बिना खिड़की वाले अपने 10 बाई 10 के कमरे में चौकी पर लेटी सोमा देवी (बदला हुआ नाम) इस कदर सदमे में हैं कि बहुत धीमे से और दो-तीन शब्दों में ही सवालों के जवाब दे पाती हैं।
यूट्यूबरों व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के एक तरह के सवालों का जवाब देते देते उकता जाती हैं, तो कह देती हैं कि वह कुछ बोल पाने की स्थिति में नहीं हैं। मगर फिर कोई न कोई आ जाता है। कभी कोई यूट्यूबर, कभी बड़े नेताओं के प्रतिनिधि, कभी मानवाधिकार आयोग के अफसरान, तो कभी अनुसूचित जाति/जनजाति आयोग व महिला आयोग की सदस्यों का आना-जाना लगा हुआ है।
40 वर्षीय सोमा देवी, चमार समुदाय से आती हैं, जो बिहार में महादलित समूह में शामिल है। 23 सितंबर की रात गांव के ही यादव समुदाय के प्रमोद सिंह यादव व उसके पुत्र ने सोमा को निर्वस्त्र कर बेरहमी से पिटाई की और मुंह पर कथित तौर पर पेशाब कर दिया।
पटना जिले के खुसरूपुर थाना क्षेत्र के अपने गांव में ऊमस भरे छोटे से एक कमरे में सोमा देवी उस खौफनाक घटना को याद करते हुए कई दफा सहम जाती हैं और आंख बंद कर लेती हैं।
सोमा देवी सरकारी स्कूल में रसोइया का काम करती हैं जिसके एवज मे उन्हें हर महीने 1600 रुपये मिलते हैं। उनके पति सुबोध दास निर्माण मजदूर के तौर पर काम करते हैं। उन्हें 7 साल से 18 साल के बीच की उम्र के चार बच्चे हैं, जिनमें दो लड़के और दो लड़कियां शामिल हैं।
23 सितंबर की रात लगभग 10 बजे सोमा देवी की भाभी विद्या देवी शौच करने के लिए बाहर गई थीं क्योंकि उनके घर में कोई शौचालय नहीं है और न ही सरकार ने उनके लिए सामुदायिक शौचालय ही बनवाया है।
घर में पानी नहीं था तो विद्या देवी बिना पानी लिये ही शौच को निकल गईं और सोमा देवी से कहा कि घर के बगल में मुख्य सड़क पर जो चापाकल है वहां से पानी लेकर वह शौच स्थल पर आ जाएं।
विद्या देवी 10-15 मिनट तक इंतजार करती रहीं, लेकिन सोमा देवी नहीं आईं। “जब वह नहीं आई, तो हम खेत से उठकर घर आए, लेकिन घर में वह नहीं थीं। चापाकल पर गये, पर वहां भी वह नहीं थी,” विद्या देवी कहती हैं।
इसके कुछ देर बाद ही उन्होंने देखा कि वह रोती हुई, कपड़े हाथ में लिये हुए निर्वस्त्र अवस्था में दूसरी तरफ से दौड़ी चली आ रही हैं और उनके सिर से खून बह रहा है। विद्या देवी को देखते ही आशा उनसे लिपट गईं। किसी तरह कपड़े से उनका शरीर ढका और कमरे के भीतर ले गईं।
“मुझसे लिपटते ही वह लगभग बेहोश हो गई थीं। उन्हें किसी तरह घर के भीतर लाया गया। फिर हमलोगों ने एंबुलेंस बुलाया और अस्पताल ले गये,” विद्या देवी ने कहा, “उनके सिर पर चार टांके लगे हैं और पैरों में डंडे के हमले से काले धंबे पड़ चुके हैं।”
23 सितंबर की घटना कोई अचानक नहीं हो गई थी। इसकी पृष्ठभूमि में ग्रामीण इलाकों में कर्ज को लेकर महाजनों की दबंगई और शक्तिशाली जाति समूह होने का दंभ भी था।
घटना की वजह 1500 रुपये का कर्ज!
सोमा देवी बहुत धीमी आवाज में बताती हैं कि दो साल पहले किसी काम के लिए उन्होंने गांव के रसूखदार प्रमोद सिंह यादव से 1500 रुपये कर्ज लिया था। उस वक्त कर्ज पर किसी तरह के सूद की कोई बात नहीं हुई थी। सोमा देवी बताती हैं कि कर्ज लेने के 10 दिन बाद ही उन्होंने कर्ज चुका भी दिया था।
यह घटना आई-गई हो गई। लेकिन 21 सितंबर से अचानक प्रमोद सिंह यादव सक्रिय हो गया। 21 सितंबर की सुबह वह अपनी पत्नी और बच्चों के साथ सोमा देवी के घर पर आ गया और 1500 रुपये का सूद मांगने लगा। सोमा देवी कहती हैं, “उन्होंने कहा कि कर्ज तो चुका दिया है, लेकिन उसका सूद देना होगा। इस पर हमने पूछा भी कि कितना सूद बनता है, लेकिन उसने कुछ नहीं बताया। बस सूद देने के लिए दबाव बनाने लगा। मैंने कहा कि हमलोग गरीब हैं और हम और पैसा नहीं दे सकते हैं।”
आरोप है कि प्रमोद सिंह यादव ने ईंट से सोमा देवी पर हमला किया, मगर वह उनकी छाती में जा लगा। सोमा देवी डर गईं और स्कूल चली गईं। उसके अगले रोज यानी 22 सितंबर जब वह पानी लेने के लिए मुख्य सड़क के चापाकल पर गईं, तो वहां प्रमोद सिंह यादव ने लाठी डंडे से उन्हें मारा।
22 सितंबर को मौखिक चेतावनी देकर लौट गई थी पुलिस
सोमा देवी के परिजनों ने इस घटना की सूचना 112 नंबर पर डायल कर पुलिस को दी।
112 एक आपातकालीन प्रतिक्रिया व्यवस्था है, जिसे बिहार पुलिस ने पिछले साल जून में शुरू की है। इसके तहत किसी भी आपातकालीन स्थिति में 112 पर कॉल करने पर पुलिस आधे घंटे में घटनास्थल पर पहुंच सकती है। पुलिस गांव में पहुंची और प्रमोद सिंह यादव के घर गई और समझा-बुझाकर लौट गई। हालांकि, सोमा देवी पुलिस से कड़ी कार्रवाई की उम्मीद कर रही थीं।
सोमा देवी के परिजनों ने पुलिस पर ढिलाई बरतने का आरोप लगाते हुए कहा कि 22 सितंबर को ही पुलिस ने कड़ी कार्रवाई की होती, तो 23 सितंबर की घटना टल सकती थी। मगर पुलिस ने सिर्फ मौखिक चेतावनी दी और लौट गई।
आरोप है कि इससे प्रमोद सिंह यादव का मनोबल और बढ़ गया। सोमा देवी के एक रिश्तेदार कमलेश कुमार कहते हैं, “पुलिस के जाने के बाद प्रमोद हमारे घर आया और सोमा देवी को धमकाते हुए कहा – पुलिस को तुमने बताया है। तुमको नंगा करके मारेंगे।” इस धमकी को प्रमोद ने सच कर दिया।
सोमा देवी के परिजनों के मुताबिक, इसके अलगे दिन यानी 23 सितंबर को प्रमोद सिंह यादव दिनभर सोमा देवी के घर के आसपास मंडराता रहा।
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23 सितंबर की रात 10 बजे जब सोमा देवी, विद्या देवी को शौच के लिए पानी देने के लिए चापाकल पर गई, तो प्रमोद वहां आ धमका। प्रमोद ने सोमा देवी को बरगला दिया और अपने घर ले गया।
“प्रमोद ने कहा कि उसने मेरे पति को घर पर बंधक बना रखा है। यह सुनकर मैं दौड़कर उसके घर पहुंची, मगर वहां मेरे पति नहीं थे,” सोमा देवी ने कहा।
सोमा देवी के वहां पहुंचते ही प्रमोद सिंह यादव और उसका बेटा अंशु कुमार और अन्य चार लोगों ने सोमा देवी पर हमला कर दिया और उनके कपड़े उतार दिये। इतना ही नहीं, सोमा देवी का कहना है कि निर्वस्त्र करने के बाद प्रमोद ने अपने बेटे अंशु से कहा कि उनके मुंह पेशाब कर दे। सोमा देवी के मुताबिक, अंशु ने उनके मुंह पर पेशाब कर दिया।
मारपीट और अपमान के दोहरे दर्द ने उन्हें तोड़ दिया था। वह किसी तरह साड़ी को हाथ में लिये आहिस्ता कदमों से घर की तरफ लौटने लगीं।
विद्या देवी उस रात की घटना को याद करती हैं, “रात 10 बजे काफी अंधेरा था, तो कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा था। मैं सड़क पर खड़ी थी। जब सोमा देवी स्ट्रीट लाइट के पास आई, तो मुझे उनका चेहरा दिखा। वह निर्वस्त्र थीं और कपड़े हाथों में थे। मैं उनकी तरफ दौड़ पड़ी। वह भी मेरी ओर दौड़ी। हमदोनों ने एक दूसरे को जकड़ लिया और रोने लगे।”
अगली सुबह पीड़िता की तरफ से खुसरूपुर थाने में प्रमोद और अंशु के अलावा चार अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई। घटना के मुख्य आरोपी प्रमोद को फिलहाल पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है।
अनुसूचित जाति (एससी)/जनजाति (एसटी) पर अत्याचार के मामले में बिहार की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। साल 2021 में बिहार में एससी/एसटी (प्रीवेंशन ऑफ एट्रोसिटीज) एक्ट के तहत बिहार में 5842 मामले दर्ज किये गये, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान के बाद सबसे ज्यादा है।
लेकिन, सजा के मामले में स्थिति काफी दयनीय है। साल 2021 में पिछले साल को भी मिलाकर कुल 53541 मामले ट्रायल के स्तर पर थे जिनमें से 48 मामलों में ही सजा हो पाई और 106 मामलों में आरोपी बरी हो गये।
“यादवों का अत्याचार नई बात नहीं”
इस पूरे मामले में खुसरूपुर थाने की पुलिस ने पीड़िता के कई दावों को सिरे से खारिज किया है।
खुसरूपुर थाने के एसएचओ गंगा सागर सिंह ने कहा कि मुंह पर पेशाब करने की बात में सत्यता नहीं है। जब हमने पुलिस से पूछा कि पुलिस को ऐसा क्या सबूत मिला है, जो पीड़िता के दावे को खारिज करता है, तो उन्होंने कहा कि पीड़िता के अलावा और कोई गवाह नहीं मिला, जो उनके दावे की पुष्टि कर दे।
जब घटना हुई थी, तब खुसरूपुर थाने के थानाध्यक्ष सियाराम यादव थे, जिनका तबादला 24 सितंबर को दूसरे थाने में कर उनकी जगह गंगा सागर सिंह को नया थानाध्यक्ष बनाया गया है।
कर्ज के सवाल पर गंगासागर सिंह ने कहा कि लम्बे समय से दोनों के बीच कर्ज का लेनदेन चल रहा था। 1500 रुपये कर्ज लेने और उसे चुका देने के पीड़िता के दावे से इतर पुलिस का कहना है कि 20 से 25 हजार रुपये के कर्ज का मामला है।
जिस गांव में यह घटना हुई, वहां यादवों की आबादी सबसे अधिक है, जो अन्य पिछड़ा समुदाय (ओबीसी) में आते हैं। हालांकि, अन्य जातियां भी रहती हैं, लेकिन उनकी आबादी कम है।
चमार जाति के बमुश्किल 7-8 परिवार गांव में रहते हैं, जो भूमिहीन हैं और यादवों के खेतों में मजदूरी करते हैं।
चमार समुदाय से आने वाले गांव के बुजुर्ग सियासरण दास कहते हैं, “हमें अक्सर यादवों की गाली-गलौज का सामना करना पड़ता है। हमारे बच्चों पर लप्पड़-थप्पड़ चलाना आम बात है उनके लिए। हमलोग गरीब-पिछड़े हैं, तो सह लेते हैं।”
यादव जातियों को राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का कोर समर्थक माना जाता है, जो फिलहाल जदयू के साथ मिलकर सरकार चला रहा है।
चमार समुदाय से आने वाले अशोक दास पीड़िता के देवर और राजद की दलित इकाई के प्रखंड अध्यक्ष हैं।
उन्होंने राजद नेतृत्व पर इस मामले में साथ नहीं देने का आरोप लगाया। उन्होंने ‘मैं मीडिया’ के साथ बातचीत में कहा, “सिर्फ स्थानीय राजद विधायक अनिरुद्ध यादव यहां आये थे। उनके अलावा पार्टी की तरफ से कोई भी नेता पीड़िता से मिलने नहीं पहुंचा है। मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि इस मामले में राजद से हमें कोई सहयोग नहीं मिला है।”
यह गांव बख्तियारपुर विधानसभा क्षेत्र में आता है, जहां से 2020 के विधानसभा चुनाव में राजद ने जीत दर्ज की है। पूरे विधानसभा क्षेत्र में चमार समुदाय के 22 से 23 हजार वोटर हैं। “मैं दावे के साथ कहता हूं कि 99 प्रतिशत चमारों ने राजद को वोट दिया है। मैं पिछले 15 साल से प्रखंड अध्यक्ष हूं। उस जमाने में लालू प्रसाद यादव मुझे अपने आवास पर बुलाते थे, चाय पिलाते थे। उन्होंने कई बार दिल्ली आवास पर भी बुलाया। उस वक्त तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव बहुत छोटे थे। पता नहीं अभी लालू जी को हम याद हैं कि नहीं,” अशोक दास कहते हैं।
वह आगे कहते हैं, “हमलोगों पर तो यादव लोग सालों से अत्याचार कर रहे हैं। इस अत्याचार से तंग आकर पिछले 5-6 सालों में 3-4 चमार परिवार गांव से पालायन कर गये हैं और इस घटना के बाद भी कुछ परिवार घर छोड़कर चले गये।”
“यह लड़ाई हमारे समाज की है और हमलोग तमाम जोखिमों के बावजूद लड़ रहे हैं। हम यह भी देखना चाहते हैं कि यह सरकार किस तरह मामले की जांच करती है,” उन्होंने कहा।
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