यह धूल मिट्टी से लथपथ पतला-सा कच्चा रास्ता किसी जंगल या खेत को जाने वाला मार्ग नहीं है। बल्कि यह किशनगंज के पोठिया प्रखंड अंतर्गत पहाड़कट्टा पंचायत के सीताझारी यादव टोला गांव को उसके आसपास के क्षेत्र से जोड़ने वाला इकलौता रास्ता है।
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इस गांव के लोग दशकों से एक पक्की सड़क के लिए तरस रहे हैं। रास्ता कच्चा होने के कारण यहां के किसानों को अपनी फसल बाजार तक ले जाने के लिए उसे सिर पर रखकर मुख्य सड़क तक ले जाना पड़ता है। बीमार होने पर मरीज को अस्पताल ले जाने के लिए भी उसे मुख्य सड़क तक कंधे पर डालकर ले जाया जाता है। इस रास्ते की हालत एकदम खराब होने के कारण, कोई भी चार पहिया वाहन इस गांव के अंदर तक नहीं आता है।
स्थानीय शिव लाल बढ़ई पेशे से मजदूर हैं। वह बताते हैं कि बरसात और बाढ़ के दिनों में यहां बहुत ज्यादा पानी भर जाता है, जिससे बचने का और कोई दूसरा रास्ता नहीं है। वह आगे बताते हैं कि अगर इस गांव में किसी व्यक्ति की मौत हो जाती है तो उसको शमशान घाट तक ले जाने में भी बहुत ज्यादा दिक्कत आती है, इसीलिए मजबूरी में मृत शरीर को नदी में फेंक दिया जाता है।
रास्ता कच्चा होने के साथ साथ इसकी बहुत ही कम चौड़ाई, इस गांव के लोगों के लिए कई हादसों का कारण भी बन चुकी है। पिछले दिनों इसी सड़क पर कुछ मवेशियों ने स्कूल से लौट रहे दो मासूम बच्चों को सींगों से रौंद डाला जिस कारण एक बच्चे की मौत हो गई। ग्रामीणों का कहना है कि अगर रास्ता सही होता तो बच्चे को जल्द ही अस्पताल ले जाकर उसकी जान बचाई जा सकती थी।
दोनों भाई बहन यानी मेरा लकड़ा और लड़की स्कूल से पढ़ कर घर लौट रही थी। सामने से एक आदमी मवेशी खरीद कर ले जा रहा था. रास्ता संकरा था जब बच्चे मवेशी को पार कर रहे थे तो अचानक मवेशी ने मेरे बेटे को अपने सिंग से उठाकर पटक दिया, जिससे मेरे बेटे का गर्दन टूट गया और मौके पर ही मौत हो गई।
सृष्टि कुमारी सीताझारी मिडिल स्कूल में आठवीं कक्षा की छात्रा है। वह बताती है कि उसके गांव के लगभग ढाई सौ के आसपास बच्चे इस स्कूल में जाते हैं। वह बताती है कि बरसात के दिनों में बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं, क्योंकि नदी खुली हुई है और रास्ते में पानी भर जाता है, इसीलिए माता-पिता अपने बच्चों को स्कूल भेजने में डरते हैं।
स्थानीय निवासी देवेंद्र लाल पेशे से किसान हैं। वह बताते हैं कि उनको अपनी फसल खेत से घर तक लाने और बाजार तक ले जाने में काफी परेशानी होती है। पहले सिर के ऊपर बोरियां उठाकर मुख्य सड़क तक ले जाते हैं उसके बाद ही मुख्य सड़क से कोई वाहन का इंतजाम हो पाता है।
जहांगीर आलम दूसरे गांव से यहां अक्सर साइकिल पर कुर्सी बेचने के लिए आते हैं। इस गांव का रास्ता खराब होने की वजह से उनकी एक कुर्सी साइकिल से गिरकर टूट चुकी है। बताते हैं कि दूसरे गांवों में वह एक साथ लगभग 40 कुर्सियां लेकर जाते हैं लेकिन इस गांव में वे केवल 10-15 कुर्सियां ही ला पाते हैं।
यहां के वार्ड सदस्य चेतू लाल बड़ई बताते हैं कि उन्होंने इस रास्ते को बनवाने के लिए एमएलए से लेकर एमपी तक को पत्र लिखा लेकिन आज तक कोई सुनवाई नहीं हुई। यहां तक कि कोई इस रास्ते को देखने तक नहीं आया। वह आगे बताते हैं कि बरसात के समय इस क्षेत्र में पूरा पानी भर जाता है और लोगों को दूसरे पर जाकर स्कूल में रुकना पड़ता है।
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