बिहार के कटिहार जिले के कदवा प्रखंड अंतर्गत माहिनगर गांव में साल भर पहले महानंदा नदी के किनारे एक स्कूल हुआ करता था, जिसका नाम प्राथमिक विद्यालय बेनीबाड़ी था। स्कूल के आस-पास सैकड़ों घरों के साथ एक पूरा मोहल्ला बसा था। स्कूल के सामने काली मंदिर भी था।
लेकिन, आज वहां न तो स्कूल का कोई नामोनिशान है, न काली मंदिर का और न ही स्कूल के आस-पास बसे पूरे मोहल्ले का।
महानंदा नदी ने इस कदर कहर ढाया कि उस जगह पर सिर्फ टूटी सड़कें, दलदल, रेत और स्कूल के सामने कभी लहलहा रहे पीपल के पेड़ के अवशेष बचे हैं।
बाढ़ में स्कूल का भवन बह जाने के बाद प्राथमिक विद्यालय बेनीबाडी़ को प्राथमिक विद्यालय शिकारपुर, बालक में शिफ्ट कर दिया गया है, जहां पर जगह कम होने के कारण दोनों स्कूल की कक्षाओं को कंबाइन कर दिया गया है। एक कक्षा में दो शिक्षक पढ़ाते हैं।
ऑफिस के लिए पर्याप्त जगह नहीं है, इसलिए एक कमरे को दो भाग में बांट दिया गया है। पुरानी अलमारी टूटी फूटी कुर्सी और पुराने बक्से दोनों स्कूल के ऑफिस को दो भागों में बांटती है।
प्राथमिक विद्यालय शिकारपुर बालक के प्रांगण में जब मैं मीडिया की टीम पहुंची, तो बच्चों के शोर मचाने की आवाज चारों तरफ गूंज रही थी।
वहीं, दूसरी तरफ प्राथमिक विद्यालय बेनीबाड़ी के कार्यालय में स्कूल के प्राचार्य कुमारी दीपाली कुछ कागजात देख रही थी।
दूसरे स्कूल में बच्चों लाने में हुई कठिनाई
कुमारी दीपाली ने बताया कि शिफ्ट होने के बाद स्कूल चलाने में काफी ज्यादा परेशानी हुई। शुरुआत में बच्चे बिल्कुल नहीं आते थे। ज्यादातर बच्चे हरिजन समाज के थे और वर्तमान में स्कूल उसी गांव के मुस्लिम मोहल्ले के बगल में शिफ्ट किया गया है, इसीलिए ज्यादातर अभिभावकों का कहना यह था कि हम लोग मुस्लिम मोहल्ले में शिफ्टेड स्कूल में पढ़ने के लिए अपने बच्चों को नहीं भेजेंगे।
इसी वजह से लगातार तीन महीने तक स्कूल में बच्चे नहीं के बराबर पढ़ने आते थे, फिर स्कूल के शिक्षकों द्वारा बार-बार मोटिवेट करने के बाद कुछ-कुछ बच्चे धीरे-धीरे आने लगे।
घर घर जाकर अभिभावकों को समझाना पड़ा कि यहां हिंदू मुस्लिम जैसी कोई बात नहीं है, आप लोग अपने बच्चों को पढ़ने जरूर भेजें, नहीं तो बच्चों की पढ़ाई में नुकसान होगा।
कुछ अभिभावकों का कहना था कि पहले स्कूल अपने मोहल्ले में होने के कारण छोटे बच्चे आसानी से चले जाते थे लेकिन अब स्कूल दूसरे मोहल्ले में है, इसलिए छोटे बच्चों के लिए सड़क पार कर स्कूल जाना खतरनाक हो सकता है।
कुमारी दीपाली ने आगे बताया कि अब सब कुछ ठीक-ठाक है। अब बच्चे आने लगे हैं। पढ़ाई भी हो रही है और बच्चों को मिड डे मील भी ठीक-ठाक मिल रहा है। मेनू के हिसाब से बच्चों को खाना दिया जाता है।
हालांकि, वास्तविकता इस दावे के बिल्कुल विपरीत थी।
स्कूल में लगभग 100 से ज्यादा बच्चे नामांकित हैं, लेकिन दोनों स्कूल के कंबाइन क्लास होने के बावजूद कक्षा में गिने-चुने बच्चे ही नजर आ रहे थे। बच्चे इधर-उधर घूम रहे थे, कुछ बच्चे ही पढ़ाई कर रहे थे। बच्चों को बैठने के लिए चटाई की व्यवस्था थी।
स्कूल की बावर्ची खाने में खिचड़ी पका रही रसोइया ने बताया कि आज लगभग 30 बच्चों का भोजन बन रहा है।
नदी में बह गए फर्नीचर, बर्तन
स्कूल में फर्नीचर की कमी थी जिसके बारे में प्रधानाध्यापक कुमारी दीपाली ने कहा कि जब स्कूल का भवन नदी में गिर रहा था, उस दिन हम छुट्टी में थे, तब कुछ ही सामान को निकाला जा सका, आधे से ज्यादा फर्नीचर नदी में बह गए।
“सबसे ज्यादा रसोई घर के बर्तन और खाना बनाने का बाकी सामान बह गए। लगभग 90% बर्तन नदी में बह गया था अभी भी हमारे पास जरूरत की सभी चीजें उपलब्ध नहीं है,” उन्होंने कहा।
आगे जानकारी देते हुए कुमारी दीपाली ने कहा कि नया स्कूल भवन निर्माण के लिए लगभग 6 से 7 डिसमिल जमीन की जरूरत होगी और नया स्कूल बनाने के लिए हमने लगभग 10 बार चिट्ठी लिखा, जिसका सबूत हमने रखा हुआ है।
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जिस स्कूल में शिफ्ट हुआ उसकी व्यवस्था भी लचर
प्राथमिक विद्यालय बेनीबारी को जिस स्कूल में शिफ्ट किया गया है, उस स्कूल (प्राथमिक विद्यालय शिकारपुर, बालक) की भी व्यवस्था लचर दिखाई दी।
दोपहर 12 बजे भी स्कूल का ऑफिस बंद था और स्कूल में प्रिंसिपल मौजूद नहीं थे।
दो स्कूलों के कंबाइन क्लास होने के बावजूद बच्चे बहुत कम थे, जबकि स्कूल में 196 छात्रों का नामांकन है।
एक कक्षा में कुछ छात्र बैठे थे, जिनमें सोनी कुमारी और पलक कुमारी भी शामिल थीं। वे घर से पानी भरा बोतल साथ लेकर आई थीं।
कारण पूछने पर बताया कि स्कूल में चापाकल है, जिसका पानी बिल्कुल भी पीने लायक नहीं है। पानी में बहुत ज्यादा आयरन की समस्या है इसलिए छात्र हो या शिक्षक सभी घर से पानी लेकर आते हैं।
सहायक शिक्षक मोहम्मद इम्तियाज आलम ने बताया कि अभी बच्चे चटाई में बैठ कर पढ़ते हैं, जो प्रिंसिपल के पैसे से खरीदे जाते हैं। बच्चों के बैठने के लिए चटाई का पैसा सरकार की तरफ से नहीं आता है।
ठंड के दिनों में भी बच्चे इसी प्लास्टिक की चटाई में बैठकर पढ़ाई करते हैं।
“स्कूल तक पहुंचने के लिए कोई रास्ता नहीं है। निजी जमीन से होकर छात्र छात्राएं और शिक्षक स्कूल तक पहुंचते हैं। हर साल बरसात के दिनों में महीनों तक रास्ते में कीचड़ भरा रहता है, बच्चों और शिक्षकों को जूता चप्पल हाथ में लेकर लगभग सो डेढ़ सौ मीटर कीचड़ से होकर स्कूल पहुंचना होता है,” इम्तियाज आलम ने कहा।
जहां गांव आबाद था, वहां अब क्या है
अब हम महानंदा नदी के किनारे उस जगह पहुंचे, जहां साल भर पहले प्राथमिक विद्यालय बेनीबाड़ी हुआ करता था। चारों तरफ सुनसान दृश्य बहुत ही मार्मिक और भयावह था। साल भर पहले यहां जिंदगी फल-फूल रही थी लेकिन आज उस जगह पर दलदल, रेत और पानी नजर आ रहा था।
नदी के किनारे कुछ दूरी पर नदी की एक पतली सी धारा बह रही है। घुटने भर तक पानी वाली इस धारा में पानी बहुत साफ दिखाई दे रहा है, जिसमें कुछ बच्चे खेल रहे हैं और औरतें कपड़े धो रही हैं। बगल में एक सड़क टूटी हुई है। पतली धारा और नदी के बीच एक पुराना पेड़ सड़ रहा है। यह पेड़ साल भर पहले बिल्कुल हरा भरा था और स्कूल के बच्चों और स्कूल के सामने बने काली मंदिर के श्रद्धालुओं को छांव देता था।
साल भर पहले स्कूल के बगल में मनमोहन राय का घर हुआ करता था। उस समय उन्होंने बताया था कि अब हम लोगों का घर भी नदी में समा जाएगा। हम लोगों को देखने के लिए बहुत नेता आते हैं, फोटो खिंचवाते हैं और आश्वासन देकर चले जाते हैं। अधिकारी भी आए थे प्लास्टिक देने का वादा कर फिर कभी नहीं आए।
न चाहते हुए भी आज मनमोहन राय के पूरे परिवार को दूसरी जगह जाना पड़ा है।
प्राथमिक विद्यालय बेनीबाड़ी के भू-दाता अनवर अली ने बताया कि यहां का पूरा का पूरा गांव नदी में समा चुका है। स्कूल भी नदी में गिर गया जिसका जिम्मेदार बाढ़ नियंत्रण विभाग के लोग हैं।
शफ़क़त फातमा, उसकी बहन और आसपास की कई लड़कियां इस स्कूल में कक्षा दूसरी, तीसरी और चौथी में पढ़ाई करती हैं। वे जो हर दिन स्कूल जाती थीं, लेकिन स्कूल कट जाने के बाद जब दूसरी जगह शिफ्ट किया गया, तब से माहीनगर मोहल्ले की ज्यादातर बच्चियां अभी स्कूल नहीं जाती हैं।
स्थानीय निवासी मोहम्मद मसूद आलम ने मैं मीडिया को बताया कि स्कूल दूर हो जाने की वजह से हम लोग अब बच्चियों को स्कूल नहीं भेजते हैं। मोहल्ले में ही बड़ी बच्चियों के पास पढ़ने जाती हैं।
आगे मोहम्मद मसूद आलम ने बताया कि उनका जन्म आजादी से पहले हुआ है और इतने वर्षों में कई बार उनका घर नदी में समा चुका है।
लेकिन गांव के बच्चों का भविष्य खराब ना हो जाए, इसलिए उन्होंने स्कूल के लिए भूमि दान करने का फैसला किया है। उन्होंने कहा कि 1955 में उन्होंने शिकारपुर हाई स्कूल के लिए जमीन दान दी थी और 1946 में भी मिडिल स्कूल के लिए जमीन दी थी। इस बार भी वह वहीं स्कूल के लिए भूमि दान करने के इच्छुक हैं।
इस मामले में कदवा के ब्लॉक एजुकेशन ऑफिसर राजमणि महतो ने कहा कि स्कूल जहां पर शिफ्ट किया गया है, वह ज्यादा दूर नहीं है, आराम से बच्चे आना-जाना कर सकते हैं। दोनों स्कूल को मर्ज कर दिया जाएगा, जिसके लिए विभाग से चिट्ठी भी आई हुई है।
नया स्कूल बनवाने की मांग पर उन्होंने कहा कि अभी बहुत देर हो चुकी है। उस वक्त भूदान के लिए कोई सामने नहीं आया। अगर बहुत ज्यादा समस्या हो रही है तो इसके लिए आवेदन देने पर आगे की प्रक्रिया की जाएगी।
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