कोसी और सीमांचल के जिलों में स्थित उच्च शिक्षा संस्थानों के कारण भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय (विवि) का अधिकारिता क्षेत्र बड़ा था। वर्ष 2018 में अररिया, किशनगंज, कटिहार और पूर्णिया के विभिन्न कोटि के कॉलेजों को मिलाकर जिस विश्वविद्यालय की स्थापना हुई उसे पूर्णिया विश्वविद्यालय (पीयू) का नाम मिला।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि पूर्णिया विश्वविद्यालय को मॉडल विश्वविद्यालय की तर्ज़ पर विकसित किया जाएगा। अगर बड़े-बुजुर्गों की यह बात सच है कि पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते हैं तो यह कहना अतिशयोक्ति नहीं कि अपने अस्तित्व की शुरुआत से ही पीयू गंभीर वित्तीय विवादों, सत्र की देरी और अनियमितताओं की वजह से संदेह के घेरे में रहा।
वर्ष 2018 में ही विश्वविद्यालय स्तर पर एक विज्ञप्ति जिसकी संख्या पीआरएनयू/पीआर/10 है, 08 सितम्बर को प्रकाशित की गई। इस विज्ञप्ति के जरिये विभिन्न शिक्षकेत्तर पदों के लिए योग्य उम्मीदवारों से ऑनलाइन आवेदन माँगे गए। 114 रिक्त पदों में उप-कुलसचिव, सहायक कुलसचिव, अनुभाग अधिकारी, स्टेनोग्राफर, अपर डिवीज़न क्लर्क, लोअर डिवीजन क्लर्क, सहायक पुस्तकालयाध्यक्ष, ऑडिटर, कुलपति के पी.ए, प्रोग्रामर, सहायक वित्त अधिकारी, ग्रेड वन ऑडिटर, हेड क्लर्क लेखा, हेड क्लर्क, लैब टेक्नीशियन, लैब ब्वॉय, पियोन, रात्रि प्रहरी, मेल, सफाई कर्मी, दाई व पुस्तकालय अटेंडेंट सहित चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी के पद शामिल थे।
अपनी उम्मीदवारी की सुनिश्चितता के लिए इच्छुक सामान्य उम्मीदवारों को बैंक ड्राफ्ट या इंडियन पोस्टल ऑर्डर के जरिये 500 रुपए और अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों को 250 रुपए का भुगतान पूर्णिया विश्वविद्यालय के कुलसचिव के नाम करना था। विज्ञप्ति में उम्मीदवारों से आवेदन प्राप्ति की अंतिम तिथि 08 अक्टूबर 2018 निर्धारित की गई। बाद में अंतिम तिथि को बढ़ाकर 29 नवम्बर कर दिया गया।
तकरीबन एक साल बाद पीयू ने पूर्णिया विश्वविद्यालय गैर-शैक्षणिक प्रवेश परीक्षा (पीयूएनटीईटी) 31 दिसम्बर 2019 को दो पालियों में आयोजित करने की सूचना जारी की। पीयूएनटीईटी के लिए निर्धारित तिथि से एक सप्ताह पहले प्रवेश-पत्र डाउनलोड करने का निर्देश जारी हुआ। हालांकि, 31 दिसंबर को प्रस्तावित पीयूएनटीईटी स्थगित कर दी गयी।
एक विधान परिषद सदस्य ने तत्कालीन कुलपति प्रो. राजेश सिंह के क्रियाकलापों के संबंध में राज्यपाल, बिहार सह कुलाधिपति को तीन पन्ने का ज्ञापन सौंपा। प्रतिक्रिया स्वरूप, शिक्षा विभाग के विशेष सचिव सतीश चन्द्र झा ने पीयू के तत्कालीन कुलपति से पाँच बिन्दुओं पर स्पष्टीकरण माँगा। इन बिंदुओं में रोक के बावजूद गैर-शैक्षणिक पदों पर भर्ती की कवायद शुरू करने के अतिरिक्त अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति में अनियमितता, बायो-टेक्नोलॉजी, एमबीए पाठ्यक्रमों में जरूरी ऊपरी आदेश के बिना सीटें निर्धारित करना और नामांकन स्वीकारना शामिल हैं।
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गैर-शैक्षणिक भर्ती परीक्षा स्थगन के करीब तीन साल बीतने के दौरान पीयू प्रशासन द्वारा न तो सन्दर्भित भर्तियों के लिए परीक्षा आयोजित करने की घोषणा की गयी, न ही भर्ती संबंधी अद्यतन स्थिति की जानकारी आवेदकों से साझा की गई और न ही उम्मीदवारों से प्राप्त आवेदन-शुल्क लौटाने की ठोस पहल की गयी। यह अकर्मण्यता पीयू के तत्कालीन कुलपति प्रो.(डॉ.) राजेश सिंह और कुलसचिव आर.एन ओझा के कार्यकाल के दौरान दिखाई गई और खबर लिखने तक जारी है।
अपर डिवीजन क्लर्क के रिक्त पदों के लिए आवेदन करने वाले संतोष कहते हैं, “पूर्णिया विश्वविद्यालय ने उनके साथ धोखा किया। नौकरी का झांसा देकर फॉर्म भरवाया। एडमिट कार्ड जारी कर न परीक्षा लिया न पैसे लौटाए।“
विश्वविद्यालय बनाओ संघर्ष समिति के संस्थापक और जिला के राजद प्रवक्ता डॉ. आलोक कुमार के अनुसार, ‘’गैर-शैक्षणिक पदों के लिए प्राप्त आवेदनों से लगभग 56 लाख रुपए की राशि पीयू को प्राप्त हुई थी। विज्ञापित पदों के लिए कोई परीक्षा हुई न आवेदन-शुल्क आवेदकों के खाते में अंतरित की गयी।
आवेदन-शुल्क वापसी के बजाय उस मद से लगभग 41 लाख 700 रुपए की निकासी कर ली गयी। हमेशा कानून अनुपालन का दावा करने वाले वर्तमान कुलपति प्रो. राजनाथ यादव इस मामले की सच्चाई सबके सामने उजागर करने के बजाय ढकना चाहते हैं। अगर ऐसा नहीं है, तो क्यों पूर्णिया विश्वविद्यालय में लोकायुक्त के आदेश पर सम्पन्न ऑडिट के दौरान पीयू के संबंधित उत्तरदायी अधिकारी जरूरी व वांछित कागजात उपलब्ध नहीं करा पाये?“
गैर-शैक्षणिक पदों पर भर्ती के लिए प्राप्त आवेदन-शुल्क के संबंध में वर्तमान कुलसचिव डॉ. घनश्याम राय कहते हैं, “पीयू में नये होने के कारण उन्हें इस मामले की जानकारी नहीं है। पटना से वापस लौटने पर वो इस मामले को देखेंगे।”
कुलसचिव, कुछ दिनों से पटना के आधिकारिक भ्रमण पर हैं।
गैर-शैक्षणिक पदों के लिए निकली विज्ञप्ति के तहत प्राप्त आवेदन-पत्रों की जानकारी रखने वाले कुछ अधिकारी बताते हैं कि इन पदों के लिए प्राप्त सभी आवेदन पीयू के किसी रसायन प्रयोगशाला में रख तालाबंद कर दिये गये हैं।
विवि अधिनियम, 1976 की धारा 22 के तहत गठित पीयू की सिंडिकेट की भूमिका भी इस मसले पर संदिग्ध नजर आती है। विवि अधिनियम की धारा 23 की बिंदु (क) सिंडिकेट को विवि की संपत्ति और कोष को धारण करने, उसके नियंत्रण और प्रबंधन का अधिकार देता है। 1990 के अधिनियम 3 के एवजी खंड के अनुसार सिंडिकेट के अधिकार और कर्तव्य निर्वहन की दिशा निर्धारित करते हुए कहा गया है कि पीयू, लागू अधिनियमों के दायरे में उचित निर्णय लेने को बाध्य है।
विश्वविद्यालय अधिनियम की धारा, 1976 की धारा 17 पीयू में एक वित्तीय समिति का प्रावधान करती है, जिसका सचिव वित्त पदाधिकारी होता है। वहीं, वित्तीय प्रभावों वाले सभी मामलों में वित्तीय सलाहकार की सलाह प्राप्ति के बाद उचित निर्णय लेगा। विवि अधिनियम 12 (क) के तहत कुलपति के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन वित्तीय सलाहकार को खातों के रखरखाव, ऑडिट प्रक्रिया के दौरान ऑडिट अधिकारी द्वारा उठाई गई आपत्तियों के अनुपालन की जवाबदेही होती है। विवि के वित्तीय मामले तत्समय लागू अधिनियमों, विश्वविद्यालयी अध्यादेशों, विनियमों के दायरे में संचालित हो रहे हैं या नहीं, इसकी जवाबदेही वित्तीय सलाहकार की होती है।
सन्दर्भित ऑडिट से जुड़े पदाधिकारी अजय कुमार कहते हैं, “करीब एक साल पहले हमने ऑडिट किया। हमें जो दस्तावेज़ उपलब्ध कराये गये उसके आधार पर रिपोर्ट वित्त विभाग को सौंप दिया है।“
समग्र रूप से देखा जाए तो साल-दर-साल बिना परीक्षा आयोजित कराये आवेदकों की धनराशि को नहीं लौटाना धोखाधड़ी, सार्वजनिक धन की हेरा-फेरी, अवैध कृत्य पर पर्दा डालने, वित्तीय नियमों, आदेशों की अवहेलना के साथ पद व संवैधानिक प्रावधान अनुरूप आचरण के प्रदर्शन में अक्षमता का मामला है। पीयू के पदाधिकारियों को तत्काल इस मामले में दोषियों को चिन्हित कर पूरी स्थिति स्पष्ट करने, आवेदकों की मूल राशि ब्याज सहित लौटाने के साथ दोषी पदाधिकारियों पर अर्थदंड लगाना चाहिए। निश्चित समय सीमा में कानून सम्मत कार्रवाई कर लोकहित और नैतिक श्रेष्ठता के मापदंड पर खुद को खरा उतारना बदले समय की मांग है, जिससे पीयू को पीछे नहीं हटना चाहिए।
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