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Raiganj Lok Sabha Seat: कब, कौन, कैसे जीता चुनाव?

रायगंज लोकसभा सीट के इतिहास में अब तक दो बार ही ऐसा हुआ है कि यह सीट कांग्रेस या CPM के अलावा किसी और की हुई है। पहली बार 1977 के लोकसभा चुनाव में यह सीट जनता पार्टी की झोली में गई थी। तब, मोहम्मद हिदायत अली यहां से सांसद निर्वाचित हुए जो इस सीट से पहले मुस्लिम सांसद थे। उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में यह सीट भाजपा की झोली में चली गई।

Tanzil Asif is founder and CEO of Main Media Reported By Tanzil Asif |
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पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर जिले की सात विधानसभा सीटों को मिलाकर एक लोकसभा सीट है। इस लोकसभा सीट को रायगंज नाम दिया गया है। रायगंज शहर उत्तर दिनाजपुर का जिला मुख्यालय है। कभी कांग्रेस या माकपा यानी CPM की सुनिश्चित सीट रही रायगंज लोकसभा सीट को 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जीत लिया। उत्तर दिनाजपुर ज़िले का चोपड़ा विधानसभा सीट दार्जिलिंग लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है।

इस लोकसभा सीट के इतिहास में अब तक दो बार ही ऐसा हुआ है कि यह सीट कांग्रेस या CPM के अलावा किसी और की हुई है। पहली बार 1977 के लोकसभा चुनाव में यह सीट जनता पार्टी की झोली में गई थी। तब, मोहम्मद हिदायत अली यहां से सांसद निर्वाचित हुए जो इस सीट से पहले मुस्लिम सांसद थे। उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में यह सीट भाजपा की झोली में चली गई।

भाजपा की देवश्री चौधरी इस सीट से वर्तमान सांसद हैं।‌ ‌2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तर बंगाल में भाजपा की लहर थी। उस समय यहां की कुल आठ में से एकमात्र मालदा दक्षिण लोकसभा सीट को छोड़ कर बाकी सातों लोकसभा सीटें भाजपा की ही झोली में गईं।


रायगंज का इतिहास

आगे बढ़ने से पहले एक नज़र रायगंज के इतिहास पर डालते हैं। रायगंज उत्तर दिनाजपुर जिले का मुख्यालय है। उत्तर दिनाजपुर जिला 1 अप्रैल, 1992 को तत्कालीन पश्चिमी दिनाजपुर जिले के विभाजन के बाद अस्तित्व में आया। इस जिले में दो सब-डिवीजन- रायगंज और इस्लामपुर शामिल हैं। यह जिला क्षेत्र ब्रिटिश भारत में बंगाल प्रोविंस के एक बहुत बड़े जिले दिनाजपुर का हिस्सा था।

18वीं सदी के उत्तरार्द्ध और 19वीं सदी की शुरुआत तक यह जिला क्षेत्र संन्यासी-फकीर विद्रोह का गढ़ रहा था। 1905 में दिनाजपुर जिले के लोगों ने बंगाल विभाजन का भी घोर विरोध किया। उन्होंने करों का भुगतान करने से इनकार करके, हड़तालें करके और आंदोलन शुरू करके स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया।

वर्ष 1947 में, दिनाजपुर जिला भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजित हो गया। पूर्वी दिनाजपुर पाकिस्तान के पूर्वी हिस्से पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में चला गया और पश्चिमी दिनाजपुर भारत में रहा। इस पश्चिम दिनाजपुर का भी आजाद भारत में 1 अप्रैल, 1992 को दक्षिण दिनाजपुर और उत्तर दिनाजपुर के रूप में विभाजन हुआ। इस प्रकार उत्तर दिनाजपुर जिला अस्तित्व में आया और रायगंज इसका मुख्यालय‌ हुआ।

उत्तर दिनाजपुर जिले का क्षेत्रफल 3142 वर्ग किलोमीटर है।‌ इसके पूर्व में बांग्लादेश, पश्चिम में बिहार, उत्तर में दार्जिलिंग व जलपाईगुड़ी जिला और दक्षिण में मालदा जिला अवस्थित है। उत्तर दिनाजपुर जिला क्षेत्र व इसका मुख्यालय रायगंज राष्ट्रीय राजमार्गों, राज्य राजमार्गों और रेलवे के माध्यम से राज्य के बाकी हिस्सों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। एनएच-31 और एनएच-34 जिले के मध्य से होकर गुजरता है।

कुलिक, नागर, महानंदा आदि इस क्षेत्र से हो कर बहने वाली प्रमुख नदियां हैं। उत्तर दिनाजपुर जिले में बहुत उपजाऊ मिट्टी पाई जाती है। जलोढ़ जमाव के कारण मिट्टी प्रकृति में बहुत समृद्ध है जो धान, जूट, मक्का और गन्ना आदि उगाने में मदद करती है। वर्ष 1951 से रायगंज एक नगर पालिका‌ शहर है और उत्तर बंगाल के प्रमुख व्यापार केंद्रों में से एक है।

अब बहुत बदल चुका राजनीतिक समीकरण

उत्तर बंगाल में राजनीतिक समीकरण अब बहुत बदल गए हैं। इससे रायगंज लोकसभा क्षेत्र भी अछूता नहीं है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव-2021 में रायगंज विधानसभा सीट से भाजपा विधायक निर्वाचित हुए उद्योगपति कृष्ण कल्लाणी कुछ ही महीने में भाजपा छोड़ कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए।

गत जुलाई महीने में हुए पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव-2023 में राज्य भर व उत्तर बंगाल की भांति रायगंज जिले में भी भाजपा पिछड़ गई और तृणमूल कांग्रेस की ही एकतरफा जीत हुई।

इधर, इसी सितंबर-2023 में हुए उपचुनाव में भी भाजपा के हाथों से निकल कर जलपाईगुड़ी जिले की धूपगुड़ी विधानसभा सीट पुनः तृणमूल कांग्रेस की झोली में चली गई‌और तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवार कालेज प्रोफेसर निर्मल चंद्र राय विधायक निर्वाचित हुए। उन्होंने भाजपा उम्मीदवार तापसी राय को 4309 वोटों से हराया। यह सीट भाजपा विधायक रहे विष्णुपद राय के हृदय रोग से निधन के चलते 26 जुलाई को खाली हो गई थी। इस सीट पर भाजपा ने उपचुनाव में तापसी राय को अपना उम्मीदवार बनाया था जो कि 2021 में जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी हमले में शहीद हुए सीआरपीएफ जवान की विधवा हैं। मगर, भाजपा का यह राजनीतिक दांव चल नहीं पाया।

एक के बाद एक भाजपा को मात

इससे पूर्व भी उत्तर बंगाल की अघोषित राजधानी सिलीगुड़ी शहर के सिलीगुड़ी नगर निगम चुनाव और ग्रामीण क्षेत्र के सिलीगुड़ी महकमा परिषद चुनाव में भी भाजपा की दाल नहीं गली। तृणमूल कांग्रेस की एकतरफा जीत हुई। गौरतलब है कि‌ इतिहास में पहली बार 2022 के चुनाव में ही तृणमूल कांग्रेस ने सिलीगुड़ी नगर निगम और सिलीगुड़ी महकमा परिषद दोनों पर जीत हासिल की। जबकि, उसके ठीक एक साल पहले 2021 के विधानसभा चुनाव में सिलीगुड़ी महकमा‌ की तीनों विधानसभा सीट भाजपा ने ही जीती थी। मगर, 2022 में सिलीगुड़ी नगर निगम और सिलीगुड़ी महकमा परिषद में हार के साथ ही साथ दार्जिलिंग पहाड़ पर भी भाजपा की हार हुई।

उस वर्ष हुए दार्जिलिंग नगर पालिका चुनाव और दार्जिलिंग पहाड़ी क्षेत्र के गोरखालैंड टेरिटोरियल एडमिनिस्ट्रेशन (जीटीए) चुनाव में कमल नहीं खिल पाया। दार्जिलिंग नगर पालिका पर पहाड़ की एकदम नई उभरी, अजय एडवर्ड की ‘हाम्रो पार्टी’ की जीत हुई। वहीं, तृणमूल कांग्रेस समर्थित अनित थापा के भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा ने जीटीए पर कब्जा जमाया। इन तमाम चुनाव परिणामों को देखते हुए यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि कुछ ही महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनाव 2024 में उत्तर बंगाल व इसकी रायगंज लोकसभा सीट पर भाजपा की मुश्किलें कम नहीं होने वाली हैं।

मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं रायगंज के सांसद

वर्ष 1972 से 1977 तक पश्चिम बंगाल राज्य के बहुत ही प्रभावशाली मुख्यमंत्री रहे सिद्धार्थ शंकर राय भी रायगंज लोकसभा सीट से सांसद रहे थे। कांग्रेस के दिग्गज नेता सिद्धार्थ शंकर राय वर्ष 1971 में इस सीट से सांसद निर्वाचित हुए थे। मगर, अगले ही साल वर्ष 1972 में हुए पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की भारी जीत के बाद वह राज्य के मुख्यमंत्री बन गए।

मुख्यमंत्री की पत्नी भी हुईं रायगंज की सांसद

कांग्रेसी दिग्गज सिद्धार्थ शंकर राय के मुख्यमंत्री बन जाने की वजह से रायगंज लोकसभा सीट खाली हो गई। क्योंकि, वही इस सीट से सांसद थे। ‌ऐसे में 1972 में ही उपचुनाव हुआ और उस उपचुनाव में सिद्धार्थ शंकर राय की पत्नी माया राय रायगंज की सांसद निर्वाचित हुईं। उसके बाद वर्ष 1977 में जब देश भर में कांग्रेस विरोधी लहर पैदा हो गई और जनता पार्टी उत्थान पर चली आई, तब, रायगंज लोकसभा सीट से जनता पार्टी के मोहम्मद हयात अली ने जीत हासिल की व यहां के पहले मुस्लिम सांसद हुए।‌

ज्यादा समय कांग्रेस व माकपा की ही रही रायगंज लोकसभा सीट

वर्ष 1980, 1984 व 1989‌ में लगातार तीन बार विजयी होकर कांग्रेस के गुलाम यजदानी ने रायगंज लोकसभा सीट से सांसद निर्वाचित होने की हैट्रिक लगाई। उनके बाद मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के सुब्रत मुखर्जी ने भी वर्ष 1991, 1996 और 1998 में लगातार तीन बार जीत कर यहां से सांसद होने की हैट्रिक लगाई। मगर, सुब्रत मुखर्जी का तीन बार में मात्र सात साल का कार्यकाल ही‌ रहा जबकि गुलाम यजदानी 15 सालों तक सांसद रमे के कार्यकाल की तुलना में आधा ही रहा।

इन दोनों के अलावा और दो नेता ऐसे हुए जो यहां से लगातार दो बार जीते। वर्ष 1962 और 1967 में कांग्रेस के चपाला कांता भट्टाचार्जी व वर्ष 1999 और 2004 में कांग्रेस के ही प्रियरंजन दासमुंशी रायगंज लोकसभा सीट से सांसद निर्वाचित हुए।

वर्ष 2008 में ब्रेन स्ट्रोक के चलते प्रियरंजन दासमुंशी लंबे कोमा में चले गए। तब, वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में उनकी पत्नी दीपा दासमुंशी रायगंज लोकसभा सीट से सांसद निर्वाचित हुईं। मगर, 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें यह सीट माकपा के मोहम्मद सलीम के हाथों गंवानी पड़ी।‌ माकपा के दिग्गज नेता मोहम्मद सलीम भी मात्र एक बार ही इस सीट से सांसद रह पाए और 2019 के लोकसभा चुनाव में वह भाजपा की देवश्री चौधरी के हाथों यह सीट हार बैठे। इतिहास में पहली बार 2019 में ही ऐसा हुआ कि रायगंज लोकसभा सीट भाजपा की झोली में गई।

अनोखी है रायगंज लोकसभा सीट, दिए कई दिग्गज

उत्तर बंगाल में यूं तो आठ लोकसभा सीटें हैं लेकिन उन सब में रायगंज लोकसभा सीट सबसे अनोखी है। क्योंकि, इस सीट ने राजनीति के कई रत्न पैदा किए। इस सीट से सांसद रहे सिद्धार्थ शंकर राय पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बने। वह भी बहुत ही धाकड़ मुख्यमंत्री। उन्हें अपने जमाने में पश्चिम बंगाल राज्य में कांग्रेस का सबसे बड़ा संकटमोचक माना जाता था।

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रायगंज से सांसद रहते सिद्धार्थ शंकर राय केंद्रीय शिक्षा मंत्री भी रहे। उसके बाद पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री, पंजाब के राज्यपाल और संयुक्त राज्य अमेरिका में भारतीय राजदूत भी बने।

मालदा क्षेत्र के सर्वेसर्वा रहे अबू बरकत अताउर गनी खान चौधरी के बाद उत्तर बंगाल से यदि कोई दूसरा नेता उभरा जिसने पश्चिम बंगाल राज्य की राजनीति और देश की राजनीति में उत्तर बंगाल का सिक्का जमाया तो वह रायगंज लोकसभा सीट से ही सांसद हुए प्रियरंजन दासमुंशी रहे।

प्रियरंजन दासमुंशी न सिर्फ कांग्रेस में बड़े पदों पर रहे बल्कि केंद्र सरकार में भी संसदीय मामलों के मंत्री और सूचना व प्रसारण मंत्री बने। कांग्रेस पार्टी से लेकर सरकार तक में उनकी अपनी दखल थी।

गनी खान चौधरी और प्रियरंजन दासमुंशी के प्रयासों व प्रभावों से ही राज्य व देश की राजनीति व सत्ता में उत्तर बंगाल का प्रभाव स्थापित हुआ। ‌वरना, उनसे पहले देश की राजनीति व सत्ता तो दूर राज्य की राजनीति व सत्ता में भी उत्तर बंगाल का कोई खास महत्व नहीं रहता था। इसी सीट से सांसद रहे एक और नेता मोहम्मद सलीम इन दिनों माकपा की पश्चिम बंगाल प्रदेश कमेटी के सचिव हैं।

कांग्रेस व माकपा, फिर भाजपा, अब कौन ?

वर्ष 1962 में गठित रायगंज लोकसभा सीट पर, एक बार की जनता पार्टी की जीत को छोड़ दें तो, अब तक कांग्रेस व माकपा का ही प्रभुत्व रहा है। इधर, बीते 2019‌ के लोकसभा चुनाव में यहां भाजपा की जीत हुई।

पिछले तीन लोकसभा चुनावों की बात करें तो रायगंज में स्थिति कुछ ऐसी रही है।

2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की दीपा दासमुंशी ने माकपा यानी CPM के बिरेश्वर लाहिड़ी को 1,05,203 वोटों से हराया। इस चुनाव में कांग्रेस को 4,51,776 वोट, CPM को 3,46,573 वोट और भाजपा को मात्र 37,645 वोट प्राप्त हुए थे। यहाँ ध्यान रहे 2009 के लोकसभा चुनाव में TMC, कांग्रेस के नेतृत्व वाली UPA गठबंधन का हिस्सा थी, जबकि CPM ने गैर भाजपाई और गैर कांग्रेसी दलों का अपना थर्ड फ्रंट बनाया था।

वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव में CPM नेता मोहम्मद सलीम ने कांग्रेस की दीपा दासमुंशी को मात्र 1634 वोटों से हराया था। इस चुनाव में CPM को 3,17,515 और कांग्रेस को 3,15,881 वोट मिले थे। वहीं भाजपा को 2,03,131 वोट मिले थे और 1,92,698 वोटों के साथ तृणमूल कांग्रेस चौथे स्थान पर रही थी।

2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की देवश्री चौधरी ने यहाँ तृणमूल कांग्रेस के कन्हैयालाल अग्रवाल को करीब 60,000 वोटों से हराया था। इस चुनाव में भाजपा को 5,11,652 और तृणमूल कांग्रेस को 4,51,078 वोट मिले, वहीं CPM के मोहम्मद सलीम को 1,82,035 और कांग्रेस की दीपा दासमुंशी को मात्र 83,662 वोट मिले।

मौजूदा स्थिति की बात करें तो रायगंज लोकसभा सीट पर पिछले एक दशक में तृणमूल कांग्रेस का दबदबा बढ़ता गया। फिलहाल रायगंज लोकसभा क्षेत्र अंतर्गत आने वाली सभी सात विधानसभा सीटें रायगंज, इस्लामपुर, ग्वालपोखर, चाकुलिया, करणदिघी, हेमताबाद व कालियागंज पर तृणमूल कांग्रेस का ही कब्ज़ा है। वर्ष 2021 में हुए पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में रायगंज और कालियागंज विधानसभा सीट से भाजपा की जीत हुई थी, लेकिन दोनों ही विधायक कृष्ण कल्लाणी और सौमेन रॉय भाजपा को त्याग कर तृणमूल कांग्रेस के हो गए।

वर्तमान समय में उत्तर बंगाल की अन्य तमाम‌ जगहों की भांति ही उत्तर दिनाजपुर जिला केंद्रित रायगंज लोकसभा क्षेत्र में भी तृणमूल कांग्रेस का प्रभुत्व सबसे ज्यादा नजर आ रहा है। मगर, इधर, देश में भाजपा विरोधी तमाम विपक्षी दलों के ‘इंडिया’ गठबंधन बन जाने और उसमें कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस व CPM के शामिल हो जाने पर रायगंज लोकसभा की सियासी सूरत भी बदल सकती है।

हालांकि, फिलहाल अभी ये तय होना बाकी है की क्या TMC पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और CPM के गठबंधन में चुनाव लड़ेगी?

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