बीते दिनों खत्म हुए संसद के शीतकालीन सत्र में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कुछ ऐसी बातें कह दीं, जिसने किशनगंज समेत सीमांचल के अन्य जिलों के उन लोगों को निराश कर दिया, जो बेहतर उच्चशिक्षा की उम्मीद लगाए हुए थे।
धर्मेंद्र प्रधान ने किशनगंज सांसद डॉ जावेद आजाद के एक सवाल के जवाब में कहा, “जिन्होंने भी साल 2010 में एएमयू किशनगंज के बारे में सपना दिखाया, अधूरा सपना दिखाया।”
इसके बाद उन्होंने सीधे तौर पर कहा कि एएमयू के किशनगंज कैम्पस (AMU Kishanganj Campus) के बारे में कोई प्रोसेस्ड प्रक्रिया नहीं मिलती है। “साल 2010 में सीमांचल में असत्य बात कही गई, बातों को अधूरा रखा गया, आधे मन से करने के कारण आज दिक्कत हो रही है,” उन्होंने कहा। धर्मेंद्र प्रधान ने आगे कहा था कि एएमयू किशनगंज की घोषणा हुई थी, तो इसके साथ साथ एएमयू मुर्शिदाबाद और एएमयू मल्लपुरम की घोषणा हुई थी। दोनों ही जगहों पर एएमयू कैंपस चल रहे हैं।
धर्मेंद्र प्रधान ने उक्त बातें डॉ जावेद आजाद के उस सवाल के जवाब में कही थीं, जिसमें उन्होंने किशनगंज में एएमयू कैंपस खोलने के लिए फंड नहीं मिलने की वजह पूछा था।
शिक्षा मंत्री की बातों का सीधा मतलब था कि तत्कालीन यूपीए सरकार ने नियमों से आगे जाकर किशनगंज में एएमयू कैम्पस खोलने का फैसला लिया। हालांकि, सांसद उन्होंने यह नहीं बताया कि इसके लिए क्या नियम हैं और किशनगंज के मामले में कैसे नियमों को ताक पर रखा गया।
शिक्षा मंत्री के इस वक्तव्य पर कांग्रेस की तरफ से अधीर रंजन चौधरी ने मामूली विरोध दर्ज कराया। लेकिन, कांग्रेस की तरफ से इसको लेकर न तो मजबूती से कोई स्पष्टीकरण दिया गया और न शिक्षा मंत्री की बातों को खारिज किया गया। अलबत्ता, सांसद डॉ जावेद आजाद ने बाद में संसद में अपने वक्तव्य में शिक्षा मंत्री के बयान पर हैरानी जरूर जताई।
एएमयू किशंगनज में एनजीटी का पेंच
सीमांचल में बिहार जिले किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया और अररिया आते हैं।
सीमांचल के चार जिलों को मिलाकर कुल 1.08 करोड़ लोग यहां रहते हैं। इन जिलों में उच्चशिक्षा के लिए कोई बेहतर संस्थान नहीं है। पूर्णिया यूनिवर्सिटी इकलौता सरकारी विश्वविद्यालय है, जिसकी स्थापना भी हाल ही में हुई है, लेकिन बिहार के अन्य विश्वविद्यालयों की तरह यहां भी सेशंस लेट से चल रहे हैं।
उच्चशिक्षा संस्थानों की कमी को देखते हुए ही साल 2008-2009 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने किशनगंज में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) का कैम्पस खोलने की घोषणा की थी।
साल 2011 में इसके लिए 224.02 एकड़ जमीन भी चिन्हित कर ली गई थी और 30 जनवरी क 2014 को तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष और यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी इस कैम्पस का शिलान्यास किया था। इस कैम्पस के निर्माण के लिए उस वक्त केंद्र सरकार ने 136.82 करोड़ रुपए खर्च करने की घोषणा की थी।
उसी साल आम चुनाव हुआ और यूपीए की सरकार चली गई। केंद्र में भाजपा की नेतृत्व वाली सरकार बनी और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने। इसके बाद से ही एएमयू का किशनगंज कैम्पस अलग अलग तरह के पेंचों में फंसता गया। पहले यह दावा किया गया कि जो जमीन यूनिवर्सिटी कैंपस के लिए आवंटित हुई है वह आदिवासियों की है। यह दावा भाजपा नेताओं की तरफ से किया गया था, लेकिन वे इस दावे को मजबूत करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं दे सके और अंततः यह दावा खारिज हो गया। बाद में ‘मैं मीडिया’ के साथ बातचीत में आदिवासियों ने खुद भी कहा था कि यूनिवर्सिटी कैंपस के लिए आवंटित जमीन उनकी नहीं थी और उन्हें रातोंरात बाहर से लाकर बसा दिया गया था।
मोदी सरकार ने 2016 में दिए थे 10 करोड़ रुपए
दिलचस्प बात यह है कि केंद्रीय शिक्षामंत्री धर्मेंद्र प्रधान कह रहे हैं कि नियमों की अनदेखी की गई है, लेकिन उन्हीं के मंत्रालय ने 30 नवम्बर, 2016 को इस कैम्पस के लिए 10 करोड़ रुपए आवंटित किए थे। ऐसे में सवाल यह उठता है कि अगर एएमयू के किशनगंज कैम्पस में नियमों की अनदेखी हुई है, तो फिर केंद्र सरकार ने साल 2016 में कैम्पस के लिए 10 करोड़ रुपए कैसे आवंटित कर दिया।
‘मैं मीडिया’ ने एएमयू किशनगंज कैम्पस को लेकर तमाम दस्तावेजों का अध्ययन किया है। इन दस्तावेजों में कहीं भी इसे नियमों के खिलाफ नहीं बताया गया है। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर दी गई जानकारी में कहा गया है कि राष्ट्रपति से अनुमोदन लेकर ही कैम्पस खोलने की मंजूरी दी गई थी।
पूरे प्रकरण में सिर्फ और सिर्फ एनजीटी का एक आदेश ही पेंच है और यह पेंच लगाने में भी भाजपा व की भूमिका है।
एनजीटी में 2017 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संगठन (आरएसएस) के संगठन वनवासी कल्याण आश्रम से जुड़े रहे मुकेश हेम्ब्रम की तरफ से एएमयू किशनगंज के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर की गई थी जिसमें कहा गया था कि कैम्पस की जमीन महानंदा नदी के किनारे है और यहां कैम्पस के निर्माण से पर्यावरण और परिस्थितिकी को भारी नुकसान पहुंचेगा।
जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए 18 फरवनरी 2019 को एनजीटी ने कैम्पस क्षेत्र में किसी भी तरह के निर्माण पर रोक लगाते हुए कहा था कि जब तक नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा की कार्यवाही खत्म नहीं होती और एनएमसीजी के नियमों के तहत निर्माण की मंजूरी नहीं मिल जाती है, तब तक कैम्पस से संबंधित किसी भी तरह का निर्माण कार्य न किया जाए। एएमयू कैम्पस का पूरा मामला वहीं पर अटका हुआ है। बिहार सरकार की तरफ से कई बार केंद्र सरकार को पत्र लिखकर महानंदा नदी के किनारे बाढ़ रोधी कार्य कराने की इजाजत मांगी गई, लेकिन केंद्र सरकार की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला।
एएमयू किशनगंज को लेकर लम्बे समय तक आंदोलन करने वाले एक स्थानीय व्यक्ति ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, “मुझे नहीं लगता है कि नियम का कोई मामला है। अगर नियम के खिलाफ था, तो केंद्र सरकार ने 10 करोड़ रुपए कैसे दे दिया? एएमयू किशनगंज सेंटर में डायरेक्टर कैसे नियुक्त हैं और सेवाएं दे रहे हैं? अगर नियम की अनदेखी की गई है, तो इस कैम्पस के अधीन बीएड, एमबीए जैसे कोर्स कैसे संचालित हो रहे हैं।”
उन्होंने यह भी कहा कि एएमयू कैम्पस का काम तेजी हो इसके लिए सेंटर के स्थानीय प्रशासन और बिहार सरकार की तरफ से गंभीर प्रयास नहीं किया जा रहा है अन्यथा अब तक काफी काम हो चुका होता।
पिछले दिनों ‘मैं मीडिया’ ने सुप्रीम कोर्ट के वकील अब्दुर राशिद कुरैशी से बात की थी, तो उन्होंने एनजीटी के आदेश के परिप्रेक्ष्य में कहा था कि यह कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। उन्होंने कहा था, “अगर यूनिवर्सिटी प्रशासन नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा को यह भरोसा दिला पाता है कि कैम्पस निर्माण से पर्यावरण और पारिस्थितिकी को कोई नुकसान नहीं होगा, तो निर्माण की इजाजत मिल सकती है।”
लेकिन, पूरे मामले में यूनिवर्सिटी प्रशासन और केंद्र सरकार के रवैये से लगता है कि यूनिवर्सिटी कैम्पस खोलने में किसी भी पक्ष को बहुत दिलचस्पी नहीं है।
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एएमयू के किशनगंज कैंपस के डायरेक्टर हसन इमाम से ‘मैं मीडिया’ ने इस संबंध में बातचीत की तो उन्होंने कहा कि वह इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते हैं। उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी प्रशासन निश्चित तौर पर इस मामले को लेकर केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय से बात करेगा।
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