Main Media

Seemanchal News, Kishanganj News, Katihar News, Araria News, Purnea News in Hindi

Support Us

बिहार के किसानों को क्यों नहीं मिलता फसल का MSP?

एक साल के protest और सैंकड़ों किसानों की शहीद के बाद 19 नवंबर, 2021 को प्रधानमंत्री मोदी ने विवादित Farm Bills या हिंदी में कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषण की और उन्होंने इसके लिए देश से माफ़ी भी मांगी। 2014 में प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद ये शायद पहला मौका था, जब उन्होंने देश से माफ़ी मांगी हो। 30 नवंबर को संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होते ही उन्होंने अपनी घोषणा को अमलीजामा पहनाते हुए आधिकारिक तौर पर Farm Bills वापस ले लिया। देश के किसान इसकी ख़ुशी मना सकते हैं, लेकिन बिहार के किसान नहीं। क्यूंकि, बिहार में ये कानून पिछले पंद्रह सालों से लागू है। और बिहार की राजनीति में इसको लेकर जितना सन्नाटा है, लगता नहीं है आने वाले दिनों में भी बिहार से ये कृषि कानून हटेगा।

Main Media Logo PNG Reported By Main Media Desk |
Published On :

एक साल के protest और सैंकड़ों किसानों की शहीद के बाद 19 नवंबर, 2021 को प्रधानमंत्री मोदी ने विवादित Farm Bills या हिंदी में कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषण की और उन्होंने इसके लिए देश से माफ़ी भी मांगी। 2014 में प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद ये शायद पहला मौका था, जब उन्होंने देश से माफ़ी मांगी हो। 29 नवंबर को संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होते ही उन्होंने अपनी घोषणा को अमलीजामा पहनाते हुए आधिकारिक तौर पर Farm Bills वापस ले लिया। देश के किसान इसकी ख़ुशी मना सकते हैं, लेकिन बिहार के किसान नहीं। क्यूंकि, बिहार में ये कानून पिछले पंद्रह सालों से लागू है। और बिहार की राजनीति में इसको लेकर जितना सन्नाटा है, लगता नहीं है आने वाले दिनों में भी बिहार से ये कृषि कानून हटेगा।

केंद्र की मोदी सरकार ने जो तीन कृषि कानून लाया था। इनमें से एक था The Farmers’ Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) Ordinance, 2020। इसके मुताबिक, किसान अपने उत्पाद एपीएमसी (Agricultural Produce Market Committee) मंडी के बाहर भी बेच सकते थे और मंडी के बाहर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होता, यानी मंडी के बाहर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की बाध्यता नहीं रहती।

Also Read Story

कटिहार में गेहूं की फसल में लगी भीषण आग, कई गांवों के खेत जलकर राख

किशनगंज: तेज़ आंधी व बारिश से दर्जनों मक्का किसानों की फसल बर्बाद

नीतीश कुमार ने 1,028 अभ्यर्थियों को सौंपे नियुक्ति पत्र, कई योजनाओं की दी सौगात

किशनगंज के दिघलबैंक में हाथियों ने मचाया उत्पात, कच्चा मकान व फसलें क्षतिग्रस्त

“किसान बर्बाद हो रहा है, सरकार पर विश्वास कैसे करे”- सरकारी बीज लगाकर नुकसान उठाने वाले मक्का किसान निराश

धूप नहीं खिलने से एनिडर्स मशीन खराब, हाथियों का उत्पात शुरू

“यही हमारी जीविका है” – बिहार के इन गांवों में 90% किसान उगाते हैं तंबाकू

सीमांचल के जिलों में दिसंबर में बारिश, फसलों के नुकसान से किसान परेशान

चक्रवात मिचौंग : बंगाल की मुख्यमंत्री ने बेमौसम बारिश से प्रभावित किसानों के लिए मुआवजे की घोषणा की

किसानों ने इसके खिलाफ जबरदस्त आंदोलन किया और सरकार ने आखिरकार The Farmers’ Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) Ordinance, 2020 समेत तीनों कानून वापस ले लिया।


आगे बढ़ने से पहले ये जान लीजिए कि ये एपीएमसी मंडी आखिर है क्या। दरअसल जब देश में अंग्रेजी हुकूमत थी, तो कपड़ा उद्योग को सस्ती कीमत पर कपास उपलब्ध कराने के लिए अंग्रेजों ने सरकार नियंत्रित मार्केट की परिकल्पना की, जो कालांतर में एक माॅडल बन गया। आजादी के बाद सत्तर और अस्सी के दशक में देश के तमाम राज्यों ने एपीएमसी एक्ट लागू कर दिया और एपीएमसी मंडियां खुलने लगीं। किसान और व्यापारी इसी मंडी में जुटते। सरकार इन मंडियों में उत्पाद की कीमत तय करती और व्यापारियों को इसी कीमत पर कृषि उत्पाद खरीदना पड़ता।

बिहार में भी ये सब हुआ। यहां भी एपीएमसी एक्ट लागू हुआ, मंडियां खुलीं, लेकिन 2005 में पहली बार सीएम बने नीतीश कुमार ने कुछ महीने बाद ही सितंबर 2006 में Agricultural Produce Market Committee (repeal) act लाकर एपीएमसी एक्ट खत्म कर दिया और इस तरह किसानों को बाजार के हवाले कर दिया गया।

यानी कि जिस कानून के खिलाफ देशभर के किसानों ने एक साल तक आंदोलन किया और वापस करवा लिया उस कानून को नीतीश कुमार डेढ़ दशक पहले ही जामा पहना चुके हैं।

खैर, एपीएमसी एक्ट खत्म हुआ, तो किसानों का दोहन शुरू हो गया। किसानों के पास व्यापारियों द्वारा तय कीमत पर उपज बेचने को विवश होना पड़ा। ये रवायत अब भी बदस्तूर जारी है।

नीतीश सरकार ने जब एपीएमसी एक्ट खत्म किया था, तो तर्क ये था कि इस एक्ट के कारण बड़े व्यापारी घराने बिहार का रुख नहीं कर पा रहे हैं। अगर ये एक्ट खत्म हो जाएगा, तो वे यहां आएंगे और किसानों से ऊंचे दाम पर अनाज की खरीद करेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उल्टे इससे किसान बाजार के चंगुल में फंस गये।

एपीएमसी एक्ट खत्म होने पर बाजार पर सरकार का कोई नियंत्रण रहा नहीं और व्यापारी बेलगाम हो गये। नतीजतन हुआ ये कि व्यापारी किसानों की फसल का कौड़ियों के भाव दाम लगाने लगे और किसान उसी कीमत पर अनाज बेचने पर मजबूर हो गये। आखिर वे मजबूर क्यों नहीं होते। उन्हें अनाज बेचकर ही अगली फसल के लिए पूंजी का इंतजाम करना है। दूसरा उनके पास कोल्ड स्टोरेज की सुविधा नहीं है कि वे अनाज को स्टोर कर रखते और दाम चढ़ने पर बेच देते।  

मुजफ्फरपुर के किसान अरविंद कुमार का ही मामला देख लीजिए। अरविंद कुमार ने पिछले सीजन में एक क्विंटल धान उगाने में 1300 रुपए खर्च किया था, लेकिन जब धान बेचने की बारी आई, तो व्यापारी 1100 रुपए प्रति क्विंटल की दर से धान खरीदने को तैयार हुए। अरविंद के पास स्टोरेज की व्यवस्था नहीं थी और पूंजी तुरंत चाहिए था, तो उन्होंने लागत से 200 रुपए कम पर धान बेच दिया। अरविंद की तरह हजारों किसान हर सीजन में या तो लागत मूल्य या उससे कम कीमत पर अनाज बेचते हैं।

उसी तरह, किशनगंज के किसान गुल सनवर ने पिछले साल 21,000 रुपये खर्च कर खेत में मक्का लगाया। लेकिन, मक्के की कीमत मुश्किल से 1000-1100 प्रति क्विंटल ही मिली, जबकि सरकार ने मक्के का MSP 1760 रुपए प्रति क्विंटल तय किया था। किशनगंज के ही एक अन्य किसान ज़ाकिर कहते हैं, स्थानीय व्यापारी से जब MSP के बारे में पूछते हैं, तो वह बोलता है कि सरकार के पास ले जाकर बेचो। कहाँ बेचेंगे? सरकारी मंडी भी तो होना चाहिए उसके लिए।

हालांकि, ऐसा नहीं है कि एपीएमसी एक्ट खत्म करने के बाद बिहार सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया, लेकिन सरकार का रवैया बेहद उदासीन रहा। एपीएमसी एक्ट खत्म करने के बाद बिहार में पैक्स की व्यवस्था शुरू की गई। पैक्स को न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी पर किसानों से फसल खरीदने की जिम्मेदारी दी गई, लेकिन पैक्स सिस्टम एक फेल सिस्टम बनकर रह गया। किसानों का पैक्स पर भरोसा नहीं बन पाया और इसके लिए भी कहीं न कहीं सरकार जिम्मेवार है।

असल में पैक्स किसानों से जो अनाज खरीदता है, उसका भुगतान वो लोन लेकर करता है और खरीदा गया अनाज पैक्स सरकार को देता है जिसके बाद सरकार फंड जारी करती है। पैक्स के मामले में हो ये रहा है कि वे लोन लेकर किसानों को भुगतान तो कर देते हैं, लेकिन राज्य सरकार से फंड मिलने में देरी हो जाती है। इसका परिणाम ये निकलता है कि पैक्स लोन लेकर किसानों को पैसा देने की जगह सरकार के फंड का इंतजार करते हैं। कई ऐसे पैक्स हैं जिनका कहना है कि सरकार पर उनका पिछली खरीद सीजन का पैसा अब तक बाकी है।

चूंकि पैक्स किसानों को अनाज का पैसा देर से देता है, इसलिए किसान सोचते हैं कि क्यों न कुछ कम दाम पर ही व्यापारियों को अनाज बेच दिया है, क्योंकि व्यापारी भले ही कम पैसा देंगे, लेकिन समय पर पैसा दे देंगे।

यही वजह है कि  बिहार के बहुत कम किसान एमएसपी पर अपना अनाज बेच पाते हैं। सहकारिता विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, खरीफ सीजन 2020-202 में बिहार के डेढ़ लाख किसान ही एमएसपी पर धान की बिक्री कर पाये थे। इससे पहले खरीफ सीजन 2019-2020 में 279440 किसानों को धान का एमएसपी मिल सका था। गेहूं की बिक्री का आंकड़ा तो हास्यास्पद है। रबी सीजन 2020-2021 में केवल 980 किसान एमएसपी पर गेहूं बेच पाये थे। जबकि बिहार में किसानों की संख्या एक करोड़ से अधिक है।

इन आंकड़ों से साफ जाहिर हो रहा है कि एपीएमसी एक्ट के खत्म करने से किसानों को कोई फायदा नहीं हुआ है।

अब जब मोदी सरकार द्वारा कृषि अध्यादेश वापस ले लिया गया है, तो नीतीश कुमार को अपने 2006 के फैसले पर अब गंभीरता से सोचना चाहिए।

उन्हें ये पता होना चाहिए कि इस एक्ट को खत्म करते वक्त उन्होंने किसानों को अच्छे दिनों का जो सब्जबाग दिखाया था, वो किसानों की आंखों को चुभ रहा है। उन्हें देखना चाहिए कि एपीएमसी एक्ट खत्म होने के बाद किसानों की हालत रस्सी में बंधे उन बंदरों जैसी हो गई है, जिसकी डोर किसी कुछ मुट्टीभर लोगों के हाथों में चली गई है, जो अपनी डुगडुगी पर उन्हें नचा रहे हैं।

सीमांचल की ज़मीनी ख़बरें सामने लाने में सहभागी बनें। ‘मैं मीडिया’ की सदस्यता लेने के लिए Support Us बटन पर क्लिक करें।

Support Us

Main Media is a hyper-local news platform covering the Seemanchal region, the four districts of Bihar – Kishanganj, Araria, Purnia, and Katihar. It is known for its deep-reported hyper-local reporting on systemic issues in Seemanchal, one of India’s most backward regions which is largely media dark.

Related News

बारिश में कमी देखते हुए धान की जगह मूंगफली उगा रहे पूर्णिया के किसान

ऑनलाइन अप्लाई कर ऐसे बन सकते हैं पैक्स सदस्य

‘मखाना का मारा हैं, हमलोग को होश थोड़े होगा’ – बिहार के किसानों का छलका दर्द

पश्चिम बंगाल: ड्रैगन फ्रूट की खेती कर सफलता की कहानी लिखते चौघरिया गांव के पवित्र राय

सहरसा: युवक ने आपदा को बनाया अवसर, बत्तख पाल कर रहे लाखों की कमाई

बारिश नहीं होने से सूख रहा धान, कर्ज ले सिंचाई कर रहे किसान

कम बारिश से किसान परेशान, नहीं मिल रहा डीजल अनुदान

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Latest Posts

Ground Report

मूल सुविधाओं से वंचित सहरसा का गाँव, वोटिंग का किया बहिष्कार

सुपौल: देश के पूर्व रेल मंत्री और बिहार के मुख्यमंत्री के गांव में विकास क्यों नहीं पहुंच पा रहा?

सुपौल पुल हादसे पर ग्राउंड रिपोर्ट – ‘पलटू राम का पुल भी पलट रहा है’

बीपी मंडल के गांव के दलितों तक कब पहुंचेगा सामाजिक न्याय?

सुपौल: घूरन गांव में अचानक क्यों तेज हो गई है तबाही की आग?