24 जुलाई को होने वाले राज्यसभा चुनाव के लिए तृणमूल कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया है। सोमवार को तृणमूल कांग्रेस ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर राज्यसभा की 6 सीटों के लिए उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की। इस सूची में डेरेक ओ’ब्रायन, डोला सेन, सुखेंदु शेखर, साकेत गोखले, प्रकाश चिक बड़ाईक और समीरुल इस्लाम के नाम शामिल हैं।
डेरेक ओ’ब्रायन, डोला सेन और सुखेंदु शेखर को पार्टी ने दोबारा नॉमिनेट किया है, जबकि दार्जिलिंग की शांता छेत्री और असम की सुष्मिता देव का टिकट काट कर पार्टी ने नए चेहरों को मौका दिया है।
इन्हीं नए चेहरों में एक युवा समाजसेवी समीरुल इस्लाम हैं। समीरुल इस्लाम की कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं है। राजनेता से अधिक उनकी छवि समाजसेवी वाली है। राज्यसभा सीट के लिए मनोनीत होने से पहले उन्होंने कोई भी चुनाव नहीं लड़ा है।
पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिला अंतर्गत रामपुरहाट नगर पालिका क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले समीरुल इस्लाम एक सांस्कृतिक संगठन ‘बांग्ला संस्कृति मंच’ के अध्यक्ष हैं। उनका संगठन बांग्ला संस्कृति मंच कई सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित करता रहा है।
इस्लाम के फेसबुक प्रोफाइल में मौजूद जानकारी के अनुसार, उन्होंने कोलकाता यूनिवर्सिटी और IIT Delhi से पढ़ाई की है। समीरुल ने खेती विज्ञान में पीएचडी की है और वह पेशे से सहायक प्रोफेसर हैं। जानकारों का कहना है कि 2016 में हुए धुलागढ़ सांप्रदायिक हिंसा में समीरुल ने एक शान्ति मार्च की अगुवाई की थी।
समीरुल ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में कहा कि वह टीमएमसी के इस फैसले से बेहद खुश हैं। उन्होंने आगे कहा कि यह उनके लिए बड़े सम्मान की बात है और अब उनके कंधों पर ज़िम्मेदारी और बढ़ गई है। राज्यसभा सीट के नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो गई है। समीरुल ने यह भी कहा कि पार्टी से उनकी बातचीत हुई थी जिसके बाद तृणमूल कांग्रेस ने उनके नाम का ऐलान किया।
राज्यसभा का सफर
कोलकाता स्थित एक बांग्ला पत्रिका के संपादक ज़ैदुल हक ने ‘मैं मीडिया’ से बताया कि लॉकडाउन के दिनों में समीरुल इस्लाम ने प्रवासी मजदूरों को उनके घर वापस लाने का अभियान चलाया था, जिससे इलाके में उनकी पहचान बनी। इसके अलावा अतीत में विदेश में फंसे बंगाली मजदूरों को वापस बुलाने में भी उनकी भूमिका रही है।
ज़ैदुल हक के अनुसार, समीरुल इस्लाम की छवि एक ऐसे सेक्युलर समाजसेवी की है जो हिंदू, मुसलमान, आदिवासी सब के लिए काम करता है। उन्होंने यह भी बताया कि बांग्ला संस्कृति मंच अक्सर आदिवासी समुदाय के लिए अभियान चलाता रहता है।
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नाराज़ वोटरों को खुश करने का प्रयास?
समीरुल, बीरभूम जिले के रामपुरहाट के रहने वाले हैं। इसी वर्ष 21 मार्च को रामपुरहाट के निकट बोगतुइ गाँव में हमलावरों ने पेट्रोल बम फ़ेंक कर तृणमूल कांग्रेस के स्थानीय नेता भादू शेख सहित आठ लोगों की हत्या कर दी थी। मरने वालों में बच्चे और महिलाएं भी शामिल थे। इस मामले में तृणमूल कांग्रेस के भी एक नेता का नाम आरोपियों की सूची में शामिल था।
पश्चिम बंगाल के राजनीतिक मामलों के जानकार नुरुल्लाह जावेद ने ‘मैं मीडिया’ से बताया कि टीएमसी का समीरुल हक़ को राज्यसभा सीट के लिए नामजद करना एक सोची समझी रणनीति का नतीजा है। अपने दलील में वह कहते हैं कि 4 महीने पहले हुए रामपुरहाट हत्याकांड के बाद इलाके के लोगों में टीएमसी को लेकर नाराज़गी काफी बढ़ गई थी। टीएमसी को सबसे अधिक मुस्लिम समुदाय का ग़ुस्सा झेलना पड़ रहा था। ऐसे में समीरुल हक़ को राज्यसभा चुनाव के लिए मनोनीत करना मुस्लिम समुदाय को खुश करने का एक प्रयास हो सकता है।
उन्होंने आगे कहा कि तृणमूल ऐसे व्यक्ति का नाम देना चाहती थी जिसका कोई बड़ा राजनीतिक कद न हो। नुरुल्लाह टीएमसी के इस फैसले को खानापूर्ति बताते हैं।
“बीरभूम के मुस्लिम वोटरों में टीएमसी को लेकर बहुत नाराज़गी है, इसलिए वहाँ के एक स्थानीय व्यक्ति को उठाया है। सियासी पार्टियों का एक यह भी मकसद होता कि ऐसे व्यक्ति का नाम दिया जाए जिससे खानापूरी भी कर लें और उनका कोई तजुर्बा भी न हो। रामपुरहाट के लोगों की प्रतिक्रिया मैं देख रहा हूँ, वहां के लोग भी ठीक से समीरुल इस्लाम को नहीं जानते हैं। सोशल मीडिया पर रामपुरहाट के कई मुस्लिम लिख रहे हैं कि उन्हें पता भी नहीं था कि समीरुल इस्लाम उनके इलाके के रहने वाले हैं,” नुरुल्लाह कहते हैं।
“मैं वहाँ (रामपुरहाट) गया था जब घटना हुई थी। मुस्लिमों में तृणमुल को लेकर बड़ी नाराज़गी थी। वहां के जो बड़े नेता हैं उनको (राज्यसभा सीट की उम्मीदवारी) न देकर समीरुल इस्लाम को दिया गया है। रामपुरहाट में 40-45 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है। समीरुल ने 5-6 महीने पहले टीएमसी जॉइन किया है। टीएमसी सांसद शताब्दी रॉय को भी लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा है। ऐसे में टीएमसी को मुस्लिम वोट समेटना है,” वह कहते हैं।
हालांकि सांसद शताब्दी रॉय की जीत की संभावनाओं पर नुरुल्लाह कहते हैं, “अगर कांग्रेस और टीएमसी में वोट का बंटवारा होता है तो उनका हारना लगभग तय है।”
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