बिहार के किशनगंज जिले में स्कूली बच्चों को उपलब्ध कराने वाले एमडीएम भोजन को फेंक रहे गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) के कर्मियों को लोगों ने रंगे हाथों पकड़ लिया। एनजीओ द्वारा उपलब्ध कराये गये घटिया और बासी भोजन लेने से कई स्कूलों ने जब इन्कार कर दिया तो एनजीओ कर्मी एमडीएम भोजन को फेंक रहे थे।
किशनगंज जिले के बेलवा गांव के समीप भोजन फेंक रहे एनजीओ कर्मियों को पकड़ कर ग्रामीणों ने इसकी सूचना शिक्षा विभाग के अधिकारियों को दी।
ग्रामीण बोले- जानवरों के खाने लायक भी नहीं है भोजन
लोगों द्वारा स्थानीय जनप्रतिनिधियों को भी इसकी सूचना दी गई। मौके पर पहुंचे गाछपाड़ा पंचायत के सरपंच मो. जफर आलम ने बताया कि यह भोजन जानवरों के खाने लायक भी नहीं है। उन्होंने कहा कि ऐसा भोजन उपलब्ध करा कर सरकार बच्चों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ कर रही है।
“जैसा खाना गाड़ियों में लोड है, उसको कुछ स्कूल लिया कुछ स्कूल नहीं लिया। पब्लिक बता रही है कि (एनजीओ कर्मियों ने) बचा हुआ खाना गड्ढे में डाल दिया। जो खाना के साथ हमलोग पकड़े हैं, वो जानवर के खाने लायक भी नहीं है,” उन्होंने कहा।
उन्होंने आगे कहा, “क्यों बिहार सरकार बच्चों और लोगों से विश्वासघात कर रही है और बच्चों को मारने की साजिश रच रही है? जो भी बच्चा खाएगा वो मरेगा ये सब खा करके। ये ऊपर से नीचे सबको पता है। इसके (एनजीओ के) खिलाफ कई शिकायत भी हुई है।”
बच्चों को मिले पौष्टिक आहार, इसलिए एमडीएम योजना हुई शुरू
उल्लेखनीय है कि सरकार द्वारा स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को पौष्टिक आहार प्रदान करने के उद्देश्य से मध्याह्न भोजन (एमडीएम या मिड डे मील) योजना की शुरुआत की गई थी। पहले तो योजना के तहत स्कूलों में ही प्रधानाध्यापक की निगरानी में मध्याह्न भोजन बनाया जाता था।
बाद में, इस योजना के तहत स्कूलों में गैर-सरकारी संगठनों अर्थात एनजीओ के माध्यम से मीनू के अनुसार मिड-डे मील का वितरण किया जाने लगा। सभी जिलों में अलग-अलग गैर सरकारी संगठनों द्वारा मध्याह्न भोजन अपने स्तर पर तैयार कर स्कूलों में पहुंचाया जाता है।
बच्चों के पेट में डाका डालकर अपना पेट भरते एनजीओ
किशनगंज के स्कूलों में जन चेतना जागृति व शैक्षणिक विकास मंच नाम के गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) के माध्यम से मिड-डे मील का वितरण किया जाता है। जब से गैर-सरकारी संगठनों को एमडीएम की जिम्मेदारी मिली है, तब से भोजन की गुणवत्ता पर लगातार सवाल उठ रहे हैं।
जिले के किशनगंज प्रखंड स्थित प्राथमिक विद्यालय छगलिया में तीसरी कक्षा में पढ़ रही छात्रा जीनत परवीन बताती है कि एनजीओ द्वारा उपलब्ध कराये जा रहे भोजन में अक्सर कीड़ा निकल जाता है और हद तो तब हो गई जब एक दिन एनजीओ द्वारा दिये गये अंडे में चूज़ा निकल गया।
“हमलोगों को कभी भी अच्छा खाना नहीं आता है। कभी-कभी तो खाने में पिल्लू (कीड़ा) निकल जाता है और कभी-कभी तो सांप भी आ जाता है। अच्छा खाना नहीं आने की वजह से खिचड़ी आज घुमा दी गयी है,” उन्होंने कहा।
छात्रा ज़ीनत ने आगे कहा, “कल के खाने में सोयाबीन से गाजो (फेन) निकल रहा था। अंडा भी कच्चा देता है। एक दिन अंडे में से चूज़ा निकल गया। ऐसा खाना खाने से बीमार भी हो सकते हैं। जिस वजह से हमलोग स्कूल में न खाकर घर में खाना खाते हैं।”
ग्रामीणों ने कहा कि सरकार एमडीएम योजना की सफलता पर चाहे जितनी पीठ थपथपा ले, लेकिन एमडीएम योजना की जमीनी हकीकत यह है कि एनजीओ स्कूली बच्चों के पेट में डाका डालकर खुद का पेट भरने में जुटे हैं। एनजीओ द्वारा स्कूली बच्चों को कई बार बासी भोजन उपलब्ध कराया जाता है।
“बच्चों की जान के साथ खिलवाड़ हो रहा”
ग्रामीणों ने कहा कि ऐसे भोजन उपलब्ध करवा कर एनजीओ बच्चों की जान के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। अभिभावक साजनी खातून ने ‘मैं मीडिया’ को बताया कि मिड डे मील का घटिया भोजन खाने से बच्चे अक्सर बीमार पड़ जाते हैं, जिस कारण वे बच्चों को स्कूल में खाना नहीं खाने देते हैं।
“आज जो स्कूल में खिचड़ी दी गयी थी, वो बहुत ही घटिया थी। कभी खाने में कीड़ा निकल जाता है तो कभी गंदगी निकल जाती है खाने में आलू की सब्ज़ी में। यह खाना खाएगा बच्चा तो बीमार पड़ेगा ही। इसलिए हमलोग आज की खिचड़ी नहीं लिये और वापस कर दिये,” उन्होंने कहा।
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साजनी ने बताया कि उनके बच्चे अक्सर स्कूलों में दिये जा रहे भोजन की गुणवत्ता के बारे में बोलते हैं और कहते हैं कि खाना बहुत खराब मिलता है। उन्होंने आगे कहा कि इसी वजह से उन लोगों को स्कूल में टिफिन लाकर देना पड़ता है, जिस दिन टिफिन नहीं देते हैं तो बच्चे वापस घर में आकर खाना खाते हैं।
प्राथमिक विद्यालय छगलिया में कार्यरत रसोइया आसमा खातून ने भी एनजीओ द्वारा उपलब्ध कराये जा रहे भोजन की गुणवत्ता पर सवाल उठाये। उन्होंने ‘मैं मीडिया’ को बताया कि एनजीओ द्वारा उपलब्ध कराया जा रहा भोजन खाने लायक नहीं होता है।
उन्होंने कहा कि भोजन के रूप में उपलब्ध कराये जा रहे आलू के चोखे में कीड़ा और आलू का छिलका निकल जाता है, जिस वजह से बच्चे खाने से इंकार कर देते हैं। उन्होंने आगे बताया कि आज का खाना खराब होने की वजह से ही बच्चों ने खाना खाने से इंकार कर दिया, जिस कारण खाना को वापस कर दिया गया।
“खाना खराब होने की वजह से अक्सर बच्चे भूखे रह जाते हैं। किसी-किसी दिन खाना ठीक-ठाक रहता है, तो उसी दिन बच्चा सब लेता है, नहीं तो नहीं लेता है खाना। किसी दिन खाने में चूल (बाल) निकलता है, किसी दिन पिल्लू (कीड़ा) निकलता है, किसी दिन और कुछ निकलता है,” उन्होंने कहा।
स्कूल की रसोइया आसमा ने आगे बताया, “एनजीओ की तरफ से एक जुम्मा (शुक्रवार) को अंडा मिलता है तो तीन जुम्मा (शुक्रवार) गायब। स्कूल में लगभग तीन सौ बच्चे हैं। खाना खराब होने की वजह से 10-20 बच्चे ही हर दिन खाना खाते हैं।”
सवालों से भागते नजर आए एनजीओ संचालक
एमडीएम भोजन सड़क पर फेंकने और बासी भोजन उपलब्ध कराये जाने के सवाल पर जन चेतना जागृति व शैक्षणिक विकास मंच एनजीओ के संचालक हर्ष कुमार कैमरा देखते ही भागते नजर आए। उन्होंने ‘मैं मीडिया’ के सवालों को टाल दिया।
एमडीएम भोजन फेंकने के सवाल पर हर्ष कुमार ने कहा कि कुंडी टूट जाने की वजह से खाना गिर गया था। जब उनसे पूछा गया कि लोगों ने उनके एनजीओ कर्मी को खाना फेंकते हुए रंगे हाथों पकड़ा था, तो उन्होंने कहा कि आप लोग पब्लिक से ही सवाल पूछिये। इसके अलावा हर्ष ने ‘मैं मीडिया’ के किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया।
जांच के बाद होगी कार्रवाई : डीईओ
इस संबंध में किशनगंज के जिला शिक्षा पदाधिकारी सुभाष कुमार गुप्ता ने ‘मैं मीडिया’ को बताया कि एनजीओ द्वारा सड़क किनारे भोजन फेंकने की शिकायत मिली है, जिसकी जांच के आदेश दिये गये हैं। जांच रिपोर्ट मिलते ही आगे की कार्रवाई की जायेगी।
उन्होंने आगे कहा कि स्कूलों में लगातार घटिया भोजन उपलब्ध करवाने की शिकायत मिलने के बाद मध्याह्न भोजन निदेशक को एनजीओ के विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए पत्र लिखा गया है।
“खाना फेंकने का मामला संज्ञान में आया है। हमने एमडीएम के डीपीओ (जिला कार्यक्रम पदाधिकारी) को जांच करने के लिए निर्देश दिया है। जांच प्रतिवेदन प्राप्त होते ही जो हकीकत है और वास्तविकता है, उसी के आधार पर आगे की कार्रवाई की जायेगी,” उन्होंने कहा।
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