अररिया: साल 2019 में कोविड-19 के बढ़ते प्रकोप को लेकर पूरी दुनिया में हाहाकार मचा हुआ था। भारत की स्थिति भी कुछ अच्छी नहीं थी। इसी को देखते हुए 2020 में प्रधानमंत्री केयर फंड से जिले के सभी बड़े सरकारी अस्पतालों में क्षमता अनुसार वेंटिलेटर उपलब्ध कराया गया था। उद्देश्य था कि कोरोना संक्रमण से किसी मरीज की मौत ना हो और उन्हें वेंटिलेटर की जरूरत हो तो उन्हें अस्पताल में यह सेवा उपलब्ध हो।
इसी उद्देश्य से अररिया सदर अस्पताल को 6 वेंटिलेटर दिए गए थे। साथ ही उस समय एआईएमआईएम (AIMIM) के द्वारा भी अररिया सदर अस्पताल को एक वेंटिलेटर उपलब्ध कराया गया था। उस समय इस वेंटिलेटर की अस्पताल के साथ मरीजों को भी इसकी बहुत जरूरत थी। लेकिन 3 वर्ष बीतने के बाद भी इन वेंटिलेटर को आज तक चालू नहीं किया जा सका। सारे वेंटिलेटर एक कमरे में बंद यूं ही धूल फांकते नजर आ रहे हैं।
हालांकि 2021 में काफी प्रयास के बाद सदर अस्पताल के एक कमरे को वेंटिलेटर के लिए व्यवस्थित किया गया था। सारे वेंटिलेटर को इंस्टॉल कर इसमें रखा गया। लेकिन, टेक्नीशियन और अनुभवी डॉक्टरों के अभाव में यह आज उसी स्थिति में पड़ा है।
गौरतलब हो कि कोविड -19 की दूसरी लहर में अधिकांश मौतें ऑक्सीजन की कमी से हुई थी। अधिकांश अस्पतालों में अव्वल तो ऑक्सीजन नहीं था और ऐसे में वेंटिलेटर जीवनदायिनी साबित होते, लेकिन अस्पतालों में वेंटिलेटर भी नहीं थे।
हालांकि, बिहार के तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने साफ तौर पर कहा था कि आक्सीजन की कमी से बिहार में किसी की मौत नहीं हुई, मगर सीपीआई(एमएल) लिब्रेशन ने अपने सर्वे में पाया था कि कई लोगों की मौत आक्सीजन की कमी से हुई थी।
कैसे काम करते हैं वेंटिलेटर
विशेषज्ञ डॉक्टरों के अनुसार फेफड़े जब काम करना बंद कर दें तब शरीर को ऑक्सीजन नहीं मिल पाती और ना ही शरीर के अंदर मौजूद कार्बन डायऑक्साइड बाहर निकल पाती है। साथ ही फेफड़ों में तरल भर जाता है। ऐसे में कुछ ही देर में दिल भी काम करना बंद कर देता है और मरीज की मिनटों में ही मौत हो जाती है। ऐसे मरीज को वेंटिलेटर के जरिए शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाई जाती है।
यह ऑक्सीजन फेफड़ों में वहां पहुंचती है जहां बीमारी के कारण तरल भर चुका होता है। सुनने में यह आसान लग सकता है लेकिन यह एक बेहद पेचीदा काम है। आधुनिक वेंटिलेटर मरीज की जरूरतों के हिसाब से शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाते हैं।
पीसीवी यानी प्रेशर कंट्रोल्ड वेंटिलेटर सांस की नली और फेफड़ों की कोशिकाओं के बीच कुछ इस तरह से दबाव बनाते हैं कि शरीर में ज्यादा से ज्यादा ऑक्सीजन पहुंच सके। जैसे ही सही प्रेशर बनता है। शरीर से कार्बन डायऑक्साइड निकलने लगती है। इस तरह से वेंटिलेटर की मदद से इंसान सांस लेने लगता है।
सांसद का प्रयास भी विफल
इन वेंटीलेटर को चालू कराने को लेकर 2021 में सभी जनप्रतिनिधियों ने काफी प्रयास किया था। अररिया के सांसद प्रदीप कुमार सिंह और जिला परिषद के अध्यक्ष सह ग्रामीण स्वास्थ्य विभाग के अध्यक्ष आफताब अजीम पप्पू ने भी सदर अस्पताल के वेंटिलेटर कक्ष का जायजा लिया था। उस समय तत्कालीन सीएस ने भी आश्वासन दिया था कि टेक्नीशियन को भेजकर प्रशिक्षित कराया जाएगा और इसके बाद वेंटिलेटर चालू हो जाएगा। लेकिन सांसद के हस्तक्षेप के बाद भी यह वेंटिलेटर आज तक चालू नहीं हो पाया जिस पर स्थानीय लोगों को काफी खेद है।
फिजिशियन डॉ एसके सिंह ने बताया कि जब इंसान जिंदगी मौत से जूझने लगे, बचने के कोई आसार न नज़र आए, तब मरीज को वेंटिलेटर की जरूरत पड़ती है। ये वह मशीन है जो मुर्दों को भी ज़िंदा रखती है और उखड़ती साँसों को थाम लेती है।
“खासकर कोरोना के वक्त में जब ये वायरस फेफड़ों पर हमला कर सांस रोक रहा होता है, तब तो उन्हें वेंटिलेटर की ज़रूरत पहले से भी कहीं ज्यादा बढ़ जाती है,” उन्होंने बताया।
Also Read Story
“कोरोना वायरस शरीर की श्वसन प्रणाली पर हमला करता है। कोरोना के शिकार कम से कम 20 फीसदी मामलों में देखा गया है कि वायरस फेफड़ों के इतनी अंदर बैठा होता है कि मरीज के लिए सांस लेना ही मुश्किल हो जाता है। ऐसे में जल्द से जल्द वेंटिलेटर लगाने की जरूरत पड़ती है।”
भाजपा ने सरकार को लिया आड़े हाथ
वेंटिलेटर चालू नहीं होने पर बिहार प्रदेश भाजपा कार्यसमिति के सदस्य आलोक कुमार भगत ने खेद प्रकट करते हुए कहा कि आज सरकार सिर्फ विज्ञापन और मीडिया के भरोसे चल रही है। जमीनी हकीकत इसके ठीक विपरीत है। जिले के सबसे बड़े सदर अस्पताल में प्रधानमंत्री केयर फंड से 2020 में ही 6 वेंटिलेटर दिए गए थे। उद्देश्य था कि कोरोना संक्रमित मरीजों को इस वेंटिलेटर का लाभ मिल पाएगा। लेकिन आज तक इसे चालू नहीं किया जा सका, यह एक बड़ा चिंता का विषय है।
“मेरी मांग है कि जनप्रतिनिधियों के साथ स्थानीय जिला प्रशासन और आम लोगों को भी सामने आना चाहिए और प्रशासन का सहयोग कर इन्हें चालू करवाना चाहिए। जिले का सबसे बड़े सदर अस्पताल और फारबिसगंज अनुमंडल अस्पताल पर लगभग 30 लाख की आबादी निर्भर करती है। अगर यह वेंटिलेटर सुचारू रूप से चालू हो जाएगा तो सिर्फ कोरोना संक्रमित ही नहीं बल्कि दूसरी बीमारियों से भी लड़ रहे रोगियों को यह काफी लाभ पहुंचाएगा,” उन्होंने कहा।
क्या कहते हैं सीएस
सीएस डॉ विधान चंद्र सिंह ने बताया, “हमें वेंटिलेटर को चलाने वाले टेक्नीशियन की जरूरत है और साथ ही फिजिशियन डॉक्टर की भी जरूरत है, जो इस अस्पताल में उपलब्ध नहीं है। जब तक हमें टेक्नीशियन उपलब्ध नहीं होता है तब तक हमारा वेंटिलेटर यूं ही पड़ा रहेगा।”
अस्पतालों में हुआ माॅक ड्रिल
इधर कोविड के नए वेरिएंट की आहट के मद्देनजर सरकार के निर्देश पर जिले बड़े अस्पतालों में बीते मंगलवार को मॉक ड्रिल कराया गया। इसका उद्देश्य है अस्पताल की व्यवस्था को सुदृढ और मजबूत बनाना और कोरोना जैसे महामारी से लड़ने के लिए तैयार रहना। इस मॉक ड्रिल के दौरान सिविल सर्जन डॉ विधान चंद्र सिंह, अस्पताल के सुपरिटेंडेंट डॉ मोइज, स्वास्थ्य प्रबंधक विकास आनंद के साथ कई पदाधिकारियों ने अस्पताल परिसर का पूरी तरह से जायजा लिया, जिसमें विशेषकर कोरोना जांच केंद्र, ऑक्सीजन प्लांट, दवाइयों के स्टॉक के साथ साफ सफाई की व्यवस्था को देखा गया।
सीएस ने कहा, “सदर अस्पताल अररिया और अनुमंडल अस्पताल फारबिसगंज की स्थिति का जायजा लिया गया और कोविड से लड़ने के लिए हमारे अस्पताल तैयार हैं। ऑक्सीजन प्लांट, आइसोलेशन वार्ड, ओपीडी सेवा, दवाइयों की उपलब्धता अस्पताल में भरपूर मात्रा में है। हमारा ऑक्सीजन प्लांट 200 एलपी क्षमता प्रदान कर रहा है। 78 बेड पर सीधा ऑक्सीजन पहुंच रहा है। 10 बेड का आइसोलेशन वाला वार्ड तैयार है। साथ ही फारबिसगंज अनुमंडल अस्पताल में भी दस बेड वाला आइसोलेशन वार्ड तैयार है।”
उन्होंने बताया कि कोरोना का नया वेरिएंट आया है जो देश के दूसरे प्रांतों में मिला है, इसलिए हम लोगों को अभी से ही अलर्ट हो जाना चाहिए और सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क, सैनिटाइजर आदि का प्रयोग शुरू कर देना चाहिए क्योंकि भीड़भाड़ वाले इलाके में मरीज अगर होंगे, तो इससे रोग बढ़ने की संभावना बढ़ जाती है।
सीमांचल की ज़मीनी ख़बरें सामने लाने में सहभागी बनें। ‘मैं मीडिया’ की सदस्यता लेने के लिए Support Us बटन पर क्लिक करें।