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क्या सिंडिकेट की बैठक में निकलेगा पीयू के अफसरों की आपसी कलह का समाधान

पूर्णिया विश्वविद्यालय(पीयू) में सिंडिकेट की आगामी बैठक को लेकर तैयारियाँ तेज हो गई हैं। यह सिंडिकेट की ग्यारहवीं बैठक होगी जो 13 मार्च को प्रस्तावित है।

Novinar Mukesh Reported By Novinar Mukesh |
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Purnea university vice chancellor

पूर्णिया विश्वविद्यालय(पीयू) में सिंडिकेट की आगामी बैठक को लेकर तैयारियाँ तेज हो गई हैं। यह सिंडिकेट की ग्यारहवीं बैठक होगी जो विश्वविद्यालय के प्रशासनिक ब्लॉक में 13 मार्च को प्रस्तावित है। होली और शब-ए-बारात के अवसर पर विश्वविद्यालय मुख्यालय व इसके सभी कॉलेज में बृहस्पतिवार तक अवकाश घोषित है। ऐसे में बीते शनिवार को ही सभी सदस्यों और संबंधित विभागों से बैठक के लिए एजेंडा-बिंदु की माँग कुलसचिव कार्यालय द्वारा की गई है।


सिंडिकेट की यह बैठक अहम होने के आसार हैं। हाल ही में पीयू के अधिकारियों की आपसी कलह की गाँठें विद्वत परिषद की बैठक के बाद खुल गईं। इसका नकारात्मक असर छात्र-हितों व विश्वविद्यालय की साख पर पड़ता देख आनन-फानन में विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा पाँच सदस्यीय समिति गठित कर जाँच का लिहाफ़ ओढ़ाने की कोशिश चल रही है। दरअसल, 26 फरवरी को पीयू कुलसचिव ने एक अधिसूचना जारी कर 10 मई 2022 के बाद से परीक्षा विभाग द्वारा सभी पाठ्यक्रमों के विद्यार्थियों को निर्गत औपबंधिक प्रमाण पत्र (प्रोविजनल) को अमान्य घोषित करते हुए निरस्त कर दिया।

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अपने हस्ताक्षर से जारी अधिसूचना में पीयू कुलसचिव ने स्पष्ट आरोप लगाया, “पीयू में उनके योगदान के बाद से परीक्षा विभाग के द्वारा सभी पाठ्यक्रमों में जितने भी प्रोविजनल उनके हस्ताक्षर से निर्गत हुए, उनमें कुलसचिव की अनुमति नहीं ली गई।”


सार्वजनिक होते ही यह अधिसूचना जंगल में लगी आग की तरह फैली।

हालांकि, महज़ तीन घंटे के अंदर कुलसचिव को अपने हस्ताक्षर से दूसरी अधिसूचना जारी करनी पड़ी। इसमें निहित सूचना की भाषा विशुद्ध ब्यूरोक्रेटिक, कट्टर कार्यालयी व किसी सम्भावित दबाव के कारण कलह व असल कारगुज़ारी से मुँह मोड़ते नज़र आई।

नयी अधिसूचना के अनुसार, “10 मई 2022 से आज तक प्रकाशित परीक्षाफल के आधार पर निर्गत किए गए सभी अंकपत्र पूर्व की भांति वैध” रहने की घोषणा की गई।

कुलसचिव की नई अधिसूचना में की गई घोषणा से तीन बातें उभर कर सामने आईं। पहला चूंकि, पीयू कुलसचिव द्वारा पहले जारी अधिसूचना में कहीं भी अंक-पत्र के वैध-अवैध होने का ज़िक्र नहीं किया गया था, इसलिए महज़ तीन घंटे के अंदर जारी पीयू कुलसचिव की अधिसूचना में अंक-पत्र की वैधता को कलमबद्ध करना एक गैर-जरूरी कदम था। सूत्रों की मानें, तो यह कदम छात्र-छात्राओं के बीच किसी सम्भावित पैनिक के फैलाव को रोकने के लिए जरूरी था। हालांकि, पहली अधिसूचना में सहजता से खुलकर अपना पक्ष रख देने के बाद पीयू कुलसचिव के ऊपर पड़े सम्भावित दबावों का अंदाजा लगाया जा सकता है।

दूसरा, कुलसचिव की अनुमति के बिना उनका हस्ताक्षरयुक्त प्रोविजनल प्रमाण-पत्र निर्गत करना कोई हँसी-खेल है न ही यह दुस्साहस छुपन-छुपाई खेल के दायरे में आता है। अगर कुलसचिव के आरोप सच हैं, तो बिना कुलसचिव की पूर्वानुमति के उनका हस्ताक्षरयुक्त प्रमाणपत्र जारी करना कानून की सुसंगत धाराओं का उल्लंघन है। यह आपराधिक कृत्य के दायरे में आता है।

तीसरा, पीयू कुलसचिव की ओर से जारी नई अधिसूचना का एक अंश है, “उपरोक्त उल्लेखित अवधि में परीक्षा-विभाग, पूर्णिया विश्वविद्यालय, पूर्णिया द्वारा निर्गत किये गए औपबंधिक प्रमाण-पत्र में विहित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है। इस मामले पर विश्वविद्यालय स्तर पर सम्यक जांचोपरान्त विधिसम्मत निर्णय लिया जाएगा।“ यह अंश पीयू का मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी, अकादमिक पदाधिकारी, सिंडिकेट के अध्यक्ष होने के नाते पीयू कुलपति की भूमिका को कटघरे में ला खड़ा करता है। ताज़ा प्रकरण में पीयू कुलपति ने पाँच सदस्यीय जाँच समिति बना दी है, जो इस मामले में जाँच कर रही है। इस पाँच सदस्यीय समिति में अध्यक्ष छात्र कल्याण के अलावा, डॉ. एस. एल वर्मा, उप-कुलसचिव शैक्षणिक व अन्य दो लोग हैं।

गौरतलब है कि बिहार राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम की धारा 29 विश्वविद्यालय के कुलपति को ‘परीक्षा बोर्ड’ का अध्यक्ष बनाने का प्रावधान करती है। अधिनियम की धारा 29 यह प्रावधान भी करती है कि बोर्ड परीक्षा संबंधी मसलों पर विश्वविद्यालय के कुलपति को सलाह दें।

बिहार राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम, 1976 की धारा 10 विश्वविद्यालय के कुलपति को कुछ कर्तव्य और कई शक्तियाँ प्रदान करती हैं जिसके इस्तेमाल से वो विश्वविद्यालयी व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए हस्तक्षेप कर सकते हैं। पर, बीते दस महीनों से चल रहा ‘बिना अनुमति के हस्ताक्षर’ वाला प्रकरण बिहार राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम, 1976 की धारा 10(1) में उल्लेखित कुलपति पद के लिए जरूरी ‘’विश्वविद्यालय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता’’ संबंधी उनकी भूमिका पर सवालिया निशान जरूर खड़ा करता है। पीयू कुलपति अनभिज्ञता की चादर ओढ़ इससे मुँह चुरा सकते हैं न ही वो औपबंधिक प्रमाण पत्र निरस्त करने की अधिसूचना से छात्रों के प्रमाण-पत्रों की वैधता-अवैधता संबंधी उपजे संदेह पर नई अधिसूचना का लेप लगाकर बीमारी के लक्षणों के ईलाज तक खुद को सीमित कर सकते हैं। क्योंकि अगर प्रोविजनल निर्गत करते समय विहित प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया तो प्रमाण पत्र की वैधता किस हद तक प्रभावित होती है, यह बात जाँच में स्पष्ट रूप से सामने आनी चाहिए।

इस बात की जाँच बेहद जरूरी है कि किन परिस्थितियों में औपबंधिक प्रमाण-पत्र निर्गत करने से पहले कुलसचिव के हस्ताक्षर के लिए उनकी अनुमति को दरकिनार कर दिया गया।

बिहार राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम, 1976 की धारा 15(2) कुलसचिव को पीयू की सीनेट, सिंडिकेट और एकेडमिक काउंसिल का सचिव, धारा 15(2)(ए) पीयू के अभिलेखों व कॉमन सील का संरक्षक बनाती है।

वहीं, बिहार राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम, 1976 की धारा 22 सिंडिकेट को पीयू के कार्यकारी परिषद होने की मान्यता देने के साथ धारा 23 सिंडिकेट की शक्तियों और कर्तव्यों का प्रवाधान करती है। धारा 23(बी) सिंडिकेट को कॉमन सील के विनियमन (रेग्युलेट करने की शक्ति देने) का प्रावधान करती है।

सूत्रों की मानें तो छात्रहित और विश्वविद्यालय के सुचारू संचालन से जुड़े ऐसे और भी मुद्दे हैं जिन पर कुछ अधिकारियों के बीच रार की प्रबल सम्भावना है। खैर, यह देखने योग्य है कि क्या सिंडिकेट की बैठक से पहले जाँच कमिटी अपनी रिपोर्ट सौंपेगी? यह भी कि जाँच कमिटी अपनी रिपोर्ट में सच और झूठ को अलग कर पाएगी या विश्विविद्यालय की साख के नाम पर मध्यमार्गी हो जाएगी? दूसरे विकल्प की सम्भावना खत्म करने के लिए जाँच कमिटी को पीयू परीक्षा बोर्ड के अध्यक्ष को जाँच के दायरे में लाकर सवाल पूछना होगा। इस मुद्दे पर साफगोई से अपना पक्ष रखने के लिए पाँच सदस्यीय जाँच दल के दो सदस्यों से सम्पर्क स्थापित करने की कोशिश हुई जिन्होंने जानकारी देने से साफ मना कर दिया।

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मधेपुरा में जन्मे नोविनार मुकेश ने दिल्ली से अपने पत्रकारीय करियर की शुरूआत की। उन्होंने दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर , एडीआर, सेहतज्ञान डॉट कॉम जैसी अनेक प्रकाशन के लिए काम किया। फिलहाल, वकालत के पेशे से जुड़े हैं, पूर्णिया और आस पास के ज़िलों की ख़बरों पर विशेष नज़र रखते हैं।

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