Main Media

Seemanchal News, Kishanganj News, Katihar News, Araria News, Purnea News in Hindi

Support Us

2017 के सैलाब में उजड़े, अब तक नहीं हो पाये आबाद, बांध पर रहने को मजबूर

सैलाब के समय बशीर का घर गांव में ही था। सैलाब के बाद जब उन्होंने उसी स्थान पर घर बनाना शुरू किया तो दूसरे लोगों ने मना कर दिया। उनकी जमीन को घेर कर गांव के ही दूसरे लोगों ने सब्जी लगा दी। उनलोगों ने बशीर के घर का सारा सामान लाकर बांध पर फेंक दिया। मजबूरी में उनको बांध पर ही घर बना कर रहना पड़ रहा है।

Aaquil Jawed Reported By Aaquil Jawed and Nawazish Alam |
Published On :

साल 2017 के सैलाब ने उत्तर बिहार को हिला कर रख दिया था। इस सैलाब ने लाखों घरों को उजाड़ा। तबाही इतनी भयावह थी कि कुछ लोगों के ज़ख्म अब तक नहीं भरे हैं। ये लोग आज तक घर बनाने के लिए एक टुकड़ा ज़मीन को तरस रहे हैं। लेकिन सरकार और प्रशासन बेख़बर है।

सैलाब से प्रभावित ये लोग कटिहार ज़िले के कदवा प्रखण्ड स्थित सुन्दरगाछी मीनापुर गांव के बांध पर अस्थाई झोंपड़ी बना कर रह रहे हैं। लगभग दर्जन भर परिवार यहां पर है। इन्हीं परिवारों में एक बशीर का परिवार है। उनके परिवार में एक लड़का और बहू के अलावा उनकी पत्नी भी हैं। पांच बेटियां भी थीं, सभी की शादी हो चुकी है। उनका परिवार बांध पर टीन की छत डालकर गुज़ारा कर रहा है। घर में कमाने वाला सिर्फ एक बेटा है। लेकिन, बहू के ऑपरेशन में लगभग 80 हज़ार का खर्च आया है। इस ख़र्च से उनके बेटे के ऊपर कर्ज़ हो गया है। कर्ज़ को चुकाने के लिए वह घर में पैसा नहीं दे पा रहे हैं।

बशीर बांस का मोढ़ा बना कर परिवार का गुज़ारा करते हैं। बशीर की उम्र 70 के क़रीब पहुंच चुकी है। हाथ में दबिया लेते ही हाथ कांपने लगते हैं। दबिया उठाने भर की शक्ति भी हाथ में नहीं बची है। लेकिन वह कहते हैं कि ज़िंदा रहने और परिवार पालने के लिए कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा। पूरे दिन की मेहनत के बाद बशीर बांस का सिर्फ एक मोढ़ा बना पाते हैं। उसकी कीमत मुश्किल से 250 रुपये के करीब होती है। गांव में मोढ़ा बैठने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।


सैलाब के समय बशीर का घर गांव में ही था। सैलाब के बाद जब उन्होंने उसी स्थान पर घर बनाना शुरू किया तो दूसरे लोगों ने मना कर दिया। उनकी जमीन को घेर कर गांव के ही दूसरे लोगों ने सब्जी लगा दी। उनलोगों ने बशीर के घर का सारा सामान लाकर बांध पर फेंक दिया। मजबूरी में उनको बांध पर ही घर बना कर रहना पड़ रहा है।

बशीर कहते हैं कि बारिश के समय टीन में छेद हो जाने से पानी घर में गिरता रहता है। पानी रोकने के लिए उन्होंने छत पर तिड़पाल डाल दिया है।

सैलाब के बाद बशीर के परिवार को सहायता राशि भी नहीं मिली। सरकारी सुविधा के नाम पर उनको सिर्फ वृद्धा पेंशन और राशन मिलता है। जब आंधी आती है तो वह घबरा कर बिस्तर पर बैठ जाते हैं।

दर्द और तकलीफ के बीच गुज़ारा कर रहे बशीर के परिवार की सरकार से छोटी सी मांग है कि उनको घर बनाने के लिए अगर ज़मीन का एक टुकड़ा मिल जाये तो उसकी जिंदगी आसान हो जाएगी।

बशीर की पत्नी कमूरन खातून खाना बनाने की तैयारी कर रही है। उनकी आँखें कमज़ोर हो गईं हैं। 400 रुपये प्रति माह वृद्धा पेंशन मिलता है। उसी से दवाई का ख़र्च निकलता है। घर में शौचालय नहीं है, जिसकी वजह से शौच के लिए उन्हें खेतों में जाना पड़ता है। सरकार खुले में शौच को खत्म करने का लाख दावा करे, लेकिन बशीर के परिवार का कहना है कि उनको शौचालय निर्माण के लिए भी पैसा नहीं मिला है।

बशीर के घर से थोड़ी ही दूर पर गलिया देवी का परिवार रहता है। परिवार में पति के अलावा एक बेटा है। पति मज़दूरी कर घर का खर्च चलाते हैं। गलिया देवी कहती हैं कि यह ज़मीन सरकारी है फिर भी गांव के कुछ लोग उन्हें घर तोड़ने को कह चुके हैं। इसको लेकर कई बार उनकी लड़ाई भी हो चुकी है।

गलिया देवी कहती हैं कि उनका बेटा रोजाना 500-600 रुपये कमाता है। लेकिन इस जमाने में 500 रुपये की क्या कीमत है। पति खेतों में धान काटते हैं जिससे घर में थोड़े बहुत पैसे आ जाते हैं।

इस इलाके में मवेशी रखने के लिए बनाये घर को गोहाल कहते हैं। जब आंधी आती है तो गलिया देवी का परिवार डर कर अपने मवेशियों के साथ गोहाल में शरण लेता है। घर के बगल में एक बड़ा पेड़ है जिसके गिरने के डर से वे लोग घर छोड़ कर गोहाल में चले जाते हैं।

मो. मस्तान का घर भी 2017 के सैलाब में बह गया था। मस्तान को बेटी की शादी करानी है। घर बनाने की जमीन नहीं होने की वजह से उनके बेटे शादी कर दूसरे शहरों में अपने परिवार के साथ रहते हैं। मस्तान ने बताया कि उनके बेटे पैसे नहीं भेजते हैं। एक छोटी सी झोंपड़ी में मस्तान और उनकी पत्नी रह रहे हैं। घर की दहलीज़ इतना नीचा है कि घुसते समय सिर लग जाता है। मस्तान कहते हैं कि उनके घर में बिजली भी नहीं है। बिजली लगाने के लिए मिस्त्री पैसे की मांग करते हैं। राशन कार्ड रहने के बावजूद उनको राशन नहीं मिल रहा है।

मस्तान की पत्नी जैतुन निशा कहती हैं कि उनको घर बनाने की जमीन भी उपलब्ध नहीं है। बांध पर घर बनाने की वजह से कई बार राहगीरों से झगड़ा हो गया।

बारिश के वक्त झोंपड़ी में पानी घुसने लगता है। घर में बिजली नहीं रहने की वजह से जैतुन को अंधेरे में रहना पड़ रहा है। घर में पानी के लिए ट्यूबवेल भी नहीं था। गांव के ही किसी भले आदमी ने उनके घर में ट्यूबवेल लगा दिया जिससे घर में पानी की दिक्कत दूर हुई।

Also Read Story

बिहार-बंगाल सीमा पर वर्षों से पुल का इंतज़ार, चचरी भरोसे रायगंज-बारसोई

अररिया में पुल न बनने पर ग्रामीण बोले, “सांसद कहते हैं अल्पसंख्यकों के गांव का पुल नहीं बनाएंगे”

किशनगंज: दशकों से पुल के इंतज़ार में जन प्रतिनिधियों से मायूस ग्रामीण

मूल सुविधाओं से वंचित सहरसा का गाँव, वोटिंग का किया बहिष्कार

सुपौल: देश के पूर्व रेल मंत्री और बिहार के मुख्यमंत्री के गांव में विकास क्यों नहीं पहुंच पा रहा?

सुपौल पुल हादसे पर ग्राउंड रिपोर्ट – ‘पलटू राम का पुल भी पलट रहा है’

बीपी मंडल के गांव के दलितों तक कब पहुंचेगा सामाजिक न्याय?

सुपौल: घूरन गांव में अचानक क्यों तेज हो गई है तबाही की आग?

क़र्ज़, जुआ या गरीबी: कटिहार में एक पिता ने अपने तीनों बच्चों को क्यों जला कर मार डाला

जैतुन सरकार से मांग करती हैं कि उनको घर बनाने के लिए सरकार कुछ जमीन दे ताकि उनका परिवार आसानी से जिंदगी गुजार सके।

सीमांचल की ज़मीनी ख़बरें सामने लाने में सहभागी बनें। ‘मैं मीडिया’ की सदस्यता लेने के लिए Support Us बटन पर क्लिक करें।

Support Us

Related News

त्रिपुरा से सिलीगुड़ी आये शेर ‘अकबर’ और शेरनी ‘सीता’ की ‘जोड़ी’ पर विवाद, हाईकोर्ट पहुंचा विश्व हिंदू परिषद

फूस के कमरे, ज़मीन पर बच्चे, कोई शिक्षक नहीं – बिहार के सरकारी मदरसे क्यों हैं बदहाल?

आपके कपड़े रंगने वाले रंगरेज़ कैसे काम करते हैं?

‘हमारा बच्चा लोग ये नहीं करेगा’ – बिहार में भेड़ पालने वाले पाल समुदाय की कहानी

पूर्णिया के इस गांव में दर्जनों ग्रामीण साइबर फ्रॉड का शिकार, पीड़ितों में मजदूर अधिक

किशनगंज में हाईवे बना मुसीबत, MP MLA के पास भी हल नहीं

कम मजदूरी, भुगतान में देरी – मजदूरों के काम नहीं आ रही मनरेगा स्कीम, कर रहे पलायन

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Latest Posts

Ground Report

बिहार-बंगाल सीमा पर वर्षों से पुल का इंतज़ार, चचरी भरोसे रायगंज-बारसोई

अररिया में पुल न बनने पर ग्रामीण बोले, “सांसद कहते हैं अल्पसंख्यकों के गांव का पुल नहीं बनाएंगे”

किशनगंज: दशकों से पुल के इंतज़ार में जन प्रतिनिधियों से मायूस ग्रामीण

मूल सुविधाओं से वंचित सहरसा का गाँव, वोटिंग का किया बहिष्कार

सुपौल: देश के पूर्व रेल मंत्री और बिहार के मुख्यमंत्री के गांव में विकास क्यों नहीं पहुंच पा रहा?