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बिहार का ‘मोर गाँव’, जहाँ सैकड़ों मोर लोगों के बीच रहते हैं

सहरसा जिला मुख्यालय से तकरीबन छह किलोमीटर की दूरी पर बसा सत्तर कटैया प्रखंड की विशनपुर पंचायत का आरण गांव को 'मोर गांव' के नाम से भी जाना जाता है।

Sarfaraz Alam Reported By Sarfraz Alam |
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peacock village of saharsa

सहरसा जिला मुख्यालय से तकरीबन छह किलोमीटर की दूरी पर बसा सत्तर कटैया प्रखंड की विशनपुर पंचायत का आरण गांव को ‘मोर गांव’ के नाम से भी जाना जाता है। आरण गांव बिहार का पहला ऐसा गांव है, जहां तकरीबन 500 मोर और मोरनियों का बसेरा है। गांव के घर, गली व खेतों में मोर यूं ही चलते फिरते दिखते हैं। सभी मोर इस गांव के लोगों के साथ अच्छी तरह घुल मिल गए हैं। इनकी एक झलक देखने के लिए इस गांव में आसपास के इलाके के लोग भी आते रहते हैं।


स्थानीय निवासी अंकुर कुमार यादव बताते हैं कि और इस गांव के लोगों को अच्छी तरह पहचानते हैं और उनके साथ घुल मिलकर रहते हैं लेकिन जब कोई बाहरी आदमी जींस पैंट वगैरह पहन कर आता है, तो मोर उनसे डर कर भाग जाते हैं। वह आगे बताते हैं कि ये मोर गांव वासियों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते। अगर थोड़ा बहुत नुकसान होता भी है तो गांव वालों की तरफ से उन्हें कुछ नहीं कहा जाता। अंकुर कुमार का मानना है कि यहां मोरों के लिए कोई व्यवस्था होगी, तो रोजगार के साधन भी बढ़ेंगे।

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यहां इतनी संख्या में मोर के होने की सूचना पर 17 दिसंबर 2016 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी आरण गांव आए थे। मुख्यमंत्री के आने से पहले वन सरंक्षक ने डीएफओ के साथ गांव का दौरा कर इससे संबंधित जानकारी ली थी। उस वक्त अभ्यारण्य को लेकर चर्चा थी। हालांकि बाद में वन विभाग के अधिकारियों द्वारा सहरसा में जयप्रकाश उद्यान में मोरों को रखने की बात हुई थी। लेकिन इस पर आगे कोई काम नहीं हुआ ।


बताया जाता है कि गांव के ही बुजुर्ग हरिनंदन कुमार उर्फ कारी झा 25 साल पहले पंजाब से 1 जोड़ी मोर और मोरनी लाए थे। इसके बाद उनका कुनबा फैल कर इतना बड़ा हो गया कि अब इस गांव को लोग मोर गांव के नाम से जानते हैं।

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एमएचएम कॉलेज सहरसा से बीए पढ़ा हुआ हूं। फ्रीलांसर के तौर पर सहरसा से ग्राउंड स्टोरी करता हूं।

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