Main Media

Seemanchal News, Kishanganj News, Katihar News, Araria News, Purnea News in Hindi

Support Us

‘हम चाहते थे बेटा पढ़ाई करे, मज़दूरी नहीं’, नेपाल में मरे मज़दूरों की कहानी

दिघलबैंक ग्राम पंचायत अंतर्गत बैरबन्ना गांव के कई नौजवान मज़दूर नेपाल के इलाम ज़िले में लेबर-मिस्त्री का काम करते हैं। इन्हीं में से चार मजदूर थे अजीमुद्दीन, अब्दुल, तौसीफ और मुजफ्फर। बीते 5 मई की शाम काम के दौरान एक निर्माणाधीन मकान के धंसने से चारों की मौत हो गई। चारों मृतक एक ही खानदान से थे।

Tanzil Asif is founder and CEO of Main Media Reported By Tanzil Asif |
Published On :

नेपाल और भारत के बीच 1,770 किलोमीटर लंबी खुली सीमा है, जिसके माध्यम से दोनों देशों के नागरिक एक-दूसरे के देश में आसानी से आवाजाही करते हैं। 1770 किलोमीटर में से 729 किलोमीटर सीमा बिहार के सात ज़िलों से जुड़ती है, जिनमें किशनगंज, अररिया और सुपौल भी शामिल हैं। सीमा के करीब बसे गाँवों के मज़दूरों के लिए रोज़गार की तलाश में भारत के बड़े शहरों की अपेक्षा नेपाल जाना ज्यादा आसान होता है। इसलिए किशनगंज ज़िले के नेपाल सीमा पर बसे प्रखंड दिघलबैंक से हज़ारों मज़दूर नेपाल में काम करते हैं। दिघलबैंक ग्राम पंचायत अंतर्गत बैरबन्ना गांव के कई नौजवान मज़दूर नेपाल के इलाम ज़िले में लेबर-मिस्त्री का काम करते हैं। इन्हीं में से चार मजदूर थे अजीमुद्दीन, अब्दुल, तौसीफ और मुजफ्फर। बीते 5 मई की शाम काम के दौरान एक निर्माणाधीन मकान के धंसने से चारों की मौत हो गई। चारों मृतक एक ही खानदान से थे।

20 साल से कम उम्र के इन नौजवानों में किसी के माता-पिता चाहते थे बेटा पढ़ाई मुकम्मल करे, तो किसी के घर वाले अपने लाल के सर सेहरा बाँधने की तैयारी कर रहे थे।

Also Read Story

किशनगंज: दशकों से पुल के इंतज़ार में जन प्रतिनिधियों से मायूस ग्रामीण

मूल सुविधाओं से वंचित सहरसा का गाँव, वोटिंग का किया बहिष्कार

सुपौल: देश के पूर्व रेल मंत्री और बिहार के मुख्यमंत्री के गांव में विकास क्यों नहीं पहुंच पा रहा?

सुपौल पुल हादसे पर ग्राउंड रिपोर्ट – ‘पलटू राम का पुल भी पलट रहा है’

बीपी मंडल के गांव के दलितों तक कब पहुंचेगा सामाजिक न्याय?

सुपौल: घूरन गांव में अचानक क्यों तेज हो गई है तबाही की आग?

क़र्ज़, जुआ या गरीबी: कटिहार में एक पिता ने अपने तीनों बच्चों को क्यों जला कर मार डाला

त्रिपुरा से सिलीगुड़ी आये शेर ‘अकबर’ और शेरनी ‘सीता’ की ‘जोड़ी’ पर विवाद, हाईकोर्ट पहुंचा विश्व हिंदू परिषद

फूस के कमरे, ज़मीन पर बच्चे, कोई शिक्षक नहीं – बिहार के सरकारी मदरसे क्यों हैं बदहाल?

पढ़ाई छोड़ कर गया नेपाल

12 भाई बहनों में एक मोहम्मद तौसीफ का नामांकन मदरसा और स्कूल दोनों जगह था। पिता चाहते थे कि वह वह पढ़ाई मुकम्मल करे, लेकिन तौसीफ गाँव के अन्य युवाओं की तरह नेपाल जाकर दो पैसे कमाना चाहता था। इसलिए ईद के दो दिन बाद ही अपने पिता को बिना बताए तौसीफ नेपाल चला गया।


मुहम्मद मुजफ्फर की भी कहानी कुछ ऐसी ही है। मुजफ्फर आठवीं कक्षा में था। घर का सबसे बड़ा बेटा था। पिता ज़िद्द में थे की बेटा पहले पढ़ाई मुकम्मल करे, इसलिए वह स्कूल के साथ-साथ उसे ट्यूशन भी भेज रहे थे। मुजफ्फर के पिता अब्दुल रहीम पहले मज़दूरी के लिए पंजाब जाया करते थे, लेकिन घर पर छोटे बच्चे रोते थे, इसलिए अब इलाके में ही साइकिल लेकर गाँव-गाँव कबाड़ खरीदने का काम करते हैं। उन्हें बेटियों के शादी की फ़िक्र सता रही है।

अजीमुद्दीन ने पांचवी कक्षा में ही स्कूली पढ़ाई छोड़ दी थी, लेकिन मदरसा में उसकी पढ़ाई जारी थी। सेराजुल हक़ के पांच बेटों में से एक अजीमुद्दीन इस बार तीसरी बार नेपाल गया था। दो साल पहले तक सेराजुल कश्मीर के खेतों में काम करने जाते थे, अब बेटे परिवार चला रहे हैं।

नौ भाई बहनों में से एक 19 वर्षीय मोहम्मद अब्दुल करीब दो सालों से नेपाल में मज़दूरी कर रहा था। उसके पिता मैनुल हक़ मछुआरा हैं। मैनुल बताते हैं, इस साल वह अब्दुल की शादी करवाना चाहते थे, लेकिन सारे अरमान अधूरे रह गए।

नेपाल में मिलता है निरंतर काम

सम्मान जनक मज़दूरी, निरंतर काम, रहने और खाने के इंतज़ाम के साथ-साथ यातायात की सुविधा को देखते हुए सीमावर्ती गाँवों के मज़दूर नेपाल जाना पसंद करते हैं। नेपाल में मज़दूरी करने वाले बैरबन्ना गाँव के नौजवान मो. मश्कूर आलम बताते हैं कि नेपाल में मिस्त्री को 700-750 भारतीय रुपए और मज़दूर को लेबर को 350 भारतीय रुपए के हिसाब से मज़दूरी मिल जाती है।

दिघलबैंक ग्राम पंचायत की मुखिया पूनम देवी के पुत्र गणेश सिंह राजपूत बताते हैं, उनके पंचायत दिघलबैंक से करीब 2500 लोग नेपाल में मज़दूरी करते हैं। 15 सालों से नेपाल में काम कर रहे तौसीफ के भाई मोहम्मद आलम बताते हैं कि सिर्फ बैरबन्ना गाँव के करीब 250 नौजवान नेपाल में मज़दूरी कर रहे हैं।

लेकिन, इस हादसे के बाद ग्रामीण डरे हुए हैं। वे अपने बेटों को नेपाल जाने देने से डर रहे हैं। नेपाल से वापस आए मज़दूर भी कुछ महीने रुक कर ही वापस जाना चाहते हैं।

सीमांचल की ज़मीनी ख़बरें सामने लाने में सहभागी बनें। ‘मैं मीडिया’ की सदस्यता लेने के लिए Support Us बटन पर क्लिक करें।

Support Us

तंजील आसिफ एक मल्टीमीडिया पत्रकार-सह-उद्यमी हैं। वह 'मैं मीडिया' के संस्थापक और सीईओ हैं। समय-समय पर अन्य प्रकाशनों के लिए भी सीमांचल से ख़बरें लिखते रहे हैं। उनकी ख़बरें The Wire, The Quint, Outlook Magazine, Two Circles, the Milli Gazette आदि में छप चुकी हैं। तंज़ील एक Josh Talks स्पीकर, एक इंजीनियर और एक पार्ट टाइम कवि भी हैं। उन्होंने दिल्ली के भारतीय जन संचार संस्थान (IIMC) से मीडिया की पढ़ाई और जामिआ मिलिया इस्लामिआ से B.Tech की पढ़ाई की है।

Related News

आपके कपड़े रंगने वाले रंगरेज़ कैसे काम करते हैं?

‘हमारा बच्चा लोग ये नहीं करेगा’ – बिहार में भेड़ पालने वाले पाल समुदाय की कहानी

पूर्णिया के इस गांव में दर्जनों ग्रामीण साइबर फ्रॉड का शिकार, पीड़ितों में मजदूर अधिक

किशनगंज में हाईवे बना मुसीबत, MP MLA के पास भी हल नहीं

कम मजदूरी, भुगतान में देरी – मजदूरों के काम नहीं आ रही मनरेगा स्कीम, कर रहे पलायन

शराब की गंध से सराबोर बिहार का भूत मेला: “आदमी गेल चांद पर, आ गांव में डायन है”

‘मखाना का मारा हैं, हमलोग को होश थोड़े होगा’ – बिहार के किसानों का छलका दर्द

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Latest Posts

Ground Report

किशनगंज: दशकों से पुल के इंतज़ार में जन प्रतिनिधियों से मायूस ग्रामीण

मूल सुविधाओं से वंचित सहरसा का गाँव, वोटिंग का किया बहिष्कार

सुपौल: देश के पूर्व रेल मंत्री और बिहार के मुख्यमंत्री के गांव में विकास क्यों नहीं पहुंच पा रहा?

सुपौल पुल हादसे पर ग्राउंड रिपोर्ट – ‘पलटू राम का पुल भी पलट रहा है’

बीपी मंडल के गांव के दलितों तक कब पहुंचेगा सामाजिक न्याय?