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जिस गाँव से मोदी ने रोज़गार योजना शुरू की, वहाँ के ज़्यादातर मज़दूर पलायन कर गए

PM मोदी ने बिहार के जिस गाँव से गरीब कल्याण योजना की शुरुआत की थी, वहाँ के ज़्यादातर मज़दूर वापस पलायन कर चुके हैं। CM नीतीश ने जिस मज़दूर से 24 मई को बात की थी, वो आज तक बेरोज़गार है।

Tanzil Asif is founder and CEO of Main Media Reported By Tanzil Asif |
Published On :

20 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गरीब कल्याण योजना की शुरुआत की। इसका मकसद था मजदूरों की आर्थिक समस्याओं को दूर करना और रोजगार के अवसर बढ़ाना। इसके तहत 6 राज्यों के 116 जिलों के प्रवासी मज़दूरों को 125 दिनों के लिए काम देने की बात कही गयी। इस योजना की शुरुआत वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पीएम ने खगड़िया के बेलदौर प्रखंड के तेलिहार पंचायत से की।

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इस दौरना PM मोदी को मुखिया अनिल सिंह से बताया की उसके पंचायत में 475 प्रवासी मज़दूर वापस आएं है।

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जब हमने 18 अगस्त को मुखिया अनिल सिंह से बात की तो बता चला अब गाँव में 100 से ज़्यादा प्रवासी मज़दूर नहीं बचे हैं। ज़्यादातर मज़दूर काम की तलाश में वापस जा चुके हैं।

यानि प्रधानमंत्री ने तेलिहार के लोगों को जो सपने दिखाए वो सपने ही रह गए। 125 दिन काम देने की बात कही गयी थी, लेकिन ज़्यादार मज़दूर 60 दिन के अंदर ही वापस चले गए।

अब दूसरी कहानी सुनिए, जमुई के सिकंदरा ब्लॉक के नवकाडीह के रहने वाले कैलाश रविदास कोलकाता में चप्पल बनाने का काम करते थे। लॉकडाउन में काम बंद हो गया तो 23 मई को घर लौटे और सिकंदरा के आईटी केंद्र में बने क्वारंटीन सेंटर में रहने चले गए।

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24 मई को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वीडियो कॉन्फरन्स के ज़रिये कैलाश से बात की और उसके लिए 23 मई से ही स्थानीय प्रशासन ने कैलाश को तैयार करना शुरू कर दिया था।

24 मई को CM ने कैलाश से बात की और 18 अगस्त को हमने कैलाश से बात की, लगभग तीन महीने बाद। जी, तीन महीने हो गए आज तक कैलाश बेरोज़गार है। कैलाश विकलांग है, घर पर कमाने वाला कोई नहीं, क़र्ज़ लेकर घर चल रहा है। बेटा है वो भी साथ ही कोलकाता में काम करता था।

इन दो कहानियों से एक चीज़ तो साफ़ है digital india में नेताओं का वादा भी बहुत fast expire कर रहा है, अब पहले की तरह 5-10 साल नहीं लगते। लॉकडाउन के दौरान 30 लाख से ज्यादा प्रवासी मजदूर बिहार लौटे और उन में से कुछ क़िस्मत वाले ही थे जिन्हें PM Modi और CM नीतीश से बात करने का मौका मिला। और जिन्हें मौका मिला उनका ये हाल है की रोज़गार के नाम पर उन्हें बस दिलासा दिया गया या कैलाश की तरह दोस्तों के लिए एक मज़ाक का पात्र बना कर छोड़ दिया गया।

अब ज़रा सोचिये बाकी प्रवासी मज़दूरों को क्या कुछ झेलना पड़ रहा है होगा।

लोग वापस जा रहे हैं, वापस जा रहे है क्यूंकि बिहार सरकार उन्हें उनके घर पर नौकरियां नहीं दे पा रही है।

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प्रवासी मज़दूरों के वापसी का सिलसिला तो वैसे जून के पहले हफ्ते से ही शुरू हो गया है, लेकिन सरकार अब भी बेखबर है। बिहार सरकार के श्रम संसाधन विभाग यानि Labour Department का सीधा कहना है की उनके पास इसकी कोई जानकारी नहीं है।

श्रम संसाधन मंत्री विजय कुमार सिन्हा के PA मंत्री से बात नहीं कराते, विभाग के उप सचिव सूर्य कान्त मणि ने संयुक्त लेबर कमिश्नर वीरेंद्र से बात करने को कहा, जिन्होंने साफ़ लहज़ों में कह दिया उनके पास प्रवासी मज़दूरों की कोई जानकारी नहीं।

जब विभाग से कोई बोलेगा नहीं, तो सवाल उठेंगे ही। प्रवासी मज़दूरों को घर पर ही रोज़गार देने में सरकार क्यों विफल रही? आंकड़े क्यों छुपाये जा रहे हैं? रोज़ाना बस भर भर कर मज़दूर वापस जा रहे हैं, क्या सरकार को इसकी खबर नहीं है? और सबसे बड़ा सवाल, क्या प्रधानमंत्री मोदी ने वापस खगड़िया के तेलिहार ग्राम की खबर ली? क्या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वापस कैलाश रविवदास का हालचाल पुछा।

कहते हैं न

शहर में मज़दूर जैसा दर-ब-दर कोई नहीं
जिस ने सब के घर बनाए उस का घर कोई नहीं

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तंजील आसिफ एक मल्टीमीडिया पत्रकार-सह-उद्यमी हैं। वह 'मैं मीडिया' के संस्थापक और सीईओ हैं। समय-समय पर अन्य प्रकाशनों के लिए भी सीमांचल से ख़बरें लिखते रहे हैं। उनकी ख़बरें The Wire, The Quint, Outlook Magazine, Two Circles, the Milli Gazette आदि में छप चुकी हैं। तंज़ील एक Josh Talks स्पीकर, एक इंजीनियर और एक पार्ट टाइम कवि भी हैं। उन्होंने दिल्ली के भारतीय जन संचार संस्थान (IIMC) से मीडिया की पढ़ाई और जामिआ मिलिया इस्लामिआ से B.Tech की पढ़ाई की है।

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