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अररिया: दस साल पहले बना पंचायत सरकार भवन खंडहर में तब्दील

एक एकड़ 23 डिसमिल जमीन पर वर्ष 2011 में इस भवन का निर्माण कार्य शुरू हुआ और 2013 में पूरा हो गया था। लेकिन, जिस जमीन पर सरकार भवन का निर्माण कराया गया है, उस पर निजी लोगों ने दावा ठोक दिया और मामले को लेकर पटना उच्च न्यायालय चले गए।

syed jaffer imam Reported By Syed Jaffer Imam |
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अररिया: बापू का सपना था कि पूरे देश में पंचायती राज व्यवस्था लागू की जाए। इसके पीछे उद्देश्य था कि ग्रामीण इलाके में रहने वालों को किसी भी सरकारी काम के लिए शहर या प्रखंड मुख्यालय तक न जाना पड़े। इसको लेकर सरकार ने पहल भी शुरू कर दी थी। लेकिन, प्रशासनिक अधिकारियों के उदासीन रवैये के कारण यह व्यवस्था आज तक सही तरह से लागू नहीं हो पा रही है।

इस व्यवस्था को मजबूत करने के लिए सरकार ने सभी पंचायतों में सरकार भवन का निर्माण करवाया था। यहां एक छत के ही नीचे ग्रामीणों को सारी व्यवस्था मिलनी थी। लेकिन कई जगहों पर पंचायतों में बनाए गए सरकार भवन में सही तरह से कार्य नहीं हो पा रहा है।

कहीं-कहीं तो ये भवन देखरेख के अभाव में खंडहर होते जा रहे हैं। ऐसा ही एक भवन अररिया जिले के अररिया प्रखंड की अररिया बस्ती पंचायत में भी है। 10 साल पहले बनने के बावजूद सरकार भवन से ग्रामीणों को कोई लाभ नहीं मिल रहा है।


भवन की हालत इतनी जर्जर हो गयी है कि यहां काम शुरू करना असंभव सा प्रतीत होता है।

अदालती पेंच में फंसा मामला

अररिया बस्ती पंचायत के रहने वाले प्रखंड प्रमुख अब्दुल हन्नान ने बताया कि इस सरकार भवन के निर्माण के लिए सारी प्रक्रियाएं पूरी कर ली गयी थीं।

एक एकड़ 23 डिसमिल जमीन पर वर्ष 2011 में इस भवन का निर्माण कार्य शुरू हुआ और 2013 में पूरा हो गया था। लेकिन, जिस जमीन पर सरकार भवन का निर्माण कराया गया है, उस पर निजी लोगों ने दावा ठोक दिया और मामले को लेकर पटना उच्च न्यायालय चले गए।

प्रखंड प्रमुख ने बताया कि 1904 में वर्तमान अररिया बस्ती पंचायत की जगह पर अररिया अनुमंडल का कार्य चला करता था और उसी जगह पर अनुमंडल मुख्यालय भी हुआ करता था।

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जिस जमीन पर अनुमंडल कार्यालय चल रहा था, उस समय वह भारत सरकार के अधीन हुआ करती थी। उसके बाद 1956 में वह जमीन बिहार सरकार के नाम हो गयी। समय बदलते ही वहां से अनुमंडल कार्यालय हट कर बसंतपुर आ गया। वर्तमान में जिला मुख्यालय उसी जगह पर है।

कोर्ट ने निर्माण पर रोक लगाई, अधिकारी ने भवन जाना छोड़ा

अब्दुल हन्नान आगे बताते हैं कि 2013 में इस भवन को पंचायत के हवाले कर दिया गया था। लेकिन इसमें वह व्यवस्था चालू नहीं हो पाई जिसके लिए यह भवन बनाया गया था। उसके बाद से कभी-कभी स्थानीय मुखिया द्वारा साफ सफाई कराकर 26 जनवरी और 15 अगस्त को झंडोत्तोलन किया जाता रहा। लेकिन, जब मामला उच्च न्यायालय चला गया तो प्रशासनिक अधिकारियों ने भी इस ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया।

उच्च न्यायालय ने उस समय एक आदेश पारित किया था कि जिस जमीन पर सरकार भवन बना है, उस जमीन पर किसी तरह का कोई भी नया निर्माण कार्य नहीं किया जाए। इसी आदेश को लेकर अधिकारियों ने उस जगह पर जाना ही छोड़ दिया।

जबकि, उच्च न्यायालय का आदेश था कि कोई नया निर्माण कार्य न हो। ऐसे में जब वहां बना हुआ भवन था, तो उसमें तो बैठा ही जा सकता था और कार्यालय भी चल सकता था। लेकिन, प्रशासनिक उदासीनता के कारण यह भवन आज खंडहर में तब्दील हो गया।

araria basti panchayat sarkar bhawan

उन्होंने बताया कि अभी भी प्रशासन चाहे, तो उस भवन की मरम्मत करा कर वहां कार्यालय खोल सकता है। इससे न सिर्फ अररिया बस्ती पंचायत, बल्कि आसपास की पंचायतों को भी इस भवन में चलने वाले कार्यालय का लाभ मिल सकेगा।

सांसद ने क्या कहा

अररिया प्रखंड की अररिया बस्ती पंचायत स्थित बैरगाछी में बनाये गये सरकार भवन की बदहाली को लेकर सांसद प्रदीप कुमार सिंह ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने इस बदहाली का सारा जिम्मेदार सरकार को बताया है।

उन्होंने कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का सपना था कि पूरे देश में पंचायती राज व्यवस्था लागू हो, ताकि पंचायत में रहने वाले ग्रामीणों को प्रशासनिक कामकाज के लिए जिला मुख्यालय या प्रखंड मुख्यालय न जाना पड़े।

“इसी उद्देश्य से अररिया की चिन्हित पंचायत में सरकार भवन का निर्माण कराया गया। इस पंचायत सरकार भवन में आरटीपीएस, जमीन संबंधी सारे कार्य, आवास सहायक, पंचायत सचिव को बैठना था और जो भी ग्रामीण वहां पहुंचते, उनके काम का निष्पादन वहीं हो जाना था। लेकिन, ऐसा नहीं हो पाया।

उन्होंने कहा कि सरकार भवन का संचालित नहीं होना प्रशासनिक अधिकारियों की उदासीनता को दर्शाता है।

उन्होंने राज्य में पंचायती राज व्यवस्था ठीक ढंग से लागू करने की मांग की और कहा कि आज बिहार के कई जिलों में बनाये गये पंचायत सरकार भवन में कोई काम नहीं हो पा रहा है। बैरगाछी पंचायत स्थित सरकार भवन को देखकर लगता है कि सरकार या जिला प्रशासन इस ओर गंभीर नहीं है। अगर वह गंभीर होती तो वहां कार्य सुचारू रूप से हो रहा होता।

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सैयद जाफ़र इमाम किशनगंज से तालुक़ रखते हैं। इन्होंने हिमालयन यूनिवर्सिटी से जन संचार एवं पत्रकारिता में ग्रैजूएशन करने के बाद जामिया मिलिया इस्लामिया से हिंदी पत्रकारिता (पीजी) की पढ़ाई की। 'मैं मीडिया' के लिए सीमांचल के खेल-कूद और ऐतिहासिक इतिवृत्त पर खबरें लिख रहे हैं। इससे पहले इन्होंने Opoyi, Scribblers India, Swantree Foundation, Public Vichar जैसे संस्थानों में काम किया है। इनकी पुस्तक "A Panic Attack on The Subway" जुलाई 2021 में प्रकाशित हुई थी। यह जाफ़र के तखल्लूस के साथ 'हिंदुस्तानी' भाषा में ग़ज़ल कहते हैं और समय मिलने पर इंटरनेट पर शॉर्ट फिल्में बनाना पसंद करते हैं।

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