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प्रशासनिक लापरवाही से बढ़ रही सरकार अधिग्रहित जमीन पर निजी दावेदारी

अधिग्रहित भूमि पर जिला बनने के बाद 1990 में जिला कृषि कार्यालय और फार्म हाउस भी बनाया गया था, जो आज तक चल रहा है। लेकिन 67 वर्ष के बाद उस अधिग्रहित भूमि को सरकार की राजस्व पंजी में अररिया अंचल कार्यालय द्वारा दर्ज नहीं किया गया, जिस कारण भूमि दाताओं के वंशज आज भी उस भूमि की रसीद सीओ कार्यालय से कटवा रहे हैं।

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agriculture department araria

अररिया: भूमि विवाद के मामले जिले में लगातार बढ़ते जा रहे हैं। इस विवाद के कारण जिले में आए दिन गोलीबारी, हत्या जैसे मामले सामने आते हैं। हाल ही में भरगामा प्रखंड के रघुनाथपुर गोठ गांव में भूमि विवाद को लेकर चली गोली में दो लोगों की मौत हो गई थी। अगर इसके पीछे का कारण जानने की कोशिश करें तो इसमें अंचल कार्यालय और भूमि राजस्व से जुड़े लोगों की बड़ी भूमिका नजर आ रही है।


आरोप है कि जमीन मामलों में गलत तरीके से रसीद काट दिया जाता है या किसी का म्यूटेशन कर दिया जाता है, जिससे भूमि विवाद के मामले बढ़ रहे हैं। यही वजह है कि भूमि विवाद के हजारों मामले कोर्ट में वर्षों से लंबित हैं।

1956 में सरकार ने जमीन ली, अब पुराने मालिकों ने ठोंका दवा

ताजा मामला जिला कृषि कार्यालय से संबंधित है, जहां सरकार ने 1956 में तत्कालीन पूर्णिया जिले के भूअर्जन कार्यालय द्वारा 51.69 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया था। भूअर्जन कार्यालय द्वारा भूमि मालिकों को उसका मुआवजा भी दे दिया गया था। बिहार सरकार ने वर्ष 1956 में अपने गजट में भी इसे प्रकाशित कर दिया था।


अधिग्रहित भूमि पर जिला बनने के बाद 1990 में जिला कृषि कार्यालय और फार्म हाउस भी बनाया गया था, जो आज तक चल रहा है। लेकिन 67 वर्ष के बाद उस अधिग्रहित भूमि को सरकार की राजस्व पंजी में अररिया अंचल कार्यालय द्वारा दर्ज नहीं किया गया, जिस कारण भूमि दाताओं के वंशज आज भी उस भूमि की रसीद सीओ कार्यालय से कटवा रहे हैं।

उनका दावा है कि जब सरकार ने इतने वर्षों तक इसे अपनी पंजी में शामिल नहीं किया, तो इस भूमि पर मालिकाना हक उन लोगों का है।

बता दें कि 1956 में भूमि अधिकरण ग्रहण के दौरान बसंतपुर मौजा की खरिया बस्ती के सुखदेव झा, ककड़वा बस्ती के हाजी इजहार अली, बसंतपुर के रियासत खान, फरहत हुसैन, शेख सुभान व अन्य लोगों की जमीन का अधिग्रहण किया गया था। इन सभी को उसी समय सरकार ने मुआवजा भी दे दिया था। लेकिन अंचल कार्यालय की लापरवाही के कारण 1958 के सर्वे में इस जमीन का खतियान पुनः पुराने लोगों के नाम ही बना दिया गया। अब उनके वारिस उस अधिग्रहित भूमि पर दावा कर रहे हैं।

राजस्व भूमि विभाग उनके वारिसों के नाम से ही जमीन का रसीद काट रहा है जबकि सरकार ने अपने गजट में 1956 में ही यह प्रकाशित कर दिया था कि 51.69 जमीन बिहार सरकार की है। लेकिन, स्थानीय सीओ के द्वारा आज तक इस पर कोई भी स्पष्टीकरण नहीं दिया गया। इस कारण आज तक उसके मालिक भूमि दाताओं के वंशज ही हैं।

लापरवाही का आलम यहीं खत्म नहीं हुआ है। इस 51.69 एकड़ अधिग्रहित भूमि से बिना जांच किये 20 एकड़ जमीन पर अपर समाहर्ता ने मेडिकल कॉलेज बनाने के लिए सरकार के पास प्रस्ताव भी भेज दिया था।
जिला राजस्व विभाग की लापरवाही इस हद तक है कि बिहार व भारत सरकार ने जमाबंदी में सुधार व अपडेट करने के लिए जिले को करोड़ों रुपये दिये हैं। लेकिन सुधार तो दूर इसे जमाबंदी टू में कृषि कार्यालय का नाम चढ़ाने का समय तक नहीं मिला। इसमें सरासर अंचलाधिकारी की लापरवाही नजर आती है, जबकि अररिया अंचल कार्यालय जिला कृषि कार्यालय से सटा हुआ है।

दावेदारों ने शुरू की जमीन बेचने की प्रक्रिया

इधर, अधिग्रहित जमीन पर वंशजों ने मालिकाना हक जताकर अब इसे बेचने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। जानकारी के अनुसार, कुछ लोगों ने तो जिला कृषि विभाग की खाली पड़ी जमीन पर कब्ज़ा कर लिया है। जब इस रिपोर्टर ने स्थल का जायजा लिया, तो कृषि विभाग की खाली पड़ी जमीन पर टिन का मकान नजर आया। वहां मौजूद इशराफिल खान ने बताया कि यह जमीन उनके दादा रियासत खान की थी, जिसकी जमाबंदी उनके नाम से है और वह रसीद भी कटाते हैं।

government land in araria

उन्होंने बताया कि कुछ वर्ष पहले ही कृषि विभाग को ये जमीन खाली करने का आदेश कोर्ट ने दिया था। लेकिन, कृषि विभाग ने खाली नहीं किया है। जब इसके कागजात के बारे में पूूूछा गया तो उन्होंने बताया कि सारे कागज़ात उनके वकील के पास हैं।

इशराफिल खान ने बताया, “यहां हमारी दो एकड़ जमीन है, इसे हमने कब्जा किया है और मकान बनाकर रह रहे हैं। और भी लोग हैं जो आहिस्ता आहिस्ता इस जमीन पर अपना कब्जा कर रहे हैं।”

अररिया के तत्कालीन अनुमंडल कृषि पदाधिकारी रामकुमार, जो वर्तमान में रोहतास के जिला कृषि पदाधिकारी हैं, ने इस मामले को उठाया और अपर समाहर्ता के कोर्ट में जमाबंदी रद्द करते हुए अनुमंडल कृषि विभाग के नाम जमाबंदी दर्ज कराने की गुहार लगाई।

उन्होंने काफी मेहनत कर पुराने दस्तावेजों को इकट्ठा किया और एडीएम कार्यालय में प्रस्तुत किया।

एडीएम की अदालत में केस दर्ज

तत्कालीन अनुमंडल कृषि पदाधिकारी ने जमाबंदी रद्द कराने के लिए वरिष्ठ पैनल अधिवक्ता एलपी नायक को अपना केस सौंपा है। अधिवक्ता एलपी नायक ने बताया कि सारे कागजातों का अध्ययन करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया है कि इसमें अंचल अधिकारी का बड़ा रोल है।

उन्होंने बताया, “इस मामले को लेकर एडीएम के न्यायालय में 3 जुलाई को केस दर्ज कर दिया गया है। उम्मीद है कि न्यायालय से हमें इंसाफ मिलेगा और पुरानी जमाबंदी को रद्द कर अनुमंडल कृषि कार्यालय की जमाबंदी में इसे शामिल किया जाएगा।”

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उन्होंने बताया कि अंचल कार्यालय से इस तरह की लापरवाही के मामले काफी बढ़ रहे हैं, जिस कारण न्यायालय पर ऐसे मामलों का बोझ भी बढ़ता जा रहा है।

इन मामलों में दोनों पक्ष जमीन का दावा करते हैं। दोनों के पास अंचल कार्यालय के कागजात होते हैं। इससे साफ नजर आता है कि राजस्व भूमि विभाग का अंचल कार्यालय अपने काम में लापरवाही बरत रहा है। उन्होंने बताया कि एडीएम कार्यालय में दर्ज किए गए मामले की जल्द ही सुनवाई होगी।

सरकारी जमीनों पर और भी हैं दावे के मामले

इस तरह के भूमि विवाद अपवाद नहीं हैं। वर्ष 2000 में सदर अस्पताल के नजदीक लगभग एक करोड़ रुपये की लागत से अल्पसंख्यक छात्रावास का निर्माण कराया गया था। जब यह निर्माण पूरा हुआ तो उस जमीन के मालिक ने दावा किया की यह जमीन उनकी है और बिना उनकी अनुमति के इस पर निर्माण कराया गया है।

ये मामला भी न्यायालय पहुंच गया और अभी तक लंबित है। इस कारण आज भी अल्पसंख्यक छात्रावास का इस्तेमाल नहीं हो सका है और यह धीरे-धीरे खंडहर में तब्दील हो रहा है।

उसी सदर अस्पताल के सामने अररिया नगर परिषद ने वर्ष 2009 में 72 दुकानों वाला दो मंजिला मार्केट बनाया था। जब इस मार्केट का काम पूरा हुआ, तो वहां भी जमीन विवाद उठ खड़ा हुआ। उस जमीन पर पीडब्ल्यूडी ने दावा ठोंका और कहा कि बिना उससे अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) लिए ही इस पर निर्माण करा दिया गया है।

आज भी वह मार्केट जस का तस पड़ा है और खंडहर में तब्दील हो रहा है। यह मामला कोर्ट में लंबित है। ऐसे कई मामले है, जहां सरकारी विभाग का भी भवन जमीन विवाद में पड़कर वर्षों से खंडहर होता जा रहा है।

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