं, लेकिन अब तक पुलिस ने उनके रुपये नहीं लौटाये।
शराबबंदी कानून की धारा 56बी कहती है कि कोई भी पशु, वाहन, वैसेल या परिवहन के अन्य साधन जिनका इस्तेमाल नशीला पदार्थ या शराब को ढोने के लिए किया जाता है, उन्हें जब्त किया जाएगा।
कानून आगे कहता है, “यदि इस अधिनियम के अधीन किसी पुलिस या उत्पाद अधिकारी द्वारा किसी वाहन, सवारी, वैसेल, पशु आदि जब्त किया गया हो, तो इस अधिनियम की धारा 57बी के निबंधनों के अनुसार कलक्टर या उसके द्वारा प्राधिकृत पदाधिकारी उक्त सवारी या वाहन आदि के स्वामी से प्रपत्र IV में आवेदन प्राप्त कर उक्त सवारी या वाहन को ऐसी शास्ति के भुगतान करने पर छोड़ सकेगा, जो कलक्टर या उसके द्वारा प्राधिकृत पदाधिकारी द्वारा आदेशित किया जाए।”
यानी कि शराब के परिवहन के लिए इस्तेमाल होने वाले साधन जब्त किये जाएंगे और जुर्माना भरने के बाद वे साधन उनके मालिकों को हवाले कर दिया जाएगा। मगर, इसके लिए सबसे पहले वाहन या अन्य किसी साधन का इस्तेमाल शराब के परिवहन के लिए ही हुआ है, यह साबित करना होगा।
मसलन कि अगर कोई व्यक्ति चार पहिया वाहन या मोटरसाइकिल पर सवार होकर जा रहा है और उसने अपने कपड़ों की जेब में या अपने हाथ में बैग में शराब की बोतलें लेकर जा रहा है, तो यह नहीं कहा जा सकता है कि वाहन का इस्तेमाल शराब की ट्रांसपोर्टिंग में किया गया है।
लेकिन, आबकारी विभाग के अधिकारी व पुलिस अपनी कार्रवाइयों में इसकी अनदेखी करते हैं।
शराबबंदी के कई मामलों को देख चुके वकील संजीव कुमार कहते हैं, “कई ऐसे मामले सामने आये हैं जहाँ यह देखने को मिला है कि पुलिस शराब बरामदगी के बहुत ही सतही मामलों में, जहाँ गाड़ी में बैठे ड्राइवर के पॉकेट से मामूली मात्रा में शराब मिली, जो खुद के सेवन के लिए थी, परंतु ऐसे मामलों में भी जबरदस्ती गाड़ी राजसात (काॅनफिस्केशन) कर ली गई और 9-10 महीनों के बाद उच्च न्यायालय के आदेश पर गाड़ी छोड़ी गई, क्योंकि राजसात का कोई कानून सम्मत मामला बन ही नहीं रहा था।”
पटना हाईकोर्ट में नहीं टिक रहे केस
17 सितंबर 2020 को गोपालगंज जिले के कोचाइकोट थाना क्षेत्र में सत्येंद्र कुमार और सुनील यादव मोटरसाइकिल पर सवार होकर जा रहे थे। सत्येंद्र कुमार मोटरसाइकिल चला रहे थे और सुनील यादव पीछे बैठे हुए थे। सुनील यादव के हाथ में एक बैग था। पुलिस ने उक्त बाइक को रोका और तलाशी ली, तो बैग से कथित तौर पर 13.9 लीटर विदेश शराब बरामद हुई।
पुलिस ने बाइक और शराब दोनों को जब्त कर सत्येंद्र और सुनील को गिरफ्तार किया। उक्त बाइक सुनैना देवी की थी।
इस कार्रवाई के खिलाफ सुनैना देवी पटना हाईकोर्ट पहुंचीं। कोर्ट में हुई बहस में सरकारी वकील ने दावा किया कि घटना के तथ्य और कानून के प्रावधान उक्त मोटरसाइकिल को जब्त करने की अनुमति देते हैं। मगर, कोर्ट ने शराबबंदी कानून की तमाम धाराओं और पूर्व के आदेशों की व्याख्या करते हुए कहा कि पुलिस की एफआईआर व जांच के अन्य दस्तावेजों से यह साबित नहीं होता है कि मोटरसाइकिल का इस्तेमाल शराब की तस्करी के लिए किया गया था।
कोर्ट ने इसी साल 30 जनवरी के अपने आदेश में, “एफआईआर से यह पती नहीं चलता है कि तस्करी के सामान को ट्रांसपोर्टेशन के लिए मोटरसाइकिल के किसी हिस्से में रखा गया था। ऐसी स्थिति में यह कहना गलत है कि मोटरसाइकिल का इस्तेमाल तस्करी के सामान के लिए किया गया था।” कोर्ट ने आगे कहा कि ‘इस्तेमाल’ शब्द की मानमानी व्याख्या नहीं की जा सकती है। “इस शब्द की व्याख्या कठोरता से करनी होगी क्योंकि इसका परिणाम दंड के रूप में सामने आता है,” कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा।
कोर्ट ने यह भी कहा कि मोटरसाइकिल की मालकिन को एफआईआर में नामित नहीं किया गया है, जिसका मतलब है कि इस कथित अपराध में उनकी प्रत्यक्ष या परोक्ष संलिप्तता नहीं थी।
कोर्ट ने अपने आदेश में गोपालगंज के जिला कलेक्टर को मोटरसाइकिल को तत्काल छोड़ने और मोटरसाइकिल की मालकिन को मुआवजे के रूप में एक लाख रुपये देने का आदेश दिया। कोर्ट ने मुआवजे की राशि आदेश के 10 दिनों के भीतर देने को कहा।
30 जनवरी को ही पटना हाईकोर्ट ने एक और आदेश दिया। इसमें सहरसा जिले की पुलिस को शराबबंदी कानून के तहत जब्त बाइक को तत्काल छोड़ने और 10 दिनों के भीतर बाइक के मालिक को एक लाख रुपये मुआवजा देने को कहा।
इस केस में मोटरसाइकिल पर सवार होकर जा रहे एक व्यक्ति की जेब 180 एमएल विदेश शराब बरामद हुई थी। पुलिस ने इस मामले में आरोपित को गिरफ्तार किया था और मोटरसाइकिल को जब्त कर लिया था।
वकीलों का मानना है कि कानून की धाराओं की गलत व्याख्या कर इस तरह की गैर-कानूनी कार्रवाइयों की फेहरिस्त लम्बी होगी, लेकिन इक्का दुक्का मामले को छोड़कर ज्यादातर मामलों में लोग पटना हाईकोर्ट जाना नहीं चाहते हैं।
जहानाबाद कोर्ट के वकील मुकेश कुमार, जो शराबबंदी से जुड़े कई मामले देख चुके हैं, कहते हैं, “पुलिस और आबकारी पदाधिकारियों की ये कार्रवाइयां बिल्कुल गलत है। लेकिन अधिकांश मामलों में लोग कोर्ट-कचहरी के लफड़े में नहीं पड़ना चाहते हैं और जुर्माने की राशि जमा कर वाहन छुड़वा लेते हैं। एक दो मामले ही ऐसे होते हैं जिसमें लोग पटना हाईकोर्ट जाते हैं, और उन्हें न्याय भी मिलता है।”
“अफसोस की बात तो यह है कि कानून के इस खुलेआम उल्लंघन को कोई देखने वाला नहीं है,” उन्होंने कहा।
परिसर सील के मामलों में भी कानून का उल्लंघन
बिहार के अलग अलग जिलों में इस तरह के कई मामले हैं, जिनमें पुलिस व आबकारी अधिकारी कानून के प्रावधानों की गलत व्याख्या कर अवैध तरीके से कार्रवाई कर रहे हैं।
पिछले साल नवम्बर में पटना हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए होटल में एक जगह से शराब मिलने पर पूरे होटल को सील करने और उसके मालिक को भी इस मामले में आरोपित बनाने की आलोचना करते हुए इस कार्रवाई को अवैध करार दिया था।
इस साल फरवरी में पटना हाईकोर्ट ने गया के खिजरसराय के एक मामले में पुलिस की कार्रवाई को कानून के प्रावधानों के खिलाफ बताया था। उक्त मामले में पुलिस ने एक आटा मिल के ग्राउंड फ्लोर से 314 लीटर शराब बरामद की थी, लेकिन शराब की बरामदगी वाली जगह की जगह पूरे तीन मंजिला मकान को ही पुलिस ने सील कर दिया था। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि जिस परिसर से शराब मिली है, सिर्फ उसी का सील कर नीलामी की कार्रवाई की जानी चाहिए न कि पूरे मकान को।
“भवनों को सील करने के मामले में भी ठीका ऐसा ही चल रहा है। मकान के किसी हिस्से से कथित तौर पर शराब बरामदगी पर पूरे मकान के उस हिस्से को सील कर दिया जा रहा है लेकिन प्रपत्र 5 भरने के बावजूद उस एक कमरे की नीलामी नहीं हो पा रही है,” वकील संजीव कुमार ने कहा।
“यह बहुत ही साधारण बात है और थोड़ी सी सूझ-बूझ से समझी जा सकती है कि कोई व्यक्ति किसी दूसरे आदमी के मकान के एक कमरे को नीलामी में क्यों खरीदेगा। अब यह कानून बनाने वालों को सोचना चाहिए था कि इस तरीके का कानून नहीं बनाना चाहिए जिसका सामाजिक सरोकार या आम सूझबूझ से कोई सरोकार न हो,” उन्होंने कहा।
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