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Kota में फंसे आम बच्चों के लिए Nitish की अंतर्रात्मा क्यों नहीं जाग रही?

नीतीश कुमार ने साफ कह दिया है कि लॉक डाउन के दौरान कोटा या कहीं और से छात्रों को वापस लाना संभव नहीं है, क्योंकि इससे लॉकडाउन प्रभावित होगा।

Utkarsh Kumar Singh Reported By Utkarsh Kumar Singh |
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बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार हैं। ये बहार सिर्फ सत्ताधारी दलों के नेताओं और रसूखदार लोगों के लिए ही है।

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चलिए आज आपको बिहार सरकार के दोहरे चरित्र के बारे में बताते हैं।


ये दोहरा चरित्र है बिहार के उन प्रवासी मजदूरों के साथ जो दो वक्त की रोटी के लिए घर-बार छोड़कर दूसरे शहरों में रहते हैं क्योंकि बिहार में उनके लिए रोजगार नहीं है। ये दोहरा चरित्र है उन बिहारी छात्रों के साथ जो अच्छी शिक्षा की तलाश में कोटा जैसे शहरों में जाकर पढ़ाई करते हैं क्योंकि बिहार की बदहाल शिक्षा व्यवस्था से पूरा देश वाकिफ है।

आपको कुछ दिनों पहले दिल्ली और दूसरे राज्यों से हजारों की तादाद में पैदल ही वापस बिहार लौट रहे उन मजदूरों-कामगारों की हृदयविदारक तस्वीरें तो याद ही होंगी।

जब सरकार ने उन्हें वापस लाने के लिए साधन उपलब्ध कराना तो दूर, यहां तक कह दिया था कि किसी को बिहार की सीमा में घुसने नहीं देंगे। बिहार सरकार कोटा में फंसे हजारों छात्रों के साथ भी ऐसा ही बर्ताव कर रही है।

 

कोरोना वायरस को लेकर देशभर में लॉकडाउन घोषित किया गया है। ऐसे में राजस्थान के कोटा में फंसे छात्रों को निकालने के मुद्दे पर बिहार में हंगामा बढ़ता जा रहा है। हालांकि नीतीश कुमार ने साफ कह दिया है कि लॉक डाउन के दौरान कोटा या कहीं और से छात्रों को वापस लाना संभव नहीं है, क्योंकि इससे लॉकडाउन प्रभावित होगा। लेकिन ये बातें सिर्फ और सिर्फ हमारे और आपके जैसे आम लोगों के लिए ही है। क्योंकि सरकार खास लोगों को तो कोटा से अपने बच्चों को वापस लाने के लिए पास जारी कर ही रही है।

सबसे पहले मैं आपको क्रोनोलॉजी समझाता हूँ। कोटा से बच्चों को वापस बुलाने की लगातार मांग के बीच तेरह अप्रैल को बिहार के मुख्य सचिव दीपक कुमार ने केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला को पत्र लिखकर कहा कि गृह मंत्रालय को राजस्थान सरकार को लॉकडाउन का सख्ती से पालन करने का आदेश देना चाहिए।

साथ ही, कोटा के डीएम को गैरजिम्मेदाराना हरकत के लिए फटकार लगाई जानी चाहिए। कोटा के डीएम ने बड़ी तादाद में निजी गाड़ियों के लिए पास जारी कर दिए हैं। वह भी तब, जब कोटा में दर्जनों लोग कोरोना पॉजिटिव मिले हैं।

लेकिन पंद्रह अप्रैल को बिहार में नवादा के हिसुआ से बीजेपी विधायक अनिल सिंह को कोटा से अपने बच्चों को वापस लाने के लिए स्पेशल पास जारी कर दिया गया। ये मामला सामने आने के बाद सरकार के पास अपनी सफाई में बोलने के लिए कुछ नहीं सुझा इसलिए खुद बीजेपी विधायक सामने आए और बताया कि उन्होंने बिना किसी नियम का उल्लंघन किये जिला प्रशासन से परमिशन मांगी थी। वो पहले एक पिता हैं, बाद में विधायक हूँ। इतना ही नहीं विधायक जी ने तो यहां तक कह दिया कि अकेले नवादा जिले में ही ऐसे सात सौ पास जारी किए गए हैं।

इस घटना के बाद मुख्य सचिव दीपक कुमार ने फिर से कहा कि लॉकडाउन के मद्देनजर कोटा में फंसे बच्चों को वापस लाना फिलहाल संभव नहीं है। उन्होंने बीजेपी विधायक के कोटा जाकर अपनी बेटी को लाने के मामले की जांच होने की बात कही।

अभी बीजेपी विधायक के मामले की जांच हो ही रही है तब तक आज फिर एक ऐसा ही मामला सामने आया है जहां मुजफ्फरपुर में सत्ताधारी दलों से जुड़े विजय कुमार झा को कोटा से अपनी बेटी और उसकी सहेली को।वापस लाने के लिए पास जारी किया गया है। ये पास 11 अप्रैल को जारी किया गया था। विजय कुमार झा की पत्नी मौजूदा पार्षद हैं, वो खुद पूर्व पार्षद रह चुके हैं और इलाके में उनकी नेताओं से नजदीकियों के चर्चे आम हैं।

उधर दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कोटा में फंसे यूपी के करीब साढ़े सात हजार छात्रों को वापस लाने के लिए ढाई सौ से ज्यादा बसें भेजी हैं। कोटा से उत्तराखंड के भी चार सौ से ज्यादा बच्चों को सरकार ने वापस बुला लिया है। मध्यप्रदेश सरकार भी कोटा में फंसे अपने करीब बारह सौ छात्रों को वापस लाने की तैयारियों में जुटी हुई है।

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी अपने बच्चों को वापस लाने के प्रधानमंत्री से सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर एक देश में दो कानून कैसे हो सकता है। खुद राजस्थन के सीएम अशोक गहलोत ने ट्वीट कर जानकारी दी है कि मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, असम और गुजरात के मुख्यमंत्रीयों ने अपने राज्य के छात्रों को वापस बुलाने पर सहमति जता दी है और जल्द ही उन्हें वापस भेजा जाएगा। लेकिन बिहार के सीएम नीतीश कुमार को इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता शायद इसीलिए उन्होंने कोटा से बिहार के छात्रों को वापस लाने से साफ तौर पर मना कर दिया है।

हमारा सवाल तो नीतीश सरकार से ही है कि आखिर अमीर और गरीब के बीच फर्क क्यों किया जा रहा है? अगर रसूखदार लोगों के बच्चों को वापस लाने के लिए पास जारी हो सकते हैं तो फिर आम परिवारों के बच्चे वहां अकेले क्यों रहें, उनको वापस लाने के लिए सरकार प्रबंध क्यों नहीं कर रही?

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