बिहार के कुछ मदरसों द्वारा फर्जी दस्तावेजों के जरिए बिहार सरकार से अनुदान लेने के मामले में राज्यभर के मदरसों पर बड़ी कार्रवाई हो सकती है।
एक याचिका की सुनवाई करते हुए पटना हाईकोर्ट ने अपने आदेश में अनुदान पाने प्रक्रिया में चल रहे बिहार के 609 मदरसों की फंडिंग पर तत्काल रोक, इन मदरसों की स्थिति की जांच करने, पूर्व में फर्जी तरीके से अनुदान पा चुके सीतामढ़ी जिले के 88 मदरसों के मामले में दर्ज एफआईआर पर जांच रिपोर्ट की मांग की।
इसके साथ ही साथ बिहार के अन्य मदरसों की वैधता स्थिति की जांच करने का भी आदेश कोर्ट ने दिया।
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क्या है 88 मदरसों का मामला
दरअसल साल 2013 में सीतामढ़ी जिले के 88 मदरसों ने बिहार राज्य मदरसा शिक्षा अधिनियम के तहत बिहार सरकार से अनुदान ले लिया था। इसको लेकर अलाउद्दीन बिस्मिल नाम के शख्स ने साल 9 अक्टूबर 2018 में एक याचिका कोर्ट में दायर की थी। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए साल 2020 में 6 जनवरी को कोर्ट ने बिहार सरकार से जवाब मांगा था।
सरकार की तरफ से शिक्षा विभाग के विशेष निदेशक तसनिमुर रहमान ने कोर्ट में शपथ पत्र दाखिल कर बताया था कि सीतामढ़ी जिले के 80 मदरसों ने फर्जी पत्रों के जरिए सरकार से अनुदान ले लिया था। सरकार ने इस मामले में इन मदरसों से अनुदान वापस लेने की सिफारिश की थी और इस फर्जीवाड़े को लेकर थाने में एफआईआर दर्ज करने को कहा था।
609 मदरसों की जांच के लिए बनी थी कमेटी
सीतामढ़ी के मामले पर सुनवाई के दरम्यान ही अन्य मदरसों को लेकर संदेह उभरा था। उस वक्त कोर्ट के आदेश पर सरकार ने सीमांचल के किशनगंज, अररिया, पूर्णिया और कटिहार समेत बिहार के 27 जिलों के 609 मदरसों की स्थिति का पता लगाने के लिए सभी जिलों में अलग अलग तीन सदस्यीय कमेटी बनाने को कहा था और तुरंत यह कमेटी अस्तित्व में भी आ गई थी। इस तीन सदस्यीय कमेटियों का मुखिया जिलों के डीएम को बनाया गया था।
कोर्ट के दस्तावेजों के मुताबिक, सितंबर 2021 में ही ये कमेटियां बन गई थीं और 16 दिसम्बर 2022 को अदालत में सरकार की तरफ से दाखिल किये गये शपथ पत्र में यह बात बताई गई थी।
मगर दिलचस्प बात यह है कि इन कमेटियों की रिपोर्ट आज तक न तो सार्वजनिक की गई और न ही कोर्ट में जमा हुई।
कोर्ट ने अपने आदेश में रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं किए जाने पर हैरानी जताते हुए कहा, “बिहार के शिक्षा विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव ने बताया है कि उन्हें सभी जिलों के डीएम को इस मामले में रिमाइंडर भेजा है। मगर निर्धारित समय के भीतर जांच रिपोर्ट नहीं देने का यह कोई स्पष्टीकरण नहीं है और ऐसा तब है जब बिहार सरकार ने साल 2020 में खुद 88 शैक्षणिक संस्थानों (मदरसों) अनुदान रद्द कर दिया था।
इतना ही नहीं, कोर्ट ने यह भी कहा कि 88 मदरसों के मामले में एफआईआर भी दर्ज की गई थी, लेकिन उस एफआईआर पर क्या कार्रवाई हुई है इसकी जानकारी अदालत को नहीं दी गई है। साथ ही दोषी अफसरों पर क्या कार्रवाई है, इसके बारे में भी कोर्ट ने सवाल उठाया। “वे दोषी अफसर, जिन्होंने तथ्यों की जांच किए बिना 88 शैक्षणिक संस्थानों को जनता के पैसे अनुदान के रूप में दे दिए, के खिलाफ क्यों कोई कार्रवाई नहीं हुई, इसका कोई जवाब नहीं मिला,” कोर्ट ने कहा।
कोर्ट ने अपने ताजा आदेश में कहा कि जब तक 609 शैक्षणिक संस्थानों की जांच नहीं हो जाती और उनकी वैधता पता नहीं चल जाता है, तब तक इन संस्थानों की फंडिंग रोक दी गए। इसके अलावा कोर्ट ने डीजीपी को आदेश दिया कि सीतामढ़ी के मामले में दर्ज हुई एफआईआर की जांच में तेजी लाई जाए और दो हफ्तों के भीतर एफिडेविट फाइल कर जांच की ताजा रिपोर्ट के बारे में बताया जाए।
अदालत ने यह भी कहा कि अगर इन संस्थानों में गड़बड़ियां पाई जाती हैं, तो सरकार इनका पंजीयन भी रद्द करे, लेकिन यह भी खयाल रखा जाए कि इन संस्थानों का पंजीयन रद्द होने से इनमें पढ़ रहे बच्चों का भविष्य प्रभावित न हो। इन बच्चों को इनके घरों के नजदीक के सरकार शैक्षणिक संस्थानों में भर्ती किया जाए।
गौरतलब हो कि बिहार में लगभग मदरसा एक्ट के अंतर्गत लगभग 2400 मदरसे संचालित हो रहे हैं। इन मदरसों को सरकार की तरफ से अनुदान के रूप में नियमित तौर पर फंडिंग मिलती है। कोर्ट ने अपने आदेश में जांच का दायरा सभी मदरसों तक बढ़ाने की बात कही है। कोर्ट ने कहा, “बिहार में चले रहे 2459 शैक्षणिक संस्थान, जो मदरसा एक्ट के तहत पंजीकृत हैं, उनकी विस्तृत जांच एक उच्चस्तरीय कमेटी से कराए जाने की जरूरत है।” “ये संस्थान पंजीकृत होने की पात्रता रखते हैं कि नहीं, मदरसा एक्ट के मुताबिक जरूरी आधारभूत संरचना इनके पास है अथवा नहीं, आदि के बारे में शिक्षा विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव दो हफ्ते में व्यक्तिगत शपथ पत्र दाखिल कर बताएंगे,” कोर्ट ने कहा।
मामले की अगली सुनवाई 14 फरवरी को होगी
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