मिथिलांचल की सांस्कृतिक एवं पारम्परिक पहचान मखाना को लेकर कृषि विश्वविद्यालय सबौर ने अंततः “मिथिला मखाना”के नाम पर जीआई टैग लाने की मांग मान ली है। बतादे कि कुछ दिन पहले मखाना की जीआई टैगिंग “बिहार मखाना” के नाम से प्रस्ताव सबौर भागलपुर के कृषि विश्वविद्यालय ने भेजा था। जिसके बाद विवाद खड़ा हो गया था।
इतना ही नही “बिहार मखाना” के खिलाफ ऑनलाइन मुहिम भी जोर-शोर से चलाई गयी थी। ट्विटर पर #stopstealingmithilakamakhan देशभर में दूसरे नंबर पर ट्रेंड हुआ था। साथ ही मिथिला क्षेत्र के 17 विधायकों, पूर्व सांसदों समेत अन्य जनप्रतिनिधियों ने कृषि विश्वविद्यालय सबौर को चिट्ठी लिखकर नाम बदलने की मांग की थी।
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दरअसल मिथिला क्षेत्र के लोगों की मांग थी कि मखाना मिथिला की मूल फसल है और इसकी 80 प्रतिशत खेती मिथिला क्षेत्र में ही होती है। और साथ ही मखाना मिथिलांचल की सांस्कृतिक एवं पारम्परिक से जुड़ी हुई है इसलिए इसका जीआई टैग “मिथिला मखाना” नाम से किया जाये।
मखाना क्या है
मखाना एक लो कैलोरी हेल्दी फूड है। मखाने की खेती उथले पानी वाले तालाबों में की जाती है। इसके बीज सफेद और छोटे होते हैं, दिसंबर से जनवरी के बीच मखाना के बीजों की बोआई तालाबों में होती है। फल कांटेदार होते हैं जिसके कारण इनमें वजन होता है। बाद में यह पानी के नीचे जाकर बैठ जाते हैं। फल के कांटे गलने में 1 से 2 महीने का समय लगता है।
किसान इन्हें पानी की निचली सतह से सितंबर अक्टूबर के महीने में इकट्ठा कर लेते हैं। अप्रैल के महीने में पौधों में फूल लगने लगते हैं। मखाने के फूल जुलाई के महीने में 24 से 48 घंटे तक पानी की सतह पर तैरते पाए जाते हैं। वैसे तो मखाना को कई तरह से खाया जाता है लेकिन सबसे ज्यादा लोग मखाना को खीर के तौर पर खाना पसंद करते है।
जीआई टैगिंग क्या है
जीआई टैग अथवा भौगोलिक चिह्न किसी भी उत्पाद के लिए एक चिह्न होता है जो कुछ विशिष्ट उत्पादों (कृषि, प्राक्रतिक, हस्तशिल्प और औधोगिक सामान) को दिया जाता है। जोकि एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में 10 वर्ष या उससे अधिक समय से उत्पन्न या निर्मित हो रहा है और यह सिर्फ उसकी उत्पत्ति के आधार पर होता है।
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