साहित्यकार और प्रसिद्ध उपन्यास ‘मैला आंचल’ के लेखक फणीश्वरनाथ रेणु की 103वीं जयंती पर बिहार के अररिया जिला मुख्यालय में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। जिले के रेणु कुंज स्थित उनकी प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर उन्हें याद किया गया।
अररिया हाई स्कूल के मैदान में मुख्य राजकीय कार्यक्रम आयोजित किया गया था, जिसमें अतिथियों ने उनके तैलीय चित्र पर पुष्प अर्पित कर कार्यक्रम की शुरुआत की। कार्यक्रम की शुरुआत में जिले के लोक गायक अमर आनंद और प्रिया ने गीत प्रस्तुत कर लोगों का स्वागत किया।
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कार्यक्रम में अररिया की जिला पदाधिकारी इनायत खान, एसपी अमित रंजन, अररिया जिला परिषद अध्यक्ष आफताब अजीम पप्पू के साथ कई साहित्यकार व अधिकारी मौजूद थे।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जिला पदाधिकारी इनयात ख़ान ने कहा कि आज फणीश्वरनाथ रेणु की लेखनी को अपने जीवन में उतारने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इससे लोगों को समझ आएगा के किस तरह से संघर्ष कर लोग ऊंचे मुकाम पर पहुंचते हैं।
कार्यक्रम में फणीश्वरनाथ रेणु की जीवनी पर साहित्यकारों ने चर्चा की। जिले के लगभग 14 साहित्यकारों ने इस परिचर्चा में भाग लिया। वक्ताओं ने उन्हें साहित्यकार के साथ-साथ एक बेहतर राजनीतिज्ञ भी बताया।
बताते चलें कि महान साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु का जन्म 4 मार्च 1921 को अररिया के फारबिसगंज अनुमंडल स्थित औराही हिंगना गांव में हुआ था। फणीश्वर शनाथ रेणु ने अपनी कहानियों और उपन्यासों से सामाजिक क्रांति लाने का काम किया।
उनके द्वारा लिखी गई कहानी ‘मारे गए गुलफाम’ पर बॉलीवुड फिल्म ‘तीसरी क़सम’ बनी थी, जिसमें फिल्म इंडस्ट्रीज के शोमैन कहे जाने वाले राज कपूर ने अभिनय किया था।
इस फिल्म की पटकथा और पृष्ठभूमि अररिया ही थी। फिल्म में दिखाया गया था कि कैसे सामाज में होने वाली कुरीतियों को दूर किया जा सकता है। इस फिल्म ने देश ही नहीं विदेशों में भी अपना कृतिमान स्थापित किया है।
रेणु ने नेपाल की क्रांति में भी बढ़-चढ़ कर भाग लिया था। उन्होंने अपने साहित्य से एक नई क्रांति लाई थी। माना जाता है कि फणीश्वरनाथ रेणु ठेठ भाषा के बड़े जानकार थे। उनकी रचना की तुलना हिंदी साहित्य के महान लेखक मुंशी प्रेमचंद से की जाती है।
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