बिहार सरकार ने पिछले दिनों एक अजीबोगरीब आदेश निकाला। इस आदेश के अनुसार अध्यापक नियुक्ति नियमावली के विरोध में आंदोलन करने पर आंदोलनकारी शिक्षकों पर कार्रवाई की जायेगी।
बिहार के शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार सिंह ने 16 मई को इस आशय का पत्र सूबे के सभी जिला शिक्षा पदाधिकारियों को लिखा है। पत्र में दीपक कुमार सिंह लिखते हैं, “समाचार पत्रों व सोशल मीडिया के माध्यम से यह समाचार प्रकाशित होते रहते हैं कि वर्तमान में कार्यरत स्थानीय निकाय के शिक्षकों द्वारा नई नियुक्ति नियमावली के विरोध में धरना प्रदर्शन किया जाएगा।”
“कृपया इस संबंध में यह सुनिश्चित करें कि यदि कोई भी स्थानीय निकाय से नियोजित शिक्षक अथवा अन्य कोई भी सरकारी कर्मी नियुक्ति नियमावली के विरोध में किसी भी प्रकार के धरना प्रदर्शन या अन्य सरकार विरोधी कार्यक्रमों में भाग ले रहे हैं, तो उनके विरुद्ध नियमानुकूल कार्रवाई अविलम्ब सुनिश्चित किया जाए,” पत्र में आगे लिखा गया है।
गौरतलब हो कि बिहार सरकार ने इस साल 10 अप्रैल को कैबिनेट की बैठक में ‘बिहार राज्य विद्यालय अध्यापक (नियुक्ति, स्थानांतरण, अनुशासनिक कार्रवाई और सेवाशर्त) नियमावली-2023’ को मंजूरी दी है।
इस नियमावली के तहत अब बिहार में स्कूल शिक्षकों के सभी पदों को सीधी नियुक्ति से भरे जायेंगे। इसके लिए परीक्षा ली जाएगी। परीक्षा लेने की जिम्मेवारी बिहार लोकसेवा आयोग (बीपीएससी) को सौंपी गई है। शिक्षकों की नियुक्ति के लिए रिक्त पदों के लिए पहले आवेदन पत्र भरना होगा। आवेदन स्वीकृत होने के बाद परीक्षा ली जाएगी। एक अभ्यर्थी अधिकतम तीन बार परीक्षा दे सकता है। इस प्रक्रिया से नियुक्त शिक्षक को राज्यकर्मी का दर्जा मिलेगा।
फिलहाल, स्कूलों में कार्यरत नियोजित शिक्षकों को राज्यकर्मी का दर्जा पाने के लिए दोबारा परीक्षा देनी होगी।
इस नियमावली को कैबिनेट की मंजूरी मिलने के तुरंत बाद शिक्षकों की तरफ से इस पर घोर आपत्ति जताई गई। शिक्षकों ने इस नियमावली के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में याचिका डाली है और इस नियमावली को असंवैधानिक करार दिया है।
शिक्षक इस नियमावली के खिलाफ कानूनी रास्ता तो अपना ही रहे हैं, लेकिन साथ ही वे सड़कों पर आकर भी विरोध दर्ज करा रहे हैं। पिछले एक मई को किशनगंज के नियोजित शिक्षक इस नियमावली के खिलाफ सड़कों पर उतर आये। शिक्षकों ने विरोध मार्च निकाला और नई नियमावली वापस लेने की मांग की। किशनगंज के अलावा अन्य जिलों में इसी तरह के विरोध प्रदर्शन हुए और हो रहे हैं।
इसे देखते हुए ही बिहार सरकार ने उक्त पत्र जारी कर इस नियमावली के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने वाले शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश दिया है।
“आदेश असंवैधानिक, मौलिक अधिकारों का हनन”
शिक्षक व कानून के जानकारों ने इस आदेश को गैर कानूनी, असंवैधानिक और मौलिक अधिकारों का हनन करार दिया है।
टीईटी शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष अमित विक्रम कहते हैं, “सरकार का यह आदेश बिल्कुल गैर-कानूनी है और हमलोग इसकी निंदा करते हैं। प्रदर्शन करने वाले शिक्षकों के खिलाफ कार्रवाई करने का कोई अधिकर बिहार सरकार के पास है ही नहीं।”
वह आगे कहते हैं, “हमलोग जब प्रदर्शन करते हैं, तो ऐसा नहीं है कि कक्षाएं छोड़कर आते हैं। हमलोग या तो छुट्टी ले लेते हैं या छुट्टी के दिन प्रदर्शन करते हैं और शांतिपूर्ण तरीके से करते हैं। इस देश में लोकतांत्रिक तरीके से प्रदर्शन करने का अधिकार हर नागरिक को है, ऐसे में इस तरह का आदेश कैसे निकाला जा सकता है?”
“हां, अगर शिक्षक सड़क जाम करते हैं, आगजनी, तोड़फोड़ करते हैं, तो निश्चित तौर पर सरकार कार्रवाई करे, लेकिन संवैधानिक तरीके से प्रदर्शन पर कार्रवाई का आदेश तानाशाही है,” उन्होंने कहा।
Also Read Story
भारतीय संविधान के आर्टिकल 19(1)(बी) में देश के हर नागरिक को बिना किसी हथियार के एक जगह जुटान कर सार्वजनिक बैठक, भूख हड़ताल, जुलूस निकालने का अधिक दिया गया है। इसी आर्टिकल में यह भी कहा गया है कि देश के हर नागरिक को बोलने और भाव व्यक्त करने का अधिकार है।
पटना हाईकोर्ट के वकील शाश्वत इस आदेश को तानाशाही करार देते हुए कहते हैं, “यह बिल्कुल असंवैधानिक है। आप लोगों से अपना विरोध दर्ज कराने का स्पेस खत्म दे रहे हैं। जरूरी नहीं है कि सरकार के हर फैसले से लोग खुश ही हों। अगर कोई सरकार के फैसले से खुश नहीं है, तो वह संवैधानिक तरीके से अपना विरोध दर्ज करा सकता है। प्रदर्शन का अधिकार तो मौलिक अधिकार है।”
“इस आदेश को कोर्ट में चुनौती दी सकती है और कोर्ट इस आदेश को खारिज भी कर सकता है,” उन्होंने कहा।
भाकपा-माले ने भी जतायी आपत्ति
बिहार सरकार के इस आदेश पर भाकपा-माले ने भी आपत्ति जताई है। भाकपा-माले बिहार की महागठबंधन सरकार का हिस्सा है।
पार्टी के राज्य सचिव कुणाल ने कहा, “नई शिक्षक नियमावली का विरोध कर रहे आंदोलित शिक्षकों के साथ बातचीत के बजाय आंदोलन करने पर कार्रवाई की धमकी देना बेहद निंदनीय और अलोकतांत्रिक है।”
“हम बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मांग करते हैं कि शिक्षा विभाग के आदेश को तत्काल वापस लिया जाए। सरकार को शिक्षकों की बातें सहानुभूतिपूर्वक सुननी चाहिए और उसका समुचित हल निकालना चाहिए। दमन की भाषा का इस्तेमाल करना कोई समाधान नहीं है,” उन्होंने कहा।
कुणाल आगे कहते हैं, “सराकर जो नई शिक्षक नियमावली लेकर आई है, उसमें परीक्षा के प्रावधान को लेकर शिक्षकों में आक्रोश बै और वे आंदलन कर रहे हैं। हमारी पार्टी ने इस आंदोलन का समर्थन किया है। इस देश में हर किसी को लोकतांत्रिक तरीके से विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार है । ऐसे में हागठबंधन की सरकार ऐसा फरमान कैसे ला सकती है?”
जिला शिक्षा पदाधिकारी असमंजस में
कार्रवाई के सरकार के आदेश को लेकर जिला शिक्षा पदाधिकारी असमंजस की स्थिति में हैं। मैं मीडिया ने कई जिलों के शिक्षा पदाधिकारियों से इस संबंध में बात की, लेकिन उनमें कार्रवाई को लेकर कोई स्पष्टता नहीं दिखी।
एक जिला शिक्षा पदाधिकारी ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि जो प्रावधान होगा, उसके तहत कार्रवाई की जाएगी। यह पूछे जाने पर कि क्या प्रावधान है, तो उन्होंने कुछ भी बोलने से इनकार करते हुए फोन काट दिया।
एक अन्य जिला शिक्षा पदाधिकारी ने कहा कि वह कानून के अनुसार कार्रवाई करेंगे, लेकिन जब उनसे पूछा गया कि कानून के अनुसार क्या कार्रवाई हो सकती है, तो उन्होंने भी फोन काट दिया।
वहीं, एक अन्य शिक्षा पदाधिकारी ने स्पष्ट तौर पर कहा कि अभी स्पष्ट नहीं है कि क्या कार्रवाई करनी है।
“बहुत पहले से नियम बना हुआ है कि कार्य बाधित कर कोई प्रदर्शन वगैरह नहीं किया जा सकता है और ऐसा करने वालों के लिए कार्रवाई का प्रावधान है। लेकिन कोई संवैधानिक तरीके से प्रदर्शन करेगा, तो उसके खिलाफ कार्रवाई का कोई प्रावधान नहीं है,” उन्होंने कहा।
गौरतलब हो कि यह पहली बार नहीं है जब बिहार सरकार ने इस तरह के आदेश निकाले हैं। इससे पहले भी कई बार इस तरह के विवादित फरमार जारी होते रहे हैं।
जनवरी 2021 में बिहार पुलिस की आर्थिक अपराध इकाई, जो साइबर अपराध भी देखती है, ने सभी विभागों को पत्र लिखकर कहा था कि अगर कोई भी व्यक्ति सरकारी अधिकारियों व मंत्रियों के खिलाफ सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट डालता है, उन पोस्ट को साइबर अपराध माना जाएगा और उसी अनुसार कार्रवाई की जाएगी। सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस आदेश को सोशल मीडिया पर सेंसरशिप करार दिया था।
उसी साल फरवरी में बिहार के तत्कालीन डीजीपी एसके सिंघल ने फरमान जारी किया था कि अगर कोई व्यक्ति पूर्व में विरोध प्रदर्शन, रोड जाम आदि में शामिल पाया गया, तो उसे न तो सरकारी नौकरी दी जाएगी और न ही कोई ठेका मिलेगा।
सीमांचल की ज़मीनी ख़बरें सामने लाने में सहभागी बनें। ‘मैं मीडिया’ की सदस्यता लेने के लिए Support Us बटन पर क्लिक करें।
