18 जनवरी को राजधानी पटना के गांधी मैदान से सटे श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल में मध्यप्रदेश के नये बने भाजपाई मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के सम्मान समारोह को लेकर जितने भी पोस्टर लगाये गये थे, उनमें भाजपा की भूमिका लैस मात्र भी नहीं नजर आई।
घोषित तौर पर वह कार्यक्रम राजनीतिक नहीं था, बल्कि श्रीकृष्ण चेतना विचार मंच के तत्वावधान में वह जलसा हो रहा था, इसलिए भाजपा की मौजूदगी नहीं ही होनी थी। लेकिन, सच यह भी है कि श्रीकृष्ण चेतना विचार मंच अप्रत्यक्ष तौर पर भाजपा के लिए ही काम करता है, फिर भी पार्टी की तरफ से बहुत ही सावधानी बरती गई और यह सुनिश्चित किया गया कि वह कार्यक्रम भाजपा का कार्यक्रम न लगे। इस रणनीति के पीछे वजह थी यादव समाज के उन लोगों को भी कार्यक्रम में शिरकत करवाना, जो भाजपा विरोधी हैं। ऐसा हुआ भी। कार्यक्रम में कई ऐसे लोग भी शामिल हुए, जो प्रत्यक्ष तौर पर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) से जुड़े हुए हैं।
ऐसे ही एक नेता ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा, “यह सीधे तौर पर भाजपा का कार्यक्रम नहीं है, इसलिए हमलोग आये हैं। लेकिन, यह कार्यक्रम निश्चित तौर पर भाजपा का यादव समाज में अपनी पकड़ बनाने की रणनीति का हिस्सा है।”
18 जनवरी को यह सम्मान समारोह 11 बजे से शुरू हुआ था, लेकिन डॉ मोहन यादव लगभग 3 बजे के आसपास कार्यक्रम में पहुंचे। 11 बजे से 3 बजे के खाली वक्त में भाजपा के सांस्कृतिक प्रकोष्ठ से जुड़े गायकों ने कृष्ण से जुड़े गाने गाकर दर्शकों का मनोरंजन किया। 3 बजे तक हॉल खचाखच भर चुका था। मोहन यादव के मंच पर आते ही खूब नारे गूंजे और मंच संभाल रहे श्रीकृष्ण चेतना विचार मंच एक पदाधिकारी ने “जो मोदी को प्यारा है, वो मोहन हमारा है” का नारा भी उछाल दिया। शायद वह पदाधिकारी यादवों को यह बताना चाह रहा था कि मोदी को यादव प्यारा है। मंच की व्यवस्था की देखरेख भाजपा सांसद रामकृपाल यादव व भाजपा नेता व बिहार में एनडीए सरकार में मंत्री रहे नंदकिशोर यादव कर रहे थे।
मुख्य कार्यक्रम यानी कि सम्मान समारोह की शुरुआत शंखनाद और पांच ब्राह्मणों के मंत्रोच्चार के साथ हुई। इसके बाद दर्जनों कथित गैर राजनीतिक संगठनों ने उन्हें सम्मानित किया। कार्यक्रम में इतने ज्यादा संगठन पहुंचे थे कि आयोजक चाहकर भी कार्यक्रम को छोटा नहीं कर पाये। कई संगठन तो धक्कामुक्की कर मंच पर गये और डॉ मोहन यादव को सम्मानित किया।
यादवों को धार्मिक आधार पर जोड़ने की कवायद
डॉ मोहन यादव ने अपना वक्तव्य संक्षिप्त ही रखा और गैर राजनीतिक बातें ही कहीं, लेकिन उन्होंने यादवों को कृष्ण का वंशज भी बताया तथा यादव समाज की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि यादव समाज में ही ऐसा हुआ कि राजा का वध कर यादव (कृष्ण) राजगद्दी पर नहीं बैठा। “लोकतंत्र को जिंदा रखने में हमारे समाज की बड़ी भूमिका है और प्रकृति प्रेम यादवों में ही दिखता है,” उन्होंने कहा।
कुल मिलाकर एक निहायत ही सांस्कृतिक कार्यक्रम के नाम पर हुआ यह आयोजन पूरी तरह से बिहार के यादवों को भाजपा की तरफ आकर्षित करने का मुजाहिरा था। ताजा जातिगत आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में यादवों की संख्या कुल आबादी का 16 प्रतिशत है।
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कार्यक्रम में कृष्ण को मजबूती के साथ यादव समाज से जोड़ा गया, ताकि धार्मिक आधार पर यादव समाज भाजपा के साथ जुड़े। यहां यह भी बता दें कि समाजवादी पार्टियां खास तौर से बिहार के राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता और इसके कार्यकर्ता खुद को कृष्ण का वंशज बताते रहते हैं। संभवतः इसी सेंटीमेंट को भुनाने के लिए भाजपा ने भी यादवों को कृष्ण से जोड़ने की कोशिश की। यों भी अयोध्या के बाद भाजपा के दो बड़े धार्मिक प्रोजेक्ट हैं – काशी और मथुरा। काशी में विशाल शिव मंदिर और मथुरा में कृष्ण मंदिर बनाना भाजपा का अगला एजेंडा है। जानकारों का मानना है कि सियासी तौर पर बिहार के यादवों को जोड़ना भले ही मुश्किल हो, लेकिन कृष्ण मंदिर के नाम पर तो उन्हें आकर्षित किया ही जा सकता है।
हाल के समय में यादवों को लेकर भाजपा नेताओं के सुर भी बदल गये हैं। पहले भाजपा के नेता ये प्रचारित करते थे कि राजद की सरकार आने के बाद यादवों की गुंडागर्दी बढ़ गई है, लेकिन अब ऐसे बयान आने बंद हो गये हैं।
डॉ मोहन यादव के सम्मान समारोह में शिरकत करने पहुंचे यादवों के एक संगठन, जो राजद के लिए काम करता है, के एक पदाधिकारी ने कहा, “डॉ मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा यादवों को रिझाना चाहती है। हो सकता है कि इसका थोड़ा फायदा भाजपा को मिल भी जाए, लेकिन यादवों की एक बड़ी आबादी राजद के साथ है, जिन्हें तोड़ना मुश्किल है। अव्वल, तो राजद यादवों की पार्टी के तौर पर जाना जाता है और दूसरा ये कि भाजपा के पास यादव समाज का कोई मजबूत नेता नहीं है, जो यादवों को जोड़ सके।”
भाजपा के लिए बिहार में धार्मिक मुलम्मा चढ़ाकर जातियों को पार्टी से जोड़ने का यह कोई एकलौता प्रयास नहीं है।
लव-कुश यात्रा
पिछले 2 जनवरी को ही भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष (अब बिहार के उपमुख्यमंत्री भी) सम्राट चौधरी ने पटना के पार्टी दफ्तर के सामने से लव-कुश रथ यात्रा शुरू की। यह यात्रा 22 जनवरी को अयोध्या के निर्माणाधीन मंदिर में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के मद्देनजर निकाली गई थी, जो बिहार के लगभग सभी जिलों से होते हुए 22 जनवरी को अयोध्या में खत्म हुई। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, लव और कुश राम-सीता के पुत्र थे। बिहार में कुर्मी जाति खुद को लव का वंशज और कुशवाहा खुद को कुश जाति का वंशज होने का दावा करती है।
भाजपा की यह यात्रा भी कुर्मी और कुशवाहा जातियों को राम का वंशज बताकर अपनी तरफ आकर्षित करने का हथकंडा थी।
साल 2019 के लोकसभा चुनाव और साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों का वोटिंग पैटर्न बताता है कि भाजपा के यादव, कोइरी (कुशवाहा) और कुर्मी वोटरों में गिरावट आई है। साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के बाद लोकनीति-सीएसडीएस ने चुनाव बाद की सर्वे रिपोर्ट जारी की थी, जो बताती है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार में एनडीए (जदयू, भाजपा व अन्य पार्टियां) को 21 प्रतिशत यादवों ने वोट किया था, जो 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में घटकर 5 प्रतिशत पर आ गया। इसके उलट यूपीए, जिसमें राजद, कांग्रेस व अन्य पार्टियां शामिल थीं, को 2019 के लोकसभा चुनाव में 55 प्रतिशत यादवों ने वोट किया था, जो साल 2020 के विधानसभा चुनाव में बढ़कर 83 प्रतिशत हो गया।
इसी तरह, 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को बिहार में 70 प्रतिशत कुशवाहा और कुर्मी ने वोट दिये थे, जो 2020 के विधानसभा चुनाव में घटकर 66 प्रतिशत पर आ गया। लेकिन यूपीए को 2019 के लोकसभा चुनाव के मुकाबले 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में कुशवाहा और कुर्मी के 7 प्रतिशत अधिक वोट मिले। कमोबेश इसी तरह के आंकड़े अन्य ओबीसी जातियों के भी हैं। लेकिन अनुसूचित जातियों के वोटों की बात करें, तो एनडीए को 2019 के लोकसभा चुनाव की तुलना में 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में लगभग 50 प्रतिशत कम वोट मिले, जबकि यूपीए को लगभग 5 गुना ज्यादा वोट मिले।
दिलचस्प बात ये है कि 2020 का विधानसभा चुनाव जदयू और भाजपा ने मिलकर लड़ा था, इसके बावजूद एनडीए को कुर्मी और कुशवाहा और अन्य ओबीसी जातियों के वोट कम मिले।
इसी साल होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर ये आंकड़े भाजपा के लिए परेशानी का कारण हैं, इसलिए भाजपा धार्मिक भावनाओं को उभारने के साथ साथ सभी जातियों को लामबंद कर रही है।
मुसहर वोटरों को आकर्षित करने के लिए भाजपा, पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी की पार्टी हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (सेकुलर) को एनडीए खेमे में ला चुकी है। उपेंद्र कुशवाहा के साथ भाजपा के वरिष्ठ नेता अमित शाह की बैठक हो चुकी है।
ईबीसी वोटरों पर भी नजर
23 जनवरी को पूर्व मुख्यमंत्री व बड़े कद के समाजवादी नेता स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देकर भाजपा ने अतिपिछाड़ा वर्ग (ईबीसी) को साधने की कोशिश की।
बिहार में ईबीसी की आबादी लगभग 36 प्रतिशत है, लेकिन इस समुदाय का कोई बड़ा नेता नहीं है फिलहाल, इसलिए ओबीसी जातियों को आकर्षित करने के साथ ही पार्टी ईबीसी पर भी दांव आजमाना चाहती है।
जिस दिन कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा हुई, उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर एक लेख लिखकर उनसे जुड़े अहम प्रसंगों का जिक्र किया और दावा किया कि केंद्र की भाजपा सरकार ही उनकी समाजवादी परम्परा का निर्वहन कर रही है। उन्होंने पिछड़े वर्गों के लिए एनडीए सरकार द्वारा किये गये कामों का भी उल्लेख किया।
राजनीतिक विश्लेषक महेंद्र सुमन कहते हैं, “कर्पूरी ठाकुर निश्चित तौर पर ईबीसी के बड़े नेता हैं और भाजपा इस तरह के संकेतों को भुनाने में माहिर है।”
“ईबीसी वोटर बिखरे हुए हैं और उनका कोई बड़ा नेता नहीं है, इसलिए भाजपा उन्हें एकजुट करने की कोशिश कर रही है,” उन्होंने कहा।
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