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बिहार पंचायत उपचुनाव में माहौल – ‘हमको नहीं पता यहाँ चुनाव है’

किशनगंज जिले के जिला परिषद क्षेत्र संख्या 17 में इन दिनों पंचायत उपचुनाव चल रहे हैं। इस उपचुनाव में ज़िले के किशनगंज प्रखंड स्थित पांच पंचायतों के लोग 25 मई को मतदान करेंगे और 27 मई को नतीजे आएंगे।

syed jaffer imam Reported By Syed Jaffer Imam |
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दिवंगत जिला परिषद सदस्य इसराईल हक़ के पुत्र अशरफ़ुल हक़ भी चुनावी मैदान में हैं

किशनगंज जिले के जिला परिषद क्षेत्र संख्या 17 में इन दिनों पंचायत उपचुनाव चल रहे हैं। इस उपचुनाव में ज़िले के किशनगंज प्रखंड स्थित पांच पंचायतों के लोग 25 मई को मतदान करेंगे और 27 मई को नतीजे आएंगे। इन पांच पंचायतों में बेलवा, हालामाला, मोतिहारा तालुका, सिंघिया कुलामनी और गाछपाड़ा शामिल हैं। जिला परिषद् के सदस्य मोहम्मद इसराईल के देहांत के बाद यह सीट खाली हुई थी। इसराइल किशनगंज जिला परिषद के उपाध्यक्ष भी थे। इस उपचुनाव के बाद ज़िले में नए जिला परिषद उपाध्यक्ष का भी चयन होना है।

इस उपचुनाव में 7 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं। इन पाँचों पंचायतों में कुल वोटरों की संख्या करीब 20,000 है। उम्मीदवारों में महबूब आलम, अब्दुल कबीर, बख्तियार आलम, शंभु यादव, रगीबुल ऐन, अबू क़ैसर और दिवंगत नगर परिषद इसराईल के पुत्र अशरफ़ुल हक़ के नाम हैं, जो चुनावी मैदान में अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं।

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पंचायत उपचुनाव को लेकर नहीं दिखा उत्साह

उपचुनाव से लगभग 1 सप्ताह पहले हमने बेलवा और गाछपाड़ा के अलग अलग मोहल्लों में जाकर लोगों से बात की। उपचुनाव के उम्मीदवारों की प्रचार गाड़ी के शोर के बावजूद अधिकतर लोग 25 मई को होने वाले उपचुनाव के बारे में अद्यतन नहीं देखे। कई लोगों को तो उपचुनाव की तारीख के बारे में पता भी नहीं था।


‘यहाँ चुनाव की चर्चा नहीं’

गाछपाड़ा मार्केट स्थित मंडी के सब्ज़ी विक्रेताओं में से अधिकतर लोग उपचुनाव से अनजान दिखे। इस बारे में सब्ज़ी विक्रेता इल्यास कहते हैं, “यहाँ चुनाव की कोई चर्चा नहीं है। हमको तो पता भी नहीं था कि चुनाव हो रहा है।”

हमने उन्हें बताया कि 25 मई को जिला परिषद के लिए उपचुनाव होने हैं। हमने उनसे इस उपचुनाव के ज़मीनी मुद्दों के बारे में पूछा तो इल्यास ने कहा कि मुद्दा वही पुराना है लेकिन इलेक्शन में मुद्दों को कोई याद नहीं रखता।

गाछपाड़ा मार्केट में बैठी एक और सब्ज़ी विक्रेता से बात करने पर महिला ने कहा कि यहाँ कोई पूछने वाला नहीं है। कब है वोट वो भी नहीं पता। हालाँकि महिला ने कहा कि वह वोट देने ज़रूर जाएंगी। किन्हीं कारणों से उन्होंने अपना नाम बताने से मना कर दिया।

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गाछपाड़ा मारकेट स्थित मंडी के सब्ज़ी विक्रेताओं में अधिकतर लोग आगामी उपचुनाव से अनजान दिखे।

पास में ही ठेले पर ‘फ़ास्ट फ़ूड’ की दूकान चलाने वाले बाबुल हुसैन गाछपाड़ा स्थित वार्ड संख्या 8 के रहने वाले हैं। उनके मोहल्ले में ज़मीनी तौर पर क्या समस्याएं हैं उसके बारे में वह कहते हैं, “हमारे यहाँ सबसे ज़्यादा शौचालय और नाले की दिक्कत है। जो भी चुनाव में जीते, हमारा यह काम करवाना ज़रूरी है। नाला और सफाई वग़ैरह के अलावा राशन कार्ड की भी समस्या है। बहुत लोग ऐसे हैं जिनको राशन कार्ड नहीं मिला है, इन चीज़ों पर भी ध्यान देना चाहिए।”

बाबुल ने आगे कहा कि अभी तक तो कोई उम्मीदवार मिलने नहीं आया है, अगर आया तो वह मांग रखेंगे कि नाला और शौचालय का काम हो और जिनका राशन कार्ड नहीं है उनका राशन कार्ड बने।

ग्रामीण ज़्यादा इच्छुक नहीं

बेलवा पंचायत अंतर्गत बेलवा हाट में भी कई लोग आगामी जिला परिषद उपचुनाव के बारे में बात करने में ज़्यादा इच्छुक नहीं दिखे। बेलवा निवासी आकिब रज़ा ने बताया कि पिछले कुछ दिनों से उम्मीदवारों के प्रचार प्रसार की सरगर्मियां तेज़ हुई हैं लेकिन अधिकतर लोग उपचुनाव के बारे में ज़्यादा बात नहीं कर रहे हैं।

बेलवा हाट के एक नौजवान ने कहा, “जिला परिषद सदस्य को कितना फंड मिलता है इसकी जानकारी किसी को नहीं है, जब हम विकास के बारे में पूछते हैं तो कहा जाता है कि फंड उतना है ही नहीं तो क्या काम होगा।” उस नौजवान ने अपनी पहचान न ज़ाहिर करने की शर्त पर इस मुद्दे पर अपनी राय रखी।

उसने आगे कहा कि दिवंगत जिला परिषद सदस्य इसराईल ने शौचालय और कुछ छोटी मोटी सड़कों का काम करवाया था लेकिन चूँकि फंड ज़्यादा नहीं मिलता है तो बहुत सारा काम ऐसे ही पड़ा रहता है।

हमने इसके बाद और कई लोगों से उपचुनाव के बारे में उनके विचार रखने को कहा लेकिन अधिकतर लोग कतराते नज़र आए। एक व्यक्ति ने कहा, “चुनाव हो जाने दीजिए फिर तो पता लग जाएगा कि किसका पल्ला भारी है। हमलोग क्या कहें सबलोग (उम्मीदवार) तो अपना ही आदमी है।”

हमने गांव की कुछ महिलाओं से उनकी राय भी मांगी, लेकिन उन्होंने उपचुनाव के विषय में जानकारी का अभाव कारण बताकर अपनी राय रखने से इनकार कर दिया। हालांकि बीए की एक छात्रा ने बिना नाम बताए अपने विचार रखे। छात्रा ने कहा कि सारे उम्मीदवार जान पहचान के ही हैं। बस जो जीत जाएं वह असली मुद्दों पर काम करे। उसने आगे कहा, “अब तक कोई उम्मीदवार उसके मोहल्ले में नहीं आया है। जब वह आएगा, तो विचार करेंगे कि अपना मत किसको देना है।”

‘यहाँ जाति के नाम पर होते हैं चुनाव’

बेलवा पंचायत निवासी सैयद हसन ने कहा इस उपचुनाव में मुद्दे कहीं पीछे छूट गए है, मतदान तो जाति के नाम पर ही होता है। उन्होंने कहा, “जिला परिषद में फंड कम आने के कारण नाला तो बन गया, लेकिन इसमें सफाई नहीं होती है। यहाँ तीन सफाई कर्मी की बहाली होनी थी, लेकिन एक ही सफाई कर्मी रखा गया। एक आदमी से इतनी सफाई नहीं हो पा रही है। पिछले चुनाव के बाद नगर परिषद द्वारा पंचायत में शौचालय बनवाया गया था। फिलहाल तो बस वही काम दिखाई दे रहा है, और तो कुछ नहीं है।”

सैयद हसन आगे कहते हैं, “बेलवा हाट में सड़क थोड़ी ठीक है लेकिन आसपास के गांव, पंचायत में, बरसात में आना जाना बहुत दुश्वार हो जाता है। पूर्व जिला परिषद सदस्य जो थे, उन्होंने अपने पैसों से कुलामनी पंचायत के चौंदी में सड़क बनवाये थे। यही दो-एक काम दिखाई दे रहा है पहले तो और भी कुछ दिखाई नहीं देता था। यहाँ पर जातिवाद पर वोट होता है इसलिए यहाँ पर मुद्दा गोल हो जाता है। जिस दिन मुद्दों पर वोट हो जाए, उस दिन पंचायत की समस्या ख़त्म हो जाएगी।”

इस जिला परिषद उपचुनाव में सभी उम्मीदवार परुष हैं। उम्मीदवारों में महिलाओं की भागीदारी न होने के बारे में सैयद हसन ने कहा, “हमारे यहाँ महिलाएं ज़्यादा इच्छुक नहीं हैं। न ही उन्हें प्रोत्साहित किया जाता है, इसी लिए वह सामने नहीं आ पाती हैं। हम लोगों को चाहिए कि हमारी महिलाओं को प्रोत्साहित कर के उन्हें आगे बढ़ाया जाए।”

बेलवा पंचायत वार्ड संख्या 8 के वार्ड सदस्य शाकिर आलम ने कहा कि जिला परिषद में अधिक फंड नहीं मिलता है फिर भी जो भी पुल, सड़क, नाली का काम है वो करवाना है और उसी मुद्दे पर मतदान होगा। उन्होंने आगे कहा कि इस उपचुनाव में लोगों का उतना रुझान नहीं है। बाकी चुनावों के मुकाबले कम मतदान होंगे।

उम्मीदवारों के अहम मुद्दे क्या हैं

25 मई को होने वाले उपचुनाव में अब्दुल कबीर सात उम्मीदवारों में से एक हैं। वह मोतिहारा तालुका से आते हैं और 2021 मुख्य चुनाव भी उन्होंने लड़ा था। उनके अनुसार, उपचुनाव का मुख्य मुद्दा विकास है। अब्दुल कबीर कहते हैं, “क्षेत्र में बहुत ही बदहाली है। चाहे शिक्षा हो, बिजली हो या स्‍वास्‍थ्‍य हो, यहां बहुत सारे छोटे छोटे काम हैं, जो नहीं हो पा रहे हैं। ग़रीब लोगों का राशन कार्ड नहीं बन पा रहा है। यहाँ के नेता लोग में लीडरशिप नहीं है, बस ऐसे ही बकवास करते हैं। 2021 में भी हम चुनाव लड़े थे। उस समय भी मुझे लोगों का बहुत प्यार मिला था और इस बार भी बहुत अच्छा ‘रिस्पांस’ मिल रहा है।”

उन्होंने आगे कहा, “लोग चाहते हैं यहाँ पर कोई युवा जिला परिषद सदस्य बने जो शिक्षित हो, कर्मठ हो, जो लोगों के साथ मिलजुल कर चले। यहाँ के लोगों का कहना है कि जिनके अंदर लीडरशिप हो वह नेता चाहिए हमको। जिनका ‘एक्टिविटी’ बढ़िया हो, जो नेतागिरी के लायक हो। सिर्फ पैसा होने से नहीं होगा। जनता जनार्दन है। साल 2021 में अच्छा खासा वोट आया था हमको। लोग कह रहे हैं आप आइए, इसलिए हम दोबारा (चुनाव लड़ने) आए हैं। हमारे यहाँ इतनी बदहाली है लेकिन यहाँ के नेता जात-पात की राजनीति करते हैं। हम हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सबको साथ लेकर चलते हैं। विरासत में बाप की गद्दी मिलती है बुद्धि नहीं। हम जनता से यही कहना चाहते हैं कि जिनके अंदर लीडरशिप हो और जो काम करे क्षेत्र के लिए आप उसको वोट करें।”

गाछपाड़ा पंचायत के रहने वाले बख्तियार आलम इस उपचुनाव में सबसे कम आयु के उम्मीदवार हैं। 24 वर्षीय बख्तियार आलम ने कहा, “पहले हम टाउन में रहते थे। जब गांव में आए, यहाँ की हालत देखे, तो लगा कि यहाँ पर कुछ करना चाहिए। उसके लिए एक ज़रिया है कि चुनाव लड़कर एक पद पर आएं, जिससे हम कुछ अच्छा करें। हमारे इलाके में सबसे बड़ा मुद्दा है कि बाढ़ में लोगों के घर और खेत कट जाते हैं, जिससे ग़रीब जनता परेशान होती है। मुख्य मुद्दा यही है। इसके अलावा वृद्धा पेंशन और ‘जॉब कार्ड’ का मुद्दा है।”

बख्तियार ने आगे कहा, “अगर हम जीत जाते हैं तो शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य तो है ही, इसके अलावा कटान-धसान पर काम करेंगे। साथ साथ ग़रीबों के पास जो योजना पूर्ण रूप से नहीं पहुंच पाती है, उसको हम पहुंचाने की पूरी कोशिश करेंगे। यहाँ के मतदाताओं से यही कहेंगे कि एक बार हमको मौका दीजिए। ज़्यादा नहीं ढाई साल का वक्त है, ढाई साल हमें मौका दीजिये अगर हम काम नहीं किये, तो ढाई साल बाद फिर चुनाव आएगा, हमको हटा दीजिएगा। यहाँ जो नेता है सब हवाबाज़ है। अगर हम जीतते हैं, तो ज़मीनी स्तर पर काम करेंगे। अगर हम काम नहीं करते हैं, तो दोबारा वोट मांगने नहीं जाएंगे।”

अबू क़ैसर आलम 2016 से 2020 तक जिला परिषद सदस्य रहे थे। 2021 के चुनाव में वह इसराईल हक़ से हार गए थे। इस उपचुनाव में वह फिर अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि वह इस उपचुनाव में भ्रष्टाचार के विरुद्ध काम करने के लिए लोगों से वोट मांग रहे हैं।

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बेलवा हाट में जिला परिषद उपचुनाव उम्मीदवार अबू क़ैसर के ‘नुक्कड़ सभा’ का नज़ारा

“मैं भ्रष्टाचार के विरुद्ध हमेशा लड़ता हूँ। 2012 से मैंने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ना शुरू किया, जिसके चलते माफियाओं ने मुझपर कई झूठा एफआईआर कर दिया। मैं सच्चाई के साथ था तो मुझे सफलता भी मिली उसमें। मेरा एक ही मुद्दा है – जहां भी भ्रष्टाचार है उसे वहीं रोका जाए। अगर पंचायत स्तर पर सारे नेता भ्रष्टाचार को खत्म कर दें, तो हम दिल्ली तक भ्रष्टाचार को ख़त्म कर सकते हैं।”

” साल 2016 के समय इंसाफ का राज था, अब फिर भ्रष्टाचार का राज आया है। ग़रीबों को इंसाफ नहीं मिलता है। आवास योजना में सेवक और मुखिया ग़रीब का 30-35 हज़ार लेता है, तब ही आवास का पैसा आवंटित होता है। मेरे समय ऐसा नहीं था। मेरे मेनिफेस्टो में भ्रष्टाचार और बेरोज़गारी सबसे अहम मुद्दा है। 2016 से 2019 तक सरकार ने कोई फंड ही नहीं दिया। पंचम योजना जो जिला परिषद का डायरेक्ट फंड होता है, उसमें सरकार ने आखिर में थोड़ा सा पैसा आवंटित किया। उसमें भी 15% पैसा प्रखंड समिति को मिलता है। इसलिए हम पांच सालों में ज़्यादा विकास नहीं कर पाए। पैसा ही नहीं आएगा तो विकास कहाँ से होगा,” अबू क़ैसर कहते हैं।

उन्होंने आगे कहा, “जहां तक इंसाफ की बात आती है, तो मैं समझता हूँ कि आगे घरेलु मसले हैं, उन्हें हम पंचायत में ख़त्म करेंगे तो कोर्ट में भीड़ नहीं लगेगी। इससे लोगों का पैसा नाजायज़ कोर्ट में और पुलिस में नहीं जाएगा।”

हमने दिवंगत नेता इसराईल हक़ के पुत्र अशरफुल हक़ से कई बार फ़ोन कर मिलने के लिए समय मांगा, लेकिन उन्होंने व्यस्त कार्यक्रम का हवाला देते हुए उपचुनाव पर बात करने से मना कर दिया।

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सैयद जाफ़र इमाम किशनगंज से तालुक़ रखते हैं। इन्होंने हिमालयन यूनिवर्सिटी से जन संचार एवं पत्रकारिता में ग्रैजूएशन करने के बाद जामिया मिलिया इस्लामिया से हिंदी पत्रकारिता (पीजी) की पढ़ाई की। 'मैं मीडिया' के लिए सीमांचल के खेल-कूद और ऐतिहासिक इतिवृत्त पर खबरें लिख रहे हैं। इससे पहले इन्होंने Opoyi, Scribblers India, Swantree Foundation, Public Vichar जैसे संस्थानों में काम किया है। इनकी पुस्तक "A Panic Attack on The Subway" जुलाई 2021 में प्रकाशित हुई थी। यह जाफ़र के तखल्लूस के साथ 'हिंदुस्तानी' भाषा में ग़ज़ल कहते हैं और समय मिलने पर इंटरनेट पर शॉर्ट फिल्में बनाना पसंद करते हैं।

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