साल 2008 में अररिया के पूर्णिया सीमा स्थित करियात में दो हेक्टेयर जमीन पर हाईटेक नर्सरी का निर्माण कराया गया था जो अब एक आम नर्सरी बन कर रह गया है
बिहार के सुपौल जिले के गणपतगंज नामक क्षेत्र में स्थित विष्णु मंदिर की तुलना चेन्नई के प्रसिद्ध विष्णु मंदिर से की जाती है। आज के वक्त में कोसी इलाका और सुपौल जिले की पहचान भी इसी मंदिर से है। इसी क्षेत्र की 28 वर्षीय प्रज्ञा भारती बनाना (केला) वेस्ट से हैंडीक्राफ्ट प्रोडक्ट्स तैयार कर कमाई […]
50 वर्षीय अशोक यादव हफ्तेभर से बारिश का इंतजार कर रहे थे। लेकिन, बारिश नहीं हुई, तो उन्हें मजबूरी में डीजल चालित पंप सेट की मदद से खेत में पानी डालकर धान की बुआई करनी पड़ी। “यह तो बारिश का सीजन ही है। इस सीजन में हमारे यहां भारी बारिश हुआ करती है और उसी […]
कटिहार: चमड़ी जला देने वाली धूप में मो. नदीम अख्तर का कपड़ा पसीने से भीगा हुआ है। आज वह अपने खेत में एक पुराना पंप सेट लेकर आए हैं। सालों पहले यह पंप सेट खेतों में पानी देने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। इस पुराने पंपसेट के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि […]
बिहार के किशनगंज जिले के सत्तर फीसदी लोग खेती पर निर्भर हैं। लेकिन राज्य सरकार का ध्यान यहां के किसानों पर नहीं है। किसान एक तरफ मौसम की मार झेल रहे हैं, तो दूसरी तरफ खेती खराब होने से कर्ज के दलदल में फंसे जा रहे हैं। इस बार भी बादलों के रूठने से किसानों […]
अररिया: बर्मा से आये रिफ्यूजियों ने अररिया जिला सहित सीमांचल के किसानों को एक नई फसल उगाने की तरकीब देकर कृषि क्रांति ला दी है। इन रिफ्यूजियों के संपर्क में आकर यहां के किसान सफेद मूंगफली की खेती कर रहे हैं। बता दें कि सन 1964 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने बर्मा से रिफ्यूजियों […]
अब अगर आपका किसान पंजीकरण हो चुका है या पहले से ही किया हुआ है तो धान का बीज लेने के लिए एक मामूली ऑनलाइन आवेदन करना होता है, जो आप खुद भी अपने मोबाइल से कर सकते है या किसी कंप्यूटर सेंटर से करवा सकते हैं।
किशनगंज के दिघलबैंक प्रखंड क्षेत्र के सीमावर्ती धनतोला के मुलाबारी सहित अन्य गांवों में हाथियों का उत्पात रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है। शनिवार की देर रात से रविवार की अहले सुबह तक हाथियों ने जमकर उत्पात मचाया। हाथियों ने कई कच्चे घरों और फसलों को बर्बाद कर दिया। हाथियों के डर से […]
किशनगंज में हाथियों का उत्पात जारी है। सोमवार की अहले सुबह हाथियों के झुंड ने जिले की दिघलबैंक पंचायत अंतर्गत रामपुर काॅलोनी बस्ती में उत्पात मचाया। हाथियों ने रामपुर काॅलोनी के लखीराम सोरेन, बुध रॉय, राजू दास, लक्ष्मी देवी सहित कुल छह परिवारों के कच्चे घरों को तोड़ दिया है जबकि घर अंदर रखा अनाज जिसमें चावल, धान, सब्जी आदि को बर्बाद कर दिया। हाथियों ने फसलों को भी नुकसान पहुंचाया।
पिछले दिनों सीमांचल में खाद के लिए भगदड़ मच जाने के बाद उम्मीद की जा रही थी कि सरकार इलाके में खाद की किल्लत को जल्द दूर कर देगी। मगर, यहां खाद की किल्लत अब भी बरकरार है।
गौरतलब हो कि भारत की लगभग 33 निजी व सार्वजनिक कंपनियां तथा को-ऑपरेटिव मिलकर हर साल 24 से 25 मिलियन टन यूरिया का उत्पादन करते हैं और 9 से 10 मिलियन टन यूरिया का निर्यात किया जाता है। इस साल भारत में रबी सीजन में कुल 179.001 लाख मैट्रिक टन यूरिया की जरूरत थी।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि साल 2022 तक देश के किसानों की कमाई दोगुनी हो जाएगी, लेकिन अब खेती के लिए सबसे जरूरी चीज खाद खरीदना ही किसानों के लिए एक जंग बन गया है।
देशभर में खाद की किल्लत चल रही है, जिससे रबी सीजन की बुआई बुरी तरह प्रभावित हुई है। बिहार में भी खाद की किल्लत ने विकराल रूप ले लिया है। किसानों का कहना है कि दिन-दिन भर लाइन में लगे रहने के बावजूद खाद नहीं मिल रही। कुछ जगहों पर तो रात से किसान लाइन में लग जा रहे हैं ताकि खाद मिल जाए। गुरुवार को खाद वितरण को लेकर अररिया जिले के नरपतगंज ब्लाॅक में पुलिस प्रशासन की मौजूदगी में हो रही खाद की बिक्री के दौरान ही जबरदस्त हंगामा हो गया। हालात इस कदर बेकाबू हो गये कि पुलिस को आंसू गैस के गोले दागने पड़े और आरोप है कि हवाई फायरिंग भी करनी पड़ी।
एक साल के protest और सैंकड़ों किसानों की शहीद के बाद 19 नवंबर, 2021 को प्रधानमंत्री मोदी ने विवादित Farm Bills या हिंदी में कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषण की और उन्होंने इसके लिए देश से माफ़ी भी मांगी। 2014 में प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद ये शायद पहला मौका था, जब उन्होंने देश से माफ़ी मांगी हो। 30 नवंबर को संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होते ही उन्होंने अपनी घोषणा को अमलीजामा पहनाते हुए आधिकारिक तौर पर Farm Bills वापस ले लिया। देश के किसान इसकी ख़ुशी मना सकते हैं, लेकिन बिहार के किसान नहीं। क्यूंकि, बिहार में ये कानून पिछले पंद्रह सालों से लागू है। और बिहार की राजनीति में इसको लेकर जितना सन्नाटा है, लगता नहीं है आने वाले दिनों में भी बिहार से ये कृषि कानून हटेगा।
पूर्णिया जैसी ही स्थिति किशनगंज और अररिया के साथ-साथ समस्तीपुर, सुपौल और बेगूसराय के किसानों की भी है। बारिश के कारण इन जिलों की फसल भी ख़राब हो गई है।