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सीमांचल के बच्चे पढ़ने में क्यों हैं कमजोर?

पीरामल ग्रुप व प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन की तरफ से जारी एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (असर-2022) में प्राथमिक शिक्षा को लेकर प्रकाशित आंकड़े सीमांचल के जिलों में बच्चों की शिक्षा को लेकर निराशाजनक तस्वीर पेश करते हैं।

Reported By Umesh Kumar Ray |
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12 साल का असगर (परिवर्तित नाम) किशनगंज जिले के कोचाधामन के एक सरकारी स्कूल में छठवीं कक्षा में पढ़ता है, लेकिन वह दूसरी कक्षा की किताबें भी ठीक से नहीं पढ़ पाता है। यहां तक कि उसे जोड़, घटाव के सवालों को हल करने में भी दिक्कत आती है।

“घर पर कोई पढ़ाने वाला नहीं है और खेती बारी के वक्त स्कूल नागा कर खेतों में काम करने भी जाना पड़ता है,” असगर पढ़ाई में कमजोर होने की वजह बताता है।

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असगर अकेला नहीं है, जो पढ़ने में काफी कमजोर है। उसके जैसे सीमांचल के हजारों बच्चे अपनी कक्षा के नीचे के दर्जे की किताबें नहीं पढ़ पाते हैं और न ही मामूली सवाल हल कर सकते हैं।


पीरामल ग्रुप व प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन की तरफ से जारी एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (असर-2022) में प्राथमिक शिक्षा को लेकर प्रकाशित आंकड़े सीमांचल के जिलों में बच्चों की शिक्षा को लेकर निराशाजनक तस्वीर पेश करते हैं।

पीरामल ग्रुप व प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन की यह सत्रहवीं रिपोर्ट है और बिहार को लेकर इसमें जो आंकड़े दिए गए हैं, वे बिहार के 1140 गांवों के 22796 घरों के 3 से 16 साल की उम्र के 52959 बच्चों में किये गये सर्वेक्षण पर आधारित हैं। प्राथमिक शिक्षा को लेकर इसे सबसे बड़ा सर्वेक्षण माना जाता है।

असर-2022 बताती है कि पूर्णिया डिविजन (जिसमें सीमांचल के चार जिले किशनगंज, अररिया, कटिहार व पूर्णिया आते हैं) में तीसरी से पांचवीं कक्षा में पढ़ रहे बच्चों में से 22.8 प्रतिशत बच्चे ही कक्षा दो के स्तर के पाठ पढ़ सकते हैं जबकि महज 27.4 प्रतिशत बच्चे ही घटाव के सवाल हल कर सकते हैं। राज्य स्तर पर ये आंकड़े क्रमशः 30.5 प्रतिशत और 41.4 प्रतिशत हैं।

Annual Status of Education Report (Rural) 2022 by Pratham NGO - 3

इसी तरह कक्षा छह से कक्षा आठ तक के बच्चों में से महज 54.2 प्रतिशत बच्चे कक्षा दो के स्तर के पाठ पढ़ सकते हैं और सिर्फ 40.1 प्रतिशत बच्चे ही भाग के सवाल हल कर सकते हैं। वहीं, राज्य के स्तर पर देखें, तो ये आंकड़े क्रमशः 61.3 प्रतिशत और 52.4 प्रतिशत हैं।

9 डिविजनों में पूर्णिया की स्थिति सबसे बुरी

अगर, इन आंकड़ों की तुलना बिहार के अन्य 8 डिविजनों – भागलपुर, पटना, दरभंगा, कोसी, मगध, सारण, मुंगेर और तिरहुत से करने पर पता चलता है कि पूर्णिया डिविजन में स्थिति सबसे खराब है। मसलन कि कक्षा तीन से कक्षा पांच तक के बच्चों द्वारा कक्षा दो स्तर के पाठ पढ़ सकने के मामले में पूर्णिया सबसे पीछे है। सबसे अच्छी स्थिति में पटना डिविजन (39.2 प्रतिशत) है और दूसरे स्थान पर सारण डिविजन (37.8 प्रतिशत) आता है। वहीं, इन कक्षाओं के बच्चों के घटाव के सवाल हल कर पाने के मामले में सभी डिविजनों के आंकड़े पूर्णिया के मुकाबले 11 से 23 प्रतिशत तक अधिक हैं।

कुछ ऐसी ही स्थिति छठवीं से आठवीं कक्षा के छात्रों के मामले में भी है।

साल 2018 के आंकड़े से साल 2022 के आंकड़ों की तुलना करें, तो ताजा आंकड़ों में गिरावट ही आई है, जिससे पता चलता है कि स्थिति में सुधार आना अभी बाकी है।

हालांकि, दोनों वर्षों के आंकड़ों में सिर्फ एक मामले में स्थिति कुछ ठीक नजर आती है। साल 2018 में छठवीं से आठवीं कक्षा के 37.2 प्रतिशत बच्चे ही भाग के सवाल हल कर सकते थे, जो साल 2022 में बढ़कर 40.1 प्रतिशत हो गया है।

हालांकि, नामांकन के मामले में सीमांचल की स्थिति काफी अच्छी है। साल 2018 में 6 साल से 14 साल के 79.6 प्रतिशत बच्चे सरकारी स्कूलों में नामांकित थे, जो साल 2022 में बढ़कर 86.4 प्रतिशत पर पहुंच गया, जो लगभग 7 प्रतिशत अधिक है। वहीं, साल 2018 में 6 साल से 14 साल के 6.9 प्रतिशत बच्चे सरकारी स्कूल में नामांकित नहीं थे, लेकिन साल 2022 में 3.5 प्रतिशत बच्चे नामांकित नहीं हैं।

कोचाधामन के एक सरकारी स्कूल में शिक्षक अरुण ठाकुर बच्चों के पढ़ाई में कमजोर होने की बात स्वीकार करते हैं और इसकी वजह भी बताते हैं।

“यहां के स्कूलों में पढ़ने वाले ज्यादातर बच्चे नियमित स्कूल नहीं आते हैं क्योंकि वे गरीब हैं और उनके अभिभावक पढ़े लिखे नहीं हैं। दरअसल जब अभिभावक खेतों में या अन्य जगहों पर काम करने जाते हैं, तो इनके बच्चे भी इनके साथ चले जाते हैं और कई दिनों तक स्कूल नहीं आते हैं,” उन्होंने कहा।

“यहां तो अक्सर देखता हूं कि जिन बच्चों को होमवर्क दिया जाता है, वे अगले दिन स्कूल नहीं आते हैं क्योंकि होमवर्क उन्होंने किया नहीं होता है। ऐसे में बच्चे पढ़ने में कमजोर तो होंगे ही,” वह कहते हैं।

सीमांचल के जिलों में साक्षरता दर भी अन्य जिलों के मुकाबले कम है। साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, किशनगंज की साक्षरता दर 55.46 प्रतिशत, अररिया की साक्षरता दर 53.53 प्रतिशत, कटिहार की साक्षरता दर 52.24 प्रतिशत और पूर्णिया की साक्षरता दर महज 51.08 प्रतिशत है, जो बिहार के किसी भी जिले के मुकाबले कम है। बिहार के सभी 38 जिलों की साक्षरता दर की तुलना की जाए, तो सीमांचल के चारों जिले उन 10 जिलों में आते हैं, जहां साक्षरता दर कम है।

अरुण ठाकुर बताते हैं कि बहुत सारे बच्चे अपनी कक्षा की पूरी किताब और स्कूल ड्रेस भी नहीं खरीदते हैं क्योंकि इन बच्चों के अभिभावक के खाते में किताब का पैसा सरकार भेजती है और अभिभावक गरीबी के चलते उस पैसे का इस्तेमाल अन्य जरूरतों को पूरा करने में कर देते हैं।

गौरतलब हो कि नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट में भी बताया था कि देश में सबसे ज्यादा गरीबी सीमांचल के जिलों में है। नीति आयोग की रिपोर्ट में कहा गया था कि किशनगंज की 64.75 प्रतिशत आबादी बहुआयामी गरीब है। पूर्णिया की आबादी का 63.29 प्रतिशत और कटिहार की आबादी का 62.38 प्रतिशत हिस्सा बहुआयामी गरीब है।

लेकिन बिहार के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की भी भारी किल्लत है, इसका असर भी बच्चों की शिक्षा पर पड़ रहा है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार के प्राथमिक स्कूलों में 60 छात्रों पर एक शिक्षक और मध्य विद्यालयों में 70 छात्रों पर एक शिक्षक है जबकि शिक्षा का अधिकार अधिनियम के मुताबिक, प्राथमिक विद्यालयों में 30 छात्रों पर एक शिक्षक और माध्यमिक स्कूलों में 35 छात्रों पर एक शिक्षक होना चाहिए।

शिक्षकों का कहना है कि अव्वल तो स्कूलों में शिक्षक कम हैं और दूसरी तरफ शिक्षकों पर गैर-शैक्षणिक कार्यों का बोझ डाल दिया गया है, इस वजह से शिक्षक बच्चों को पढ़ा नहीं पाते हैं।

किशनगंज के एक शिक्षक ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, “शिक्षकों से स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने के अलावा अन्य कार्य भी कराए जाते हैं। मसलन कि अभी जातीय जनगणना चल रही है, तो यह कार्य शिक्षकों के जिम्मे आ गया है। अब इंटर व मैट्रिक की परीक्षा में शिक्षकों की ड्यूटी परीक्षा केंद्रों पर लग रही है। इसके अलावा बिहार सरकार के अन्य कार्यक्रमों में भी शिक्षकों को लगाया जाता है। ऐसे में शिक्षक समग्रता से बच्चों को कैसे पढ़ा सकते हैं।”

बच्चों में शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन के स्टेट हेड मो. नैयर आलम तीन स्तरों पर काम करने की जरूरत पर बल देते हैं। उन्होंने कहा, “स्कूल के स्तर पर शिक्षकों को बच्चों पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। समुदाय के स्तर पर भी काम करने की आवश्यकता है। इसमें समाज के पढ़े लिखे तबके को चाहिए कि वे अभिभावकों को पढ़ाई लिखाई को लेकर जागरूक करें। वहीं, सरकार के स्तर पर बेहतर नीति बनानी होगी और उसे प्रभावी तरीके से लागू करना होगा।”

वह कहते हैं, “हमलोग बिहार के ग्रामीण क्षेत्र में एक ट्रेंड देख रहे हैं कि अभिभावक बच्चों के ट्यूशन पर खासा ध्यान दे रहे हैं। ट्यूशन स्टेटस सिंबल भी बनता जा रहा है। अभिभावकों को लगता है कि ट्यूशन में भेज देने से बच्चों की पढ़ने की क्षमता बढ़ेगी और इसलिए वे बच्चों को स्कूल भेजने पर ज्यादा जोर नहीं देते हैं।”

“इसमें बदलाव करने की जरूरत है। अभिभावकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके बच्चे नियमित स्कूल जाएं। साथ ही ट्यूशन पर निर्भरता की जगह स्कूल के शिक्षकों पर इस बात का दबाव बनाया जाए कि वे बच्चों को बढ़िया से पढ़ाएं,” उन्होंने कहा।

बेटियां नहीं, बेटों की शिक्षा को लेकर अभिभावक गंभीर

असर-2022 के मुताबिक, बिहार के 6 से 14 आयु वर्ग के 98 प्रतिशत बच्चे स्कूलों में नामांकित हैं। इनमें से 82.2 प्रतिशत बच्चे सरकारी स्कूलों में और 15 प्रतिशत निजी स्कूलों में नामांकित हैं। साल 2006 में इस आयु वर्ग के 72.2 प्रतिशत बच्चे ही सरकारी स्कूलों में नमांकित थे।

रिपोर्ट के आंकड़ों यह भी पता चलता है कि अभिभावकों की नजर में लड़कियों के मुकाबले लड़कों को शिक्षा देना ज्यादा जरूरी है। आंकड़ों के मुताबिक, सरकारी स्कूलों में लड़कियों का नामांकन लड़कों से अधिक है जबकि निजी स्कूलों में लड़कियों का नामांकन लड़कों से कम है। यानी अभिभावक बेटों की पढ़ाई पर अतिरिक्त खर्च कर रहे हैं और बेटियों को सरकारी स्कूलों में भेज रहे हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, 7 से 10 साल के 78.1 प्रतिशत लड़के सरकारी स्कूल में और 19.4 प्रतिशत निजी स्कूल में नामांकित हैं। वहीं, इस उम्रसीमा की 83.7 प्रतिशत लड़कियां सरकारी स्कूल में और 13.8 प्रतिशत लड़कियां निजी स्कूलों में नामांकित हैं।

इसी तरह, 11 से 14 साल की उम्र के 80.9 प्रतिशत लड़के सरकारी स्कूलों और 17 प्रतिशत लड़के निजी स्कूलों में नामांकित हैं जबकि इसी उम्रसीमा की 86.6 प्रतिशत लड़कियां सरकारी स्कूलों व 10.8 प्रतिशत लड़कियां निजी स्कूलों में नामांकित हैं। 15 से 16 साल की उम्र के लड़के-लड़कियों की बात करें, तो सरकारी स्कूलों में लड़कियों का नामांकन लड़कों के मुकाबले 1.7 प्रतिशत अधिक है, लेकिन निजी स्कूलों में उनका नामांकन 2.3 प्रतिशत कम है।

Kids in a classroom

आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि 15 से 16 साल की लड़कियों में स्कूल नहीं जाने की प्रवृति इसी उम्र के लड़कों की तुलना में ज्यादा है, जो चिंता का विषय है।

असर-2022 की रिपोर्ट में बताया गया है कि इस उम्र सीमा के 6.2 प्रतिशत लड़के स्कूल नहीं जा रहे जबकि इसी उम्र सीमा की 6.7 प्रतिशत लड़कियां स्कूल नहीं जा रहीं। रिपोर्ट में स्कूल नहीं जाने से मतलब, उन बच्चों से है जिनका या तो नामांकन नहीं हुआ या फिर जो ड्राप आउट हैं।

राज्य के स्तर पर कैसी है शिक्षा

बच्चों में पढ़ाई के स्तर की बात करें, तो राज्य के स्तर पर पिछले साल के मुकाबले इस साल बेहद सुधार नजर आता है। मगर पूर्व के सालों के मुकाबले आंकड़ा बहुत अच्छा नहीं है। मसलन कि साल 2012 में सरकारी स्कूलों के कक्षा तीन के 25.1 प्रतिशत बच्चे घटाव या उससे अधिक कर सकते थे, लेकिन साल 2022 में यह प्रतिशत 21.2 रहा। हालांकि, साल 2018 के आंकड़े के मुकाबले थोड़ा ज्यादा है। साल 2018 में यह आंकड़ा 18 प्रतिशत था।

इसी तरह, पांचवीं कक्षा के 30 प्रतिशत बच्चे भाग कर सकते हैं, जो साल 2018 के मुकाबले लगभग 6 प्रतिशत अधिक है। साल 2018 में पांचवी कक्षा के 24.1 प्रतिशत बच्चे ही भाग कर सकते थे। वहीं, आठवीं कक्षा के 58 प्रतिशत बच्चे भाग कर सकते हैं, जो साल 2018 की तुलना में 3 प्रतिशत अधिक है।

कई सूचकांकों में अन्य राज्यों के मुकाबले बिहार अच्छी स्थिति में है। मसलन कि 6 से 14 साल की उम्र के बच्चों के सरकारी स्कूलों में नामांकन, पांचवी और आठवीं कक्षा के छात्रों द्वारा भाग के सवाल हल करने के मामले में बिहार बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्यों में शामिल है।

हालांकि, पढ़ने के मामले में लड़के और लड़कियों की तुलना करें, तो लड़कों के मुकाबले लड़कियों का प्रदर्शन बेहतर रहा है। असर-2022 रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2018 में आठवीं कक्षा के 66 प्रतिशत बच्चे भाग कर सकते थे, जो साल 2022 में घटकर 66.1 प्रतिशत हो गया जबकि साल 2018 में आठवीं कक्षा की 49.8 प्रतिशत लड़कियां भाग कर सकती थीं, जो साल 2022 में करीब 7 प्रतिशत बढ़कर 57 प्रतिशत पर पहुंच गया।

वहीं, पांचवी कक्षा के छात्र छात्राओं की बात की जाए, तो साल 2018 में इस कक्षा के 34.7 प्रतिशत बच्चे भाग कर सकते थे। साल 2022 में इसमें सिर्फ 2.7 प्रतिशत का इजाफा हुआ जबकि लड़कियों के मामले में यह इजाफा 7.7 प्रतिशत का है।

रिपोर्ट में सामने आए आंकड़ों के आधार पर प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन ने अपने निष्कर्ष में प्राथमिक और उच्च प्राथमिक कक्षाओं में बच्चों का भाषा व गणित में बुनियादी कौशल को मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि यही नींव है जिस पर देश की शिक्षा की बुनियाद टिकी हुई है। फाउंडेशन ने यह भी कहा कि कक्षा-3 से ऊपर की कक्षाओं के बच्चों के लिए वर्तमान में कैचअप कक्षाओं पर फोकस करने की जरूरत है।

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Umesh Kumar Ray started journalism from Kolkata and later came to Patna via Delhi. He received a fellowship from National Foundation for India in 2019 to study the effects of climate change in the Sundarbans. He has bylines in Down To Earth, Newslaundry, The Wire, The Quint, Caravan, Newsclick, Outlook Magazine, Gaon Connection, Madhyamam, BOOMLive, India Spend, EPW etc.

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