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JD(U) के NDA में जाने से क्या RCP का राजनीतिक करियर खत्म होने के कगार पर है?

2021 में नीतीश कुमार ने अपने प्रतिनिधि के तौर पर उन्हें मोदी कैबिनेट में शामिल कराया था, लेकिन वह भाजपा के करीब आ गये‌ और कई मौकों पर जदयू नेतृत्व के खिलाफ काम किया‌। इससे खफा होकर जदयू ने उन्हें तीसरी दफा राज्यसभा नहीं भेजा और पार्टी में भी उनकी भूमिका कम कर दी, तो आरसीपी भाजपा में शामिल हो गये।

Reported By Umesh Kumar Ray |
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“वह पीएम थे, पीएम हैं और हमेशा पीएम रहेंगे। पीएम का मतलब है पल्टीमार। पीएम का मतलब पर्यटक मुख्यमंत्री भी है क्योंकि उन्हें अपने राज्य की चिंता नहीं है और वह दूसरे राज्यों में घूमते रहते हैं। वह विपक्षियों को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन उन्हें नेतृत्व कहां से मिलेगा? जदयू तो एक डूबती हुई नाव है, कौन इस नाव की सवारी करना चाहेगा?”

जदयू में नंबर दो और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेहद करीबी रहे स्वजातीय (कुर्मी) नेता आरसीपी सिंह ने नीतीश कुमार के लिए ये बातें पिछले साल 18 नवम्बर को कही थीं।

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वह तब तक जदयू को छोड़कर भाजपा में शामिल हो चुके थे और नीतीश कुमार पर लगातार हमलावर थे। उस वक्त नीतीश कुमार एनडीए गठबंधन से अलग होकर महागठबंधन के साथ सरकार चला रहे थे।


भाजपा ने आरसीपी सिंह को पार्टी में इसलिए शामिल कराया था कि वह उनका नीतीश कुमार के खिलाफ इस्तेमाल कर सकें। दरअसल, भाजपा के पास कुर्मी जाति का कोई बड़े कद का नेता नहीं है। ऐसे में जब आरसीपी सिंह ने जदयू से वगावत की और भाजपा के करीब आने लगे, तो भाजपा को भी लगा कि आरसीपी को नीतीश के बरक्स खड़ा किया जा सकता है क्योंकि वह नीतीश कुमार की तरह की कुर्मी जाति से आते हैं और वह भी नालंदा के ही रहने वाले हैं, जो नीतीश कुमार का भी गृह जिला है। लेकिन, अब राजनीतिक परिदृश्य बदल चुका है। नीतीश कुमार एनडीए के साथ मिलकर सरकार चला रहे हैं, तो ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि भाजपा में अब आरसीपी सिंह की क्या भूमिका रहेगी।

भाजपा में गिरता कद

पटना के वरिष्ठ पत्रकार दीपक मिश्रा कहते हैं, “फिलहाल तो आरसीपी का कोई भविष्य नहीं दिखता है क्योंकि नीतीश कुमार के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए उन्हें भाजपा ने पार्टी में लाया था, लेकिन अब नीतीश कुमार ही भाजपा के साथ आ गये हैं।”

“अगर भाजपा विपक्ष में होती, तो निश्चित तौर पर आरसीपी सिंह का कद पार्टी में बढ़ता और उन्हें नालंदा से टिकट भी दिया जा सकता था, लेकिन नालंदा सीट जदयू छोड़ेगा नहीं, तो आरसीपी सिंह नालंदा से चुनाव लड़ नहीं सकते। दूसरी बात कि वह कोई मास लीडर हैं नहीं कि किसी भी सीट से चुनाव में जीत हासिल कर सकें। उनकी थोड़ी बहुत पकड़ कुर्मी जातियों में जरूर है, लेकिन इतनी नहीं कि अपने बूते चुनाव जीत पायें,” दीपक मिश्रा ने कहा।

दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र और पूर्व नौकरशाह आरसीपी सिंह, केंद्र में एनडीए कैबिनेट में जदयू कोटे से एकमात्र मंत्री थे।

जब नीतीश कुमार, अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय मंत्री थे, तो आरसीपी सिंह ने नीतीश कुमार के निजी सचिव के रूप में कार्य किया था। साल 2005 में जब नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने, तो वह बिहार के प्रधान सचिव थे। इसी दौरान वह नीतीश के बेहद करीब आ गये और साल 2010 में जदयू में शामिल हो गये। पार्टी ने तुरंत ही उन्हें राज्यसभा भेज दिया।

2021 में नीतीश कुमार ने अपने प्रतिनिधि के तौर पर उन्हें मोदी कैबिनेट में शामिल कराया था, लेकिन वह भाजपा के करीब आ गये‌ और कई मौकों पर जदयू नेतृत्व के खिलाफ काम किया‌। इससे खफा होकर जदयू ने उन्हें तीसरी दफा राज्यसभा नहीं भेजा और पार्टी में भी उनकी भूमिका कम कर दी, तो आरसीपी भाजपा में शामिल हो गये।

बिहार विधानसभा में जदयू भले ही तीसरे नंबर की पार्टी है, लेकिन इसके बावजूद जिस भी गठबंधन में नीतीश कुमार रहे, अपनी शर्तों पर रहे और यह भी सुनिश्चित किया कि गठबंधन में शामिल पार्टियों की गतिविधियां ऐसी न हो जो जदयू के खिलाफ जाए। इस बार जब जदयू की एनडीए में वापसी हुई, तब भी काफी हद तक नीतीश कुमार की बातों को भाजपा नेतृत्व ने तवज्जो दी। ऐसे में भाजपा के सामने आरसीपी सिंह को लेकर धर्मसंकट भी है। भाजपा के एक नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, “बदली राजनीतिक परिस्थिति में पार्टी नेतृत्व तय नहीं कर पा रही है कि उनका इस्तेमाल कैसे किया जाए।”

क्या जदयू में होगी घर-वापसी

हाल-फिलहाल, भाजपा ने आरसीपी सिंह का राजनीतिक इस्तेमाल लवकुश यात्रा में किया था, जो 20 जनवरी को शुरू हुई थी और सभी जिलों से होते हुए 22 जनवरी को अयोध्या पहुंची थी। इस यात्रा में आरसीपी सिंह को कुर्मियों को एकजुट करने के लिए शामिल किया था। लेकिन तब नीतीश कुमार, महागठबंधन के साथ थे। जदयू के एनडीए में शामिल होने के बाद आरसीपी सिंह की राजनीतिक गतिविधियां लगभग थम गयी हैं। हाल में बिहार में राज्यसभा की सीटें खाली हुईं, लेकिन भाजपा ने उन्हें राज्यसभा भी नहीं भेजा। भाजपा की राज्य इकाई में भी वह किसी अहम पद पर नहीं हैं।

पटना के एक अन्य वरिष्ठ पत्रकार रमाकांत चंदन कहते हैं, “लोकसभा चुनाव में भी उन्हें टिकट मिलने की संभावना नहीं के बराबर है। भाजपा में उन्हें तरजीह नहीं मिल रही है, जिससे वह निराश भी हैं।”

सूत्र बताते हैं कि वह जदयू में वापसी करना चाहते हैं और जदयू की तरफ से इशारे का इंतजार कर रहे हैं, मगर सवाल है कि क्या जदयू इसके लिए तैयार है?

“फिलहाल, जदयू, आरसीपी सिंह को पार्टी में लेने का इच्छुक नहीं है। जदयू पहले यह देखेगा कि आरसीपी सिंह के पार्टी में आने से पार्टी को कोई फायदा होता है कि नहीं। पूर्व में राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह और उपेंद्र कुशवाहा को नीतीश कुमार पार्टी में ला चुके हैं। राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह पार्टी में हाशिये पर थे, तो उन्हें जदयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी का 2021 में जदयू में विलय करवाया था। इसलिए अगर आरसीपी सिंह से पार्टी को फायदा होगा, तो निश्चित तौर पर उनकी घरवापसी हो सकती है,” रमाकांत चंदन कहते हैं।

जदयू में वापसी की क्षीण संभावनाएं और भाजपा में हाशिये पर चल रहे आरसीपी सिंह का राजनीतिक भविष्य ढलान की ओर जाता दिख रहा है। फिलहाल उनकी उम्र 65 वर्ष है। राज्यसभा की सीटों पर चुनाव हो चुका है। लोकसभा चुनाव में उन्हें टिकट मिलने की संभावना नहीं है। अगला लोकसभा चुनाव 5 साल बाद होगा और तब तक उनकी उम्र 70 साल हो जाएगी। भाजपा 2022 में ही घोषणा कर चुकी है कि वह 70 साल से अधिक उम्र के नेताओं को लोकसभा का टिकट नहीं देगी, तो साल 2030 तक वह टिकट पाने के लायक नहीं बचेंगे। इन परिस्थितियों के मद्देनजर आरसीपी सिंह आने वाले वक्त में क्या कदम उठाते हैं, वो देखने वाली बात होगी।

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Umesh Kumar Ray started journalism from Kolkata and later came to Patna via Delhi. He received a fellowship from National Foundation for India in 2019 to study the effects of climate change in the Sundarbans. He has bylines in Down To Earth, Newslaundry, The Wire, The Quint, Caravan, Newsclick, Outlook Magazine, Gaon Connection, Madhyamam, BOOMLive, India Spend, EPW etc.

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