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गाइसल रेल हादसा: जब श्मशान में तब्दील हो गया था रेलवे स्टेशन

फास्ट ट्रैक अदालत के न्यायाधीश अजयेंद्रनाथ भट्टाचार्य ने गाइसल रेल दुर्घटना में 6 रेलवे कर्मचारियों को दोषी ठहराते हुए 2 साल की सजा सुनाई। उनमें से प्रत्येक दोषी को 11,500 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया।

syed jaffer imam Reported By Syed Jaffer Imam |
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“उस समय हज़ार का नोट चलता था। लाश निकालने वाले एक आदमी के हाथ में एक हज़ार रुपये के कई नोट थे। सभी नोट खून में रंगे हुए थे। वहां बचाव तो नहीं था, लूट ज्यादा थी।”

1999 में हुए गाइसल रेल हादसे के बाद घटनास्थल पर पहुंचने वाले एक वालंटियर एहसान अली ने उस घटना को याद करते हुए ‘मैं मीडिया’ से कहा।

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किशनगंज के कुतुबगंज इलाके की रहने वाली जहाँआरा बताती हैं कि दुर्घटना वाली सुबह करीब 4 बजे उन्होंने बहुत तेज़ आवाज़ सुनी। वह कहती हैं, “जैसे बम नहीं फूटता है, वैसी ही आवाज़ थी…. बहुत तेज आवाज…उस रात हल्की बारिश भी हो रही थी। हम लोगों को समझ में नहीं आया कि आवाज़ क्या थी। सुबह खबर आई कि बहुत बड़ा एक्सीडेंट हो गया है। हम लोग सदर अस्पताल गए थे देखने, बहुत लोग ज़ख़्मी थे, कुछ लाश भी रखा हुआ था अस्पताल के बाहर, पेड़ के पास।”


क्या हुआ था उस रात

2 अगस्त 1999 की देर रात 1.30 बजे किशनगंज रेलवे स्टेशन से अवध असम एक्सप्रेस ट्रेन निकलती है। ट्रेन में बैठे करीब 1200 यात्रियों में से अधिकतर गहरी नींद में सो रहे थे। दिल्ली से गुवाहाटी की तरफ़ बढ़ रही इस ट्रेन को ‘अप लाइन’ पर होना था, लेकिन किशनगंज स्टेशन से कुछ मीटर पहले इंटरलॉकिंग में गड़बड़ी के कारण ट्रेन ‘अप लाइन’ की जगह ‘डाउन लाइन’ पर चली जाती है।

उन दिनों किशनगंज स्टेशन के आसपास के रेल ट्रैकों पर पैनल इंटरलॉकिंग का काम चल रहा था इसलिए ट्रैक सेट करने का काम किसी कर्मचारी को ही करना था। उस रात इंटरलॉकिंग नहीं की गई, जिससे ट्रेन गलत लाइन पर चलने लगी। किशनगंज के केबिन कर्मचारी ने ट्रेन को अप लाइन पर लगाया, लेकिन वास्तव में ट्रेन डाउन लाइन में सेट थी क्योंकि ट्रैक को किसी कर्मचारी ने मैनुअली अप लाइन में सेट नहीं किया था।

किशनगंज के केबिन कर्मचारी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि ट्रेन गुजरने के बाद भी ट्रैक लाइन की बत्ती हरी जल रही थी, जबकि ट्रेन के गुजरने के बाद बत्ती खुद ब खुद लाल हो जाती है।

किशनगंज के सहायक स्टेशन मास्टर (ASM) ने भी इसपर ध्यान नहीं दिया और पांजीपाड़ा वाले केबिन में खबर भेज दी कि 5610 Up अवध असम एक्सप्रेस नियमित तौर पर अप लाइन ट्रैक पर चल रही है। ट्रेन थोड़ी देर बाद पांजीपाड़ा से गुज़रती है और यह सूचना गाइसल केबिन तक गई। अब तक यह गलती न तो ASM ने पकड़ी और न केबिन कर्मचारी और अवध असम के ड्राइवर आर रॉय को एहसास हुआ कि ट्रेन गलत लाइन पर चल रही है।

कहा जाता है कि उस रात काफी तेज़ बारिश हो रही थी जिससे ट्रेन चालक अपने ट्रैक पर लगे सिग्नल को समझ नहीं पाया और दूसरे ट्रैक के दूर वाले हरे सिग्नल को देख कर आगे बढ़ता रहा। गाइसल स्टेशन के केबिन में वाई मरांडी नामक एक कर्मचारी की तैनाती थी। केबिन में अंधेरा था। इससे पहले कि केबिन कर्मचारी को कुछ समझ आता ब्रह्मपुत्र और अवध असम ट्रेन एक दूसरे के आमने सामने आ चुके थे।

पश्चिम बंगाल के गाइसल स्टेशन के पास रात 1 बजकर 45 मिनट पर करीब 80 किलोमीटर की रफ़्तार से चल रही दोनों ट्रेनें एक दूसरे से टकरा जाती हैं। ट्रेनों के टकराने से आस पास बहुत तेज़ आवाज़ सुनी जाती है और अवध असम का इंजन कई मीटर ऊपर हवा में उड़ता है। ट्रेन के डब्बे एक दूसरे के ऊपर चढ़ जाते हैं। आस-पड़ोस के लोगों ने बताया था कि हादसे के बाद कई लाशें पास की झाड़ियों में जाकर गिरी थीं।

उस समय रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष रहे एमके अग्रवाल ने कहा था कि अवध असम के लोको पायलट (ट्रेन चालक) आर रॉय ने गलत रेल ट्रैक पर 7 से 14 किलोमीटर तक ट्रेन चलाई थी। उन्होंने यह भी कहा था कि नियमानुसार ड्राइवर को ट्रेन रोक कर, नीचे उतर कर अपने फ्लैशिंग टॉर्च से सामने से आने वाली ट्रेन को सावधान कर देना चाहिए था, मगर ड्राइवर ने ऐसा कुछ नहीं किया। सामने लगी लाल सिग्नल बत्ती को भी न देख पाने को एक रहस्य के तौर पर देखा जाता रहा है।

इस भयावह दुर्घटना के बाद आस-पास के गांवों के लोगों ने डिब्बों में फंसे यात्रियों को निकालना शुरू किया। हालांकि तेज़ बारिश और ट्रेन के डब्बों में आग लगने से यह काम बेहद कठिन हो गया था। ट्रेनों के टकराने के कुछ ही मिनटों बाद एक डब्बे में धमाका हुआ जिससे मरने वाले यात्री और घायलों की संख्या और अधिक बढ़ गई। हमने इस हादसे के बारे में जिन जिन लोगों से बात की, उन सब ने 2 अगस्त की सुबह करीब 3 – 4 बजे के बीच एक तेज़ धमाके की आवाज़ सुनने का दावा किया।

ब्रह्मपुत्र मेल दिल्ली की तरफ जा रही थी जिसमें सेना के कई जवान थे। वहीं, अवध असम एक्सप्रेस में भी असम जाने वाले जवान बैठे थे। ऐसा अनुमान लगाया गया था कि दुर्घटना के बाद जो धमाके हुए थे, वह सेना के आरडीएक्स थे जो सेना के सामान के साथ रखे थे लेकिन भारतीय सेना ने अपने आधिकारिक बयान में आरडीएक्स वाली बात से इनकार किया था।

चश्मदीदों ने बताया, कितना भयावह था हादसा

किशनगंज के मोहम्मद अली बताते हैं कि उनके चाचा छपरा से अवध असम एक्सप्रेस में बैठे थे। दुर्घटना की अगली सुबह उन्हें खबर मिली और वह गाइसल के लिए निकल गए।

घटनास्थल पर पहुँच कर उन्होंने लाशों की लंबी कतारें देखीं। “जब टकराव हुआ था, तो आवाज़ यहाँ तक आई थी। हम अपनी आँख से देखे कि जैसे आलू का बोरा लाद के भेजा जाता है वैसे ही लाश को ले जाया जा रहा था। हर जगह लाश ही लाश थी। हम लाश की गिनती नहीं बता सकते हैं, लेकिन हज़ार से तो ऊपर ही होगा। जिस हॉल में जा रहे थे, वहां लाश ही लाश थी, हम बहुत खोजे मगर मेरे चाचा नहीं मिले,” मोहम्मद अली ने कहा।

वह आगे बताते हैं कि अवध असम में सफर कर रहे उनके चाचा घटनास्थल पर नहीं मिले, जिसके बाद उनके घर वालों ने उन्हें मृत मान लिया था। 15 दिन बाद उनका फ़ोन आया। वह ज़िंदा बच गए थे। मोहम्मद अली के अनुसार उनके चाचा दुर्घटना के बाद अपनी बोगी से निकल कर भागते चले गए और घटनास्थल से कई किलोमीटर दूर निकल आये थे।

मोहम्मद अली ने हादसे में घायल एक अन्य परिवार का वाकया सुनाया। दर्द से चीखती भीड़ में उन्हें एक घायल महिला मिली जिनके पति की मृत्यु हो गई थी। “एक डॉक्टर साहब थे अविनाश कुमार, एक्सीडेंट में उनका इंतेक़ाल हो गया। उनकी पत्नी बच गई थीं और उनके दो बच्चे थे। उन्हें हम गाड़ी कर के उनके घर मुजफ्फरपुर ले गए थे, गाड़ी का भाड़ा वही लोग दिए थे। मैडम रो रोकर बेहाल थीं। बोली कि हम अकेले कैसे जाएंगे तो हम सदर अस्पताल से परमिट बनाकर डॉक्टर साहब की लाश को मुजफ्फरपुर ले गए थे,” अली ने बताया।

”घटनास्थल पर लूट खसोट मची थी”

मोहम्मद अली की मानें, तो उन्होंने और उनके साथियों ने घटनास्थल पर एक रिलीफ कैंप लगाया था, जहां वे घायलों की मरहम पट्टी कर रहे थे। उनके साथियों में से एक एहसान अली ने बताया कि दुर्घटना में बहुत भारी तबाही हुई थी। किशनगंज के मोती बाग में रहने वाले एहसान अली कहते हैं, “जिस समय हम लोग पहुंचे थे, उस समय मामला ऐसा था कि किसी का सर किसा का धड़… कौन कहाँ पड़ा हुआ था कुछ समझ नहीं आ रहा था। वहां सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं थी, वहां तो लूट खसोट थी। सुबह तीन साढ़े तीन बजे ठीक नमाज़ से पहले एक ऐसी आवाज़ आई थी कि लोग सोचे कि क्या हो गया है।”

“हम लोग अगले दिन गए थे। गाइसल के प्लेटफार्म पर लाश ही लाश थी। लाशों को ऐसे उठा उठा कर फेंका जा रहा था जैसे मानों सरकार चाहती थी कि यह सब छुप जाए। वहां बहुत सारे न्यूज़ वाले कैमरा लेकर आए थे। बहुत खतरनाक नज़ारा था। दोनों ट्रेनों के जनरल डिब्बों में बहुत लोग थे। जिस डिब्बे में 72 सीट होती है उसमें 150, 200 आदमी थे। एक डिब्बा भी सलामत नहीं था। इंजन का हिस्सा बहुत दूर दूर तक बिखरा हुआ था। 17 डिब्बे के लोग मारे गए थे और सरकार कहती है कि 300 लोग मरे थे,” घटनास्थल पर गए एहसान अली ने ‘मैं मीडिया’ से कहा।

बताया जाता है कि दुर्घटना चूंकि देर रात हुई थी इसलिए घायलों को मदद पहुँचते पहुँचते कई घंटे लग गए। अगली सुबह इस्लामपुर से लाश निकालने के लिए कुछ पेशेवरों को बुलाया गया, लेकिन घायलों की संख्या इतनी अधिक थी कि लाशों को खुले आसमान में ही घंटों रखा गया।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 287 यात्रियों ने अपनी जान गंवाई थी जबकि 400 से अधिक लोग घायल हुए थे। ऐसा माना जाता है कि मरने वालों की संख्या सरकारी आंकड़ों से लगभग 3 गुना अधिक थी। जनरल डिब्बों में ऐसे कई यात्री थे, जो बिना टिकट के सफर कर रहे थे इसलिए उनके नाम मरने वालों की सूची में नहीं थे।

सीबीआई जांच में क्या पाया गया

इस ट्रेन हादसे के पीछे कई मानव त्रुटियां पाई गईं।

रेलवे सुरक्षा विभाग के चीफ कमिश्नर डॉ एम मानी ने इस दुर्घटना की जांच की और बताया कि किशनगंज के एक रेल फाटक के गेटमैन ने स्टेशन के अधिकारियों को ट्रेन के गलत ट्रैक पर चलने की खबर दी थी, लेकिन उन्होंने इस सूचना को गलत जानकारी मानते हुए रद्द कर दिया और तेज़ बारिश वाली उस रात अधिकारी ने खबर की पड़ताल करना ज़रूरी नहीं समझा।

यही नहीं, अवध असम एक्सप्रेस किशनगंज से निकल कर पांजीपाड़ा स्टेशन पर लगभग 10 मिनट तक खड़ी रही, लेकिन तेज़ बारिश होने के कारण किसी कर्मचारी ने बाहर जाकर गलत लाइन पर खड़ी ट्रेन को नहीं देखा।

बाद में इस दुर्घटना की जांच सीबीआई को सौंपी गई थी, यह पता लगाने के लिए कि कहीं यह दुर्घटना आतंकवादी साज़िश तो नहीं थी।

सीबीआई ने जुलाई 2001 में चार्जशीट दाखिल की थी। सीबीआई ने जांच में गाइसल रेल दुर्घटना के आतंकवादी हमला होने की संभावनाओं को ख़ारिज कर दिया था। इसी चार्जशीट के आधार पर इस्लामपुर फास्ट ट्रैक अदालत ने 38 गवाहों के बयान सुनने के बाद दुर्घटना के 8 साल बाद 22 जून 2007 को अपना फैसला सुनाया।

6 रेलवे कर्मचारी दोषी पाए गए

फास्ट ट्रैक अदालत के न्यायाधीश अजयेंद्रनाथ भट्टाचार्य ने गाइसल रेल दुर्घटना में 6 रेलवे कर्मचारियों को दोषी ठहराते हुए 2 साल की सजा सुनाई। उनमें से प्रत्येक दोषी को 11,500 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया। दोषियों में किशनगंज रेलवे स्टेशन के सहायक स्टेशन मास्टर एस पी चंद्रा, पांजीपाड़ा रेलवे स्टेशन के सहायक स्टेशन मास्टर राम नारायण सिंह, किशनगंज (पूर्व) के केबिन मैन मोहम्मद अलाउद्दीन, पांजीपाड़ा (पूर्व) के केबिन मैन गुलाब चंद्र गुप्ता, अवध असम एक्सप्रेस ट्रेन के गार्ड विद्यानाथ चौधरी, किशनगंज के स्विचमैन जगदीश राम और पांजीपाड़ा के केबिन मैन सुभाष सिंह शामिल थे।

सजा होने के एक महीने के बाद कोर्ट ने उन्हें बेल भी दे दी थी ताकि वे चाहें तो इस फैसले के विरुद्ध हाई कोर्ट में अपना आवेदन दे सकें। इस्लामपुर फास्ट ट्रैक अदालत के इस फैसले को कई वकीलों ने ‘निराशाजनक’ बताया था।

दुर्घटना के बाद सरकार ने क्या कदम उठाए

भारतीय इतिहास की सबसे भयावह रेल दुर्घटनाओं में से एक गाइसल रेल हादसे के बाद रेल मंत्रालय पर बहुत सवाल उठे थे। उस समय रेल मंत्री रहे नीतीश कुमार हादसे वाले दिन दोपहर लगभग 3 बजे दिल्ली से गाइसल पहुंचे थे। नीतीश कुमार को दुर्घटनास्थल पर मौजूद लोगों के आक्रोश का सामना करना पड़ा था। गाइसल से दिल्ली पहुँच कर उन्होंने रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। नीतीश ने इस रेल दुर्घटना को ‘आपराधिक लापरवाही’ करार देते हुए पूर्ण रूप से रेलवे की विफलता बताई थी।

इस हादसे के बाद केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे के पांच वरिष्ठ अधिकारियों को निलंबित कर दिया था और पूर्वोत्तर रेलवे के प्रधान प्रबंधक राजेंद्र नाथ को छुट्टी पर भेज दिया गया। निलंबित किए गए अधिकारियों में मुख्य परिचालन प्रबंधक एसबी भट्टाचार्य, मुख्य सुरक्षा अधिकारी आरके ठांगा, डिविजनल रेलवे प्रबंधक (कटिहार) एसएन मुखर्जी, वरिष्ठ डिविजनल परिचालन प्रबंधक (कटिहार) वीआर लेनिन और डिविजनल सुरक्षा अधिकारी (कटिहार) एम. हरिराम राव शामिल थे।

रेल हादसे के बाद मौके पर रेल मंत्री के अलावा कई राजनीतिक दलों के नेता पहुंचे थे। इनमें पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी और सीमांचल के कद्दावर नेता मोहम्मद तस्लीमुद्दीन शमिल थे। इस घटना पर इंडिया टुडे के एक पत्रकार अविरूक सेन ने लिखा था, “अजीब बात है! इतनी बड़ी संख्या में मृत्यु होने के बावजूद, गाइसल के ऊपर कोई गिद्ध नहीं उड़ रहे थे। आने वाले केवल कुछ राजनेता थे, जिनमें मरे हुए से लाभ उठाने की उत्सुकता थी।”

जांच कमेटी ने रेलवे विभाग को ये सुझाव दिए

सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश राय की अध्यक्षता वाली जांच टीम ने गाइसल रेल हादसे पर अपनी रिपोर्ट में इस हादसे में 35 रेलवे कर्मचारियों की भूमिका बताई थी। इन में 10 कर्मचारियों को हादसे के लिए दोषी बताया गया था। जांच कमेटी ने रेलवे विभाग को भारतीय सेना की तर्ज़ पर कर्मचारियों की तैनाती करने का सुझाव दिया था जिसमें एक समय सीमा के बाद कर्मचारियों को बेहतर सुविधा वाले स्टेशनों पर भेजने का प्रावधान हो।

जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में एक अहम बात यह लिखी थी कि रेलवे मंत्रालय पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे को कम प्राथमिकता देता है। गाइसल में जो हुआ, वह उस क्षेत्र में कई अधिकारी और कर्मचारियों की लापरवाही का परिणाम था।

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सैयद जाफ़र इमाम किशनगंज से तालुक़ रखते हैं। इन्होंने हिमालयन यूनिवर्सिटी से जन संचार एवं पत्रकारिता में ग्रैजूएशन करने के बाद जामिया मिलिया इस्लामिया से हिंदी पत्रकारिता (पीजी) की पढ़ाई की। 'मैं मीडिया' के लिए सीमांचल के खेल-कूद और ऐतिहासिक इतिवृत्त पर खबरें लिख रहे हैं। इससे पहले इन्होंने Opoyi, Scribblers India, Swantree Foundation, Public Vichar जैसे संस्थानों में काम किया है। इनकी पुस्तक "A Panic Attack on The Subway" जुलाई 2021 में प्रकाशित हुई थी। यह जाफ़र के तखल्लूस के साथ 'हिंदुस्तानी' भाषा में ग़ज़ल कहते हैं और समय मिलने पर इंटरनेट पर शॉर्ट फिल्में बनाना पसंद करते हैं।

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