10 वर्ष पहले बिहार में हुए एक पकड़ौआ विवाह को पटना हाईकोर्ट ने यह कहकर रद्द कर दिया केवल मांग में सिंदूर भर देना ही शादी नहीं होती है।
कोर्ट पूर्व के अदालती मामलों का हवाला देते हुए कहा कि इसके लिए हिन्दू विवाह पद्धति के तहत अग्नि के सात फेरे लेना अनिवार्य है।
रविकांत नाम के युवक ने जबरन हुई शादी को रद्द करने को लेकर फैमिली कोर्ट में याचिका दायर की थी। लेकिन, फैमिली कोर्ट ने यह याचिका खारिज कर दी थी। इसके बाद रविकांत ने पटना हाईकोर्ट का रुख किया।
10 नवम्बर को आये फैसले में पटना हाईकोर्ट के जस्टिस पीबी बजंथरी और जस्टिस अरुण कुमार झा ने कहा, “तमाम बहसों और सबूतों की रौशनी में हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि फैमिली कोर्ट का आदेश संधारणीय नहीं है। इसलिए 21 जनवरी 2020 के फैमिली कोर्ट के आदेश आदेश को रद्द किया जाता है और यह शादी भी रद्द की जाती है।”
कोर्ट के समक्ष दूसरे पक्ष की तरफ से दावा किया गया था कि शादी दोनों तरफ की रजामंदी से हुई थी और हिन्दू धर्म के रिवाजों को मानते हुए शादी की गई थी, जिसमें दोनों पक्षों के अभिभावक भी मौजूद थे। लेकिन, इन दावों की गवाहों ने पुष्टि नहीं की।
क्या था मामला
मामला 10 साल पुराना है। 30 जून 2013 को नवादा जिले के रहने वाले रविकांत अपने चाचा के साथ लखीसराय के अशोक धाम मंदिर में पूजा करने गया था। रविकांत उस वक्त आर्मी में सिग्नलमैन थे। दोपहर वे लोग पास के बाजार से पूजा सामग्री खरीद रहे थे, तभी आधा दर्जन से ज्यादा लोग हथियार लेकर आये और हथियार का डर दिखाकर रविकांत को अगवा कर लिया। उसे वे लोग घर ले गये और युवक से जबरन वंदना कुमारी नाम की युवती की मांग में सिंदूर डलवा दिया। बाद में अपहर्ताओं ने युवक और उसके चाचा को छोड़ दिया, लेकिन युवक से कहा कि वह अपने परिजनों और दुल्हन के लिए गहने लेकर दोबारा आये।
शादी के बाद वंदना कुमारी 3-4 चार दिन ससुराल में रही और इसके बाद उसे वापस उसके मायके भेज दिया गया।
युवक किसी तरह थाने पहुंचा और पूरी घटना बताई, लेकिन पुलिस ने कोई शिकायत दर्ज नहीं की।
बाद में रविकांत ने उक्त शादी को रद्द करार देने के लिए लखीसराय के फैमिली कोर्ट में एक याचिका दायर की। मामले की सुनवाई करते हुए फैमिली कोर्ट ने 27 जनवरी 2020 को याचिकाकर्ता रविकांत की याचिका खारिज कर दी। इसके बाद रविकांत ने पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
पकड़ौआ विवाह
जबरन शादी के लिए युवक या युवती को अगवा करना और बंदूक की नोक पर शादी करवा देने को ‘पकड़ौआ विवाह’ कहा जाता है।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों से पता चलता है कि जबरन शादी के लिए देश में बड़े पैमाने पर युवक व युवतियों (नाबालिक भी शामिल) को अगवा किया जाता है।
एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2021 में देशभर में जबरन शादी के लिए 143 नाबालिग लड़कों और 12788 नाबालिग लड़कियों का अपहरण किया गया था। वहीं, 308 युवकों व 10235 युवतियों को जबरद्स्ती शादी के लिए अगवा किया गया था।
पकड़ौआ विवाह के मामले में बिहार वर्षों से कुख्यात रहा है। बिहार के अधिकांश जगहों में पकड़ौआ विवाह का कम से कम एक मामला हुआ है।
बिहार स्टेट क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि साल 2021 में जबरन शादी करने के लिए 22 नाबालिग लड़कों और 2251 नाबालिग लड़कियों का अपहरण किया गया। इसी तरह, 46 युवकों (बालिग) 1415 युवतियों को भी इसी उद्देश्य से अगवा किया गया था।
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क्या पकड़ौआ शादी पर लगेगी लगाम
हिन्दू मैरिज एक्ट 1955 की धारा 7(2) में भी स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि सप्तपदी के बाद ही दूल्हा और दुल्हन के बीच शादी पूरी मानी जाएगी। यानी कि अगर सप्तपदी नहीं होती है, तो शादी को रद्द माना जाएगा।
पटना हाईकोर्ट ने अपने फैसले में भी सप्तपदी यानी अग्नि के सात फेरे लेने को शादी पूरी होने की अनिवार्यता बताई है।
हालांकि, अधिकांश हिन्दुओं को हिन्दू मैरिज एक्ट की धाराओं की जानकारी नहीं है, नतीजतन सिर्फ मांग में सिंदूर भरने को ही शादी मान ली जाती है। ऐसे में अब जब कोर्ट के आदेश की खबरें अखबारों में छप चुकी हैं, तो ऐसा माना जा रहा है कि लोगों में जागरूकता आएगी और लोग इस तरह के मामलों में कोर्ट का रुख करेंगे।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो और स्टेट क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों से जाहिर होता है कि अब भी जबरन शादियां होती हैं। लेकिन अदालतों में ये मामले नहीं पहुंचते।
पटना के वकील संतोष कुमार कहते हैं, “हमारे पास तो अब तक इस तरह का कोई मामला नहीं आया है। कोर्ट में भी इस तरह मामले इक्का-दुक्का ही आते हैं।”
“हमको लगता है कि इस तरह के मामले आपस में ही सुलझा लेते हैं। तलाक तक मामला जाता ही नहीं है,” उन्होंने कहा।
पिछले साल 29 नवम्बर को अररिया जिले के रानीगंज थाना क्षेत्र में एक ऐसा ही मामला आया था।
गुलटेन मंडल नाम के व्यक्ति की 12 साल की बेटी की शादी जबरन 35 साल के युवक से करा दी गई थी।
गुलटेन मंडल ने इस मामले में थाने में लिखित आवेदन देकर जबरन पैसे का प्रलोभन देकर उनकी नाबालिग बेटी से शादी करने का आरोप लगाया था।
उन्होंने आवेदन में लिखा कि उनके ही गांव के एक व्यक्ति ने पैसे का प्रलोभन देकर 12 साल की बेटी की शादी कराने का दबाव बनाया और जब वह घर पर नहीं थे, तो दूल्हे को लेकर वह व्यक्ति उनके घर पहुंच गया। घर पर उनकी पत्नी को पैसा देने का लालच देकर शादी करा दी।
दिलचस्प बात यह है कि इस मामले में इंडियन पीनल कोड की जो धाराएं लगाई हैं, वे धमकी, दुर्व्यवहार, स्वेच्छा से चोट पहुंचाना, किसी को रोकना आदि से जुड़ी हुई हैं। इसके अलावा बाल विवाह कानून की भी धाराएं लगाई गई हैं। आवेदन में शादी रद्द करने का कोई जिक्र नहीं है।
गुलटेन मंडल के साथ बातचीत में उनके भीतर चल रहा ऊहापोह साफ झलकता है। वह कहते हैं, “मांग में सिंदूर तो डल गया है। समझ में नहीं आ रहा कि क्या करें।”
जिस ऊहापोह की स्थिति से गुलटेन गुजर रहे हैं, वही स्थिति दूसरे अभिभावकों की भी है।
वकील संजीव कुमार शर्मा कहते हैं, “अगर जबरदस्ती शादी की गई है, तो वह अवैध ही हुई और अगर कोर्ट में मामला जाता है, तो शादी रद्द हो ही जाएगी। ऐसा कानून में ही प्रावधान है। लेकिन, दिक्कत ये है कि एक तो लोगों में जागरूकता नहीं है और दूसरी बात यह है कि एक बार लड़की की मांग में सिंदूर डाल दिया जाता है, तो अभिभावक पर समाज के लोग दबाव बनाते हैं कि सिंदूर डाल दिया है, तो लड़की को सिंदूर डालने वाले युवक के साथ ही रहने दिया जाए। इस सामाजिक दबाव के चलते अभिभावक कोर्ट या पुलिस के पास नहीं जाते हैं।”
“अगर लोगों में जागरूकता आ जाए, तो इस तरह की जबरन शादियों से कानूनी रूप से मुक्ति पाई जा सकती है,” उन्होंने कहा।
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