बिहार के गया स्थित सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ बिहार (CUSB) में “राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020: भूगोल विषय में आदर्श पाठ्यक्रम तथा विषयवस्तु” विषय पर दो दिवसीय कार्यशाला (सेमिनार) सोमवार को संपन्न हुआ।
दो दिनों तक चले कार्यशाला में देश के महत्वपूर्ण विश्वविद्यालय तथा संस्थानों के प्राध्यापकों व निदेशकों द्वारा भूगोल विषय के पाठ्यक्रम को राष्ट्रिय शिक्षा नीति-2020 के अनुरूप बनाने तथा भारतीय प्राचीन शिक्षा व नए अन्वेषण जैसे समायोजन के महत्व पर विस्तार से चर्चा की गई।
कार्यशाला में मुख्य अतिथि के तौर पर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. कोप्पेला नारायण पृथ्वी राजू शरीक हुए। CUSB के कुलपति प्रो. कामेश्वर नाथ सिंह, विद्याभारती उच्च शिक्षा संस्थान के प्रो. नरेंद्र कुमार तनेजा, प्रो. रविकांत (डीन, विभागाध्यक्ष, शिक्षक शिक्षा) तथा प्रो. किरण कुमारी (विभागाध्यक्ष, भूगोल) भी कार्यक्रम में शामिल हुए।
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. के. एन. पी. राजू ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 तथा भूगोल के मह्तव पर कहा कि भारतीय प्राचीन शिक्षा में भूगोल का अर्थ पंचभूत तत्व की पहचान के साथ साथ ज्ञान धर्म, अर्थ, कांड मोक्ष जैसे विचार को युवाओं को बताने की आवश्यकता है।
CUSB के कुलपति प्रो. कामेश्वर नाथ सिंह ने भूगोल और अन्य विषयों के अध्ययन को भारत केंद्रित बनाने के महत्व पर चर्चा की और पाठ्यक्रम में स्वदेशी ज्ञान को एकीकृत करने की आवश्यकता बताई।
उन्होंने राष्ट्रीय भू-स्थानिक नीति-2022 पर भी जोर दिया, जिसका लक्ष्य 2030 तक उच्च-रिज़ॉल्यूशन स्थलाकृतिक सर्वेक्षण और मानचित्रण स्थापित करना है।
कार्यक्रम में विद्याभारती उच्च शिक्षा संस्थान के प्रो. नरेंद्र कुमार तनेजा ने पश्चिमी शिक्षा व्यवस्था और प्राचीन भारतीय शिक्षा व्यवस्था के बुनियादी फर्कों पर विस्तार से बात की।
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प्रो. तनेजा ने कहा कि पश्चिमी शिक्षा मनुष्य को मशीन बनाने, पैसा कमाने तथा जीवनयापन को समाज से दूर ले जाने का कार्य कर रही है, जबकि भारतीय प्राचीन शिक्षा विश्व के महत्वपूर्ण ज्ञान का साधन है, जिसको उच्च शिक्षा से जोड़कर परिवार, समाज तथा राष्ट्र को विकसित किया जा सकता है।
“भारतीय प्राचीन शास्त्रों तथा ग्रंथों में भूमि, जल, पृथ्वी, वायु तथा आकाश के ज्ञान विकसित किया गया और आज हम उसे आधुनिक भूगोल में पढ़ते है। अर्थव वेद में पृथ्वी, कृषि जीव-जंतु तथा स्थानिक की विचार विकसित की गई लेकिन आज के युवा पाश्चत्य शिक्षा की ज्ञान को हासिल कर वैश्विक परिदृश्य में विचाररहित बन रहे हैं,” उन्होंने कहा।
प्रो. तनेजा ने आगे कहा, “वर्तमान समय में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में भारतीय परंपरा को ध्यान में रख कर भूगोल को प्राचीन भारतीय शिक्षा व्यवस्था को पाठ्यक्रम में लागू कर सतत विकास के लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।”
सोमवार को तकनीकी सत्रों में हुई पैनल चर्चा
सोमवार को पहले तकनीकी सत्र में नई दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सोशल साइंस फैकल्टी के डीन प्रो. कौशल कुमार शर्मा ने कहा कि भूगोल का अध्ययन प्राचीन काल से ही भारत में किया जाता रहा है। उन्होंने आगे कहा कि आज मैकाले शिक्षा पद्धति ने लोगों को ग्रामीण समाज से वंचित कर दिया है।
दुसरे तकनीकी सत्र में प्रो. विशाम्बर नाथ शर्मा ने स्थानिक विश्लेषण तथा तकनीक को पुराने प्राचीन तकनीक से जोड़ कर भारतीय ज्ञान को पाठ्यक्रम में शामिल कर वर्तमान की शिक्षा में बदलाव की जरूरत पर बल दिया।
प्रो. नरेंद्र कुमार राणा, प्रो. संजय कुमार सिंह और प्रो. सचिदानंद पांडेय ने प्रतिभागियों का धन्याकर्षित करते हुए इस विषय पर अपने विचार साझा किए।
(CUSB) के जनसंपर्क पदाधिकारी (पीआरओ) मो. मुदस्सीर आलम ने बताया कि यह कार्यशाला नई दिल्ली स्थित भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR) के सहयोग से तथा CUSB व विद्याभारती उच्च शिक्षा संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित की गई।
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