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ग्राउंड रिपोर्ट: बैजनाथपुर की बंद पड़ी पेपर मिल कोसी क्षेत्र में औद्योगीकरण की बदहाली की तस्वीर है

लगभग 48 एकड़ भूमि में फैला बैजनाथपुर पेपर मिल लगभग 45-47 साल से बंद है। हर बार चुनाव होता है, तो इस पेपर मिल का मुद्दा उछलता है, मगर इससे आगे कुछ नहीं हो पाता।

Rahul Kr Gaurav Reported By Rahul Kumar Gaurav |
Published On :
Defunct Baijnathpur paper mill

“पेपर मिल बनाने वाले मजदूरों में हम लोग भी थे। लगभग 16 महीने काम किया था। 7 से 8 घंटा काम करवाता था ठेकेदार। 3 रुपया मिलता था उस वक्त। आस-पड़ोस का 200 से ज्यादा मजदूर काम में लगा रहता था। पेपर मिल बनने के बाद और भी स्थिति बेहतर होगी, इसी उम्मीद के साथ काम किया था। 4 वर्ष के भीतर साल 1975-76 तक पेपर मिल बनकर तैयार हो गई लेकिन यह कभी चली ही नहीं। यूं ही जस की तस बनी रही। फिर से सुधार कर चलाने की उम्मीद भी खत्म हो चुकी है। अभी इसी पेपर मिल के ग्राउंड में सूप बेचकर गुजर करता हूं।” बैजनाथपुर के स्थानीय निवासी 53 वर्षीय कलर मुखिया बताते हैं।


Local resident of Baijnathpur Kalar Mukhiya

नशे का अड्डा बन चुका है पेपर मिल

मधेपुरा-सहरसा राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित बैजनाथपुर, सहरसा से लगभग 8 किलोमीटर दूर स्थित है। बैजनाथपुर मार्केट से चंद दूरी पर वास्तु विहार द्वारा स्मार्ट सोसाइटी का निर्माण किया गया है। उस सोसाइटी के बगल में लगभग 48 एकड़ भूमि में फैला बैजनाथपुर पेपर मिल लगभग 45-47 साल से बंद है। हर बार चुनाव होता है, तो इस पेपर मिल का मुद्दा उछलता है, मगर इससे आगे कुछ नहीं हो पाता।


जब हम वहां पहुंचे तो पेपर मिल के गेट पर दो सिक्योरिटी गार्ड कुर्सी पर बैठे हुए थे। वहीं, 4-5 मजदूर पेपर मिल के भीतर कुछ काम कर रहे थे। पेपर मिल के अहाते में 20-25 आदमी पशु चरा रहे थे। कई महिलाएं बकरी के चारा के लिए घास काट रही थीं। वहीं कुछ लोग ताश खेल रहे थे।

मिल में तैनात गार्ड शैलेंद्र कुमार यादव और प्रभास कुमार पांडेय स्थानीय निवासी हैं। 6 महीने पहले से वह यहां काम कर रहे हैं। शैलेंद्र कुमार यादव बताते हैं, “यह पूरा इलाका नशा और क्राइम का मुख्य अड्डा बन चुका है। हम लोगों के आने के बाद असामाजिक तत्वों का आना-जाना थोड़ा कम हुआ है। पूरे इलाके के नशाखोर यहां हमेशा बैठे मिलेंगे। कुछ साल पहले यहां मर्डर भी हो चुका है। गांव के गरीब लोग अपने मवेशियों को चराने घास काटने आते रहते हैं।”

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पेपर मिल हटाने की तैयारी है क्या?

पिछले 6 महीने से 2 गार्ड के अलावा 7-8 मजदूर रोज काम कर रहे हैं। जिस वजह से वहां के स्थानीय लोगों को लग रहा है कि पुनः पेपर मिल का जीर्णोद्धार होगा। मुंशी रैन यादव बताते हैं, “यहां से मशीनों को बाहर भेजा जा रहा है। हम लोगों को सिर्फ घर की मरम्मत का काम मिला है, मशीनों का नहीं। मुझे पता नहीं है कि इसका उपयोग किस चीज के लिए किया जाएगा। कुछ लोग कहते हैं कि अनाज के भंडारण के लिए किया जा रहा है।”

स्थानीय निवासी ब्रजनंदन यादव कहते हैं, “पूरे पेपर मिल के कैंपस में जो भी चीज चोरी हो सकती थी, वह चोरी हो चुकी है। चोरी करने वाले स्थानीय दबंग हैं।

सहरसा के एक अधिकारी नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं, “साल 2019 में तो बियाडा ने इस कारखाने को बेचने की तैयारी भी कर ली थी। 1975 में पेपर मिल को चालू करवाने के लिए 2 करोड़ की राशि स्वीकृत हुई थी। साल 2019 में इसकी कीमत 80 लाख रुपये लगाई जा रही थी, लेकिन स्थानीय नेताओं के दबाव के बाद बोली नहीं लगाई गई।”

“जिस जगह पर अभी पेपर मिल है, वह जमीन बड़े किसानों की हुआ करती थी। इस जमीन पर बैजनाथपुर गांव के स्थानीय किसान, जो पिछड़े और दलित हैं, बटाईदारी खेती किया करते थे। फिर जब पेपर मिल बनने की बात आई, तो इस उम्मीद से सबने खेती छोड़कर सरकार को जमीन दे दी कि रोजगार मिलेगा। लेकिन न अब खेती है न मिल। यूं समझिए कि हम न घाट के रहे, न घर के। सरकार झूठा सपना दिखाकर सब बर्बाद कर दिया। हम लोग खेती करने लगे, अब बेटा लोग दिल्ली-पंजाब कमा रहा है,” स्थानीय निवासी बृजनंदन यादव बताते हैं।

राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता की बलि चढ़ गई पेपर मिल!

गौरतलब हो कि बिहार सरकार ने निजी और सरकारी सहयोग को लेकर 1974 में सहरसा के बैजनाथपुर गांव में पेपर मिल के लिए लगभग 48 एकड़ जमीन और 95 लाख रुपये का आवंटन हुआ था। जिसमें प्रत्येक दिन 5 टन कागज के उत्पादन का लक्ष्य रखा गया था। 1975-76 तक पेपर मिल बनकर तैयार हो गई थी। लेकिन, शुरू होने से पहले साल 1978 में निजी उद्यमियों से करार खत्म होने के बाद काम बंद हो गया।

Baijnathpur paper mill signboard

फिर 1982-83 में मिल दोबारा चालू करवाने की जद्दोजहद में स्थानीय नेता लगे थे। लेकिन पैसों के अभाव में काम रुक गया। “तब से अब तक पेपर मिल को होश नहीं आया है। अब उसकी मौत हो गई है और आप उसकी लाश को देख रहे हैं। 18 दिसंबर 2010 के दिन बिहार की उद्योग मंत्री रेणु कुशवाहा इस बंद पड़ी मिल का करीब दो घंटे तक निरीक्षण करती रहीं, लेकिन कोई असर नहीं पड़ा,” स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार और समाजसेवी विष्णु कहते हैं।

सहरसा के आम लोग पेपर मिल न चलने के लिए सहरसा के दो बड़े स्थानीय नेताओं रमेश झा और टेकड़ीवाल की राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को जिम्मेदार ठहराते हैं। विष्णु बताते हैं, “पेपर मिल के निर्माण के वक्त कांग्रेस सरकार में सहरसा का प्रतिनिधित्व करने वाले रमेश झा उद्योग मंत्री थे। इसलिए पेपर मिल बनने का श्रेय रमेश झा को मिला था। उनके बाद सहरसा के बड़े नेता शंकर लाल टेकड़ीवाल वित्त मंत्री बने, लेकिन वह पेपर मिल को फंड नहीं दिला पाए थे। कहा यह भी जाता है कि उन्होंने निजी उद्यमियों से करार करने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली।”

सहरसा के वरिष्ठ पत्रकार मुकेश सिंह की एक रिपोर्ट के मुताबिक, नीतीश कुमार जब बिहार के मुख्यमंत्री बने थे, तब मधेपुरा के दिनेश चंद्र यादव उद्योग मंत्री थे। उन्होंने पेपर मिल चलाने की पूरी कोशिश की थी। लेकिन बिहार के तत्कालीन ऊर्जा मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव और दिनेश के बीच खराब राजनीतिक संबंध की वजह से मिल चालू नहीं हो सका।

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एल एन एम आई पटना और माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय से पढ़ा हुआ हूं। फ्रीलांसर के तौर पर बिहार से ग्राउंड स्टोरी करता हूं।

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