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पुलिस ने 17 साल बाद लापता युवक को खोजा, हाथ पर बने टैटू से हुई पहचान

सिमराहा थाने में दर्ज रिकार्ड के अनुसार, वर्ष 2006 में थाना क्षेत्र के हिंगना गांव के रहने वाले गुगली मंडल ने अपने पुत्र अजय मंडल उर्फ बोके मंडल की गुमशुदगी का मामला दर्ज कराया था।

ved prakash Reported By Ved Prakash |
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बिहार के अररिया में पुलिस ने 17 वर्ष पूर्व लापता हुए युवक को सकुशल बरामद कर लिया है। यह सब हाथ पर बने एक गोदना (टैटू) के कारण संभव हो पाया है। मामला अररिया स्थित सिमराहा थाना क्षेत्र के हिंगना गांव का है।

सिमराहा थाने में दर्ज रिकार्ड के अनुसार, वर्ष 2006 में थाना क्षेत्र के हिंगना गांव के रहने वाले गुगली मंडल ने अपने पुत्र अजय मंडल उर्फ बोके मंडल की गुमशुदगी का मामला दर्ज कराया था।

पुलिस ने उस वक्त अपने स्तर से अजय मंडल को खोजने का प्रयास किया, लेकिन पुलिस को सफलता नहीं मिली। पुलिस और परिजनों के काफी तलाश करने के बाद भी जब उसका कोई अता-पता नहीं चला तो परिजनों ने थक हार कर अजय को ढूंढना छोड़ दिया।


समय गुज़रता रहा, लेकिन अजय के परिवार को उसकी कोई खबर नहीं मिली। परिवार में सभी ने अजय के मिलने की उम्मीद छोड़ दी थी। लेकिन, फिर कहते हैं न कि “जाको राखे सईंया मार सके ना कोय”, तो वही हुआ।

इसी कहावत को चरितार्थ करते हुए अजय 17 साल बाद अपने परिवार से जा मिले। भले ही मिलने में 17 साल का समय लगा, लेकिन परिवार वाले अपने बेटे को पाकर काफी प्रसन्न हैं।

गुमशुदगी का सनहा (रिपोर्ट) बना सबूत

दरअसल हुआ यूं कि नाउम्मीद होने के बावजूद परिवार वालों ने अजय की गुमशुदगी वाली रिपोर्ट घर में संभाल कर रखी हुई थी। कुदरत की लीला देखिये कि वही सनहा (रिपोर्ट) परिवार वालों के काम आई और वापस अपने बेटे को पाने में सनहा ने एक कानूनी दस्तावेज़ के रूप में काम किया।

हाथ पर बने टैटू से हुई पहचान

बरामद अजय उर्फ बोके मंडल की मां शांति देवी ने बताया कि छोटी उम्र में ही उन्होंने बेटे के हाथ पर उसका नाम और गांव का नाम गुदवाया था। वह कहती हैं कि इसके पीछे भी एक कारण था।

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शांति देवी ने बताया कि बेटा चूंकि मानसिक रूप से विक्षिप्त है और बोल नहीं पाता है, इसलिए उनलोगों ने उसके हाथ पर यह गोदना (टैटू) गोदवाया था, ताकि कभी भटक जाने पर आस-पास के लोग उनको घर तक पहुंचा दें।

जब बेटा नहीं मिल रहा था, उस समय को याद कर शांति देवी कहती हैं कि वह दिन भर अपने बेटे के बारे में सोचती रहती थी और बेटे को लेकर ही फिक्रमंद रहती थी कि वह कब वापस आयेगा?

“दिन रात सोचते रहते थे कि बेटा कहां चला गया, कब आयेगा? सोचते रहते थे कि कहीं मर तो नहीं गया? जब थाने से फोन गया और गांव के लोगों ने गोदना (टैटू) की वजह से पहचाना तो फिर हमको पता चला,” उन्होंने बताया।

शांति देवी आगे कहती हैं कि आज 17 साल बाद बेटे के हाथ पर गोदना के कारण ही उनलोगों के घर में खुशी लौटी है और बेटे के इतने वर्ष बाद मिलना उनके परिवार के लिए किसी उत्सव से कम नहीं है।

शांति देवी ने कहा, “मैं पागलों जैसी हो गई थी इसके पिता भी निराश हो गए थे। लेकिन पुलिस ने इतने दिनों बाद हमारे बच्चे को बरामद कर दिया। इसके लिए मैं जितना धन्यवाद करूं उतना कम है। आज मेरे घर में उत्सव का माहौल है।”

यह पूछने पर कि उन्होंने अपने बेटे को कैसे पहचान लिया? शांति देवी मुस्कराती हैं और कहती हैं कि एक मां के लिये बच्चों को पहचानना कभी मुश्किल नहीं होता है।

शांति देवी कहती हैं, “हम तो पहचान लिये थे कि यह हमरा बेटा है। हम खूब अच्छे तरीके से पहचान लिये। जितना पता उसके हाथ में था उतना पता मेरे पास (मेरे दिल में) भी था,” उन्होंने कहा।

पुलिस को ऐसे लगा अजय का सुराग

सिमराहा थाना अध्यक्ष राजनंदनी सिन्हा ने बताया कि थाने के रिकार्ड में 2006 में हिंगना निवासी गुगली मंडल ने अपने पुत्र अजय मंडल की गुमशुदगी का मामला दर्ज कराया गया था।

सिमराहा थाना पुलिस द्वारा लापता युवक की तलाश जारी थी। इसी बीच पुलिस को सूचना मिली कि गायब अजय मंडल भागलपुर के गोपालपुर के सैदपुर में किसी होटल में काम कर रहा है।

सूचना मिलते ही सिमराहा थाने की पुलिस अजय के परिवार वालों को अपने साथ लेकर मौके पर पहुंची और बोके मंडल की पहचान के बाद उसे अररिया ले आई।

पुलिस ने कागजी कार्रवाई पूरी कर ‘जिम्मा नामा’ बनाकर अजय मंडल को परिजनों के हवाले कर दिया है।

सिमराहा थाना अध्यक्ष राजनंदनी सिन्हा ने भी बरामद बोके मंडल के मानसिक रूप से कमजोर और गूंगा होने की पूष्टि की।

थाना अध्यक्ष ने आगे बताया कि इस बरामदगी में सबसे महत्वपूर्ण उसके हाथ पर बना गोदना था। उन्होंने आगे कहा कि अगर गोदना नहीं होता तो शायद उसका सुराग लगना मुश्किल था।

उन्होंने आगे बताया कि बोके के हाथ पर गोदने के रूप में उसका नाम और उसके गांव का नाम हिंगना औराही लिखा था, जिससे सत्यापन में पुलिस को और परिवार वालों को काफी आसानी हुई। राजनंदनी सिन्हा ने अंत में कहा कि इस बरामदगी से लोगों का विश्वास पुलिस के प्रति बढ़ा है।

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अररिया में जन्मे वेद प्रकाश ने सर्वप्रथम दैनिक हिंदुस्तान कार्यालय में 2008 में फोटो भेजने का काम किया हालांकि उस वक्त पत्रकारिता से नहीं जुड़े थे। 2016 में डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में कदम रखा। सीमांचल में आने वाली बाढ़ की समस्या को लेकर मुखर रहे हैं।

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