हाल ही में अररिया जिले में एक दिलचस्प नजारा देखने को मिला। यहां से भाजपा सांसद प्रदीप कुमार सिंह ने पलासी के पिपरा बिजवार से गुजरने वाली रतवा नदी को पार करने के लिए खुद से नाव चलाई।
उन्होंने नाव की पतवार खुद थाम ली और अपने अंगरक्षक के साथ नदी पार कर दूसरी तरफ गए।
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दरअसल, अररिया सांसद प्रदीप कुमार सिंह पलासी के छपनिया गांव में एक पीड़ित परिवार से मिलने जा रहे थे, जिनकी एक दम्पत्ति की 17 अगस्त को सड़क हादसे में मौत हो गयी थी।
प्रदीप कुमार सिंह 2019 लोकसभा चुनाव में दूसरी बार अररिया के सांसद बने हैं। पहली बार 2009 में वह भाजपा के टिकट पर सांसद बने थे। लेकिन, 2014 में वरिष्ठ राजद नेता मोहम्मद तस्लीमुद्दीन ने उन्हें चुनाव में हरा दिया था। 2017 में तस्लीमुद्दीन के निधन के बाद हुए उपचुनाव में उनके बेटे सरफ़राज़ आलम ने प्रदीप को मात दे दी थी, लेकिन प्रदीप वापस 2019 में चुनाव जीतने में सफल हुए।
सांसद अपने अंगरक्षक व समर्थकों के साथ अपने निजी वाहन पर अररिया से पलासी के पिपरा बिजवार पहुंचे। सांसद को रतवा नदी पार कर छपनिया गांव पहुंचना था, लेकिन नदी पर कोई पुल ही नहीं था।
नदी के किनारे पर नाव खड़ी थी, लेकिन उस समय नाविक भी मौजूद नहीं था। सांसद के पहुंचने की खबर पाकर नाविक नदी किनारे पहुंचा और तमाम लोगों को नाव से नदी पार कराने लगा। इसी बीच, सांसद ने खुद पतवार थाम ली और नदी को पार करने की जुगत में लग गए।
मौके पर सांसद ने अपने बचपन के दिनों को याद किया और कहा कि उनका भी बचपन नदी के किनारे गांव में बीता है, जहां बचपन में खेल खेल में नाव को पतवार की मदद से खेने का काम करते थे। लेकिन, समय के परिवर्तन के साथ अब गांव की वह अल्हड़ता और बचपना छिन सा गया है।
साथ ही सांसद ने नाविकों की ओर से किए जाने वाले शारीरिक परिश्रम को जाना और कहा कि, नदी के तट वाले नाविकों पर नाव को सुरक्षित पार कराने की बड़ी जिम्मेदारी होती है। उनके दिल में ऐसे काम करने वाले नाविकों के प्रति गहरी आस्था है।
उसके बाद सांसद ने इसका वीडियो अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर शेर किया। वीडियो में वह नाव चलाते नजर आ रहे हैं, और साथ में गाना भी बज रहा है- “ओ मांझी रे …” वीडियो के नीचे कैप्शन लिखा गया है- “नदी के उस पार, करना होगा जन-जन का उद्धार, मुझे तो उस पार जाना है, मुझे तो उस पार जाना है।”
लेकिन, अफसोस की बात यह है कि नदी पर पुल न होने से उस गांव में असल में क्या हालत है, इसका कहीं कोई जिक्र नहीं है।
स्थानीय निवासी विजय कुमार बताते हैं कि नदी को पार करने के लिए नाव के सिवाय और कोई रास्ता नहीं है। यहां रतवा नदी की 4 धाराएं बहती हैं, जिनके ऊपर 4 पुल बनाए जाने की आवश्यकता है। यहां बरसात के समय में बहुत ज्यादा पानी हो जाता है और आम दिनों में जब पानी थोड़ा कम होता है, तो नदी के ऊपर चचरी पुल बना दिया जाता है, जोकि स्थानीय ग्रामीण खुद ही बांस से बनाते हैं।
विजय ने आगे बताया कि इस नदी पर चार पुल बनाने के लिए सांसद से तीन बार मांग की गई है, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ। लेकिन, इस बार सांसद ने पुल बनवाने का आश्वासन दिया है।
वहीं एक और स्थानीय निवासी संतोष का कहना है कि बरसात के समय में यहां जब बहुत ज्यादा पानी भर जाता है, तो आने जाने में काफी दिक्कतें होती हैं। नदी की एक तरफ से दूसरी तरफ जाना मुश्किल हो जाता है। यहां के लोग शादी ब्याह भी सीजन देखकर करते हैं। गांव में बारात आने में परेशानी होती है इसलिए बरसात के दिनों में यहां शादी नहीं हो सकती है।
आगे संतोष बताते हैं कि उनके गांव में कुछ लोगों के पास बाइक है, लेकिन बरसात के दिनों में बाइक नदी के इस पार ही किसी के यहां लगाकर नाव से वे घर जाते हैं। बरसात के दिनों में वे अपनी बाइक को अपने घर भी नहीं ले जा सकते हैं। प्रशासन द्वारा यहां एक नाव लगवाई गई है, जिसके माध्यम से ही सब लोग नदी पार करते हैं।
बता दें कि सीमांचल का बाढ़ से पुराना नाता है। हर साल सैलाब आने की वजह से यहां की नदियां उफान पर रहती हैं। सीमांचल के कई इलाके ऐसे हैं, जहां नदी पर अब तक पुल नहीं बना है और लोग अपनी रोजाना की जिंदगी को नाव के सहारे धकेलने के लिए मजबूर हैं।
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